बहन के साथ चूत चुदाई का मज़ा-1

मैं जब भी घर पर होता तो दीदी को ही देखता रहता, लेकिन इसकी जानकारी दीदी को नहीं थीं। दीदी जब भी अपने कपड़े बदलती थीं या माँ के साथ घर के काम में हाथ बटाती तो मैं चुपके चुपके उन्हें देखा करता था और कभी कभी मुझे उनकी सुडौल चूची देखने को मिल जाती (ब्लाउज़ के ऊपर से) थी।

दीदी के साथ अपने छोटे से घर में रहने से मुझे कभी कभी बहुत फायदा हुआ करता था। कभी मेरा हाथ उनके शरीर से टकरा जाता था। मैं दीदी के दो भरे भरे चूची और गोल गोल चूतड़ों को छूने के लिए मरा जा रहा था ।

मेरा सबसे अच्छा टाइम पास था अपने बालकोनी में खड़े हो कर सड़क पर देखना, और जब दीदी पास होती तो धीरे धीरे उनकी चूचियों को छूना।

हमारे घर की बालकोनी कुछ ऐसी थी की उसकी लम्बाई घर के सामने गली के बराबर में थी और उसकी संकरी सी चौड़ाई के सहारे खड़े हो कर हम सड़क देख सकते थे।

मैं जब भी बालकोनी पर खड़े होकर सड़क को देखता तो अपने हाथों को अपने सीने पर मोड़ कर बालकोनी की रेलिंग के सहारे ख़ड़ा रहता था।

कभी कभी दीदी आती तो मैं थोड़ा हट कर दीदी के लिए जगह बना देता और दीदी आकर अपने बगल ख़ड़ी हो जाती। मैं ऐसे घूम कर ख़ड़ा होता की दीदी को बिलकुल सट कर खड़ा होना पड़ता। दीदी की भरी भरी चूची मेरे सीने से सट जाता था।

मेरे हाथों की उंगलियाँ, जो की बालकोनी के रेलिंग के सहारे रहती वे दीदी के चूचियों से छू जाती थी।

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मैं अपने उंगलियों को धीरे धीरे दीदी की चूचियों पर हल्के हल्के चलाता था और दीदी को यह बात नहीं मालूम थी। मैं उँगलियों से दीदी की चूची को छू कर देखा की उनकी चूची कितनी नरम और मुलायम है लेकिन फिर भी तनी तनी रहा करती है कभी कभी मैं दीदी के चूतड़ों को भी धीरे धीरे अपने हाथों से छूता था।

मैं हमेशा ही दीदी की सेक्सी शरीर को इसी तरह से छू्ता था ।

दीदी को मेरी हरकतों का पता चला

मैं समझता था की दीदी मेरे हरकतों और मेरे इरादों से अनजान हैं दीदी को इस बात का पता भी नहीं था की उनका छोटा भाई उनके नंगे शरीर को चाहता है और उनकी नंगी शरीर से खेलना चाहता है लेकिन मैं ग़लत था। फिर एक दिन दीदी ने मुझे पकड़ लिया।

उस दिन दीदी किचन में जा कर अपने कपड़े बदल रही थीं । हॉल और किचन के बीच का पर्दा थोड़ा खुला हुआ था। दीदी दूसरी तरफ़ देख रही थीं और अपनी कुर्ती उतार रही थीं और उनकी ब्रा में छूपी हुई चूची मेरे नज़रों के सामने था।

फ़िर रोज़ की तरह मैं टी वी देख रहा था और दीदी को भी कनखियों से देख रहा था।

दीदी ने तब एकाएक सामने वाले दीवार पर टंगे शीशे को देखा और मुझे आँखे फ़िरा फ़िरा कर घूरते हुए पाया। दीदी ने देखा की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा हूँ। फिर एकाएक मेरे और दीदी की आँखे शीशे में टकरा गई मैं शर्मा गया और अपनी आँखे टी वी की तरफ़ कर लिया।

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मेरा दिल क्या धड़क रहा था। मैं समझ गया की दीदी जान गई हैं की मैं उनकी चूचियों को घूर रहा था। अब दीदी क्या करेंगी?
क्या दीदी माँ और पिताजी को बता देंगी? क्या दीदी मुझसे नाराज़ होंगी?
इसी तरह से हज़ारों प्रश्न मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। मैं दीदी की तरफ़ फिर से देखने का साहस जुटा नहीं पाया।

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