बहन के साथ चूत चुदाई का मज़ा-1

फिर मैं धीरे से अपने हाथ को ब्रा के सहारे सहारे बगल के नीचे से आगे की तरफ़ बढा दिया। फिर मैं दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथ में पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।

दीदी की निप्प्लें इस समय तनी तनी थी और मुझे उसे अपने उँगलेओं से दबाने में मज़ा आ रहा था। मैं तब आराम से दीदी की दोनो चूचियों को अपने हाथों से दबाने लगा और कभी कभी निप्पल खिचने लगा।

माँ अभी भी किचन में खाना पका रही थी। हम लोगों को माँ साफ़ साफ़ किचन में काम करते दिखलाई दे रही थी। मैं यह सोच सोच कर खुश हो रहा की दीदी कैसे मुझे अपनी चूचियों से खेलने दे रही है और वो भी तब जब माँ घर में मौजूद हैं।

मैं तब अपना एक हाथ फिर से दीदी के पीठ पर ब्रा के हुक तक ले आया और धीरे धीरे दीदी की ब्रा की हुक को खोलने लगा।

दीदी की दोनों चूचियों को छूने का एहसास

दीदी की ब्रा बहुत टाईट थी और इसलिए ब्रा का हुक आसानी से नहीं खुल रहा था। लेकिन जब तक दीदी को यह पता चलता मैं उनकी ब्रा की हुक खोल रहा हूँ, ब्रा की हुक खुल गया और ब्रा की स्ट्रेप उनकी बगल तक पहुँच गया।

दीदी अपना सर घुमा कर मुझसे कुछ कहने वाली थी की माँ किचन में से हॉल में आ गईं मैं जल्दी से अपना हाथ खींच कर दीदी की टी शर्ट नीचे कर दिया और हाथ से टी शर्ट को ठीक कर दिया। माँ हॉल में आ कर कुछ ले रही थी और दीदी से बातें कर रही थी। \

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दीदी भी बिना सर उठाए अपनी नज़र अख़बार पर रखते हुए माँ से बाते कर रही थी। माँ को हमारे कारनामों का पता नहीं चला और फिर से किचन में चली गईं

जब माँ चली गईं तो दीदी ने दबी जुबान से मुझसे बोलीं, सोनू, मेरी ब्रा की हुक को लगा “क्या? मैं यह हुक नहीं लगा पाउंगा,” मैं दीदी से बोला

“क्यों, तू हुक खोल सकता है और लगा नहीं सकता? दीदी मुझे झिड़कते हुए बोलीं। “नही, यह बात नहीं है दीदी। तुम्हारा ब्रा बहुत टाईट है !” मैं फिर दीदी से कहा।

दीदी अख़बार पढते हुए बोलीं, मुझे कुछ नहीं पता, तुमने ब्रा खोला है और अब तुम ही इसे लगाओगे।” दीदी नाराज़ होती बोलीं।

“लेकिन दीदी, ब्रा की हुक को तुम भी तो लगा सकती हो?” मैं दीदी से पूछा। ” बुद्धू, मैं नहीं लगा सकती, मुझे हुक लगाने के लिए अपने हाथ पीछे करने पड़ेंगे और माँ देख लेंगी तो उन्हें पता चल जाएगा की हम लोग क्या कर रहे थी, दीदी मुझसे बोलीं।

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूँ। मैं अपना हाथ दीदी के टी शर्ट नीचे से दोनो बगल से बढा दिया और ब्रा के स्ट्रेप को खींचने लगा। जब स्ट्रेप थोड़ा आगे आया तो मैंने हुक लगाने की कोशिश करने लगा।

लेकिन ब्रा बहुत ही टाईट था और मुझसे हुक नहीं लग रहा था। मैं बार बार कोशिश कर रहा था और बार बार माँ की तरफ़ देख रहा था।

माँ ने रात का खाना क़रीब क़रीब पका लिया था और वो कभी भी किचन से आ सकती थी। दीदी मुझसे बोलीं, यह अख़बार पकड़। अब मुझे ही ब्रा के स्ट्रेप को लगाना पड़ेगा ।

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