चार सहेलियों को बजाया – 1

उस दिन शनिवार था और मैं कंचन के यहाँ जा रही थी कि राज शर्मा कंचन के घर से बाहर निकलता हुआ दिखाई दिया, वो मुझे बहुत ही अजीब निगाहों से घूर रहा था, मन तो किया की एक थप्पड़ लगा दू, लेकिन फिर मैने सोचा कि जाने दो बेचारा देख ही तो रहा है वो मेरे बगल से निकला तो एक अजीब सी सेक्सी स्मेल मेरे दिमाग़ मे दौड़ गयी. मैने सोचा कि ऐसी स्मेल तो हमारे रूम मे तभी आती है जब हम दोनो पति पत्नी चुदाई करते है.

तो क्या वो लड़का कंचन के घर मे चुदाई करके गया है, किसकी कंचन की… क्या कंचन का उस लड़के के साथ चक्कर है. कंचन इस तरह की औरत है क्या. मैं इन ख़यालों मे खोई हुए थी कि कंचन ने मुझे पकड़ कर हिलाया, “संध्या क्या हुआ किन ख़यालों मे खोई है?”

मैं जैसे नींद से जागी, “उम्म्म्म कुछ नही बस ऐसे ही.” कंचन के भी बाल बिखरे हुए थे कपड़े अस्त-व्यस्त थे. ड्रॉयिंग रूम मे भी वही स्मेल फैली हुए थी, अब मैं पक्के तौर पर कह सकती थी कि कंचन अभी अभी उस लड़के से चुद्वा कर निपटी थी.

“संध्या तू बैठ मैं 2 मिनिट मे नहा कर आती हूँ.” इतना कह कर वो बाथरूम मे अपना पाप धोने चली गयी.

तभी मैने देखा कि सामने वाली तबील के नीचे कुछ पड़ा हुआ है, झुक कर उठाया तो वो क रब्बर का लंड था, जो अभी भी गीला था चूत का रस उस पर सूखा नही था. पर मेरा गला ज़रूर सुख गया था, हाथ काँप रहे थे और मैने काँपते हाथो से उसको नाक के पास लेजाकार सूँघा, वा क्या स्ट्रॉंग सुगंध थी कंचन की चूत की, तो क्या मेरे मैन गेट खोलने की आवाज़ से ही उनका खेल बीच मे बंद हो गया था.

मैने वो लंड वापिस वही रख दिया, और न्यूज़ पेपर उठा कर उसे पलटने लगी. थोड़ी ही देर मे कंचन आ गयी और मेरे सामने बैठ गयी.

“कंचन वो लड़का कॉन था जो अभी अभी गया है?” मेरे सवाल पर वो थोड़ा चौंकी फिर नॉर्मल होते हुए बोली, “अरे वो निक्की को कल से पढ़ाने आने वाला है, नया ट्यूसन टीचर.”

“ट्यूशन टीचर या तेरी चुदाई का टीचर…..” मैने मन ही मन सोचा.

फिर मैं ज़्यादा देर वहाँ नही रुकी और वापिस आ गयी, मुझे ये बात अच्छी नही लगी लेकिन मन ही मन उस लड़के के बारे मे लगातार सोचे जा रही थी. उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा कसा गतिला बदन मेरी आँखन के सामने था.

रात को जब मेरे पति मेरी चुदाई कर रहे थे तो मेरे मन मे यही विचार था कि मुझे मेरे पति नही राज शर्मा मेरी चुदाई कर रहा है और इस मुझे ये बहुत रोमांचित कर गया. मैं ज़ोर ज़ोर से अपनी गांद उछाल कर चुद्वा रही थी.

लेकिन जब वो पल गुजर गया तो मन ग्लानि से भर गया………..

दूसरी सुबह मैं अपने पति से नज़रें नही मिला पा रही थी, मुझे लग रहा था कि जिस रास्ते पर मैं निकल पड़ी हूँ वो सही रास्ता नही है, ये मैं ग़लत करने जा रही हूँ. फिर एक पल के लिए लगता कि इसमे क्या ग़लत है.

मैं इन्ही ख़यालों मे खोई हुए थी कि दरवाज़े की घंटी बज उठी.

