सेक्स की गर्मी उतर गयी

हम जीकर नही मिल सकते, अपने प्यार को पाने के लिए हमें मरना पड़ेगा.

जीकर हम मिल नही पाए तो क्या, मरकर एक दूसरे के हो जाएँगे.

सिर्फ़ उस साली बेवकूफ़ को इस बात पर राज़ी कर लेना है और स्यूयिसाइड का सामान उसे दे देना है, नीरज ने सोचा.

नीरज को अब 2 काम करने थे और दोनो ही उसको बहुत आसान लग रहे थे.
पहला था स्मृति को स्यूयिसाइड के लिए उकसाना. इस बात पर राज़ी करना के वो दोनो एक साथ स्यूयिसाइड कर लें, यही आखरी रास्ता उनके पास बचा था.

दूसरा, उसको ज़हर लाकर देना. बहुत आसान काम था. वो एक केमिस्ट्री प्रोफेसर था और ऐसे केमिकल्स की लंबी लिस्ट उसके पास थी जो ज़हर का काम करते थे. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

तीसरा था स्यूयिसाइड नोट, जो कि इस अंदाज़ में लिखवाना था के स्मृति ने ये काम इसलिए किया के वो अपने किए पर शर्मिंदा है और अपने बाप से रिक्वेस्ट कर रही है के उसकी मौत के बाद उसकी प्रेग्नेन्सी की बात को उच्छाला ना जाए क्यूंकी इससे वो खुद भी मौत के बाद बदनाम होगी और अपने परिवार को भी बदनाम करेगी. अगर ऐसा हो गया तो उसके रसूख् वाला बाप कोई इन्वेस्टिगेशन नही होने देगा. स्यूयिसाइड को नॉर्मल मौत बना दिया जाएगा और कोई इन्वेस्टिगेशन नही होगी.

और नीरज की लाइफ फिर नॉर्मल हो जाएगी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

यही सब सोचता वो अपने ऑफीस से निकला और केमिस्ट्री लॅब पहुँचा.

एक रॅक पर बहुत सारी केमिकल्स की बॉटल्स रखी हुई थी पर नीरज जानता था के उसको क्या चाहिए. उसने एक बॉटल उठाई और लेबल पढ़ा.

वाइट आर्सेनिक (आस4 ओ6) ** पाय्सन

थोड़ा सा पाउडर उसने बॉटल से निकाल कर एक काग़ज़ में डालकर पूडिया सी बना ली और अपनी जेब में रख लिया. वो जानता था के जितना ज़हर वो ले जा रहा है, इतना एक स्मृति को क्या, 20 लोगों की जान लेने के लिए काफ़ी है. पर वो सारा का सारा ही स्मृति को खिलाने वाला था, जस्ट टू बी ऑन दा सेफर साइड. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

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जस्ट टू मेक शुवर के साली रांड़ ज़िंदा ना बच जाए, उसने दिल ही दिल में सोचा.
कहीं दिल के किसी कोने में उसको स्मृति पर तरस भी आ रहा था. आख़िर वो बेचारी एक कॉलेज जाने वाली लड़की थी और हर वही अरमान था जो एक आम लड़की के दिल में होता है. कॉलेज में किसी हॅंडसम लड़के से मिले और प्यार हो जाए, फिर उनकी शादी हो, बच्चे हों … उस बेचारी ने ग़लती ये की के प्यार ग़लत इंसान से कर बैठी और उसकी बहुत भारी कीमत चुकाने वाली थी. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

“नही” नीरज ने फ़ौरन अपने ख्यालों का रुख़ बदला और अपने दिल को मज़बूत किया “ये सब उसकी ग़लती थी. पहले ज़बरदस्ती गले पड़ी और फिर अबॉर्षन नही कराया. ग़लती उसकी है, ग़लती की कीमत भी वो ही भरेगी”

ज़हर उसके पास आ चुका था. अब स्मृति को स्यूयिसाइड के लिए मनाना है.

