बहन के साथ चूत चुदाई का मज़ा-1

दीदी की चूची मसलते मसलते मेरा लंड धीरे धीरे ख़ड़ा होने लगा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन एकाएक माँ की आवाज़ सुनाई दी। माँ की आवाज़ सुनते ही दीदी ने धीरे से मेरा हाथ

पहली बार दीदी की चूची को स्पर्श किया

अपने चूची से हटा दिया और माँ के पास चली गईं उस रात मैं सो नहीं पाया, मैं सारी रात दीदी की मुलायम मुलायम चूची के बारे में सोचता रहा।

दूसरे दिन शाम को मैं रोज़ की तरह अपने बालकोनी में खड़ा था। थोड़ी देर के बाद दीदी बालकोनी में आईं और मेरे बगल में ख़ड़ी हो गईं मैं 2-3 मिनट तक चुपचाप ख़ड़ा दीदी की तरफ़ देखता रहा।

दीदी ने मेरे तरफ़ देखीं। मैं धीरे से मुस्कुरा दिया, लेकिन दीदी नहीं मुस्कुराईं और चुपचाप सड़क पर देखने लगीं।

मैं दीदी से धीरे से बोला- छूना है, मैं साफ़ साफ़ दीदी से कुछ नहीं कह पा रहा था। और पास आ दीदी ने पूछा – क्या छूना चाहते हो? साफ़ साफ़ दीदी ने फिर मुझसे पूछीं।

तब मैं धीरे से दीदी से बोला- तुम्हारी दूध छूना, दीदी ने तब मुझसे तपाक से बोलीं- क्या छूना है साफ़ साफ़ बोलो, मैं तब दीदी से मुस्कुरा कर बोला- तुम्हारी चूची छूना है उसको मसलना है। अभी माँ आ सकती है दीदी ने तब मुस्कुरा कर बोलीं।

मैं भी तब मुस्कुरा कर अपनी दीदी से बोला, जब माँ आएगी तो हमें पता चल जायेगा, मेरे बातों को सुन कर दीदी कुछ नहीं बोलीं और चुपचाप नज़दीक आ कर ख़ड़ी हो गईं, लेकिन उनकी चूची कल की तरह मेरे हाथों से नहीं छू रहे थे।

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मैं समझ गया की दीदी आज मेरे से सट कर ख़ड़ी होने से कुछ शर्मा रही हैं अबतक दीदी अनजाने में मुझसे सट कर ख़ड़ी होती थीं। लेकिन आज जानबुझ कर मुझसे सट कर ख़ड़ी होने से वो शर्मा रही हैं क्योंकी आज दीदी को मालूम था की सट कर ख़ड़ी होने से क्या होगा।

जैसे दीदी पास आ गईं और अपने हाथों से दीदी को और पास खींच लिया। अब दीदी की चूची मेरे हाथों को कल की तरह छू रही थी। मैंने अपना हाथ दीदी की चूची पर टिका दिया।

दीदी के चूची छूने के साथ ही मैं मानो स्वर्ग पर पहुँच गया। मैं दीदी की चूची को पहले धीरे धीरे छुआ, फिर उन्हें कस कस कर मसला। कल की तरह, आज भी दीदी की कुर्ती और उसके नीचे ब्रा बहुत महीन कपड़े की थी,

और उसमे से मुझे दीदी की निप्प्लें तन कर खड़े होना मालूम चल रहा था। मैं तब अपने एक उंगली और अंगूठे से दीदी की निप्प्लें को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा।

दीदी ने अपनी चूची को छूने रजामंदी दी

मैं जितनी बार दीदी की निप्पलों को दबा रहा था, उतनी बार दीदी कसमसा रही थीं और दीदी की मुँह शरम के मारे लाल हो रहा थी। तब दीदी ने मुझसे धीरे से बोलीं- धीरे दबा, तब मैं लगता धीरे धीरे करने।

मैं और दीदी ऐसे ही फालतू बातें कर रहे थें और देखने वाले को यही दिखता की मैं और दीदी कुछ गंभीर बातों पर बहस कर रहे थें। लेकिन असल में मैं दीदी की चूचियों को अपने हाथों से कभी धीरे धीरे और कभी ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था।

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थोड़ी देर बाद माँ ने दीदी को बुला लिया और दीदी चली गईं ऐसे ही 2-3 दिन तक चलता रहा।

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