समधी जी से चुदवाया

मेरा नाम उर्मिला है , मैं कानपुर, उत्तर प्रदेश की हूँ। मेरी जिंदगी का एक ऐसा सच है जो समाज से मैंने आज तक छुपाये रक्खा है , उसी सच को आज मै लिख रही हूँ। आज से १५ वर्ष पहले मेरे पति का स्वर्गवास हो चूका है। ३५ वर्ष की आयु में ही मै विधवा होगयी थी।एक बार तो लगा मै ही आत्महत्या कर लूँ लेकिन अपने २ बच्चो के ख्याल ने मुझे फिर से जीवन में संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और इस काम में मेरे परिवार वालो ने मेरी बड़ी मददे की। मेरा एक पुत्र प्रभात और एक पुत्री नीलम है । प्रभात तो इंजीरयिंग करके अमेरिका चला गया और अब सिर्फ मेरी बेटी ही मेरे साथ कानपूर में रह गयी थी. मेरी लड़की आईआईटी से एमटेक कर रही थी और उसी के साथ पढ़ने वाले एक लड़के मलय के साथ उसकी दोस्ती हो गयी थी। मलय इलाहबाद का था और हॉस्टल में रहता था।आईआईटी में वैसे भी मौहौल बड़ा खुला होता है इस लिए मलय का मेरे घर आना जाना भी था। दोनों ही साथ में पढ़ाई करते थे. लड़का अच्छा था, इसलिए मैंने इन दोनों की दोस्ती पर कोई आपत्ति नही जताई।

बच्चो के खुलेपन और अगल बगल के बदलते मौहौल ने मेरी १५ साल से सुप्त वासना को कही न कही छेड़ दिया था। बहुत समय से दिल में दबी हुई वासना को स्त्री सुलभ लज्जावश मैंने अपने वश में कर रक्खा था। मेरे दिल में भी चुदाई की एक कसक रह रह कर उठती थी। मेरी उम्र ५० वर्ष की हो चुकी थी, पर दिल अभी भी जवान था। मेरी दिल की वासनाएँ उबल उबल कर मेरे दिल पर प्रहार करती थी।एक बार मलय रात को मेरी बेटी नीलम के पास प्रोजेक्ट का कुछ काम करने आया। मैं उस समय सोने की तैयारी कर रही थी। मैंने नीलम से कहा,’ मै आराम करने जा रही हूँ, जब काम खतम हो जाये तो मुझे जगा देना।’ उसके बाद मै अपने कमरे चली गयी और लाईट बन्द करके सोने की कोशिश करने लगी, पर वासनायुक्त विचार मेरे मन में बार बार आ रहे थे। मैं बेचैनी से करवटे बदलती रही। फिर मैं उठ कर बैठ गई। पानी पीने मैं अपने कमरे से बाहर आ गई, तभी मुझे नीलम के कमरे में कुछ हलचल सी दिखाई दी। मैं उत्सुकतापूर्वक उसके कमरे की ओर बढ़ गई। तभी खिड़की से मुझे नीलम और मलय नजर आ गये। वो नीलम के ऊपर चढ़ा हुआ उसे चोद रहा था!

मैं यह सब देख कर दंग रह गई! मुझे नीलम और मलय पर बेहद गुस्सा आया और गुस्से में तमतमाये हुए मैंने दरवाजा खुलवा कर दोनों को डाटने के सोची , लेकिन बरसो बाद एक लड़की और लड़के को काम क्रीड़ा करते देख मै ठिठक गयी.
मेरे दिल पर उनकी इस चुदाई ने आग में घी का काम किया। मेरे अंग फ़ड़कने लगे।मेरी सासे तेजी से चलनी लगी और मुझे यह जानकर धक्का लगा की मेरी बेटी मेरे सामने चुदवा रही है और मेरी चूत में बरसो पुरानी खो गयी तिलमिलाहट वापस आगयी थी। मैं आंखे फ़ाड़े उन्हें देखती रही। दोनों जवान थे और बड़ी तेजी से चुदाई कर रहे थे। ३/४ मिनट में दोनों घुट्टी घुट्टी आवाज करते हुआ झड़ गए और उनका चुदाई का कार्यक्रम समाप्त हो गया। मैं लड़खड़ाते हुए कदमों से चुप चाप अपने कमरे में लौट आई। मन में वासना की ज्वाला भड़क रही थी। उस रात को मैंने मोमबत्ती को अपनी चूत में डाल दिया और जैसे तैसे मैंने अपना रस निकाल लिया, पर दिल की आग अभी बुझी नहीं थी। मै इस से पहले कभी कभी उँगलियों से अपनी चूत मसल कर अपनी काम क्षुधा शांत कर लेती थी लेकिन उस रात मैंने मोमबत्ती डाल कर किया था शायद मुझे अपनी चूत के अंदर कड़ेपन के एहसास की जरुरत थी

