एक सेक्सी औरत – ज़ूबी मेरा प्यार

sexy aurat jubi ki chudai story ज़ूबी और में एक मार्केटिंग कंपनी में साथ ही काम करते है पर हमारे डिपार्टमेंट अलग अलग है. में सेल्स डिपार्टमेंट मे काम करता
हूँ और ज़ूबी डेसपॅच और इनवाय्सिंग डेप्ट मे काम करती है इसलिए हमारा मिलना अक्सर होता रहता है.

हमारी काफ़ी गहरी दोस्ती हो गयी थी और हम ऑफीस के बाहर भी मिलने लग गये थे. जब भी हम ऑफीस मे मिलते और हमारे आस पास
कोई नही होता था ज़ूबी बड़ी शरारती मुस्कान के साथ मुझे चिढ़ा देती. उसकी वो मुस्कान एक ही झटके मे मेरे लंड को खड़ा कर देती.

वो अक्सर मेरी पॅंट में छुपे मेरे खड़े लंड को देखती और अपनी ज़ुबान बाहर निकाल चिढ़ा देती. और कई बार में अपनी ज़ुबान अपने मुँह
मे अंदर बाहर कर उसे चिढ़ा देता जैसे में सच में उसकी चूत चाट रहा हूँ. उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता था और बाद में वो मुझे बताती, “राज डार्लिंग जब तुम अपनी ज़ुबान इस तरह हिलाते हो ना तो मेरी चूत गीली हो जाती है. ”

एक दिन उसने ऑफीस के इंटरकम सिस्टम पर मुझे फोन किया और बताया कि उसका बॉस उसे काम से बाहर भेज रहा है. देल्ही के एक
सप्लाइयर ने अड्वान्स ले लिया है और माल सप्लाइ नही किया जिससे ऑर्डर पूरा करने में तकलीफ़ हो रही है. उसने मुझसे पूछा कि क्या
में भी उसके साथ देल्ही चल सकता हूँ जिससे हम साथ रह सके. मेने उसके जाने की और आने के डेट्स पूछी जो उसने मुझे बता दी.

मेरे भी देल्ही मे कुछ ग्राहक थे जिनसे में कई दिनो से नही मिला था. उनके ऑर्डर आते रहते थे पर इतने ज़्यादा नही आते थे जिस
तरह पहले आते थे. मेने अपने बॉस को सलाह दी कि क्यों ना में देल्ही जाकर उनसे मिल आऊ और अगर उन्हे कोई शिकायत है तो में
उन्हे दूर कर दूँगा. मेरी बात मानकर मेरे बॉस ने मुझे जाने की अग्या दे दी.

फिर भी हमें प्रोग्राम इस तरह सेट करना था कि किसी को ऑफीस मेपता ना चले. कंपनी के रूल के हिसाब से ज़ूबी सिर्फ़ 1स्ट्रीट क्लास या 2-
टीर ए.सी से ही सफ़र कर सकती थी, जबकि में प्लेन से भी सफ़र कर सकता था या राजधानी एक्सप्रेस में 1स्ट्रीट ए.सी से भी.

मेने ज़ूबी को सलाह दी कि वो ऑफीस के ट्रॅवेल के एजेंट से टिकेट बुक कराए और अपने बॉस को बता दे कि देल्ही मे वो अपने रिश्तेदार
के यहाँ रुकेगी. जब ज़ूबी की टिकेट आ गयी तो उसने वो टिकेट मुझे दे दी. में तुरंत रेलवे स्टेशन गया और वो टिकेट कॅन्सल करा दी
और राजधानी एक्सप्रेस की 1स्ट्रीट क्लास एरकॉनडिशंड कूप (दो सीट वाला) की बुक करा ली. फिर देल्ही में अपने एजेंट को फोन कर एक
होटेल में डबल रूम बुक करा लिया. ट्रेन दोपहर में 4.30 बजे छूटती थी.

पूरा हफ़्ता हमारा तय्यरी और ख़ुसी में गुज़रा. दोनो जन आने वाले दिनो का मज़ा और सफ़र के सपने देखने लगे. हम दोनो ने तय किया
था कि हम अलग अलग ही रेलवे स्टेशन पहुँचेगे.

