उषा की कहानी

उषा अपनी ससुर के मुंह से उनकी बात सुन कर शर्मा गई और अपने हाथों से अपना चेहरा ढंक लिया और अपने ससुर से बोली, “ यह बात आप कह रहे है। मैं आपके बेटे कि पत्नी हूं और इस नाते से मैं अपकी बेटी समान हूं और मुझसे आप ये क्या कह रहे है?” तब गोविन्द जी अपने हाथो से उषा कि चूंचियों को पकड़ कर दबाते हुए बोले, “हां , मैं जानता हूं कि तू मेरी बेटी के समान है। लेकिन मैं तुझे अपने सुहागरात में तड़पते नही देख सकता और इसलिये मैं तेरे पास आया हूं।” तब उषा अपने चेहेरे से अपना हाथ हटा कर बोली, “ठीक है बाबूजी, आप मेरे से उमार में बड़े है। आप जो ही कह रहे है, ठीक ही कह रहे है। लेकिन घर में आप और मेरे सिवा और भी तो लोग है।” उषा का इशारा अपने सासू मां के लिये था। तब गोविन्द जी ने उषा कि चूंची को अपने हाथो से ब्लाऊज के उपर से मलते हुए कह, “उषा तुम चिंता मत करो। तुम्हारी सासू मां को सोने से पहले दूध पीने कि आदत है, और आज मैंने उनको दूध में दो नींद की गोली मिला कर उनको पिला दिया है। अब रात भर वो आरम से सोती रहेंगी।” तब उषा ने अपने हाथो से अपने ससुरजी की कमार पकड़ते हुए बोली, “अब आप जो भी करना है कीजिए, मैं मना नही करुंगी।”

तब गोविन्द जी उषा को अपने बाहों में भींच लिया और उसके मुंह को बेतहाशा चूमने लगे और अपने दोनो हाथों से उसकि चूंचियों को पकड़ कर दबाने लगे। उषा भी चुप नही थी। वो अपने हाथो से अपने ससुर का लण्ड उनके कपड़े के ऊपर से पकड़ कर मुठ मार रही थी। गोविन्द जी अब रुकने के मूड में नही थे। उन्होने उषा को अपने से अलग किया और उसकी साड़ी का पल्लू को कंधे से नीचे गिरा दिया। पल्लू को नीचे गिराते ही उषा की दो बड़ी बड़ी चूंची उसके ब्लाऊज के ऊपर से गोल गोल दिखाने लगी। उन चूंची को देखते ही गोविन्द जी उन पर टूट पड़े और अपना मुंह उस पर रगड़ने लगे। उषा कि मुंह से ओह! ओह! अह! क्या कर रहे हो की आवाजे आने लगी। थोड़ी देर के बाद गोविन्द जी ने उषा कि साड़ी उतार दिया और तब उषा अपने पेटीकोट पहने ही दौड़ कर कमरे का दरवजा बंद कर दिया। लेकिन जब उषा कमरे कि लाईट बुझाना चाहा तो गोविन्द जी ने मना कर दिया और बोले, “नही बात्ती मत बंद करो। पहले दिन रोशनी में तुम्हारी चूत चोदने में बहुत मज़ा आयेगा।” उषा शर्मा कर बोली, “ठीक है मैं बत्ती बंद नही करती, लेकिन आप भी मुझको बिलकुल नंगी मत कीजियेगा।”

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“अरे जब थोड़ी देर के बाद तुम मेरा लण्ड अपनी चूत में पिलवाओगी तब नंगी होने में शरम कैसी। चलो इधर मेरे पास आओ, मैं अभी तुमको नंगी कर देता हूं।” उषा चुपचाप अपना सर नीचे किये अपने ससुर के पास चली आई।

जैसे ही उषा नज़दीक आई, गोविन्द जी ने उसको पकड़ लिया और उसके ब्लाऊज के बटन खोलने लगे। बटन खुलते ही उषा कि बड़ी बड़ी गोल गोल चूंचियां उसके ब्रा के उपर से दिखाने लगी। गोविन्द जी अब अपना हाथ उषा के पीछे ले जकर उषा कि ब्रा का हुक भी खोल दिया। हुक खुलते ही उषा कि चूंची बाहर गोविन्द जी के मुंह के सामने झूलने लगी। गोविन्द जी ने तुरंत उन चूंचियों को अपने मुंह में भर लिया और उनको चूसने लगे। उषा कि चूंचियों को चूसते चूसते वो उषा कि पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और पेटीकोट उषा के नितम्बों से सरकते हुए उषा के पैर के पास जा गिरा। अब उषा अपने ससुर के समने सिर्फ़ अपने पेण्टी पहने खड़ी थी। गोविन्द जी ने झट से उषा कि पेण्टी भी उतर दी और उषा बिलकुल नंगी हो गई। नंगी होते ही उषा ने अपनी चूत अपने हाथो से छुपा लिया और शरमा कर अपने ससुर को कनखियों से देखाने लगी। गोविन्द जी नंगी उषा के सामने जमीन पर बैठ गये और उषा कि चूत पर अपना मुंह लगा दिया। पहले गोविन्द जी अपने बहू कि चूत को खूब सूंघा। उषा कि चूत से निकलती सौंधी सौंधी खुशबु गोविन्द जी के नाक में भर गई। वो बड़े चाव से उषा कि चूत को सूंघने लगे। थोड़ी देर के बाद उन्होने अपना जीव निकल कर उषा कि चूत को चाटना शुरु कर दिया। जैसे ही उनका जीव उषा कि चूत में घुसा, तो उषा जो कि पलंग के सहारे खड़ी थी, पलंग पर अपनी चूतड़ टिका दिया और अपने पैर फ़ैला कर अपनी चूत अपनी ससुर से चटवाने लगी। थोड़ी देर तक उषा कि चूत चाटने के बाद गोविन्द जी अपना जीव उषा कि चूत के अन्दर डाल दिया और अपनी जीव को घुमा घुमा कर चूत को चूसने लगे। अपनी चूत चाटने से उषा बहुत गरम हो गई और उसने अपने हाथो से अपनी ससुर का सिर पकड़ कर अपनी चूत में दबाने लगी और उसके मुंह से सी सी की आवाजे निकलने लगी।

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