कामवाली वाली कामुकता भरी चुदाई

अंदर जाकर क्या देखता है के सुनीता  खाट पे पड़ी है। उसके पास उसके बेटे के इलावा कोई भी नही है। जिसे शयद स्तनपान कराते कराते सो गयी थी। उसके कपड़े नींद की वजह से अस्त व्यस्त से पड़े थे। जिसमे से आधेसे ज्यादा सुनीता  का बदन दिख रहा था। जिसे देखकर पहले तो ज़मीदार की नीयत बिगड़ गयी और मन में सोचने लगा..

आज जैसा वक़्त दुबारा मिले या न मिले क्यों न मौका सम्भाल लू और बहती गंगा में एक डुबकी लगा ही लू। जिस से सारी उम्र की मौज़ बन जायेगी। जैसे ही वो खाट के नजदीक गया तो उसकी पैर चाल से सुनीता  कीआँख खुल गयी और अपने पास किसी अजनबी को पाकर एक दम कपड़े ठीक करती हड़बड़ाती हुई बोली, ” मा.. म.. मालिक आप कब आये ? सन्देस भेज दिया होता मैं खुद आ जाती। बैठो आपके लिए पानी लेकर आती हूँ।

ज़मीदार — नही नही, सुनीता  इसकी कोई जरूरत नही है। तुम ये बताओ आज काम पे क्यो नही आई। उस दिन तो बड़ी लम्बी लम्बी डींगे हांक रही थी।

क्या हुआ हमारे आज के इकरार का ? ज़मीदार ने अपना मालिकाना रौब झड़ते हुए कहा।

सुनीता — वो कल रात काम से लौटते ही बहुत तेज़ बुखार हो गया था मालिक, इसलिए आज काम पे हाज़िर नही हो सकी। जैसे ही बुखार उतरेगा, ठीक होकर काम पे वापिस आ जाउगी। मेरी वजह से आपको परेशानी हुईउसके लिए दोनों हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी चाहती हूँ। कृपया मुझे माफ करदो।

ज़मीदार  — मैंने काम पे हाज़िर होने का नही, पैसो के बारे में पूछा है।

इस बार उसकी वाणी में थोड़ी कठोरता थी।

सुनीता  — मालिक वो इकरार भी आज पूरा नही हो सकेगा, क्योंके जिस बलबूते पे मैंने वो इकरार किया था। वो अभी पूरा नही हो पायेगा। उसके लिए कम से कम एक महीना ओर लग जायेगा। इस लिए आप वादाखिलाफी की जो सज़ा देना चाहते हो, दे दो। मुझे हर हाल में कबूल है।

ज़मीदार — (उसकी हालत की नज़ाकत को देखते हुए) — खैर ये लो कुछ पैसे दवाई लेकर ठीक हो जाओ और कल दूसरी हवेली पहुँचो। अभी फ़िलहाल जा रहा हूँ। कल सुबह को तेरा वही इंतज़ार करूँगा।

चाहे सुनीता  को आभास हो गया था के मालिक किस नियत से वहां बुला रहा है ? लेकिन समय की नज़ाकत को देखकर सब्र की घूँट पी गयी। क्योंके उसकी जरा सी भी गलती, बड़ा बखेड़ा शुरू कर सकती थी।

अगले दिन उसका थोडा बुखार कम हुआ। तो वो दूसरी हवेली पे चली गयी। वह जाकर देखा तो अकेले जमीदार के बिना वहां कोई भी नही था। सुनीता  को आते देख ज़मीदार की बाछे खिल गयी और अपनी मूंछ को ताव देतेहुए मन में खुद से बाते करने लगा, जिस दिन का तू कई महीनो से इंतज़ार कर रहा था, राजेन्द्र सिंह आखिर वो आज आ ही गया ।

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आज तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी होने वाली है । जो कल्पना में देखता या सोचता है तू, और चेहरे पे हल्की सी मुस्कान लाकर पास आ रही सुनीता  को देखने लगा।

ज़मीदार — आखिर आ ही गई सुनीता  तू, मुझे तो लगा था के आज भी कल की तरह बुखार की वजह से आ नही पाओगी।

सुनीता  — हम गरीब जरूर है मालिक, लेकिन ज़ुबान के एकदम पक्के है। वो बात अलग है किसी वजह से थोड़ा देरी से आये। आपको बोला था के बुखार उतरते ही आउंगी तो आ गयी। अब बोलो क्यों बुलाया है आपने,क्यूके मेरे हिसाब से इस हवेली का कोई भी काम अधूरा रहता नही है। सब काम पिछले हफ्ते ही तो मैं पूरे करके गयी थी।

ज़मीदार —  सुनीता , जरूरी नही हवेली के किसी काम ही बुलाया हो तुझे, कोई और भी काम हो सकता है।

चाहे सुनीता  समझ चुकी थी के वो किस और काम के लिए बोल रहा है? लेकिन फेर भी उसके मुंह से सुनना चाहती थी।

सुनीता  — और कोन सा काम मालिक ?

ज़मीदार — वही जो तूने बोला था के यदि दिए समय में आपका क़र्ज़ न चुकता कर पाऊँ तो जो मर्ज़ी दण्ड लगा लेना।

सुनीता  — हाँ बोला था, लेकिन सज़ा तो उस हवेली में भी दे सकते थे न, फेर इतनी दूर बुलाने की जरूरत क्या थी।

ज़मीदार — वहां सब है तेरी मालकिन, छोटे ज़मीदार, घर के नौकर चाकर, सो उनके सामने तुझको सज़ा देना मुझे शोभा नही देता था। इस लिए यहां अकेले में तुझको बुलाया है। यहां तुझे जी भर के सज़ा दूंगा ।

इस बार उसकी बोली में दोहरापन था।

सुनीता  — चलो ठीक है, बताओ क्या सज़ा है मेरी ??