मेने रेलवे स्टेशन ठीक 4.10 मिनिट पर पहुँच गया और अपना कूप देख कुली को अपना समान सीट के नीचे रखने को कह दिया.
फिर दरवाज़े पर खड़ा हो में अपनी ज़ूबी की राह देखने लगा. थोड़ी देर मे मुझे ज़ूबी अपने कंधे पर एक बॅग और हाथ में एक सूटकेस
लिए आती दिखाई दी. मेने हाथ हिला कर उसे बताया तो जवाब में उसने भी हाथ हिला दिया. में उसे लेकर कूप मे आ गया.

हम दोनो एक दूसरे को बाहों में भरकर चूमना चाहते थे पर गालों पर एक हल्की सी चूमि ली और सीट पर बैठ गये. हम टिकेट चेक
होने का इंतेज़ार करने लगे.

ज़ूबी मेरे बगल में सीट पर बैठ गयी और कूप की सुंदरता आश्चर्य भरी नज़रों से देखने लगी. वो पहली बार 1स्ट्रीट ए.सी में
ट्रॅवेल कर रही थी. “क्या एक बार ट्रेन चलने के बाद यहाँ पूरा एकांत होगा, हमे कोई डिस्टर्ब तो नही करेगा ना?” उसने पूछा.

मेने अपना हाथ उसकी कामुक टॅंगो पर रख सहलाने लगा, “मेरी जान मेरे साथ जा रही है इसलिए उसके लिए सबसे बढ़िया इंतेज़ाम होना
चाहिए था, और मैं इससे कम का तो सोच ही नही सकता था. आख़िर मेरी जान ज़ूबी भी तो दुनिया में न, 1 है मेरे लिए.”

मेरे छूने भर से ही उसके शरीर में सिरहन सी दौड़ गयी और उसका शरीर कांप उठा, “क्या ठंड लग रही है ?” मेने पूछा.

“नही बस आपके छूने भर से ही मुझे कुछ कुछ होने लगता है.” उसने जवाब दिया.

थोड़ी ही देर में कंडक्टर आया और हमारी टिकेट्स चेक की और हमे शुभ यात्रा कह चला गया. थोड़ी देर बाद ट्रेन चल पड़ी.
मेने कूप का दरवाज़ा बंद किया और अपने बाहें फैला दी. मेरा इशारा स्मझ ज़ूबी दौड़ कर मेरी बाहों मे आ गयी. में उसे बाहों
में भर उसे चूमने लगा, कभी होठों पर उसेक माथे पर, उसके गालों पर उसकी गर्दन पर.

अब हमारी जीब एक दूसरे के मुँह में खिलवाड़ कर रही थी और मेरे हाथ ज़ूबी की पीठ पर रैंग रहे थे. उसके भी हाथ मेरी पीठ को
सहला रहे थे, भींच रहे थे. मेने अपने हाथ उसके चुतताड पर फिराए तो चौक्क गया, उसने अंदर कोई पॅंटी नही पहन रखी थी.

ज़ूबी और मुझे सॅट गयी जिससे उसकी चूत और मेरे लंड की दूरी कम हो गयी थी. मेरा खड़ा लंड पॅंट के उपर से उसकी चूत पर ठोकर
मारने लगा.

“मुझे थोड़ा फ्रेश होना है.” ज़ूबी बोली, “में अभी आई.” कहकर वो रेलवे द्वारा दिए गये टवल को उठा बाथरूम की ओर बढ़ गयी.

उसके जाते ही मेने अपने कपड़े उतारे और एक नाइट सूट पहन लिया.ज़ूबी करीब 10 मिनिट बाद आई, “लो में फ्रेश होकर आ गयी हूँ.”
उसने दरवाज़ा लॉक करते हुए कहा. “क्या पिछले हफ्ते तुम मेरे बारे में सोचते थे.”

“हर वक़्त हर पल, तुम्हे भूलना इतना आसान तो नही है.” मेने जवाब दिया.

“मुझे खुशी हुई ये बात सुनकर.” उसने कहा “राज चलो आज हम एक खेल खेलते है. खेल का नाम है दिखाओ और बताओ. तुम मुझे बताओ
कि तुम क्या देखना चाहतो हो और में तुम्हे वो दिखा दूँगी. फिर में तुम्हे बताउन्गि कि मुझे क्या देखना है और तुम मुझे दिखा देना.”

