नैन्सी और अनम का मधुर मिलन

वो मुझसे प्यार करता है
वो बोला- भाभी आप प्लीज़ गुस्सा मत करो, आपका दरवाजा खुला था, मैं तो वैसे ही अंदर आया था, मगर जब अंदर आकर आपको देखा तो बस देखता ही रह गया, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस औरत को मैं मन ही मन इतना पसंद करता हूँ, उसको कभी इस रूप में भी देखूँगा।

खैर मुझे उसकी इस बात का ज़्यादा बुरा इस लिए भी नहीं लगा क्योंकि गलती मेरी थी और इसके अलावा उनके घर से हमारे बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, और अनम वैसे भी मेरे कहने पर हर काम भाग भाग कर करता था।
जानती तो मैं भी थी कि अनम मेरे हुस्न का दीवाना है, मगर कभी उसने यह बात खुल कर मेरे सामने नहीं कही, तो मैंने भी कभी उसे लिफ्ट नहीं दी, मगर आज तो बात ही कुछ और थी।

मैं उठ कर जाने लगी तो अनम ने मेरी कलाई पकड़ ली- भाभी आप गुस्सा तो नहीं हो न, सच कहता हूँ भाभी, मैं आपको बहुत पसंद करता हूँ, आपसे मन ही मन बहुत प्यार करता हूँ, माँ से पूछ लो मैंने तो यह भी कह रखा है कि मुझे आप जैसे ही पत्नी चाहिए, आप मेरी गलती की जो चाहे सज़ा दे लो, मगर मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ।
कह कर वो मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गया।

अब इस हालत में मैं बेड से उतार कर जा भी नहीं सकती थी, मैंने उसे कहा भी- अनम मुझे जाने दो।
मगर वो ज़िद करने लगा- नहीं भाभी पहले आप मुझे माफ करो, अपने दिल से मेरे लिए सारा गुस्सा निकाल दो, प्लीज़!
कह कर उसने मेरे दोनों घुटने पकड़ लिया और मेरी गोद में सर रख दिया जैसे कोई बच्चा हो।

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मेरी चूत में कुछ हरकत सी हुई
मगर वो बच्चा तो नहीं था, क्योंकि जब उसने मेरे घुटने छूये तो मेरे मन में भी घंटी बजी, और जब उसने मेरी गोद में सर रखा तो मेरा दिल बड़ी ज़ोर से धड़का, मेरे बूब्स के निप्प्लों में और मेरी चूत में कुछ हरकत सी हुई, मेरे बदन में एक बिजली सी कौंधी।

मैंने अनम के सर पे हाथ रखा तो उसने भी अपनी हाथ मेरे घुटनों से सरका कर मेरी जांघों पर रख लिए।
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न जाने क्यों मेरे मन में सेक्स का विचार आया, दिल में ख्याल आया कि क्या अनम से साथ सेक्स करूँ?
मगर मैंने तो आज तक किसी पर पुरुष के साथ कोई फालतू बात नहीं की… तो सेक्स?

मगर मेरा मन तो अब बार बार घंटी बजा बजा कर कह रहा था- नैन्सी, अनम के साथ सेक्स कर, नैन्सी अनम के साथ सेक्स कर!

अब मन के वशीभूत हो कर मैंने अनम का सर अपनी दोनों हाथों में पकड़ा और ऊपर उठाया- क्या चाहते हो अनम?
मेरी बात सुन कर अनम बोला- भाभी आपसे मैं बहुत प्यार करता हूँ, मेरे दिल में आपके लिए बहुत इज्ज़त, बहुत सम्मान है, मगर मैं आपको एक बार अपनी बनाना चाहता हूँ, ताकि इस दिल में आपके लिए जो अरमान हैं, वो सब पूरे हो जाएँ।

मैंने जानबूझ कर पूछा- अपनी बनाना मतलब, अब भी तो मैं तुम्हारी अपनी ही हूँ?
अनम बोला- आप बिल्कुल मेरी अपनी हो, मेरी भाभी हो, मगर मैं आपको मन से ही नहीं तन से भी हासिल करना चाहता हूँ।
‘मतलब?’ सब कुछ जानते समझते हुये भी मैंने कहा।

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