Yaun Vasna Ke Vashibhoot Par Purush Sahvas

गर्भनाल के बाहर निकलते ही मामी ने उसे काट कर अलग किया और बच्चे का निरीक्षण एवम् उपचार करने के लिए वहाँ से दूसरे कमरे में ले गई।

मामी के वहाँ से हटते ही एक नर्स मेरी टांगों के बीच में बैठ कर मेरे पेट, नाभि तथा जघन-स्थल को दबा कर मेरी योनि के अन्दर से रक्त आदि को बाहर निकालने एवम् साफ़ करने लगी।

जब मेरी योनि साफ़ हो गई तब नर्स वहाँ से हट गई और मामा जी मेरी टांगों के बीच में बैठ कर मेरी योनि में लगे चीरे की जगह को साफ़ करने लगे ताकि वे उसमें टांके लगा सकें।

उनका इस तरह बैठ कर मेरी योनि को साफ़ करना तथा उसमें उँगलियाँ डाल कर टांकें लगाने से मुझे बहुत बेचैनी एवम् शर्मिंदगी महसूस होती रही लेकिन उस परिस्थिति में मैं कुछ नहीं कर सकती थी।

कुछ देर के बाद जब टांकें लग गए तब मामा जी ने मेरी योनि को अच्छी तरह से दबा कर साफ़ किया और टांकों पर मलहम लगाने के बाद नर्स को मेरी योनि पर सैनिट्री पैड बाँधने को कह कर चले गए।

वहाँ से मामा जी के जाते ही मामी अपने हाथों में बच्चे को उठाये आई और मुझे पकड़ते हुए बोली– अर्पिता, बहुत बधाई हो, तुमने अपने घर के चिराग को जन्म दिया है।

फिर नर्स ने सैनिट्री पैड बाँधने के बाद मुझे और बच्चे को मामी के ऑफिस के साथ वाले कमरे में स्थानांतरित कर दिया।

जब मैं उस कमरे में पहुँची तब मैंने अपने पति और सास को वहाँ देखा जो सुबह चार बजे से प्रसूति-गृह के बाहर प्रतीक्षा में खड़े हुए थे।

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मुझे बिस्तर पर लिटाते ही वे मेरे पास आकर बैठ गए और उन्होंने बताया- तुम्हारी मामी ने हमें तीन बजे तुम्हारे प्रसव के बारे में बता दिया था और हम तुरंत नर्सिंग होम पहुँच गए थे।

तभी मामी ने बच्चे को मेरी सास की गोदी में देते हुए कहा– मुन्ने की दादी अम्मा जी को बहुत बधाई हो, यह लीजिये अपने खानदान एवम् परिवार के वारिस को। इसका जन्म सुबह चार बज कर पैंतीस मिनट पर हुआ था।

जब दो दिनों के बाद मेरी सास ने मामी से मुझे नर्सिंग होम से छुट्टी मिलने पर अपने घर ले जाने की बात कही तब मामी ने कहा– परिवार के रीति रिवाज़ के अनुसार बेटी प्रसव के चालीस दिनों के बाद ही अपने ससुराल जाती है।

यह सुन कर मेरी सास पहले तो थोड़ा मायूस हुई लेकिन फिर मुस्कराते हुए ली– हाँ, तुम सही कह रही हो कि रीति रिवाजों के अनुसार तो जच्चा को चालीस दिन के लिए वहीं रहना चाहिए जहाँ उसका प्रसव हुआ है। ठीक है, चालीस दिन तक आप बहु रानी और मेरे पोते को अपने पास रखो, तब तक मैं भी चार धाम की यात्रा कर आती हूँ।

नर्सिंग होम से घर वापिसी
अगले दिन मामी मुझे अपने घर ले आई और वहीं पर मेरी एवम् मेरे बेटे की देखभाल होने लगी।

इसके तीन दिनों के बाद तक मेरी सास रोजाना घर पर अपने पोते से मिलने आ जाती थी और उसके बाद वह चार धाम की यात्रा के लिए चली गई।

मेरे पति सुबह और शाम अपने काम में से समय निकाल कर मुझे और बेटे से मिलने आते तथा कुछ समय मेरे से भी बातें कर के चले जाते।

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हर रोज़ मामी दिन में एक नर्स को घर पर भेज कर मेरी योनि में लगे टांकों की सफाई एवम् मरहम पट्टी तथा बेटे को नहलाना धोना आदि करा देती थी।

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