ज़मीदार — किस तरह की सज़ा चाहते हो बोलो ?

सुनीता  — बोलना क्या है, मालिक जो सज़ा है बोलदो, मेरा ज़ुर्म जिस सज़ा के काबिल है, उसी तरह की सज़ा दे दो।

ज़मीदार — तुमने वादा खिलाफी तो की है तो इसकी सज़ा ये है के तुम मेरे पूरे बदन की तेल लगाकर मालिश करोगे और जब तक मैं न चाहू घर नही जाओगी।

सुनीता  — हैँ…ये कैसी सज़ा है। मैंने तो सोचा था के पूरा दिन काम काज पे लगाए रखोगे या पूरा दिन धूप पे खड़ा करके रखोगे। लेकिन फेर भी वादे के मुताबक मुझे आपकी ये सज़ा भी मंज़ूर है।

ज़मीदार — तू बहुत नाज़ुक सी चीज़ है सुनीता , तेरा मालिक इतना भी बेरहम नही है के फूल सी नाज़ुक चीज़ को धुप में खड़ा करके मुरझाने के लिए छोड़ देगा।

अपनी झूठी तारीफ सुनकर भी सुनीता  को अच्छा लगा।

ज़मीदार — चलो सुनीता , अब बाते बहुत हो गयी। बाहर वाला दरवाजा बंद करके, मेरे पीछे मेरे बेडरूम में आओ, वहां चलकर तुझे सज़ा दूंगा। सुनीता ड़रती ड़रती मालिक के पीछे चली गयी। वहा पहुंचकर मालिक ने पंखाचालू कर दिया। परन्तु डर के मारे सुनीता  पसीने से भीग रही थी।
बाते करते करते मालिक ने अकेला अंडरवियर छोड़कर सारे कपड़े उतारकर दीवार पे लगी कुण्डी पे टांग दिए और खुद उल्टा होकर बेड पे लेट गया।

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ज़मीदार — सुनीता बेड की दराज़ में से तेल की शीशी निकाल लाओ और मेरे पूरे बदन पे लगा दो, पूरा बदन दर्द से टूट रहा है।

सुनीता बेचारी हुक्म में बन्धी, जैसा वो बोलता गया वैसे करती गयी।

सुनीता तेल की शीशी लेकर मालिक के पैरों की तरफ बैठ गयी और हथेली पे ढेर सारा तेल उड़ेलकर उसकी पीठ पर मलने लगी। मालिक की तो जैसै लाटरी लग गयी। वो आँख बन्द करके लेटा सुनीता  के नरम नरम हाथोकी मालिश का मज़ा लेने लगा और उसके कोमल स्पर्श मात्र से ही काम चढ़ने की वजह से उसका लण्ड अंडरवीयर में ही फड़फड़ाने लगा।

थोड़ी देर बाद बोला,” सुनीता  तुम बहुत बढ़िया मालिश करती हो। ऐसा करो थोडा तेल मेरी टांगो पर भी लगा दो। सुनीता  हुक्म की पालना करती मालिक की टाँगो की मालिश करने लगी। करीब 10 मिनट बाद वो सीधाहोता हुआ बोला,’  अब लगते हाथ आगे की भी मालिश करदो सुनीता ।

जैसे ही मालिक उल्टा लेटा सीधा हुआ उसका मोटा लण्ड अंडरवियर में फ़ड़फ़ड़ाता हुआ सुनीता  को दिख गया। एक पल के लिये वो देखती ही रह गयी, जैसे ही मालिक की नज़र उस पर पड़ी वो शर्मा गयी और मुह दूसरीऔर करके मालिक की टाँगो की तेल से मालिश करने लगी। जैसे ही वो आँख बचाकर मालिक के मोटे लण्ड की तरफ देखती तो मालिक चलाकी से उसे झटके से हिला देता।

वो फेर शरमाकर मुह फेर लेती। ऐसे ही जब दूसरी तरफ मुह किये जब सुनीता  मालिक की मालिश कर रही थी तो गलती से उसका हाथ मालिक के लण्ड से लग गया। उसने झटके से हाथ पीछे खींच लिया। ये सब मालिकभी देख रहा था। लण्ड के हाथ से छूते ही, सुनीता  की काम अग्नि भड़क उठी। उसने अपनी चूत में गीलापन महसूस किया।

ज़मीदार — (कामुक मुस्कान दिए) क्या हुआ सुनीता  ?
सुनीता  — कुछ नही मालिक।

और वो अपना मुह दूसरी ओर करके मन में सोचने लगी के कैसी अजीब हालात में फंस गयी हूँ। मुझे क्या हो रहा है। अंडरवियर के अंदर से ही उसके साइज़ का अंदाज़ा लगाया जा सकता था। जो के लगभग 8 इंच लम्बाऔर 3 इच मोटा होगा।

आख़र आग से पास घी कब तक ठोस रहता। काफी समय से खुद पे नियंत्रण बनाये बैठी सुनीता  का सब्र अब जवाब देने लगा। जिस लण्ड को देखकर वो बार बार नज़र चुरा रही थी। अब टिकटिकी लगाकर उसे ही देख रहीथी। अब काम वेग उसकी आँखों से झलक रहा था। काम के अधीन होकर वो बहक गई और

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