“अरे शबाना तू, आज मेरी याद कैस आ गयी तुझे.” मैने दरवाज़ा खोल कर उसको अंदर आने का इशारा करते हुए कहा

“एक काम है तुझसे इस लिए यहाँ आई हूँ, नही तो तू मेरे घर वालो को जानती ही है हमेशा मुझ पर नज़रें गड़ाए रहते है. जैसे कि मैं जाकर किसी भी मर्द के नीचे लेटने वाली हूँ.” शबाना ने सोफे पर बैठते हुए कहा.

शबाना की आँखे एक दम लाल हो रही थी और वो कुछ घबराई हुए लग रही थी. मैने उससे जब बहुत ज़ोर देकर पूछा तब वो बताने को तैयार हुई वो भी वही देख कर आई थी, राज और कंचन की चुदाई उसने बोलना शुरू किया, “संध्या वो कंचन सोफे पर ही उससे चुद्वा रही थी, जब तू आई तो गेट की आवाज़ से दोनो ने एक मिनिट मे ही कपड़े पहन लिए और वो प्लास्टिक का लंड टॅबिल के नीचे फेंक दिया.”

मैने मन ही मन डरते हुए पूछा, “ तो क्या वो दो दो लंड डाल कर चुद्वा रही थी.”

“अरे नही वो तो उसकी गांद मार रहा था और रब्बर का लंड तो कंचन खुद चूत मे डाल रही थी.” कहते हुए शबाना शर्मा गयी

अब मुझे अपनी बेवकूफी याद आई उस रब्बर के लंड को उठा कर मैने अपनी नाक के पास करके स्मेल जो किया था.

“उस लड़के के जाते ही मैं भी वहाँ से निकल गयी, लेकिन मुझे कंचन ने देख लिया था.” कह कर शबाना चुप हो गयी

तभी फिर से दरवाज़े की घंटी बज उठी और कंचन दरवाज़े पर अपने बड़े बड़े मम्मे और चौड़ी गांद लेकर खड़ी थी, अब मुझे उसकी गांद बड़ी होने का राज समझ मे आया.

वो अंदर आई तो शबाना को देख कर झेंप गयी पर नॉर्मल होते हुए वो बात करने लगी.

“कंचन तुझे ऐसा करते हुए शरम नही आती?” शबाना के अचानक इस सवाल से हम दोनो ही हिल गये

“कैसी शरम ये जिंदगी एक बार ही मिलती है और इसका पूरा मज़ा लेना चाहिए.” कंचन ने अपने आप को संभालते हुए कहा

“हाँ कंचन बिल्कुल सही कह रही है.” कहते हुए छाया आंटी ने दरवाज़े पर कदम रखा और हम तीनो ने बात बदल दी.

उसी शाम को मुझे कंचन का फोन आया वो मुझे उसके घर आने की ज़िद कर रही थी. पहले तो मैने मना किया लेकिन कही कुछ जानने की इक्षा ने मुझे हाँ करने पर मजबूर कर दिया और मैने उसको 4 बजे आउन्गि कह कर फोन रख दिया.

ठीक शाम को चार बजे मैं उसके दरवाज़े पर थी, या मुझे कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी उसके घर जाने की.

“आजा अंदर आ.” कह कर कंचन ने दरवाज़ा बंद कर दिया और वो भी मेरे पास आकर सोफे पर बैठ गयी

“बता क्यों बुलाया है.” मैने पूछा

“संध्या क्या तू भी मुझे ग़लत समझती है, मैने कुछ भी ग़लत नही किया.” कह कर वो चुप हो गयी और सिर झुका लिया

“ठीक है जो तुझे सही लगा तूने किया, मुझे तेरी पर्सनल लाइफ से कुछ लेना देना नही.” कह कर मैं खामोश हो गयी

वो रोने लगी और मुझे भी कंचन पर तरस आ गया, मैं उसके कंधे पर हाथ फेरते हुए उसे चुप करने लगी तो वो मेरे गले लग गयी, मैं उसको आँखें बंद किए चुप करा रही थी और उसका रोना भी बंद हो गया था. उसके हाथ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे और उसकी गरम सासें मुझे गर्देन पर महसूस हो रही थी, मैं भी उसको अपने सीने से लिपटाने लगी. कंचन अब बिल्कुल शांत थी और वो मेरी पीठ पर ब्लाउस के पीछे बहुत ही धीरे धीरे गोल गोल घूमाते हुए हाथ फेर रही थी, मेरे सारे बदन मे कंपकपि दौड़ गयी और मेरी सिसकी निकल गयी और मैने उसको ज़ोर से लिपटा लिया.