“और ये खेला कैसे जायगा?” मेने पूछा.

“इस खेल के नियम ऐसे है. पहला एक तुम वो ही चीज़ देखने की माँग कर सकते हो जिससे शरीर का सिर्फ़ एक कपड़ा उतारना पड़े. दूसरा तुम
कपड़े उतारने की माँग नही कर सकते. ” ज़ूबी ने कहा.

“और अगर मेने ऐसा कुछ देखने की माँग रख दी जिससे दो कपड़े उतारने पड़े तो?” मेने पूछा.

“तो तुम अपना चान्स खो दोगे और में कुछ भी नही उतारुँगी.” उसने जवाब दिया.

“ठीक है खेल कर देखते है, पर ये कैसे पता चलेगा कि कौन जीता.” मैने पूछा.

“उसकी किसको परवाह है. असली मज़ा तो खेल का है.” उसने कहा, “तुम्हे पक्का विश्वास है ना यहाँ कोई नही आएगा.”

“किसी के आने की कोई संभावना नही है. मेने दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया है.” मेने कहा, “हां हमे सिर्फ़ इतना करना है कि अपनी
आवाज़ थोड़ी धीमी रखनी पड़ेगी जिससे किसी को ये ना पता चले कि हम अंदर क्या कर रहे है.”

“ठीक है तो फिर तुम इस खेल की शुरुआत करो.” ज़ूबी ने मुझसे कहा.

“ठीक है. में तुम्हारा .पेट देखना चाहता हूँ.” मेने सोचा इसके लिए उसे अपनी कमीज़ उतारनी पड़ेगी.

वो खड़ी हो गयी और अपने हाथों को चौकर कर कमीज़ को नीचे से पकड़ा और फिर धीरे से उपर कर उतार दिया. मुझे पता था कि उसका
पतला और गोरा बदन काफ़ी दिलचस्प है पर कमीज़ उतारते हुए उसके बदन की गोलियाँ ग़ज़ब ही ढा रही थी. उसके भरे भरे ममे गुलाबी
रंग की ब्रा में क़ैद थे. उसके निपल भी तने हुए थे पतली ब्रा से बाहर की ओर उठे हुए थे.

उसने अपनी कमीज़ समेटी और सीट के कोने पर रख दी, “अब मेरी बारी, में तुम्हारी छाती देखना चाहती हूँ.” ज़ूबी ने कहा.

में खड़ा हुआ और अपना पूरा समय लेते हुए अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा. शर्ट उतार कर में दरवाज़े पर बनी खूंती पर टांग
दी. में वापस सीट पर बैठ गया और कहा, “अब मेरी बारी है ..ह्म मुझे अपनी प्यारी प्यारी चुचियाँ दिखाओ.”

उसने आगे से खुलने वाली ब्रा पहन रखी थी. ज़ूबी धीरे से मुस्कुराइ और अपनी ब्रा का हुक खोल दिया. ब्रा खुल तो गयी पर उसकी
आधे से ज़्यादा चुचि ब्रा से ही धकि हुई थी. सिर्फ़ उसकी चुचियों की बीच की दरार ही दिखाई दे रही थी यहाँ तक की उसके निपल भी
ढके हुए थे. “ठीक है?” उसने पूछा.

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“उतनी सफाई से नही दिखाई दे रही जितनी अछी तरह से दिखनी चाहिए. तुम्हारे चुचियाँ तो अभी भी धकि हुई है.” मैने कहा.

“ह्म्‍म्म्मम मुझे तो लगता है काफ़ी अछी तरह दिखाई दे रही है. एक दम खुली तो है, या फिर में समझ नही पाई कि तुम कैसे देखना
चाहते हो? क्या तुम उतार कर दिखा सकते हो?”

में उसकी तरफ झुका और और उसके ब्रा के दोनो स्ट्रॅप कंधों पर से उतार दिया. ज़ूबी ने अपने हाथ उठाए स्ट्रॅप से बाहर निकाले जिससे
उसकी ब्रा खुल कर गिर पड़ी. उसके निपल इतने तीखे थे और तन कर पूरी तरह से खड़े थे, “एम्म्म कितनी प्यारी चुचियाँ है तुम्हारी.”
मैने धीरे से कहा.

