कमसिन कच्ची कली मेरे बिस्तर पर फ़ूल बनी

एक दिन ये घड़ी भी आ गई। वो शनिवार का दिन था, मेरी छुट्टी थी और बारिश भी हो रही थी। मैं अपने कमरे में टीवी पर न्यूज़ देख रहा था, तभी वो आई।

उसने पूछा- आप क्या कर रहे हो?
‘बस न्यूज़ देख रहा हूँ।’
‘क्यों कुछ और नहीं आ रहा टीवी पर?’
उसकी इस बात पर मैंने मजाक किया- अब इस बरसात में जो चीज़ देखनी है.. वो तो टीवी पर मिलेगी नहीं!
मेरी इस बात पर उसने भी अलग अंदाज में जवाब दिया- अरे तो शादी कर लो और फिर लो बरसात के पूरे मज़े..!

मैंने कहा- मजा लेने के लिए तुम जैसी कोई मिलती नहीं.. वरना कब की शादी कर लेते।
‘हम जैसे तो बहुत हैं.. बस आपके पास अपना बनाने की हिम्मत होना चाहिए।’

मैंने मजाक में ही उसका गला पकड़ लिया और कहा- हिम्मत तो बहुत है.. तुम्हारा गला भी दबा दूँगा मुस्कान।
उसने भी बड़े प्यार से कहा- है हिम्मत तो दबा कर दिखाओ।

बस उसके इतना कहते ही मैंने उसे अपने सीने से लगाने के लिए अपनी तरफ खींच लिया और बांहों में भर लिया।

लेकिन उसने मुझे पीछे धकेल दिया और दौड़ कर बाहर चली गई।

अब मेरे मन में भय उत्पन्न हुआ कि कहीं ये जाकर किसी से बता ना दे, इसलिए मैं तुरंत उसके पीछे उसके रूम में गया। अपने कमरे में वो अकेली थी.. क्योंकि उसकी माँ जॉब पर गई थीं।

मैंने पूछा- क्या हुआ.. भाग क्यों आई?
उसने कहा- बस ऐसे ही.. क्यों आप क्यों चले आए अपनी न्यूज़ छोड़कर?
मैंने कहा- बस तुम्हारे लिए!
उसने पूछा- मुझमें ऐसा क्या है?
मैंने कहा- अपने आपको मेरी आँखों से देखोगी.. तो सब पता चल जाएगा कि तुम में ऐसा क्या नहीं है, जो हर लड़के को तुम्हारा दीवाना ना कर दे।

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यह कहते हुए मैं उसकी पीठ सहलाने लगा.. और वो मुझे बस सुन रही थी।

शायद वो मना करना चाहती थी.. बस लफ़्ज उसका साथ नहीं दे पा रहे थे। बस वो मेरी बात के बाद अपना एक सवाल रख देती कि मैं उसे इस हालत में छोड़कर ना चला जाऊँ और वो इस मौके का पूरी तरह से मज़ा ले सके।

लेकिन मुझे डर इस बात का था कि मैं उसके घर में हूँ तो कोई भी आ सकता है। इसलिए मैंने उसकी एक किताब जो पलंग पर रखी थी, वहाँ से उठाई और अपने घर लेकर आ गया।

मुझे पता था कि वो किताब लेने के बहाने घर ज़रूर आएगी, हुआ भी वही।

सिर्फ 5 मिनट के बाद वो किताब लेने के बहाने मेरे रूम पर आ गई। मैं उसकी किताब लेकर अपने पलंग पर लेट कर पढ़ने लगा था। वो आई और कहने लगी- मेरी किताब मुझे लौटा दो।
मैंने कहा- हिम्मत है तो ले लो!

बस वो किताब लेने के लिए मेरे ऊपर चढ़ गई। मैंने अपने हाथ ऊपर कर लिए ताकि उसका हाथ ना पहुँचे।

वो मुझ पर चढ़ कर बिना उठे ही किताब लेने की नाकाम कोशिश किए जा रही थी। इस बीच उसकी चूचियां मेरे सीने से लग रही थीं और उसकी सांस भी तेज चलने लगी थी।

मैं जानबूझ कर उसके गालों के आस-पास अपने चेहरे को किए हुए था ताकि उसका मन भांप सकूँ कि वो कितनी तैयार है।

जब वो किताब नहीं ले पाई तो खुद ही बोली- किताब वापस करने का क्या लोगे?
मैंने कहा- इस किताब के लिए तुम क्या दे सकती हो?
उसने कहा- कुछ भी..
मैंने तुरंत पूछा- सोच लो.. कुछ भी का मतलब क्या होता है?
वो बोली- ज़्यादा से ज़्यादा ये लोगे.. और क्या?

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ये कह कर उसने अपनी चूचियों से दुपट्टा हटा दिया।

मेरे लिए वो एक सुनहरा अवसर हो सकता था, लेकिन मेरी आत्मा ने गवाही नहीं दी और मैंने तुरंत उसकी बुक लौटा दी और उसकी चुन्नी से उसके वक्ष को ढक दिया।

वो किताब लेकर वहाँ से चली गई, मैं बस उसी के बारे में सोचे जा रहा था। लेकिन ये हाल सिर्फ़ मेरा नहीं था, वो भी अपने घर जाकर शायद यही सोच रही होगी, क्योंकि शाम होते ही करीब 8 बजे वो मेरे घर आई और बोली- आप ऊपर छत पर क्यों नहीं सोते?
मैंने कहा- अकेले आदमी ऊपर जाकर क्या करेगा.. यहीं रूम में कूलर चला कर सो जाता हूँ।

फिर मैंने भी पूछा- कोई वजह.. ये बात पूछने की?
उसने कहा- नहीं.. बस यूं ही, वैसे हम लोग भी ऊपर ही सोते हैं।

दोस्तो, यहाँ मैं एक बात बता दूँ कि उसकी छत और मेरी छत के बीच सिर्फ़ एक ढाई फुट ऊँची दीवार थी.. तो कभी-कभी हम छत पर भी बात कर लिया करते थे।

मैं समझ गया कि कहीं ना कहीं वो चाहती है कि मैं भी ऊपर सोऊँ ताकि कुछ और भी हो सके।
मैंने उसे बोल दिया- आज मैं ऊपर ही सोऊँगा।
वो चली गई।

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