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कंचन ये जान चुकी थी कि अब मैं पूरी तरह से उसके बस मे हूँ और उसे नही रोक पाउन्गि, कंचन मेरी गर्देन पर चूमने लगी और पता ही नही चला कि कब हमारे होठ मिल गये, मेरी जीभ कंचन के मुँह मे थी और वो बहुत धीरे से मेरी जीभ को दाँतों से दबाते हुए चूम रही थी. ऐसा 5 मिनिट तक चला. फिर कंचन ने अपने हाथ मेरे कसे हुए मम्मो पर रख दिए………….

मुझे ऐसा लगा किसी ने मुझे हिला कर रख दिया हो और मैं उस नशे से बाहर आ गयी और कंचन को खुद से अलग किया और अपना पर्स उठा कर दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गयी. मैने वापिस मूड कर भी नही देखा. मेरी चूत की चिपचिपाहट मैं अपनी रगड़ खाती हुए झंघों पर महसूस कर रही थी, जितना तेज चलने की कोशिश करती पैर उतना ही धीरे उठ रहे थे.

घर आने का 5 मिनिट का रास्ते 5 घंटे की तरह गया, आकर सीधा बाथरूम मे गयी और सारे कपड़े निकाल कर ठंडे पानी का नल शुरू करके उसके नीचे बैठ गयी…

नहा कर बाथरूम से निकली ही थी कि मेरे पति आ गये और उसके बाद घर के काम मे लग गयी, रात भर जो मेरे और कंचन के बीच मे हुआ वो सोच कर मैने पहली बार अपने पति के बगल मे लेट कर अपनी चूत को सहलाया और मुझे बहुत मज़ा आया. मैं इस मज़े और ग्लानि के भंवर मे फस्ति चली जा रही थी.

सुबह मेरे पति ने नीला नीला कर मुझे उठाया, मैने झट से सारे काम किए और नहा कर आई ही थी की कंचन ने दरवाज़े पर दस्तक दी. मुझे उसको देख कर ना तो खुशी हुए और ना ही बुरा लगा, वो मुस्कुराइ पर मैं उससे नज़रें चुराते हुए दरवाज़े से हट गयी, जो उसने अंदर आने का इशारा समझा. वैसे तो मैं हमेशा दरवाज़ा खुला ही रखती थी पर आज मैने दरवाज़ा बंद कर दिया, ये बात कंचन ने भी नोटीस की.

वो आकर सोफे पर बैठ गयी और मैं उसको पानी देकर चाइ बनाने के लिए किचन मे वापिस चली गयी. मैने चाइ बना ही रही थी की कंचन पीछे से आकर मुझसे लिपट गयी.

“य……य…..ये. क्या कर रही हो…. हटो दूर…” मैने कहा तो ज़रूर लेकिन अपने आप को उसकी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश तक नही की. उसने मेरी साडी के अंदर हाथ डाल कर मेरे चिकने सपाट पेट पर हाथ फेरते हुए मेरी ब्लाउस के पीछे नंगी पीठ पर जैसे ही चूमना शुरू किया और मैं पिघलने लगी.

मैं किचन स्टॅंड पर दोनो हाथ टिकाए शांत खड़ी थी, दिल मे जोरो का तूफान था, दिमाग़ चाहता था कि रोक दू लेकिन दिल इस नये स्वाद को चखना चाहता था.

और दिल की जीत हो गयी, मैने पलट कर कंचन को अपनी बाहों मे भर लिया, हमारे होठ एक बार फिर से मिल गये लेकिन इस बार अलग ना होने के लिए. कंचन ने साडी का पल्लो नीचे गिरा दिया और गॅस बंद कर दिया उसने एक एक करके मेरे ब्लौस एके सारे बटन खोल दिए

मेरी हालत ऐसी हो रही थी कि मैं खुद भी चाहती थी कि जो हो रहा है हो जाने दो, और उसने वही किचन मे ही स्टॅंड पर बैठने का इशारा किया. और मैने ईक यन्त्रवत उसके इशारे का पालन किया. अब मैं उसके कंट्रोल मे थी. कंचन ने मेरी गुलाबी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा को ब्लाउस के साथ निकाल दिया. मेरे दोनो चिकने कठोरे स्तन अब एक दम आज़ाद थे, मेरा गुलाबी अरेवला और उस पर डार्क पिंक निपल जो एकदम तने हुए थे. उसने जैस एही एक ब्रेस्ट पर हाथ रखा.

