मा बेटा और उनकी अंतर्वसना

हेलो दोस्तों, मेरा नाम बॉब है. मैं बिहार का रहने वाला हू. मेरी आगे 25 साल है. मैं देसी कहानी का रेग्युलर रीडर हू. मुझे इन्सेस्ट स्टोरी बहुत पसंद आती थी शुरू से ही. इन स्टोरीस को पढ़ते-पढ़ते कब मैं अपनी मा की तरफ आकर्षित होने लगा पता भी नही चला.

और इस सॅकी घटना को मैं आप सभी इन्सेस्ट लवर्स से शेर करना चाहता हू, तो ये कहानी लिख रहा हू. चलिए दोस्तों आप सभी को अपनी स्टोरी की तरफ लेकर चलता हू.

जैसे की मैने बताया है, मैं करीब 7 साल से इन्सेस्ट लवर हू, और मा का वन-साइडेड आशिक़ भी. मेरी मा की आगे 52 ( कहानी लिखते टाइम) फिगर 30-32-30 है.

दिखने में आवरेज है, गेहुआ कलर, और धार्मिक संस्कारी टाइप की औरत है. मेरे पापा बिलो आवरेज है. मेरे जानम होने के बाद शायद ही उन्होने कभी मेरी मा पर ध्यान दिया होगा.

बड़ा होने के बाद मैने काई बार उनकी चुदाई च्छूप के देखी है. वो तुरंत ही ठंडे पद जाते थे, और मा नाखुश ही रह जाती थी. और फिर धीरे-धीरे मा ने ऐसे ही अपनी काम-वासना को अपने अंदर दबा लिया. और मुझे अपने मौके की तलाश उसी टाइम से थी.

मैं सोचता था, की कब मैं उनकी बॉडी को प्यार करूँगा. 7 साल से मौके की तलाश में मैने कितनी बार हाथ आज़माया, पर दर्र से मैं कामयाब नही हो पाया. काई बार उनके साथ सोए हुए मैने उनकी बॉडी को सहलाया, च्छुआ, उनके छ्होटे बूब्स भी सहलाए, पर कभी बात नही बनी.

एक बार मेरी थोड़ी हिम्मत बढ़ी, तो मैने मा की निघट्य के उपर के 2-3 बटन खोल दिए. मा ने ब्रा नही पहनी थी. मैने उनकी निघट्य की अंदर हाथ डाला, और सहलाया. मेरी पंत में तंबू बन चुका था, और बहुत ज़्यादा जोश में था मैं.

मैने तुरंत ही मा के निपल्स पकड़े, और मूह में लगाया. मा सोई हुई थी. तभी वो हिली, और मैं तुरंत शांत हो गया और आँखें बंद करके लेट गया. मेरी दर्र से फाटती पड़ी थी.

मा ने मेरी तरफ देखा, और अपने कपड़े सही किए, और सो गयी. और फिर मा धीरे-धीरे करके मुझे डोर सुलने लगी. और ये मौका मेरे हाथ से गया. फिर मैं उनकी ड्रेस चेंजिंग की वीडियो रेकॉर्ड करके देखता और हिलता था.

ये मौका मुझे नवेंबर के लास्ट में मिल ही गया, और आख़िर-कार मेरा सपना सच होने वाला था. या ये बोलो मैं खुद अपना सच करने वाला था. पापा मेरे सिटी से बाहर छ्होटी सी प्राइवेट जॉब करते थे. घर पर मैं और मम्मी ही रहते थे, और हमे भाभी की बेटी के बर्तडे में बनारस जाना था.

अब मैं और मा ही जाने वाले थे, तो मा ने बोला मुझे ट्रेन की टिकेट बुक करने को.

तो मैने बोला: ठीक है मा, कर देता हू.

पर मैं एक भी मौका नही छ्चोढना चाहता था उनके करीब आने का. तो फिर थोड़ी देर बाद मैने मा को बताया-

मैं: मा, टिकेट तो कन्फर्म्ड नही मिल रही है. क्या मैं स्लीपर बस की टिकेट बुक कर लू.

तो वो बोली: ठीक है देख लो, जो सही लगे.

मैं बोला: कल रात की बुक कर लेता हू.

मा बोली: ठीक है.

