बहन के साथ चूत चुदाई का मज़ा-1

उस दिन सारा दिन और उसके बाद 2-3 दिनों तक मैं दीदी से दूर रहा, उनके तरफ़ नहीं देखा। इन 2-3 दिनों में कुछ नहीं हुआ। मैं ख़ुश हो गया और दीदी को फिर से घूरना चालू कर दिया।

दीदी ने मुझे 2-3 बार फिर घूरते हुए पकड़ लिया, लेकिन फिर भी कुछ नहीं बोलीं। मैं समझ गया की दीदी को मालूम हो चुका है की मैं क्या चाहता हूँ !

ख़ैर जब तक दीदी को कोई एतराज़ नहीं तो मुझे क्या लेना देना और मैं मज़े से दीदी को घूरने लगा ।
एक दिन मैं और दीदी अपने घर के बालकोनी में पहले जैसे खड़े थे। दीदी मेरे हाथों से सट कर ख़ड़ी थीं और मैं अपने उँगलियों को दीदी के चूची पर हल्के हल्के चला रहा था।

मुझे लगा की दीदी को शायद यह बात नहीं मालूम की, मैं उनकी चूचियों पर अपनी उँगलियों को चला रहा हूँ। मुझे इस लिए लगा क्योंकी दीदी मुझसे फिर भी सट कर ख़ड़ी थीं।

लेकिन मैं यह तो समझ रहा था क्योंकी दीदी ने पहले भी नहीं टोका था, तो अब भी कुछ नहीं बोलेंगी और मैं आराम से दीदी की चूचियों को छू सकता हूँ ।

हमलोग अपने बालकोनी में खड़े थें और आपस में बातें कर रहे थें, हमलोग कॉलेज और स्पोर्ट्स के बारे में बातें कर रहे थें। हमारे बालकोनी से सामने एक गली थी तो हमलोगों की बालकोनी में कुछ अंधेरा था।

बातें करते करते दीदी मेरे उँगलियों को, जो उनकी चूची पर घूम रहा था, अपने हाथों से पकड़कर अपनी चूची से हटा दिया। दीदी को अपनी चूची पर मेरे उंगली का एहसास हो गया था और वो थोड़ी देर के लिए बातें करना बंद कर दीं और उनकी शरीर कुछ अकड़ गईं लेकिन, दीदी अपने जगह से हिलीं नहीं और मेरे हाथों से सट कर खड़ी रहीं।

यह कहानी भी पड़े  दिल्ली के पार्क में माशूका से प्यार

दीदी ने मुझसे कुछ नहीं बोलीं तो मेरा हिम्मत बढ गया और मैं अपना पूरा का पूरा पंजा दीदी की एक मुलायम और गोल गोल चूची पर रख दिया।

मैं बहुत डर रहा था। पता नहीं दीदी क्या बोलेंगी? मेरा पूरा का पूरा शरीर काँप रहा था। लेकिन दीदी कुछ नहीं बोलीं। दीदी सिर्फ़ एक बार मुझे देखीं और फिर सड़क पर देखने लगीं। मैं भी दीदी की तरफ़ डर के मारे नहीं देख रहा था।

मैं भी सड़क पर देख रहा था और अपने हाथ से दीदी की एक चूची को धीरे धीरे सहला रहा था। मैं पहले धीरे धीरे दीदी की एक चूची को सहला रहा था और फिर थोड़ी देर के बाद दीदी की एक मुलायम गोल गोल, नरम लेकिन तनी चूची को अपने हाथों से ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। दीदी की चूची काफ़ी बड़ी थी और मेरे पंजों में नहीं समा रही थी।

थोड़ी देर बाद मुझे दीदी की कुर्ती और ब्रा के उपर से लगा की चूची के निप्प्लें तन गईं और मैं समझ गया की मेरे चूची मसलने से दीदी गरमा गईं हैं दीदी की कुर्ती और ब्रा के कपड़े बहुत ही महीन और मुलायम थी और उसके ऊपर से मुझे दीदी की निप्प्लें तनने के बाद दीदी की चूची छूने से मुझे जैसे स्वर्ग मिल गया था।

किसी जवान लड़की के चूची छूने का मेरा यह पहला अवसर था। मुझे पता ही नहीं चला की मैं कब तक दीदी की चूचियों को मसलता रहा। और दीदी ने भी मुझे एक बार के लिए मना नहीं किया। दीदी चुपचाप ख़ड़ी हो कर मुझसे अपनी चूची मसलवाती रही।

यह कहानी भी पड़े  टाइट चूत का मजा अपने से आधे उम्र की लड़की से

Pages: 1 2 3 4 5 6 7 8 9



error: Content is protected !!