“आआआआअहह हमम्म्ममममममममममम कंचन ये क्या कर रही है तू.” मैने सीकरियाँ भरते हुए कहा

“मेरी जान तुझे इस जिंदगी के मज़े लेना सिखा रही हूँ, अब तक तू सिर्फ़ चुदाई का मज़ा ले रही थी. सेक्स क्या है ये तुझे पता ही नही है.” कंचन ने मेरे निपल को मसल्ते हुए कहा

उसकी इस हरकत पर मैं उछल पड़ी, उसने ज़ोर से मसला था, और उसके कारण बदन मे जो सिरहन की लहर उठी वो मेरी चूत से निकल गयी, जी हाँ दोस्तो मैं सिर्फ़ एक मिनिट मे ही झाड़ गयी थी. अभी तो कुछ हुआ भी नही और मेरा ये हाल था, कितना सही कहती है कंचन कि अब तक तो मैं सिर्फ़ चुदाई ही जानती थी सेक्स मे क्या मज़ा है ये मुझे पता ही नही था.

मैं काँप कर कंचन से लिपट गयी और कंचन मेरी नंगी पीठ को सहला रही थी.

उसके बाद कंचन ने मेरी गर्देन से चूमना शुरू किया जो आगे आकर सीने पर रुका, उसने अपनी जीभ निकाल कर मेरे निपल पर लगाई और नीचे से ऊपर की तरफ जीभ से निपल को चूमा तो मानो हज़ारों बिच्छू मेरी छातियों पर रेंगने लगे, इतना अच्छा मुझे कभी नही लगा था, और फिर वो निपल को किसी छ्होटे बच्चे की तरह चूमने लगी, मैं उसके सिर को अपने सीने पर दबाती जा रही थी. कंचन ने अब दूसरा निपल मुँह मे लिया तो मेरे दाहिने स्तन को पकड़ लिया और धीरे धीरे दबाते हुए वो दूसरे स्तन को चूम रही थी, धीरे धीरे ये चूमना, चूसने मे बदल गया और अब वो मेरे स्तनो को चूस कर निचोड़ रही थी.

उसने मेरा पेटिकोट का नाडा कब खोल दिया मुझे इसका पता ही नही चला, जैसे ही उसने मुझे खड़ा किया मेरी साड़ी पेटिकोट सहित नीचे गिर गयी मेरे पैरों मे. अब मैं सिर्फ़ एक गुलाबी फूलों वाली वाइट लो वेस्ट पॅंटी मे खड़ी थी. मैं भी चाहती थी कि उसके कपड़े निकाल दू पर मुझसे ये हो नही रहा था, लेकिन कंचन को दिमाग़ पढ़ना आता था, उसने झट से अपना कुर्ता और सलवार निकाल फेंकी और वो मेरे सामने ब्राउन पॅंटी और ब्रा मे खड़ी थी, उसने मेरी तरफ प्यार से देखा और हम एक दूसरे से फिर से लिपट गये और हमारे होठ आपस मे मिल गये, हमारी जीबे एक दूसरे से टकरा रही थी और सासें भारी हो रही थी, हम बीच मे साँस लेने के लिए रुकते और फिर वापिस से हमारे होंठ आपस मे जुड़ जाते, अब बारी मेरी थी….

मैने अपना हाथ कंचन की पीठ पर लेजाकार उसकी ब्रा का हुक खोल दिया, उसके स्तन काफ़ी बड़े थे जैसे ही ब्रा खुली उसके स्तन नीचे को गिर पड़े, कंचन ने खुद ही अपने एक स्तन को उठाया और वो खुद ही उसके निपल को अपनी जीभ से चाटने लगी, मैने भी अपनी जीभ उसी निपल पर लगा दी जिस निपल को कंचन चाट रही थी, उसका निपल थोड़ा ज़्यादा ही लंबा था और अरेवला काफ़ी बड़ा, हम दोनो की जीभ आपस मे छूते हुए निपल की लंबाई पर चल रही थी और लार से पूरा स्तन गीला हो रहा था, फिर वाली दूसरे निपल के साथ हुआ और थोड़ी देर मे कंचन मेरा सिर सहलाते हुए सिसकियाँ ले रही थी और मैं उसके बड़े बड़े स्तनो को ऊपर उठा कर आपस मे जोड़ कर एक एक करके दोनो निपल को बुरी तरह चूस रही थी.