“क्या आप इन्हे चूसना चाहते है?” उसने अपनी ब्रा को कमीज़ पर फैंकते हुए कहा.

“ये भी कोई पूछने की बात है.” मेने अपना हाथ उसकी बाई चुचि की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

“इतनी जल्दी नही.” उसने मेरे माथे पर एक उंगली रखी और मुझे रोकते हुए कहा, “हमे अभी इस खेल को पूरा करना है. में तो बस
पूछ रही थी.”

“अर्रे हां, खेल अभी बाकी है.” मुझे अहसास हुआ कि उसे मुझे चिढ़ाने में मज़ा आता है.

“मुझे लगता है कि में तुम्हारी टाँगे देखना चाहूँगी?” ज़ूबी ने कहा.

में खड़ा हुआ और अपने पयज़ामा का नाडा खींच दिया, और धीरे से उसे नीचे कर दिया. मेने अपनी चप्पल पहन रखी थी, “जानू लगता
है तुम अपना चान्स खो चुकी है. पयज़ामा उतारने के लिए मुझे अपनी चप्पल उतारनी पड़ेगी. और तुमने कहा था कि अगर दो चीज़े
उतारनी पड़ती है तो चान्स चला जाता है.” मेने कहा.

“मेने सिर्फ़ कपड़े के बारे में कहा था, चप्पल जूते इसमे नही आते.” उसने जल्दी से कहा, “सिर्फ़ कपड़े” लगता था कि वो काफ़ी जल्दी
में है.

मेने अपना पयज़ामा उतार दिया, “ठीक है ये लो मेरी टाँगे देख लो.”

“हां.टाँगे.” उसने अपने होठों पर जीब फिराते हुए कहा. मेने देखा कि उसका ध्यान मेरी टाँगो में कम और मेरे चढ्ढि से उभरते
मेरे खड़े हुए लंड पर ज़्यादा था. “काफ़ी अच्छी है.” उसने धीरे से कहा.

“अब मेरी बारी है.” मेने बैठते हुए कहा, “अब में तुम्हारी गांद देखना चाहूँगा.”

“हा! तुम अपना चान्स खो चुके हो. में तुम्हे अपनी गंद नही दिखा सकती क्यों कि गंद दिखाने के लिए मुझे अपनी पॅंटी उतारनी होगी.
और में पॅंटी नही उतार सकती जब तक तुम ऐसा कुछ देखने को ना माँगो जिससे मुझे सलवार उतारनी पड़े.” उसने हंसते हुए कहा. “अब
में तुम्हारा सुन्दर और खड़ा हुआ लंड देखना चाहूँगी.”

“मुझे नही पता था कि तुमने फिर से अपनी पॅंटी पहन ली है.” में खड़ा होते हुए नाराज़गी भरे स्वर में बोला.

“घर से चलते हुए मेने उतार दी थी जिससे तुम मेरे बारे में सेक्सी फील करो. पर बाथरूम में जब इस खेल के बारे में सोचा तो फिर
से पहन ली. मेने तुम्हे थोड़ा चिढ़ाना चाहती थी.” ज़ूबी ने कहा.

मेने अपनी चड्डी उतार दी जिससे मेरा लंड आज़ाद होते ही अकड़ कर खड़ा हो गया. “ये लो देख लो.” मेने ज़ूबी के सामने नंगे खड़े
होते हुए कहा. “ज़ूबी मुझे लगता है में ये खेल हार गया हूँ. अब क्या करना है.”

ज़ूबी ने मेरे लंड को घूरते हुए कहा, “हां आप हर गये हो, और हां में एक नियम बताना भूल गयी कि हारे हुए व्यक्ति को जीते हुए
के कपड़े उतारने पड़ते है.”

“मुझे ये नियम बहोत पसंद आया है. अब खड़ी हो जाओ जिससे मैं तुम्हारे कपड़े उतार सकूँ.”

ज़ूबी खड़ी हो गयी और मुझे से सॅट गयी. मेने उसे बाहों में भरा और अपने और नज़दीक कर लिया. जैसे ही उसकी चुचियाँ और
खड़े निपल मेरी छाती में धसे उसने अपना मुँह खोल दिया. में अपनी जीब उसके मुँह मे डाल घुमाने लगा.

