बहन के साथ चूत चुदाई का मज़ा-1

मैं रोज़ दीदी की सिर्फ़ एक चूची को मसल पाता था। लेकिन असल में मैं दीदी की दोनो चूचियों को अपने दोनो हाथों से पाकर कर मसलना चाहता था। लेकिन बालकोनी में खड़े हो कर यह मुमकिन नहीं था। मैं दो दिन तक इसके बारे में सोचता रहा।

एक दिन शाम को मैं हॉल में बैठ कर टी वी देख रहा था। माँ और दीदी किचन में डिनर की तैयारी कर रही थीं। कुछ देर के बाद दीदी काम ख़त्म करके हॉल में आ कर बिस्तर पर बैठ गईं दीदी ने थोड़ी देर तक टी वी देखीं और फिर अख़बार उठा कर पढने लगीं।

दीदी बिस्तर पर पालथी मार कर बैठी थीं और अख़बार अपने सामने उठा कर पढ रही थीं। मेरा पैर दीदी को छू रहा था। मैंने अपने पैरों को और थोड़ा सा आगे खिसका दिया और और अब मेरा पैर दीदी की जांघो को छू रहा था।

मैं दीदी की पीठ को देख रहा था। दीदी आज एक काले रंग का झीना टी शर्ट पहनी हुई थीं और मुझे दीदी की काले रंग का ब्रा भी दिख रहा था।

मैं धीरे से अपना एक हाथ दीदी की पीठ पर रखा और टी शर्ट के उपर से दीदी की पीठ पर चलाने लगा। जैसे मेरा हाथ दीदी की पीठ को छुआ दीदी की शरीर अकड़ गया।

दीदी ने तब दबी जुबान से मुझसे पूछीं, यह तुम क्या कर रहे हो, तुम पागल तो नहीं हो गये, माँ अभी हम दोनो को किचन से देख लेंगी”, दीदी ने दबी जुबान से फिर मुझसे बोलीं।
“माँ कैसे देख लेंगी?” मैंने दीदी से कहा।
“क्या मतलब है तुम्हारा? दीदी ने पूछीं।
“मेरा मतलब यह है की तुम्हारे सामने अख़बार खुली हुई है अगर माँ हमारी तरफ़ देखेगी तो उनको अख़बार दिखलाई देगी।”
मैंने दीदी से धीरे से कहा। “तू बहुत स्मार्ट और शैतान है दीदी ने धीरे से मुझसे बोलीं।

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दीदी की दोनों चूचियों को छूने की कोशिश

फिर दीदी चुप हो गईं और अपने सामने अख़बार को फैला कर अख़बार पढने लगीं। मैं भी चुपचाप अपना हाथ दीदी के दाहिने बगल के ऊपर नीचे किया और फिर थोड़ा सा झुक कर मैं अपना हाथ दीदी की दाहिने चूची पर रख दिया।

जैसे ही मैं अपना हाथ दीदी के दाहिने चूची पर रखा दीदी कांप गईं मैं भी तब इत्मिनान से दीदी की दाहिने वाली चूची अपने हाथ से मसलने लगा।

थोड़ी देर दाहिना चूची मसलने के बाद मैं अपना दूसरा हाथ से दीदी बाईं तरफ़ वाली चूची पाकर लिया और दोनो हाथों से दीदी की दोनो चूचियों को एक साथ मसलने लगा।

दीदी कुछ नहीं बोलीं और वो चुप चाप अपने सामने अख़बार फैलाए अख़बार पढ्ती रही। मैं दीदी की टी शर्ट को पीछे से उठाने लगा। दीदी की टी शर्ट दीदी के चूतड़ों के नीचे दबी थी और इसलिए वो ऊपर नहीं उठ रही थी।

मैं ज़ोर लगाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। दीदी को मेरे दिमाग की बात पता चल गया। दीदी झुक कर के अपना चूतड़ को उठा दिया और मैंने उनका टी शर्ट धीरे से उठा दिया। अब मैं फिर से दीदी के पीठ पर अपना ऊपर नीचे घूमना शुरू कर दिया और फिर अपना हाथ टी शर्ट के अंदर कर दिया। वो! क्या चिकना पीठ था दीदी का।

मैं धीरे धीरे दीदी की पीठ पर से उनका टी शर्ट पूरा का पूरा उठा दिया और दीदी की पीठ नंगी कर दिया। अब अपने हाथ को दीदी की पीठ पर ब्रा के ऊपर घूमना शुरू किया। जैसे ही मैंने ब्रा को छुआ दीदी कांपने लगीं।

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