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पर हाए रे दरवाजे की घंटी…………. इसको भी अभी बजना था, सारा मज़ा खराब हो गया, पसीने छूट गये और कंचन ने झट से कपड़े पहने और मैने सारे कपड़े उठाए और बेडरूम मे भाग गयी, वहाँ जाकर गाउन डाला और झट से दरवाज़ा खोलने गयी. उफ्फ ये तो सिर्फ़ एक सेल्स गर्ल थी, जिसको मैने जल्दी से टाल दिया. पर इससे जो घबराहट हुई उससे मन मे एक अजीब सा डर जो शुरू हुआ था उसके कारण अब कुछ करने की इक्षा नही बची थी, इस लिए मैने कंचन को ठंडा पानी दिया और खुद भी पानी पिया और चाइ को वापिस से गॅस पर लगाया और आकर कंचन के सामने बैठ गयी.

“मूड खराब हो गया.” कंचन ने कहा

“उूउउम्म्म्मम हाँ.” कह कर मैं चाइ लेने चली गयी, मुझे समझ मे ही नही आ रहा था की क्या बात करू, मैं उससे नज़रें भी नही मिला पा रही थी. चाइ पीकर वो चली गयी और मैं आकर बिस्तेर पर लेट गयी.

मैं सो गयी और जब उठी तो छाया आंटी के आने पर, वो बोले जा रही थी और मैं उनकी बात पर ध्यान दिए बिना ही कंचन के साथ बीते हुए पलो को याद कर रही थी. तभी शबाना भी आ गयी थी, शबाना के पेट मे एक बात भी नही रहती उसका नेचर ही कुछ ऐसा था, उसने कंचन और राज शर्मा की सारी बातें छाया आंटी को बता दी.

छाया आंटी, “देख शबाना इसमे कोई बुराई नही है, शरीर की कुछ ज़रूरतें होती है अगर कंचन उसको राज के साथ पूरा कर रही है तो इसमे कोई बुराई नही है.”

मैने पूछा, “छाया आंटी तो क्या आपने कभी किसी और के साथ सेक्स किया है.”

“हाँ वो मेरी ननद का लड़का था, उस वक़्त मेरी उमर 38 साल थी और वो 16 का था.” इतना कह कर वो चुप हो गयी

फिर तो मैने और शबाना ने उनसे ज़िद पकड़ ली कि कब कैसे और क्या हुआ हमे बताओ.

छाया आंटी थोड़ी देर तक भूत काल मे खो गयी और फिर काफ़ी देर के बाद उन्होने बोलना शुरू किया.

डिसेंबर का महीना था और माधव क्रिस्मस वाकेशन मे हमारे घर आया था, इनका देहांत हुए सिर्फ़ 6 महीने हुए थे तो मैं बहुत परेशान रहती थी, वो बहुत हँसमुख था और कई बार वो मेरे आस पास रह कर मुझे खुश रखने की कोशिश करता था, 25थ को केक लाया और मेरे लिए शानदार डिन्नर का इंतेजाम किया था. उसने मुझे बताया नही और कोल्ड ड्रिंक मे वोड्का मिला दी, जिससे मैं नशे झूमने लगी.

फिर उसने मुझे डॅन्स के लिए कहा और डॅन्स करते करते वो मेरे बहुत पास आ गया, नशा इतना भी नही था कि मैं अपने होश खो दू, वो डॅन्स करते हुए मेरे बहुत करीब आ गया था और मुझे शॉक लगा तब, जब उसका लंड कठोर होने लगा जिसको मैं अपने पेट पर महसूस करने लगी, धीरे धीरे उसका लंड झटके मारते हुए मेरे पेट पर अब मैं सॉफ महसूस कर रही थी.