“आपको तो मेरे कपड़े उतारने थे.” वो धीरे से बड़बड़ाती हुई बोली और अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल दी.

मेने उसकी बात पर ध्यान नही दिया और अपनी हाथों को उसकी पीठ पर रैन्ग्ते हुए मेने आगे से उसकी सलवार पर रख दिया. में उसके सलवार
के कमरबन्द पर हाथ रख सलवार का नाडा ढूँडने लगा जो उसने सलवार के अंदर दबा रखा था. ज़ूबी ने मेरी मदद करते हुए अपना
नडे की डोर बाहर निकाली और मेरे हाथों में पकड़ा दी.

मेने डोर खींच दी जिससे उसकी सलवार ढीली पड़ गयी. मेने एक हाथ से उसे अपने से और सताया और अपनी जीब का खेल उसके मुँह मे जारी
रखते हुए अपना हाथ उसकी ढीली पड़ी सलवार में डाल दिया. मेने अपना हाथ उसकी पॅंटी से ढके चुतडो पर रख सहलाने लगा. ज़ूबी
ने अपनी टाँगे चौड़ी की जिससे सलवार खिसक कर नीचे हो गयी.

“राज प्लीज़ अपने दांतो से पकड़ मेरी पॅंटी उतारो.” ज़ूबी मुझसे गिड़गिदाते हुए बोली. “मेने किताबो मे पढ़ा है कि ऐसा करने में
बहोत मज़ा आता है.”

“कहने को तो आसान काम लगता है पर बहोत मूसखिल काम है. फिर भी में कोशिश करूँगा.” कहकर में नीचे बैठता गया. नीचे
होते हुए मेने पहले मेने उसकी गर्दन को चूमा, फिर उसकी चुचियो की दरार में अपनी जीभ फिराई, फिर उसकी चुचियों को चूमा,
निपल को अपने होठों में लिए थोड़ा सा काट लिया फिर उसके पेट को चूमते हुए उसकी नाभि में अपनी जीब फिरा दी.

अब मेरा मुँह उसके पॅंटी के एलास्टिक पर था. मेने अपने दोनो हाथ उसके चूतड़ पर रखे और उसे अपने और नज़दीक खींच लिया. उसकी
पॅंटी सिल्की और सामने से लो कट की थी. ज़ूबी की पॅंटी इतनी महीन थी कि उसकी चूत और उसके आस पास उगी उसकी झटें सॉफ दिखाई दे
रही.

दांतो से पॅंटी को उतारना आसान तो नही था पर मुश्किल भी नही था. मेने उसके चूतड़ को पकड़ उसकी कमर की तरफ से उसकी पॅंटी
के इलास्टिक को अपने दांतो में दबा नीचे कर दिया. फिर उसे दूसरी तरफ घुमा कमर के दूसरी तरफ से नीचे कर दिया. पर उसकी पॅंटी
का एलास्टिक इतना मजबूत था कि अब भी उसकी टॅंगो के जाकड़ रखा था.

“कितना अच्छा लग रहा है राज!” ज़ूबी ने मेरे बालों में उंगली फिराते हुए कहा.

“हाँ तुम्हारा बदन काफ़ी सुन्दर है.”

“शुक्रिया.”

अब मेने ज़ूबी को घुमा उसके कुल्हों पर से पॅंटी को दांतो में पकड़ा और नीचे तक खिचता चला गया. उसके कूल्हे नंगे हो गये थे.
मेने उन्हे चूम लिया और अपनी ज़ुबान फिराने लगा.

“ये क्या कर रहो हो? गुदगुदी होती है ना,”

फिर मेने आगे से उसकी पॅंटी को खींचते हुए नीचे तक उतार दिया जहाँ से वो आसानी से अपनी टाँगो से निकल सकती थी. ज़ूबी ने अपनी
टाँगो से पॅंटी उतार दी और में खड़ा हो गया.

“अब मेरी बारी है,” कहकर ज़ूबी घुटनो के बल मेरी टाँगो के बीच बैठ गयी. अपने नाज़ुक हाथों से उसने मेरे लंड को पकड़ लिया और
सहलाने लगी. फिर उसने मेरे लंड के सूपदे को अपनी जीभ से चुलबुलाने लगी.

