कैसे मैंने नौकरानी को चोदा

‘तुम कितने घरों में काम करती हो?’ मैंने पूछा।

‘साहब, बस आपके और एक नीचे घर में।’

मैंने फिर पूछा- तो क्या तुम दोनो का काम तो चल ही जाता होगा?

‘साहब, चलता तो है, लेकिन बड़ी मुश्किल से। मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बर्बाद कर देता है।’

अब मैंने एक हिंट देना उचित समझा।

मैंने सम्भलते हुए कहा- ठीक है, कोई बात नहीं, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।

उसने मुझे अजीब सी नज़र से देखा, जैसे पूछ रही हो – क्या मतलब है आपका?

मैंने तुरंत कहा- मेरा मतलब है, तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊंगा।

‘ठीक है साहब!’ कहते हुए उसने ठंडी सांस भरी।

इस तरह, दोस्तो, मैंने बातों का सिलसिला काफ़ी दिनों तक जारी रखा और अपने दोनो के बीच की झिझक को मिटाया।

एक दिन मैंने शरारत से कहा- तुम्हारा आदमी पागल ही होगा। अरे उसे समझना चाहिये, इतनी सुंदर पत्नी के होते हुए, शराब की क्या ज़रूरत है।

औरत बहुत तेज़ होती है दोस्तों।
उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी एहसास नहीं होने दिया अपनी ज़रा सी भी नाराज़गी का।

मुझे भी ज़रा सा हिंट मिला कि ये तस्वीर पर उतर जायेगी।

मौका मिले और मैं इसे दबोचूं तो चुदवा लेगी।

और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा।

कहते हैं ऊपर वाले के यहां देर है लेकिन अंधेर नहीं।

रविवार का दिन था।
पूरी फ़ैमिली एक शादी मैं गयी थी।

मैं पढ़ाई में नुकसान की वजह बताकर नहीं गया।

माँ कह कर गयी थी- आरती आयेगी, घर का काम ठीक से करवा लेना।

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मैंने कहा- ठीक है!

और मेरे दिल में लड्डू फूटने लगे और लौड़ा खड़ा होने लगा।

वो आयी, दरवाज़ा बंद किया और काम पर लग गयी।

इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बंद कर दिया था।

मैंने हमेशा कि तरह चाय बनवाई और पीते हुए चाय की बड़ाई की।

मन ही मन मैंने निश्चय किया कि आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी।

कैसे पहल करें?

आखिर में ख्याल आया कि भाई सबसे बड़ा रुपैया।

मैंने उसे बुलाया और कहा- आरती, तुम्हे पैसे की ज़रूरत हो तो मुझे ज़रूर बताना। झिझकना मत।

‘साहब, आप मेरी तनख्वाह से काट लोगे और मेरा आदमी मुझे डांटेगा।’

‘अरे पगली, मैं तनख्वाह की बात नहीं कर रहा। बस कुछ और पैसे अलग से चाहिये तो मैं दूंगा मदद के लिये। और किसी को नहीं बताऊंगा। बशर्ते तुम भी न बताओ तो।’

और मैं उसके जवाब का इन्तज़ार करने लगा।

‘मैं क्यों बताने चली। आप सच मुझे कुछ पैसे देंगे?’ उसने पूछा।

बस फिर क्या था।
कुड़ी पट गयी।

बस अब आगे बढ़ना था और मलाई खानी थी।

‘ज़रूर दूंगा आरती… इससे तुम्हे खुशी मिलेगी न!’ मैंने कहा।

‘हां साहब, बहुत आराम हो जायेगा।’ उसने इठलाते हुए कहा।

अब मैंने हल्के से कहा- और मुझे भी खुशी मिलेगी। अगर तुम भी कुछ न कहो तो। और जैसा मैं कहूं वैसा करो तो? बोलो मंज़ूर है?

ये कहते हुए मैंने उसे 500 रुपये थमा दिये।

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उसने रुपये टेबल पर रखा और मुसकुराते हुए पूछा- क्या करना होगा साहब?

‘अपनी आंखें बंद करो पहले।’ मैं कहते हुए उसकी तरफ़ थोड़ा सा बढ़ा- बस थोड़ी देर के लिये आंखें बंद करो और खड़ी रहो।

उसने अपनी आंखें बंद कर ली।

मैंने फिर कहा- जब तक मैं न कहूं, तुम आंखें बंद ही रखना, आरती। वरना तुम शर्त हार जाओगी।

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