और मैं उससे अलग होने या रुकने की जगह उससे और जोरो से लिपट रही थी, उसने मुझे थाम लिया और मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगा, वो हर बार अपने हाथ को थोड़ा नीचे ले जाता और अब उसने अपने हाथ मेरे कुल्हो पर रख दिए और अपनी ओर दबाने लगा, उसकी गरम सासें मेरी गर्देन पर वो ज़ोर ज़ोर से छ्चोड़ रहा था, मैं भी उसमे समा जाना चाहती थी और मैने अपने होठ उसकी तरफ बढ़ा दिए और उसने भी मेरे होंठो पर अपने होठ रख दिए, मैं मदहोश हो गयी और जब मुझे होश आया तो मेरे बदन पर सिर्फ़ पॅंटी ही बची थी.

उसने मुझे बाहों मे उठाया और बेडरूम मे ले गया, मैं बेड पर बैठी थी उसने मुझे लेटा दिया, मेरे पैर बेड के किनारे कर दिए थे, फिर उसने मेरी पॅंटी की इलास्टिक मे अपनी उंगलियाँ फसाई और पॅंटी निकाल दी. मेरी घने बालों से भरी हुई चूत पर उसने हाथ रखा और बालों को दोनो तरफ करके उसने अपना मुँह चूत मे लगा दिया, वो मेरी चूत को खाए जा रहा था. मैं नीचे से कूल्हे उछाल रही थी और उसके सिर पर हाथ फिराए जा रही थी.

फिर वो उठा और एक झटके मे उसने सारे कपड़े निकाल दिए और लंड को चूत के छेद पर रखा और एक ही धक्के मे लंड पूरा अंदर डाल दिया, उसका लंड कुछ ज़्यादा ही लंबा था सीधा मेरी बच्चेड़नी से जा टकराया और दर्द की एक मजेदार लहर मेरे बदन मे दौड़ गयी.

वो थोड़ा रुका और फिर उसने धक्के लगाना शुरू किए, वो पूरा लंड निकालता केवल लिंगमंड (सूपड़ा) ही अंदर रह जाता और फिर वो बिल्कुल धीरे से पूरा लंड अंदर डालता वो इतना प्यारा कर रहा था कि मैं अब ज़्यादा देर तक ये सहन नही कर सकती थी. मेरी चूत मे तूफान अब उठने ही वाला था. कि वो रुक गया और उसने मुझे बेड के किनारे ही उल्टा कर दिया अब वो पीछे से डालने वाला था.

माधव ने लंड को चूत पर टीकाया और बहुत तेज़ी से अंदर डाला दिया, मेरा तो मूत निकल गया और मैं काँपते हुए झाड़ गयी. ऐसा मैने कभी नही किया था, उसके बाद तो माधव रुका ही नही तेज धक्को के साथ मेरा मूत निकालता रहा और मैं अब इस रोमांच को सहन नही कर पा रही थी. मेरे पैर काँप रहे थे और मैं अब सिर्फ़ हर धक्के के साथ झाड़ रही थी, सारा बदन अकड़ने लगा और मैं अपने होश खो बैठी, बेड पर उल्टा ही पसर गयी.

जब होश आया तो देखा कि मैं सीधी लेटी थी और मेरे स्तनो पर ढेर सारा वीर्य पड़ा हुआ है. और माधव नंगा ही मेरे पास सो रहा है.”

छाया आंटी की इस मजेदार कहानी को सुनकर मेरा मन भी चुदाई के लिए तरसने लगा था और शबाना की आँखों मे तो लाल डोरे नज़र आ रहे थे, हम तीनो ही बारी बारी से बाथरूम मे गये और फिर मैने चाइ बनाई, चाइ पीते हुए हम कंचन और राज के बारे मे ही बातें करते रहे, जाते जाते छाया आंटी ने शबाना को हिदायत दी कि इन बातों को अपने तक ही रखना.

छाया मेरे घर से निकल कर सीधा कंचन के घर की तरफ निकली और मैं और शबाना शांत बैठे थे.

थोड़ी देर की खामोशी के बाद शबाना बोली, “संध्या तेरी सेक्स लाइफ कैसी चल रही है.”

“बहुत बढ़िया.” मैने इतना ही कहा था कि उसने कुछ कहा लेकिन मैं सुन नही पाई, मैने काफ़ी ज़ोर दिया तब जाकर वो बोली, “मेरी तो कोई सेक्स लाइफ ही नही है, वो तो बस चाकू की तरह डाल देते है और 4-5 धक्के और उल्टी करके सो जाते है.”

मैं हैरान रह गयी की इक़बाल जैसा आदमी सेक्स करना नही जानता.



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