मेरे लंड को सीधा कर वो अपनी ज़ुबान मेरे सूपदे से चाटते हुए नीचे की ओर होती फिर उप्पर करते हुए लंड को चाट रही थी. फिर उसने
अपना मुँह खोला और लंड को चूसने लगी. साथ ही वो मेरे लंड के पास बालों में उंगली घुमा रही थी. एक अजीब सी सनसनी उठ रही थी
मेरे शरीर मे.

“जानू अगर तुम इसी तरह चूस्ति रही तो में अपने आप को नही रोक पाउन्गा.” मेने कहा.

“और में चाहती भी नही कि तुम रुक.” इतना कह कर वो और जोरों से मेरे लंड को चूसने लगी.

मुझे रोकना मुश्किल लग रहा था, मेने अपने लंड को उसके मुँह में और दबा दिया. वो चूसने के साथ एक हाथ से मेरे लंड को जोरो से
रगड़ रही थी और दूसरे हाथ से मेरी दोनो गोलियों को सहला रही थी. मेरी नसों में तनाव बढ़ता जा रहा था.

मेरा शरीर मारे उत्तेजना के कांप रहा था. मेने उसके सिर को पकड़ा और अपने लंड पर दबाते हुए अपने वीर्या की पिचकारी छोड़ने लगा. एक
बाद एक पिचकारी उसके गले तक जा रही थी. वो मेरे लंड को चूस्ते हुए और हाथों से रगड़ते हुए मेरा पानी निगल रही थी. जिंदगी मे
पहली बार मेरे लंड ने इतना पानी छोड़ा था.

जब एक एक बूँद मेरे लंड से छूट गयी तो ज़ूबी ने मेरे मुरझाए लंड को अपने मुँह से बाहर निकाल दिया. “बहोट पानी छोड़ा तुम्हारे
लंड ने.” अपने होठों पर जीब फिराते हुए वो खड़ी हो गयी. “बड़ी मूसखिल से निगल पाई मे.”

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“इतने समय से तुम मुझे चिढ़ा रही थी, फिर तुम्हारे भरे भरे मम्मे और फिर तुम्हारी लंड चूसने की कला ने मुझे बहोत उत्तेजित कर
दिया था. और जब में ज़्यादा उत्तेजित होता हूँ तो मेरा लंड इसी तरह पानी छोड़ता है.” मेने कहा.

“अपने पानी का स्वाद लेना चाहोगे?” कहकर उसने मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए और अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में डाल दी. मेरे वीर्य की महक और स्वाद उसके मुँह में आ रहा था.

“स्वाद अच्छा लगा.” उसने अपनी ज़ुबान मेरे मुँह में घूमाते हुए कहा.

“हां आज पहली बार ऐसा किसी ने मेरे साथ किया है. अलग से उत्तेजना आ जाती है शरीर में.” कहते हुए में उसके चुचियों को मुँह मे
लेते हुए उसके निपल चूसने लगा.

“और ऐसा करने से मेरी चूत और गीली हो जाती है.” उसने मेरे सिर को अपनी चुचियों पर दबाते हुए कहा.

में अपनी जीभ से उसकी निपल को चुलबुला रहा था. उसके निपल एक दम तने हुए थे.

उसने और जोरो से अपनी चुचि मेरे मुँह में देते हुए कहा, “राज चूसो इन्हे ज़ोर ज़ोर से चूऊऊओसो ओह हाआअँ ऐसे ही.”

में उसकी चुचियों चूस्ते हुए अपना हाथ नीचे खिसकाने लगा. उसके पेट और नाभि से होते हुए मेरा हाथ पहले उसकी झांतो में रैंगा
फिर उसकी चूत पर फिरने लगा. मेने महसूस किया कि उसकी चूत पूरी तरह गीली हो चुकी है, “अब थोडा पीछे को लेट जाओ और मुझे
तुम्हारी चूत चाटने दो.” मेने उसे थोड़ा पीछे की ओर करते हुए कहा.

“में तो समझी थी कि आप इसे भूल ही गये है.” वो सीट पर बैठ गयी और पीछे की ओर होते हुए अपनी टाँगे फैला दी. उसके चूत
एक दम गुलाबी और उभरी लग रही थी.

