लीबिडो कामपिपासा अन्तर्वासना

मेरी ओर देखते हुए उसने कहा- तुम्हें इस तरह से लिखते हुए देखती हूँ तो मुझे जलन होती है। काश.. मैं भी इसी तरह से बैठ कर लिख पाती। पत्रकारिता में दिन भर इधर से उधर भागना पड़ता है, उसके बाद लिखने लायक ही नहीं रहती हूँ।

वो बोलती रही और मैं अपने लिखने का काम करता रहा।

उसने पूछा- लिख क्या रहे हो तुम?
मैंने कहा- मैं एक रियलिस्टिक राइटर बनना चाहता हूँ। बेसिर-पैर की चीजें नहीं लिखना चाहता। कुछ ऐसी चीजें हों.. जो मुझे अपनी ओर खींच लें।

‘मेरे बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?’ उसने पूछा।
‘क्या मतलब?’
‘क्या तुम मुझ पर कहानी लिख सकते हो.. क्या मुझे अपनी कहानी की नायिका बना सकते हो?’

‘ऐसी क्या खूबी है तुम में.. जो मैं तुम्हें अपनी कहानी की नायिका बनाऊँ? मैंने पूछा।
‘खुद देख लो..’ मेरी ओर झुकते हुए उसने कहा।
‘क्या मैं तुम्हारे चेहरे पर अपना हाथ फिराऊँ?’

‘क्या तुम मेरे साथ तांत्रिक प्रक्रिया करना चाह रहे हो?’
‘कोशिश करके देखता हूँ.. अभी तक किसी के साथ किया नहीं है।’
‘चलो ठीक है साइकोलॉजी की भाषा में मुझे अपना सब्जेक्ट मान लो।’

प्रथम स्पर्श
मैंने उसके चेहरे पर हल्के-हल्के हाथ फिराना शुरू कर दिया। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। फिर मैं उसकी आँखों और कान को सहलाते हुए उसके होंठों को टटोलने लगा। उसके चेहरे का रंग बदलता जा रहा था। कुछ देर तक मेरी उंगलियां उसके मोटे-मोटे होंठों पर चलती रहीं।

फिर मैंने उसकी गर्दन को टटोलते हुए अपने हाथ को उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों की ओर बढ़ाया तो उसने अचानक से मेरे हाथ को पकड़ते हुए कहा- तुमको यह सब नहीं करना चाहिए।

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वह अचानक से उठ पड़ी और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई।
बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए मैं एक बार फिर कहानी लिखने में मगशूल हो गया।

कुछ देर बाद फिर अन्दर आते हुए बोली- मेरी चाभी यहाँ छूट गई है।
राइटिंग डेस्क से चाभी उठाकर वह बाहर चली गई।

रात करीब तीन बजे तक मेरी कलम सरपट दौड़ती रही, चार बजे के करीब मेरी आंख लग गई।

दरवाजे पर फिर दस्तक हुई।
एक बार फिर वह मेरे सामने खड़ी थी।
उसने ब्राऊन कलर का एक लंबा सा स्कर्ट पहन रखा था और ऊपर एक उजले रंग का ढीली सी टी-शर्ट थी।

उसने मुझे कमरे में अन्दर की ओर धकेलते हुए कहा- तुम्हारे टच के बाद मुझे नींद नहीं आ रही है.. बहुत संभाला खुद को.. पर कुछ नहीं हुआ अब तुम कुछ करो।

जैसे ही मैं बिस्तर पर बैठा.. वह सीधे मेरी गोद में आकर बैठ गई, फिर अपने टॉप के ऊपरी बटन खोलते हुए कहा- आओ तुम्हें फीडिंग कराती हूँ।

उसने अपनी एक चूची को बाहर निकाल कर मेरे मुँह के सामने कर दिया।

उसके निप्पल काले और मोटे थे।
मैंने उसके निप्पल को नाखूनों से खुरच कर हल्का सा मसला, उसके मुँह से एक हल्की सी मादक सिसकारी निकल गई।

‘आराम से करो.. अब तक मैंने इन्हें संभाल कर रखा हुआ था.. पता नहीं आज मुझे क्या हो गया है..’ यह कहते हुए उसने अपनी दूसरी चूची को भी बाहर निकाल लिया।

मैंने उसके निप्पल पर जीभ पर सटाई और फिर दोनों होंठों से उसे दबाते हुए हल्का-हल्का चूसने लगा। उसकी आंखें बंद होती चली गईं। तकरीबन पांच मिनट तक मैं उसके एक निप्पल को ऐसे ही चूसता रहा।
अपनी आंखें बंद किए हुए वह बड़े प्यार से अपनी उंगलियां मेरे बालों में चला रही थी।

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