Patni Ke Aadesh Par Sasu Maa Ko Di Yaun Santushti-2

मैंने उत्तर में कहा– रूचि, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ कि हमें भी अपने माता पिता के सुख और ख़ुशी के लिए कुछ तो करना चाहिए। तुमने उनसे बात की है और उनके दुख को दूर करने के लिए वे क्या चाहती हैं, जानती हो। इसलिए तुम्ही बताओ कि हम उनके लिए ऐसा क्या कर सकते है कि उन्हें भरपूर सुख और ख़ुशी मिले?

मेरे उत्तर को सुन कर रूचि बोली– अगर मैं उनकी ख़ुशी और सुख के लिए अपना स्वार्थ छोड़ दूँ और तुम थोड़ा अतिरिक्त परिश्रम करने के लिए राज़ी हो जाओ तो रास्ता निकल सकता है।

मैंने पूछा– तुम बात को घुमा कर मत कहो और सीधा सीधा बताओ कि कौन सा स्वार्थ और कैसा परिश्रम?

तब रूचि ने सीधी बात कही– मैं अपने निजी प्रयोग की वस्तु को साझा करने का स्वार्थ छोड़ कर तुम्हें मम्मी को यौन आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करने का अनुरोध करती हूँ। तुम्हें इस कार्य को करने के लिए कुछ अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ेगा और मैं आशा करती हूँ कि मेरी ख़ुशी के लिए तुम इस कार्य में मुझे पूरा सहयोग दोगे।

मैं माहौल को थोड़ा हल्का करने के लिए बोला– रूचि तुम्हारी ख़ुशी के लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है लेकिन मैं तुम्हारे अनुरोध का पालन नहीं कर सकता क्योंकि मुझे सिर्फ तुम्हारे आदेशों के अनुसार ही कार्य करने की आदत है।

मेरी बात सुन कर रूचि थोड़ी गौरवान्वित होते हुए हंसी और बोली– मेरे राजा ऐसा नहीं कहो और अब मज़ाक करना छोड़ कर मेरी बात ध्यान से सुनो, कल रात मैंने माँ से विस्तार से बात की थी, वे चाहती हैं कि आप की मर्ज़ी के सप्ताह में किसी भी दो दिनों और मेरी माहवारी वाले पाँचों दिन आप उनके साथ सम्भोग करके उन्हें आनन्द और संतुष्टि प्रदान करें।

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मैंने रूचि से पूछा– तुम क्या चाहती हो?
रूचि बोली– माँ की ख़ुशी के लिए हम जितना वह कह रही हैं उतना तो कर सकते हैं।
मैंने कहा– रूचि, अब मेरे लिए क्या आदेश है?

रूचि ने मेरे मुँह को चूमते हुए कहा– मैं चाहती हूँ कि कल तुम मम्मी को यौन आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान कर दो। मैं मम्मी को इस बारे में बता दूंगी ताकि तुम्हें कोई असुविधा नहीं हो।’

इसके बाद हम दोनों एक दूसरे के बाहुपाश में लिपट कर सो गए।

अगला दिन शनिवार होने के कारण मेरी छुट्टी थी इसलिए मैं काफी देर तक सोता रहा और रूचि रोजाना के समय बुटीक चली गई।

लगभग ग्यारह बजे सासू माँ ने मुझे जगाने के लिए आवाज़ लगाई, लेकिन ना तो मैं उठा और ना ही मैंने उन्हें कोई उत्तर दिया।

तब सासू माँ मेरे पास आई और मेरे कन्धों को पकड़ कर हिलाते हुए कहा– मेरे प्यारे राजकुमार, काफी देर हो गई तुम्हें सोते हुए, ग्यारह बजने ही वाले हैं, अब उठ भी जाओ।

जब मैं नहीं हिला तब उन्होंने झुक कर मुझे चूमते हुए मेरे कान में कहा– उठ कर कुछ खा पी लोगे तभी शरीर में ताकत एवं फ़ूर्ति आ जायेगी और तभी तुम रूचि के आदेश का पालन कर पाओगे।

मेरे कान में सासू माँ की बात पड़ते ही मेरे मस्तिष्क में रात की सारी बाद याद आ गई और मैंने आँखें खोली तो उनको मेरे ऊपर झुके हुए पाया।
उन्होंने झीना सा ढीला ढाला ब्लाउज पहना हुआ था जिसका खुला गला नीचे झुका हुआ था ओर उनके अड़तीस नाप के झूलते हुए उरोजों के दर्शन हो गए।

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