में उसकी टाँगो के बीच आ गया और दोनो हाथों की उंगलियों से उसकी चूत के मुँह को फैला दिया. फिर अपनी जीब को थोड़ा त्रिकोण बना उसकी
चूत के अंदर बाहर करने लगा.

उसकी चूत से उठती महक और खुश्बू मुझे पागल कर रही थी.में जोरो से उसकी चूत को चाट रहा था. में अपनी ज़ुबान उसकी चूत
को चाटते हुए उसकी गंद के छेद तक ले जाता और फिर जोरो से रगड़ते हुए उसकी चूत को चाटता.

उसने दोनो हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा दिया और सिसक पड़ी. `ओह राआआआज खााआ जऊऊओ मेरी
चूऊओट को हाआअँ चूऊऊऊओसो और्र्र्र्र्ररर जोर्र्र्र्र्र्ररर से ओह आहह”

में ज़ोर से उसकी चूत को चूस रहा था. में अपनी ज़ुबान उसकी चूत के अन्द्रुनि हिस्सों में फिरा रहा था. कितनी प्यारी और मुलायम चूत
थी उसकी. मेरा लंड तन कर एक दम खड़ा हो गया था.

वो मुझे देखती रही और अपना सिर सीट की दीवाल से टिका कर चूत चुसाइ का मज़ा ले रही थी. उसका एक हाथ मेरे सिर पर बालों को
सहला रहा था और अपने दूसरे हाथ से अपनी निपल को भींच रही थी. “हाइ भगवान, कितना अछा लग रहा है, और करो, मुझे इसकी
ज़रूरत है. में कितने दिनो इस का इंतेज़ार कर रही हूँ.”

मुझे लगा जैसे उसे और भी किसी की ज़रूरत है चूत में, मेने अपनी एक उंगली फिर दूसरी उंगली उसकी चूत मे डाल दी. अब में अपनी जीब के
साथ अपनी उंगलिया भी उसकी चूत के अंदर बाहर कर रहा था.

उत्तेजना में वो अपना सिर इधर उधर पटक रही थी साथ ही अपनी कमर थोड़ा उचका देती जिससे मेरी जीब अंदर तक उसकी चूत मे घुस
जाती.

मेने तेज़ी से उसे जीब और उंगली से चोद रहा था. ज़ूबी से भी अब सहन नही हो रहा था. में और ज़ोर से उसे चाट रहा था.

जैसे ही उसकी चूत ने पानी छोड़ा वो चिल्ला पड़ी, “ओह .हाआअँ .ओह माआ .मेरा निकल रहा है, मेरी जान
गाइ .कितना अच्छा लग रहा है राआआअज .खा जाओ मेरी चूओत को!

उसका शरीर ढीला पड़ गया था. मेने ज़ोर से उसे चूस रहा था, उसका शरीर काँपते हुए पानी छोड़ रहा था. थोड़ी देर में वो शांत
पड़ गयी और उठ कर बैठ गयी, मेने भी अपनी उंगलियाँ उसकी चूत मे से निकाल दी.

“डार्लिंग आज तो तुम बहोत ही उत्तेजित हो गयी हो. तुम्हारी चूत ने भी काफ़ी पानी छोड़ा है. देखो मेरा लंड भी तन कर खड़ा हो गया
है.” मेने उसकी चूत को सहलाते हुए कहा.

“में तो आप के छूने भर से ही उत्तेजित और गीली हो जाती हूँ.” उसने कहा, “और आज तो में पहले ही से उत्तेजित और गीली थी. फिर
आपने मेरी चूत की चुसाइ भी इतनी मजेदार तरीके से की, कि जब मेरा पानी निकला तो में जैसे स्वर्ग में पहुँच गयी थी.

ज़ूबी झुकी और मेरे चेहरे को अपने करीब खींचते हुए मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए, “तुम्हारी खुश्बू और होठों का स्वाद तो
एकदम चूत जैसा लग रहा है.”

“क्या तुम्हे अपनी चूत की महक और स्वाद अच्छा लग रहा है?” मेने उसके होठों को चूस्ते हुए पूछा.

“हां अगर वो आपके मुँह से आ रहा हो तो?” ज़ूबी ने मेरे मुँह अपनी जीब डालते हुए कहा.

