उषा की कहानी

आज उषा अपनी सुहागरात कि सेज पर अपनी कई बार की चुदी हुई चूत लेकर अपने पति के लिये बैठी थी। उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था क्योंकि उषा को डर था कि कहीं उसके पति को यह ना पता चल जाये कि उषा पहले ही चुदाई का आनन्द ले चुकी है। थोड़ी देर के बाद कमरे का दरवाजा खुला। उषा ने अपनी आंख तिरछी करके देखा कि उसके ससुरजी, गोविन्द जी, कमरे में आये हुए है। उषा का माथा ठनका, कि सुहागरात के दिन ससुरजी को क्या काम आ गया है।

खैर उषा चुपचप अपने आप को सिकोड़े हुये बैठी रही। थोड़ी देर के बाद गोविन्द जी सुहाग कि सेज के पास आये और उषा के तरफ़ देख कर बोला,”बेटी मैं जानता हूं कि तुम अपने पति के लिये इनतजार कर रही हो। आज के सब लड़के अपने पति का इनतजार कराती है। इस दिन के लिये सब लड़कियों का बहुत दिनो से इनतजार रहता है। लेकिन तुम्हारा पति, रमेश, आज तुमसे सुहागरात मनाने नही आ पायेगा। अभी अभी थाने से फोन आया था और वोह अपनी यूनिफ़ार्म पहन कर थाने चला गया। जाते जाते, रमेश यह कह गया कि शहर के कई भाग में डकैती पड़ी है और वोह उसकी छानबीन करने जा रहा है। लेकिन बेटी तू बिलकुल चिन्ता मत करना। मैं तेरी सुहागरात खाली नही जाने दूंगा।” उषा अपने ससुरजी की बात सुन तो लिया पर अपने ससुर कि बात उसके दिमाग में नही घुसी, और उषा अपना चेहरा उठा कर अपने ससुर को देखाने लगी। गोविन्द जी ने आगे बढ कर उषा को पलंग पर से उठा लिया और जमीन पर खड़े कर दिया। तब गोविन्द जी मुसकुरा कर उषा से बोले, “घबाराना नही, मैं तुम्हारा सुहागरात बेकार जाने नही दूंगा, कोई बात नही, रमेश नही तो क्या हुआ मैं तो हूं।” इतना कह कर गोविन्द जी आगे बढ कर उषा को अपने बाहों में भर कर उसकि होठों पर चूम्मा दे दिया।

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जैसे ही गोविन्द जी ने उषा के होठों पर चूम्मा दिया, उषा चौंक गई और अपने ससुरजी से बोली, “यह आप क्या कर रहे है। मैं तो आपके बेटे कि पत्नी हूं और उस लिहाज से मैं आप कि बेटी लगती हूं और आप मुझको चूम रहे है?” गोविन्द जी ने तब उषा से कह, “पागल लड़की, अरे मैं तो तुम्हारी सुहागरात बेकार ना जाये इसालीये तुमको चूमा। अरे लड़कियां जब शादी के पहले जब शिव लिंग पर पानी चढाते है तब वो क्या मांगती है? वो मांगती है कि शादी के बाद उसका पति उसको सुहागरात में खूब रगड़े। समझी? उषा ने अपना चेहरा नीचे करके पूछा, “मैं तो सब समझ गई, लेकिन सुहागरात और रगड़ने वाली बात नही समझी।” गोविन्द जी मुसकुरा कर बोले, “अरे बेटी इसमे ना समझने कि क्या बात है? तू क्या नही जानती कि सुहागरात में पति और पत्नी क्या क्या करते है? क्या तुझे यह नही मालूम कि सुहागरात में पति अपने पत्नी को कैसे रगड़ता है?” उषा अपनी सिर को नीचे रखती हुइ बोली, “हां, मालूम तो है कि पहली रात को पति और पत्नी क्या क्या करते और करवाते हैं। लेकिन, आप ऐसा क्यों कह रहे है?” तब गोविन्द जी ने आगे बढ कर उषा को अपनी बांहो में भर लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोले, “अरे बहू, तेरा सुहागरात खाली ना जाये, इसालीये मैं तेरे साथ वो सब काम करुंगा जो एक आदमी और औरत सुहागरात में कराते हैं।”

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