“बेवकूफ़ है साली” उसने दिल में सोचा “बहुत आसानी से मान जाएगी”

जैसे वो खुद अपने दिल को तसल्ली दे रहा था के ये काम भी आसानी से हो जाएगा.
कॉलेज में काम निपटा कर वो अपने घर के लिए निकला. रास्ते में एक केमिस्ट की दुकान पर रुक कर कुछ खाली जेलेटिन कॅप्सुल्स ले लिए जिनमें के ज़हर भर कर उसने स्मृति को देना था.

पर तक़दीर को शायद कुछ और ही मंज़ूर था. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

जब वो अपने घर पहुँचा तो शाम के 7 बज रहे थे. सर्दियों का मौसम था इसलिए भारी कोहरा हर तरफ फेल चुका था. हर तरफ अंधेरा था और लोग अपने अपने घरों में घुस चुके थे.
उसके घर के ठीक सामने स्मृति की गाड़ी पार्क्ड थी.

नीरज को समझ नही आया के क्या करे. वो बेवकूफ़ लड़की खुद उसकी बीवी के पास पहुँच गयी थी और अब तक तो सब बता दिया होगा.

उसे सब कुछ ख़तम होता दिखाई दे रहा थाअपनी पूरी दुनिया ख़तम होती दिखाई दे रही थी. उसकी समझ नही आ रहा था के घर ने अंदर जाए या फिर से अपनी गाड़ी में बैठ कर कहीं दूर भाग जाए.

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रूचि से दूर.

स्मृति से डोर.

सबसे दूर.

सारी मुसीबतों से दूर.

यूँ ही खड़े सोचते हुए उसको 15 मिनट बीत गये. आम तौर पर जब वो घर आता था तो उसकी बेटी फ़ौरन भाग कर बाहर आ जाती थी पर आज ऐसा हुआ नही.

घर में उसे कोई हलचल दिखाई नही दे रही थी.

डरता हुआ वो धीमे कदमों से घर के दरवाज़े तक पहुँचा और खोल कर अंदर दाखिल हुआ. ड्रॉयिंग रूम में स्मृति बैठी हुई थी.

“स्मृति तुम यहाँ?” नीरज ने कहा और एक नज़र उसपर ऊपर से नीचे तक डाली. वो पूरी खून में सनी हुई थी.

“क्या हुआ” उसके मुँह से अपने आप ही निकल पड़ा. जवाब में स्मृति ने अंगुली से कमरे के कोने की तरफ इशारा किया.

नीरज की आँखें फटी की फटी रह गयी. कलेजा मुँह को आ गया. आप लोग यह कहानी मस्तराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है |

कोने में रूचि की लाश पड़ी हुई थी, लाइयिंग इन आ पूल ऑफ हेर ओन ब्लड आंड पिस.

थोड़ी ही दूर पर उसकी 5 साल की बेटी की लाश पड़ी थी. उसकी गर्दन आधी कटी हुई थी, जैसे किसी बकरे को हलाल किया जाता है. उसकी आँखों के आगे जैसे अंधेरा सा छाने लगा. “मैने कहा था ना के मैं कुछ कर बैठूँगी. अब देखो ना नीरज, हमारे पास कोई चारा भी तो नही था. किसी ना किसी को तो मरना ही था तो हमारा बच्चा क्यूँ मरे? मैना अबॉर्षन क्यूँ कराऊँ? इसलिए मैने सारे रास्ते हल कर दिए. तुम ही बताओ, क्या ये सही होता के हम अपने प्यार की निशानी मेरे बच्चे को मार दें? तुमने मुझे वो गोलियाँ खाने को कहा था पर मैने खाई ही नही. क्यूँ मारु मैं अपने बच्चे को? सिर्फ़ इसलिए के लोग उसे नाजायज़ कहते ?” स्मृति कह रही थी
दोस्तो ऐसा भी होता है कि बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ से खाय दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राहुल
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