जमाना कितना बदल गया था,, मेरे पति तो लाईट बन्द करके अंधेरे में मेरा पेटीकोट ऊपर उठा कर अपना लण्ड बाहर निकाल कर बस चोद दिया करते थे। मैंने तो अपने पति का लण्ड ज्यादातर अँधेरे में ही देखा था और उन्होंने ने भी मेरी चूत के दर्शन दिन के उजाले मै कभी कभी ही किया होगा। पर आज तो कमरे की लाईट जला कर, प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के कामुक अंगो को जी भर कर देखते हैं। लड़के का लण्ड लड़की हाथों में लेकर दबा लेती है और यही नहीं उसे मुँह में लेकर जोर जोर से चूसती भी है। ये सब यदि मेरे जमाने में होता भी होगा तो हम पति पत्नी को इसका कोई ज्ञान नही था।

लड़के तो बिल्कुल बेशर्म हो कर लड़कियो की चूत में अपना मुख चिपका कर चूत को खूब स्वाद ले-ले कर चूसते हैं और प्यार करते हैं। यह सब देख कर, पढ़ कर मेरा दिल वासना के मारे मचल उठता था। यह सब मेरे नसीब में कभी नहीं था। मेरा दिल भी करता था कि मैं भी बेशर्मी से नंगी हो कर चुदवाऊँ, दोनों टांगें चीर कर, पूरी खोल कर उछल-उछल कर लण्ड चूत में घुसा लूँ। पर हाय! यह सब मेरे लिये बीती बात हो चुकी थी।

तभी मुझे विचार आया कि कहीं नीलम को बच्चा ठहर गया तो ? कही मलय मेरी बेटी को फुसलाकर केवल उसको भोग तो नही रहा है? मैं विचलित हो उठी।

अगले दिन जब शाम को नीलम घर लौटी तो मैंने उसके अपने कमरे में बुलाया और पूछा ,”तुम्हारा मलय से क्या चक्कर चल रहा है? १/२ महीने में तुम एमटेक हो जाओगी तब मलय तुमको चूस के भूल जायेगा।” मेरे इस तरह पूछने से नीलम सकपका गयी, वो समझ गयी की माँ को कल रात वाली बात पता चल गयी है। उसने कहा,” माँ, ऐसा नही है वो मुझे प्यार करता है और शादी करना चाहता है।”
उसकी बात सुन कर मेरे मन की कुछ शंकाए दूर हुयी और मैंने कहा,”नीलम यदि ऐसा है तो मुझे उसके माँ बाप से बात करनी पड़ेगी। क्या वो इसके लिए तैयार है?” नीलम ने सर हिला कर हाँ कहा और , मलय को मोबाइल से फोन कर के पूरी बात बता दी। उसके बाद मलय अगले दिन मेरे घर आया और मुझसे नीलम का हाथ माँगा। मैंने उससे उसके माता पिता से मिलने और बात करने के लिए कहा, तो उसने मेरे समने अपने पिता से बात की और मेरी बात करा दी।

मै इस शादी को जल्दी से तय कर देना चाहती थी इसलिए अगली छुट्टी वाले दिन मै तैयार होकर मलय के पिता से मिलने इलाहबाद चली गई। उनका नाम नरेंद्र प्रताप सिंह था, मेरी ही उमर के थे। उनकी आँखे बड़ी बड़ी थी और तेजी थी। उनका शरीर कसा हुआ था, एक मधुर मुस्कान थी उनके चेहरे पर। आकर्षक व्यक्तिव था, एक नजर में ही वो भा गये थे। उनकी पत्नी नहीं रही थी। पर वे हंसमुख स्वभाव के थे। दोनों परिवार एक ही जाति के थे। मलय के पिता बहुत ही मृदु स्वभाव के थे। उनको समझाने पर उन्होंने बात की गम्भीरता को समझा। वे दोनों की शादी के लिये राजी हो गये। शायद उसके पीछे उनका मेरे लिये झुकाव भी था। मैं ५० वर्ष की आयु में भी सुन्दर नजर आती थी, मेरे स्तन और नितम्ब बहुत आकर्षक थे। यही सब गुण मेरी पुत्री में भी थे।
कुछ ही दिनों में नीलम की शादी हो गई। वो मलय के घर चली गई। मैं नितांत अकेली रह गई। मेरा मन बहलाने के लिये बस मात्र कम्प्यूटर रह गया था और साथ था टेलीविजन का। कम्प्यूटर पर पोर्न साईट पर ब्ल्यू फ़िल्में देख लेती थी और बस उन्हें देख देख कर दिन काटती थी। मुझे ब्ल्यू फ़िल्म का बहुत सहारा था, उसे देख कर और रस निकाल कर मैं सो जाती थी। रोज का कार्यक्रम बन सा गया था। ब्ल्यू फ़िल्म देखना और फिर तड़पते हुये अंगुली या मोमबती का सहारा ले कर अपनी चूत की भूख को शान्त करती थी। गाण्ड में तेल लगा कर ठीक से मोमबती से गाण्ड को चोद लेती थी।

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एक दिन मेरे समधी नरेंद्र प्रताप सिंह का फोन आया कि वे किसी काम से आ रहे हैं। मेरे समधी पहली बार मेरे घर आ रहे थे, मैंने उनके लिये अपने घर में एक कमरा ठीक कर दिया था। वो शाम तक घर आ गये । उनके आने पर मुझे बहुत अच्छा लगा। सच पूछिये तो अनजाने में मेरे दिल में खुशी की फ़ुलझड़ियाँ छूटने लगी थी। उनके खुशनुमा मिजाज के कारण समय अच्छा निकल रहा था।

