उषा की कहानी

“मा तुमको इतना दुख है तो मुझसे क्यों नही बोली?” रजनी जी अपने आपको उषा से चुराते हुए बोली,

“मैं अगर तुझे बता भी दूं तो तू क्या कर लेती? तुम भी तो मेरी ही तरह से एक औरत हो?”

“अरे मुझसे कुछ नही होता तो क्या तुम्हारा दामाद तो है? तुम्हारा दामाद ही तुमको शान्त कर देगा” उषा अपनी मा को फिर से पकड़ कर चूमते हुए बोली।

“क्या बोली तू, अपने दामाद से मैं अपनी जिस्म कि भूख शान्त करवाऊंगी? तेरा दिमाग तो ठीक है?” रजनी जी अपनी बेटी उषा से बोली। तब उषा अपने हाथों से अपनी मा कि चूंचियों को पकड़ कर दबाते हुए बोली, “इसमे क्या हुआ? तुम जिस्म कि भूख से मरी जा रही हो, और तुम्हारा दामाद तुम्हारी जिस्म कि भूख को नहीं मिटा सकता है क्या ?, अगर तुम्हारी जगह मैं होती तो मैं अपने दामाद के समने खुद लेट जाती और उससे कहती आओ मेरे प्यारे दामादजी मेरे पास आओ और मेरी जिस्म की आग बुझाओ।”

“चल हट बड़ी चुद्दकड़ बन रही है, मुझे तो यह सोच कर ही शरम आ रही है, कि मैं अपनी दामाद के सामने नंगी लेट कर अपनी टांगे उठाऊंगी और वो मेरी चूत में अपना लण्ड पेलेगा” रजनी जी मुड़ कर अपनी बेटी कि चूंचियों को मसलते हुये बोली।

तभी रमेश, जो कि बाहर गया हुआ था, कमरे में घुसा और घुसते हुए उसने अपनी बीवी और सास की बातों को सुन लिया। रमेश ने आगे बढ कर अपनी सास के सामने घुटने के बल बैठ गया और अपनी सास के चूतड़ों को अपने हाथों से घेर कर पकड़ते हुए सास से बोला, “मा आप क्यों चिन्ता कर रही हैं, मैं हूं ना? मेरे रहते हुए आपको अपनी जिस्म कि भूख कि चिन्ता नही करनी चाहिये। अरे वो दामाद ही बेकार का है जिसके होते हुए उसकि सास अपनी जिस्म की भूख से पागल हो जाये।”

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“नही, नही, छोड़ो मुझे। मुझे बहुत शरम लग रही है” रजनी जी ने अपने आप को रमेश से छुड़ाते हुए बोली। तभी उषा ने आगे बढ कर अपनी मा कि चूंची को पकड़ कर मसलते हुए उषा अपनी मा से बोली, “क्यों बेकार की शरम कर रही हो मा। मन भी जाओ अपने दामाद की बात और चुपचाप जो हो रहा उसे होने दो।” तब थोड़ी देर चुप रहने के बाद रजनी जी अपनी बेटी की तरफ़ देख कर बोली, “ठीक है, जैसे तुम लोगो कि मरज़ी। लेकिन एक बात तुम दोनो कान खोल कर सुन लो। मैं अपने दामाद के समने बिलकुल नंगी नही हो पाऊंगी। आगे जैसा तुम लोग चाहो।” इतना सुन कर रमेश मुसकुरा कर अपने सास से कह, “अरे सासुमा आप को कुछ नही करना है। जो कुछ करमा मैं ही करुंगा, बस आप हमारा साथ देती जाये।”

फिर रमेश उठ कर खड़े हो गया और अपनी सास को अपनी दोनो बाहों में जकड़ कर चूमने लगा। रजनी जी चुपचाप अपने आप को अपने दामाद के बाहों में छोड़ कर खड़ी रही। थोड़ी देर तक अपने सास को चूमने के बाद रमेश ने अपने हाथों से अपने सास कि चूंची पकड़ कर दबाने लगा। अपने चूंचियों पर दामाद का हाथ पड़ते ही रजनी जी मारे सुख के बिलबिला उठी और बोलने लगी, “और जोर से दबाओ मेरी चूंचियो को बहुत दिन हो गये किसी ने इस पर हाथ नही लगाया है। मुझे अपने दामाद से चूंची मसलवाने में बहुत मज़ा मिल रहा है। और दबाओ। आ बेटी तू ही आ मेरे पास आजा और मेरे इन चूंचियों से खेल।” अब रमेश फिर से अपने सास के पैरों के पास बैठ गया और उनकी साड़ी के ऊपर से ही उनकी चूत को चूमने लगा। रजनी जी अपने चूत के ऊपर अपने दामाद के मुंह लगते ही बिलबिला उठी और जोर जोर से सांस लेने लगी।

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