कुछ देर के बाद जब सासू माँ हल्के आसमानी रंग की नाइटी पहन कर कमरे से बाहर निकली तब उनके काले चूचुकों ने घोषणा कर दी कि उन्होंने नाइटी के नीचे ब्रा नहीं पहनी हुई थी।
रात को जब हम खाना खा रहे थी तब सासू माँ का चेहरा उतरा हुआ था, आँखें नम थी तथा वह कुछ भी नहीं बोल रही थी।
वह सिर्फ एक ही रोटी खा कर उठ गई और हमें शुभ रात्रि कह कर अपने बिस्तर पर जा कर लेट गई तब उनकी दयनीय स्थिति देख कर रूचि का चेहरा भी उतर गया।
कुछ देर के बाद हमने कमरे के बाहर सिसकियों की आवाज़ सुनी तब रूचि सासू माँ की देखने के लिए बाहर गई और कुछ ही क्षणों में उन्हें अपने साथ हमारे कमरे में ले आई।
क्योंकि रूचि उनकी दयनीय हालत सहन नहीं कर सकी इसलिए वह उन्हें अपने साथ अंदर ला कर बिस्तर पर बिठा कर पूछा– मम्मी, मैंने तो कुछ कहा ही नहीं है फिर क्या हो गया, अब क्यों रो रही हैं? क्या पापा जी की याद आ रही है?
सासू माँ सिसकती हुई बोली– नहीं, मुझे उनकी याद नहीं आ रही है। मेरे पूरे शरीर में आग लगी हुई है और मैं उसे बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे अगर जल्द ही यौन सुख नहीं मिला तो मैं पागल हो जाऊँगी। क्या तुम दोनों मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते?
इसके बाद सासू माँ रोने लगी और उनकी आँखों में से आंसुओं की धारा बहने लगी जिसे देख कर हम दोनों के दिल पसीज गए।
रात बहुत हो गई थी इसलिए मैं सासू माँ और रूचि को शयनकक्ष में सोने के लिए छोड़ कर बैठक में रखे दीवान पर सोने चला गया।
सुबह उठ कर रोजाना की दिनचर्या के अनुसार मैं और रूचि तैयार हो कर अपने अपने काम पर चले गए और शाम को देर से घर लौटे।
उस शाम और रात सब समान्य रहा और सासू माँ ने भी कोई ऐसी बात या हरकत नहीं करी।
रात को जब मैं और रूचि सम्भोग करने के बाद अपने को साफ़ करके एक दूसरे के बाहुपाश में लेटे हुए थे तब रूचि ने सासू माँ की दयनीय स्थिति की बात उठाते हुए कहा– राघव, हमारे माता पिता हमारी परवरिश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देते हैं। हमारी ख़ुशी और सुख के लिए वे सब कुछ करते हैं जिसके लिए उन्हें कितने भी दुख उठाने पड़ते हैं।
बिना रुके आगे बोलते हुए उसने कहा– वह कई बार खुद नहीं खाकर हमें अवश्य ही खिलाते हैं, खुद नया कपड़ा नहीं पहन कर भी हमारे लिए नए कपड़े अवश्य ही लाते हैं तथा कई बार स्थान की कमी होने पर हमारे सोने की वयवस्था करते हैं और खुद जाग कर रात बिताते हैं। हमें खुश देख कर वे खुश तो होते है लेकिन हमें दुखी देख कर वे अपना दुख भूल कर हमें खुश करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।
रूचि की बात सुन कर मैंने कहा– रूचि, तुम जो कह रही हो, वह बिल्कुल सही है इसलिए इतना बड़ा व्याखान मत दो। तुम्हें जो कहना है उसे संक्षिप्त में कह दो।
तब रूचि ने कहा– मैं अपनी मम्मी से बहुत ही प्यार करती हूँ और मुझसे उनकी ऐसी दयनीय स्थिति देखी नहीं जाती है। जैसे मेरी ख़ुशी के लिए उन्होंने बहुत दुख सहा है और बहुत त्याग किये हैं तो क्या हम उनके सुख और ख़ुशी के लिए कुछ दुख सहते हुए कोई त्याग नहीं कर सकते?