और फिर मा पॅकिंग करने लगी. मैं मॅन ही मॅन खुश हो रहा था, की इस बार तो दंगल करना था. और मैं बाहर निकल गया घर से स्मोकिंग करने के लिए. पर मेरा ध्यान वही पर था, की कैसे-कैसे मा को पटना था. तभी मेरी नज़र केमिस्ट स्टोर पर पड़ी.

मैने सोचा की नींद की गोलियाँ ले लेता हू. फिर सोचा की नही, नींद की गोली से अछा है 5-6 वियाग्रा की गोलियाँ ले लेता हू, और कॉंडम भी अपनी पसंद के फ्लेवर ले लेता हू. तो मैने केमिस्ट के पास जेया कर वियाग्रा और स्ट्रॉबेरी, चॉक्लेट, वेनीला और बनाना फ्लओर्स की कॉंडम लेली.

फिर मैं वाहा से निकल गया, और अपने घर पहुँचते ही मैने अपने पितु बाग में रख लिया. मैं मा के पास गया, तो मा पॅकिंग कर चुकी थी. और फिर हमने डिन्नर किया और अपने-अपने रूम में सोने चले गये.

पर मुझे नींद नही आ रही थी, तो मैं मा को देखने गया. क्या मस्त लग रही थी मा निघट्य में. मॅन तो कर रहा था, की वही पर छोड़ डू, पर मैं कोई गड़बड़ नही करना चाहता था. फिर मैं अपने कमरे में जेया कर सो गया.

अगली सुबा मैं उठा. मा भी पूजा वग़ैरा करके नाश्ता बना रही थी. मैं गया, और मा को गुड मॉर्निंग बोला, और साइड में खड़ा हो कर पूछने लगा-

मे: पॅकिंग हो गयी? हमे रात को 11 बजे निकलना है. बस 12 बजे है.

तो मा बोली: ठीक है.

और मैं मार्केट चला गया गिफ्ट लेने भाभी की बेटी के लिए.

मैने सोचा की वियाग्रा आज रात से ही दूँगा उन्हे. रात में निकालने का टाइम हुआ तो मैने बोला-

मे: मा 2 बॉटल पानी रख लेना, एक अपने बाग में और एक मेरे बाग में.

मा ने वैसा ही किया. फिर मैने मौका देखते ही मा की बॉटल में 2 गोली वियाग्रा को पाउडर बना कर उसमे मिला दिया. उसके बाद मैं जल्दी से वाहा से निकल गया. हमारा निकालने का टाइम हो चुका था, और हम निकल रहे थे.

मैने ओला कॅब माँगा ली थी. मा भी घर बंद करके आ गयी. वो सारी और जॅकेट में थी, और मस्त लग रही थी. इस ठंड में उनके बदन की गर्मी मुझे महसूस हो रही थी. फिर हम जल्दी से कॅब में बैठे, और निकल गये बस स्टॅंड के लिए.

कॅब में बैठते ही मा को खाँसी उठ गयी, क्यूंकी कॅब वाले ने अगरबत्ती जलाई हुई थी.

तो मैने उसको बोला: आप अगरबत्ती बुझा दो भैया, प्राब्लम हो रही है.

और मा को बोला: मा आप पानी पी लो.

जाने-अंजाने में मैने पहला पड़ाव पार कर लिया. मा ने वियाग्रा वाला पानी 2 घूट पी लिया, और हम थोड़ी ही देर में बस स्टॅंड पहुँच गये. जान बूम बस में चढ़े, तभी मा ने टिकेट देखते हुए पूछा-

मा: बेटा तुमने एक ही सीट क्यूँ बुक की है.

तो मैने कहा: मा सीट नही थी, और ये आखरी बस थी आज की, तो मैने कर ली.

तो मा बोली: कोई बात नही, अड्जस्ट कर लेंगे हम लोग.

मैं तो मॅन ही मॅन बहुत खुश हो रहा था, की आज फुल मज़ा लेना था. मुझे गरम करना था बस मा को. वियाग्रा का असर होने लगा होगा, देखने से तो पता नही चल रहा था. बुत असर ज़रूर हो रहा होगा उन्हे.

आयेज की स्टोरी नेक्स्ट पार्ट में. आप लोग कॉमेंट करके या फिर मैल करके बताओ, की कैसी लगी मेरी पहली कहानी. मैं जल्द ही 2न्ड पार्ट में आयेज की स्टोरी बतौँगा. मिलते है नेक्स्ट पार्ट में. तब तक के लिए बाइ आंड टके केर.

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