वो कभी इस बात का इंतज़ार नहीं करते कि उनका कोई जूनियर उनको विश करेगा, वो खुद ही सबको विश कर देते हैं लेकिन आज उनके विश करने में कुछ अलग बात थी।
उनकी मुस्कान आज कुछ शरारती लग रही थी, उनकी आँखों में एक अलग सी चमक थी।
मैंने उसे देखकर भी अनदेखा कर दिया और ऑफिस आकर अपने काम में लग गई।
उसी दिन शाम को फिर मानव सर हेड ऑफिस वापस चले गए।
मैं खुश थी कि किसी को कुछ पता नहीं चला और जिसे पता है उसने मेरा कोई फायदा उठाने की कोशिश भी नहीं की और अब चले भी गए।
मेरी ज़िन्दगी उसी तरह चल रही थी।
मैं अब भी ऑफिस में कभी-कभी मौका मिलने पर ब्लू फिल्म देखती और उंगली कर लेती थी।
एक दिन इसी तरह अपने आप में मस्त, मूवी देख रही थी और चूत सहला रही थी।
मेरे ऑफिस के फोन की घंटी बजी, फोन उठाकर मैंने हेलो बोला।
उधर से आवाज़ आई- हेलो आशा- मानव हियर, क्या चल रहा है?
मैंने खुद को सँभालते हुए कहा- कुछ नहीं सर, बस ऑफिस का काम।
वो बोले- झूठ मत बोलो यार, तुम्हारी विंडो मेरे सामने है। मुझे पता है कि तुम क्या कर रही हो। अब तुम बताओ क्या कर रही हो?
मैं समझ गई अब कुछ छुपाना मुमकिन नहीं है तो बोल दिया- मूवी देख रही हूँ सर।
सर- और क्या कर रही हो?
मैं- और क्या मतलब?
मैंने अनजान बनते हुए पूछा।
सर- यार ये मूवी देखते हुए जो करती हो, वो कर रही हो या नहीं?
मैं उनसे यह उम्मीद नहीं करती थी लेकिन पहले दिन की घटना के बाद उन्होंने मेरे दिल में कहीं एक जगह बना ली थी। उनसे बात करना मुझे सेफ लग रहा था और अच्छा भी।
मैंने कहा- हाँ सर, कर रही हूँ, आप बताइये।
सर- मेरा भी सेम सेम है, मैं भी पंजे का समर्थन ले रहा हूँ।
मैं- पंजे का समर्थन क्या सर, मैं समझी नहीं?
सर- जैसे तुम उंगली से करती हो वैसे हम पंजे से, मतलब हाथ से करते हैं।
फिर सर से धीरे-धीरे बातें होती रही और बात बढ़ती रही।
धीरे धीरे फोन सेक्स भी शुरू हो गया।
उनसे बात करना तो मुझे पहले ही अच्छा लगता था, उसके बाद जब फोन सेक्स शुरू हुआ तो फिर बस बदन का पर्दा रह गया बाकी सारी बातें फोन पर होने लगी।
अब मेरी चूत भी कुलबुलाने लगी थी, उनसे फोन सेक्स के समय तो लगता था कि बस अब तो कोई चोद दे, फाड़ दे मेरी चूत को।
वो फोन सेक्स के समय कई बार बोल चुके थे कि मुझे चोदना कहते हैं लेकिन मैं अभी तक डर रही थी।
फिर एक दिन मैंने उनको हाँ बोल दिया।
मेरा जवाब सुनकर वो बहुत खुश थे और अब हम दोनों मिलने का बहाना ढूंढ रहे थे।
एक दिन उनका फोन आया और पता चला कि वो अगले हफ्ते तीन दिन के लिए यहाँ आ रहे हैं।
मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा, चूत पैंटी से बाहर आने को तैयार थी, इसको भी शायद लंड चाहिए था जिसका यह बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।
सोमवार को सुबह जब मैं ऑफिस पहुंची, तब तक वो ऑफिस में आ चुके थे लेकिन हमारी मुलाकात हुई लंच के समय, वो भी बिल्कुल आमने सामने।
मैं अभी तक उनसे मिलने को तड़प रही थी, लेकिन अब जब वो मेरे सामने थे तो समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।
वो मुझे लगभग घूरते हुए देख रहे थे, उनकी आँखें मेरे मस्त बूब्स पर टिकी थी।
मैं शरमाते हुए वहाँ से अपने ऑफिस आ गई और उनके बारे में सोचने लगी।