फिर ज़ूबी खड़ी हो गयी और घूम कर खिड़की के हत्थे को पकड़ झुक गयी. उसके नंगे चुतताड कुछ उठ गये थे. उसने अपनी टाँगे फैला दी
जिससे उसकी चूत का मुँह साफ दिखाई दे रहा था, “अछा अब ज़्यादा बातें मत करो और मुझे चोदो. और बहोत कस के चोदो. अपने लंबे
और मोटे लंड से मेरी चूत की जम कर धुनाई कर दो अब रहा नही जा रहा है.”

में उठ कर उसके पीछे आ गया. उसके दोनो चूतड़ को थोड़ा फैला अपना लंड कुछ देर तक उसकी चूत के छेद पर रगड़ता रहा फिर एक
ज़ोर का धक्का मार मेने अपना पूरा लंड उसकी चूत मे घुसा दिया. उसकी चूत गीली ही नही थी बल्कि रस से भरी पड़ी थी. में अपने
हाथों से उसके चूतड़ पकड़ धीरे धीरे धक्के लगाने लगा. थोड़ी देर बाद में ज़ोर से धक्के मार रहा था और वो भी अपने चूतड़
पीछे धकेल मेरे धक्कों का साथ दे रही थी, ” क्या तुम्हे इस तरह चुद्वाना अछा लगता है?”

“ओह माआ लग रहा है..कितना अछा है.तुम्हारे लंड ने मेरी चूओत को पूरा भर दिया है जनूऊओ..ओह हाां
और जोर्र्र्रररसे चूओड़ो.” वो सिसक रही थी.

उसकी कामुक सिसकियाँ सुनकर में भी जोश में आ गया. उसके चुतडो पर थप्पड़ जमाते हुए कस कर चोदने लगा.

“ओह हाआआं मेरे चुतत्त्त्त्तदों को ऐसे ही मरर्रर.आहिस्ता आहिस्ता ज़्यादा जोरों से नही वो भी चुदाई का मज़ा ले रही थी.

में ज़ोर से उसे चोद रहा था और वो भी कूल्हे पीछे धकेल पूरा साथ दे रही थी. में जानता था कि वो जल्द ही दूसरी बार झड़ने
वाली है में भी उसके पीछे पीछे ही था.

ज़ूबी ने अपना एक हाथ अपनी टॅंगो के बीच से होते हुए मेरे दो अंडे पकड़ लिए और सहलाने लगी. में ज़ोर के धक्के मार रहा था कि वो
सिसकी, “म्‍म्म्मममम .ओह्ह्ह मा छूट रहा है मेरा हे भगवान.मेरा निकल रहा है.” ज़ूबी का शरीर हल्के से कांपा और
उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.

में भी अपने आपको ज़्यादा देर तक नही रोक पाया और मेरे लंड ने वीर्य की धारा छोड़ दी उसकी चूत मे. में और ज़ोर से धक्के मार
अपना लंड उसकी चूत के अंदर तक घुसा देता और हर धक्के से एक पिचकारी मेरे लंड से छूट जाती. जब मेरे लंड की एक एक बूँद उसकी
चूत मे गिर गयी तो मेने अपने लंड को उसकी चूत के बाहर निकाल लिया.

“राज कितना अच्छा था.” उसने मुझे चूमते हुए कहा.

हम दोनो एक दूसरे को बाहों मे लिए लेटे हुए थे. तभी कॅबिन के दरवाज़े पर एक वेटर ने दस्तक दी और कहा वो खाना देना चाहता
है. हमे वेजिटेरियन चाहिए या नोन-वर्जेटरीयन. हमने नोन- वेजिटेरियन का ऑर्डर दिया और अपने अपने कपड़े पहनने लगे. थोड़ी देर
बाद वेटर ने खाना लगा दिया और हम खाने लगे. खाना खाने के बाद में नीचे वाली सीट पर लेट गया और ज़ूबी भी मेरी बगल में अपना
सिर मेरी छाती पर रख लेट गई. उसने अपनी दो उंगलियाँ मेरी तोड़ी पर रखी हुई थी प्यार भरी नज़रों से मेरी आँखों में घूर रही
थी, “राज में तुमसे प्यार करती हूँ.”

“में तुमसे बहोत प्यार करता हूँ ज़ूबी.” कहकर मेने उसे अपनी बाहों में भर लिया.

दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त



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