यह सुन कर मामा जी ने पूछा– तो फिर क्या तुम मेरे साथ सो रही थी? क्या अभी अभी मैंने तुम्हारे साथ सम्भोग किया था?
मैंने उत्तर दिया– जी हाँ, मामी के जाने के बाद आप करवट ले कर मेरे पास आ कर सो गए थे और अभी अभी आपने मेरे साथ ही सम्भोग किया था।
मेरी बात सुनते ही वह सकते में आ गए और मुझसे बोले- यह गलत बात हो गई है। क्या तुम मुझे रोक नहीं सकती थी?
मैंने उत्तर में कहा– मैं सो रही थी, तब आपने मेरे स्तनों को मसल कर मेरी सोई वासना को जगा दिया था। इससे पहले कि मैं आपसे कुछ कहती, मेरे अंदर की यौन वासना ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। कई माह के बाद यौन सुख, आनन्द और संतुष्टि मिलने की लालसा के वशीभूत मैं चुप रही।
मेरी बात सुन कर उन्होंने कहा– यह गलत हुआ है, बहुत ही गलत हुआ है। इस वासना और लालसा के वशीभूत होकर हम दोनों ने जो किया वह अनैतिक है।
उनकी बात सुन कर मैंने कहा– मामा जी, जैसे प्यार और युद्ध में कुछ भी नाजायज़ नहीं कहलाता उसी प्रकार यौन वासना और लालसा में कुछ भी अनैतिक नहीं होता।
इसके बाद मैं अपनी ताज़ी धुली ही गीली योनि को तौलिये से पोंछती हुई बाथरूम से बाहर निकल गई।
कुछ देर के बाद मामा जी भी अपने लिंग को धोकर उसे कमर से बंधे तौलिये से पौंछते हुए मेरे बगल में कुछ दूरी बना कर लेट गये।
दस मिनट चुपचाप लेटे रहने के बाद मामा जी ने कहा– अर्पिता, क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूँ कि तुम इस घटना के बारे में अपनी मामी या किसी और के साथ साझा नहीं करोगी?
मामा जी की बात सुन कर मैं कुछ सोच में पड़ गई की थोड़ी देर पहले मिले आनन्द एवम् संतुष्टि की तुलना पति से मिले आनन्द एवम् संतुष्टि से करने लगी।
मेरे मस्तिष्क द्वारा उस तुलना का विश्लेषण करने से मुझे महसूस हुआ कि मेरे पति का लिंग मामा जी के लिंग से एक इंच लम्बा तो है लेकिन आधा इंच पतला होने के कारण मुझे वह यौन आनन्द एवम् संतुष्टि नहीं देता है।
कुछ देर पहले मामा जी से मिले यौन आनन्द एवम् संतुष्टि को भविष्य में पुनः प्राप्त करने की लालसा से विवश होकर मैंने कहा– मामा जी, मैं वचन तो नहीं दे सकती लेकिन यह आश्वासन देती हूँ कि मैं इस बात का अपने तक सीमित रखूंगी बशर्ते कि आप भी मेरी एक बात मानने का आश्वासन देते हैं।
मेरा उत्तर सुन कर मामा जी मेरी ओर घूरते हुए पूछा– तुम्हारी क्या बात मुझे माननी पड़ेगी?
मैंने तुरंत कहा– भविष्य में अगर कभी मुझे आप से आज जैसा यौन आनन्द एवम् संतुष्टि चाहिए होगी तो आप कभी भी इन्कार नहीं करेंगे।
पलट कर मामा जी ने प्रश्न किया– अगर मुझे तुमसे आज जैसा यौन आनन्द एवम् संतुष्टि चाहिए होगी तो?
मैंने उत्तर में कहा– मामा जी, अगर परिस्थिति अनुरूप हुई तो मैं तुरंत ही आपको वह सब सुख प्रदान कर दूंगी। लेकिन विपरीत परिस्थिति होने पर आपको प्रतीक्षा करनी होगी जब तक कि परिस्थिति अनरूप नहीं हो जाती।
इसके बाद मामा जी ने मुझे बाहुपाश में ले लिया और हम दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूमते हुए लिपट कर सो गए।
उस रात के बाद जब तक मैं मामा-मामी के घर में रही तब तक मामी के नर्सिंग होम जाने के बाद हम रोजाना सम्भोग करके आनन्द एवम् संतुष्टि प्राप्त कर लेते थे।