Bhatiji Ne Jeete Ji Swarg Dikhaya

फ़िर हम घर आ गये पर मैं महीने में एक बार उसके शहर ज़रूर जाता था और उससे किसी रेस्तरां में मिलता था!
पर हमें सम्भोग सुख ना मिला!

इसी तरह पांच साल निकल गये और मेरी शादी हो गई पर मेरे मन से उस से सम्भोग की इच्छा नहीं ख़त्म हुई और अब तक तो मैं पूरा ठरकी बन गया था!

अब हम दोनों पति पत्नी कुछ महीने पहले, मेरी पत्नी के ननिहाल चुरू गये हुए थे, तो मुझे पता चला कि सुमन की शादी भी यहीं हुई है।
मेरे बारे में सुनते ही वो भी दौड़ी चली आई और मेरी धड़कनें बढ़ चली थी, मन बल्लियों उछल रहा था!

जब मेरी जान मेरे सामने आई तो, मैं तो खड़े खड़े फनाह हो चला था!
क्या रूप निकल आया था!
जैसा हमारे रिवाज़ है, उसने साड़ी पहन रखी थी ! क्या सितम ढा रही थी उसकी जवानी… काली साड़ी कमर से नीचे बँधी थी उसकी नाभि दिख रही थी, नितम्बों का उभार बढ़ गया था, उसका एकदम दूधिया सफेद बदन काली साड़ी में चमक रहा था, स्तन और भी बड़े हो गए थे, ब्लाउज भी डीप कट था… आआआह्हह… जो उसके स्तनों की घाटी को स्पष्ट दिखा रहा था।
उसकी पतली कमर लचक लचक जा रही थी… उसे देखते ही लन्ड महाराज खड़े हो गये थे जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से छुपाया था। उसका गोरी कमर और पेट मुझे मदहोश कर रही थी उसका गोरा वक्ष स्थल मुझे पागल कर रह था… आआआह्हह…

खैर उसने मुझे और मेरी पत्नी को रात्रिभोज पर बुलाया और मैंने झट से हाँ कर ली हालाँकि मेरी पत्नी सहमत नहीं थी क्योंकि वो अपने माता पिता और परिवार के साथ रहना चाह रही थी।
शाम को मेरी पत्नी ने जाने से मना कर दिया था पर मैंने जाना ठीक समझा और मन ही मन अपनी पत्नी को धन्यवाद दिया!

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उसका घर बहुत ही सुंदर और उसकी तरह ही सलीके से सज़ा हुआ था।
मुझे जाने पर पता चला वो दोनों ही बस पति पत्नी थे घर पर… बच्चा उसे कोई हुआ नहीं था और सास ससुर उसके पोते की मन्नत ले कर तीर्थ पर गये थे!

उसके पति रमेश ने मेरी अच्छी आवभगत की थी, वो पर वो शराबी था मुझे बाद में पता चला!
रमेश ने मेरे साथ भोजन नहीं किया।
मेरे भोजन करने के बाद दोनों ने मुझे रात को रुकने का आग्रह किया।
मैं तो यही चाहता था, मैंने अपनी पत्नी को फोन करके बता दिया।

हम लोग बरामदे में बैठे थे, इसके साथ ही रसोई थी।
थोड़ी देर में रमेश बोला- चाचा जी, मैं अभी आता हूँ!
और चला गया!

सुमन जान बोली- चले गये शराब पीने!
और उदास होकर बोली- रोज़ बहुत ज्यादा शराब पीते हैं।

वो रसोई में चली गई।
मैं तो पहले ही मौके पे चौके का उस्ताद हूँ, धीरे से उसके पीछे पीछे रसोई में चला गया।

वो मेरी तरफ़ पीठ करके खड़ी थी, क्या चूतड़ थे दोस्तो !
मैंने पीछे जाकर उसकी चिकनी सफेद कमर पर अपने दोनों हाथ बढ़ा दिये, मेरे हाथ फिसल कर आगे पेट की तरफ़ बढ़ गये!
क्या मुलायम और चिकना पेट था, बता नहीं सकता!
मैं उसके पीछे बिल्कुल सट कर खड़ा था और मेर लिंग उसकी गांड को छू रहा था।

मेरे होंठों ने उसकी गरदन को अपनी गर्मी देनी शुरू कर दी थी… उमम्म हह!

अब वो भी पीछे हट गई, उसका गोरा, कामुक गर्म बदन मेरे बदन से चिपक गया था, वो पिंघल कर मेरे अंदर अंदर समा जाना चाहती थी!
हमारी वर्षों की तमन्ना पूरी हो रही थी!

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