Nancy Ka Sexy Cheetkaar

और मैंने यह भी देखा कि धरा के पति ने सिर्फ एक या दो बार ही मुझे देखा, न तो उसने मुझे घूरा, न ही मेरे जिस्म को चोरी चोरी ताड़ा।

मैंने खूब एंजॉय किया… सच कहूँ, बिकनी पहन कर ऐसी आज़ादी महसूस हुई कि मेरा तो दिल चाह रहा था कि यह बिकनी भी उतार फेंकूँ और बिल्कुल नंगी होकर बीच पर दौड़ लगाऊँ!
मगर यह न्यूडिस्ट बीच नहीं था, तो मैं ऐसा नहीं कर सकी।

बीच पर पूर्ण नग्न
पर मैंने अपने दिल की बात धरा को बताई- ए धरा सुन, एक बात कहूँ, मेरा दिल कर रहा है कि मैं न इस बिकनी को भी उतार फेंकूँ और पूरी तरह नंगी होकर इस बीच पर यहाँ से वहाँ भागती फिरूँ!
धरा बोली- तो अपनी यह इच्छा संभाल कर रख, रात को हम दोनों यहाँ आएँगी, तब तुम अपनी इच्छा पूरी कर लेना।

बीच से हमारा होटल कुछ ज़्यादा दूर नहीं था, सो रात को करीब 11 बजे हम दोनों वैसे ही बहाना सा करके बीच पर घूमने आ गईं। थोड़ी देर आस पास देखा, कोई नहीं था दूर दूर तक खाली बीच सिर्फ समुंदर की लहरें और हवा… घना अंधेरा!

मैंने धरा से पूछा- अब क्या करें?
वो बोली- करना क्या है, चल कपड़े उतार!

हम दोनों ने आस पास देखा और अपने अपने कपड़े उतारे और बिल्कुल नंगी हो गई।
और फिर बस दौड़ पड़ी समुंदर की ओर… जाकर सीधा लहरों पे जा गिरीं।
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पहली बार ऐसा मज़ा आया कि बिल्कुल नंगी होकर समुंदर में नहाई।
भारत में तो ऐसा संभव ही नहीं है।

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कितनी देर हम दोनों सहेलियाँ बिल्कुल नंगी कभी पानी में कभी रेत पर इधर उधर पागलों की तरह दौड़ती भागती रहीं।
मगर फिर थोड़ी सर्दी लगने लगी तो हम कपड़े पहन कर वापिस होटल आ गई और सो गई।

अस्पताल जाना पड़ा
अगले दिन हम बाज़ार घूमने गए।
मगर बाज़ार से बाहर निकलते समय मेरा पाँव मुड़ गया और मैं गिर पड़ी।
धरा और उसका पति मुझे उठा कर हॉस्पिटल ले गए।

पता चला के पाँव में मोच आ गई है, मांस फट गया, डॉक्टर ने 3 दिन तक बेड पर ही रहने की और 15 दिन आराम करने की सलाह दी, पाँव पर पट्टी बांध दी।

मुझे बड़ी निराशा हुई कि मेरा तो घूमने फिरने का प्रोग्राम ही खत्म हो गया। अपने पति को भी मैंने फोन पर बताया।
खैर और हो भी क्या सकता था।

सारा दिन हॉस्पिटल में लेटी टीवी देखती रहती।
मेरी देखभाल के लिए एक नीग्रो लड़का था। जो बहुत ही प्यार से मेरा ध्यान रख रहा था, मुझे दवाई, खाना और बाकी सब जरूरतों को वो बड़े अच्छे ढंग से पूरा कर रहा था।

अटेंडेंट से प्यार हो गया
एक दिन में ही उससे दोस्ती हो गई, उसका नाम माइकल था।
बेशक वो काला सा बदशकल सा, पतला लंबा सा था मगर उसका स्वभाव बहुत ही अच्छा था, मुझे बड़े प्यार से नैन्सी नैन्सी कहता रहता था।

एक दिन मैंने कहा- मुझे बाहर घूमना है!
तो वो एक व्हील चेयर लेकर आया, मुझे अपनी गोद में बेड से उठा कर उसने व्हील चेयर पर बैठाया।

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पहली बार मैं उसके सीने से लगी, ना जाने क्यों मेरा दिल धड़का, दिल चाहा के इसके सीने से ही लिपटी रहूँ।

वो मुझे बाहर हॉस्पिटल के बगीचे में ले गया, वहाँ कितनी देर इधर से उधर घूमाता रहा।
हम दोनों ने बहुत से बातें की, उसकी पत्नी से उसका तलाक हो चुका था।
मुझे उस पर बहुत दया आई, मगर दया से ज़्यादा मुझे प्यार आया।

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