उन्हें आये हुये दो दिन हो चुके थे और मुझसे वो बहुत घुलमिल गये थे। वो हसी मजाक करते थे जो मुझे बहुत अच्छा लगता था। अनजाने में ही उन्हें देख कर मेरी सोई हुई वासना जागने लगी थी। मुझे तो लगा था कि जैसे वो अब कहीं नहीं जायेंगे। सदा ही यही रहेंगे। एक बार रात को तो हद होगयी, मैंने सपने में उनको देखा और महसूस किया की वो मेरी छातियां दबा रहे है। अगली सुबह जब मैंने उन्हें चाय दी तो मै शर्म से गड़ी जारही थी और अपने गंदे ख्यालातों पर शर्म आ रही थी।

तीसरी रात को उनको खाना खिलने के बाद मै अपने कमरे में गयी और लेटी तो मेरे दिमाग में ब्ल्यू फिल्म घूमने लगी और वासना मेरे अंदर हलचल करने लगी। बाहर बरसात होने लगी थी और पानी की आवाज मेरे मन को और पंख दे रही थी। मेरा उस बंद कमरे में दम घुटने लगा था मै बैचैन हो कर कमरे से बाहर गेलरी में आ गई। तभी बिजली चली गई। बरसात के दिनो में लाईट का जाना यहाँ आम बात है। मैं सम्भल कर चलने लगी। तभी मेरे कंधों पर दो हाथ आकर जम गये। मैं ठिठक कर मूर्तिवत खड़ी रह गई। वो हाथ नीचे आये और बगल में आकर मेरी चूचियों की ओर बढ़ गये। मेरे जिस्म में जैसे बिजलियाँ कौंध गई। उसके हाथ मेरे स्तन पर आ गये।
“क्…क्…कौन ?”

“श्…श्… चुप …।”

वो हाथ मेरे स्तनों को एक साथ सहलाने लगे। मेरे शरीर में तरंगें छूटने लगी। मेरे भारी स्तन के उभारों को वो कभी दबाता, कभी सहलाता तो कभी चुचूक मसल देता। मैं बिना हिले डुले जाने क्यूँ आनन्द में खोने लगी। तभी उसके हाथ मेरी पीठ पर से होते हुये मेरे चूतड़ों के दोनों गोलों पर आ गये। दोनो ही नरम से चूतड़ एक साथ दब गये। मेरे मुख से आह निकल पड़ी। उसकी अंगुलियाँ उन्हें कोमलता से दबा रही थी और कभी कभी चूतड़ों को ऊपर नीचे हिला कर दबा देती थी। मन की तरंगें मचल उठी थी। मैंने धीरे से अपनी टांगें चौड़ी कर दी। उसके हाथ दरार के बीच में पेटीकोट के ऊपर से ही अन्दर की ओर सहलाने लगे। धीरे धीरे वो मेरी चूत तक पहुँच गये। मेरी चूत की दरार में उसकी अंगुलियाँ चलने लगी। मेरे अंगों में मीठी सी कसक भर गई। मेरी चूत में जोर से गुदगु्दी उठ गई।

तभी उसने अपना हाथ वापस खींच लिया।

मैं उसकी किसी और हरकत का इन्तज़ार करने लगी। पर जब कुछ नहीं हुआ तो मैंने पीछे पलट कर देखा। वहां कोई भी नहीं था।

अरे … वो कौन था ? कहां गया ? कोई था भी या नहीं !!!

कहीं मेरा भ्रम तो नहीं था। नहीं नहीं भ्रम नहीं था।

मेरे पेटीकोट में चूत के मसले जाने पर मेरे काम रस से गीलापन था। मैं तुरन्त समधी के कक्ष की ओर बढ़ी। तभी बिजली आ गई। मैंने कमरे में झांक कर देखा। सुरेश जी तो चड्डी पहने उल्टे होकर शायद सो रहे थे।

अगले दिन भी मुझे रात में किसी के चलने आवाज आई। चाल से मैं समझ गई थी कि ये नरेंद्र प्रताप ही थे। वे मेरे बिस्तर के पास आकर खड़े हो गये। खिड़की से आती रोशनी में मेरा उघड़ा बदन साफ़ नजर आ रहा था। मेरा पेटिकोट जांघों से ऊपर उठा हुआ था, ब्लाऊज के दो बटन खुले हुए थे। यह सब इसलिये था कि उनके आने से पहले मैं अपनी चूचियों से खेल रही थी, अपनी चूत मसल रही थी।

आहट सुनते ही मैं जड़ जैसी हो गई थी। मेरे हाथ पांव सुन्न से होने लगे थे। वो धीरे से झुके और मेरे अधखुले स्तन पर हाथ रख कर सहलाया। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी। बाकी के ब्लाऊज के बटन भी उन्होने खोल दिये। मेरे चुचूक कड़े हो गये थे। उन्होंने उन्हें भी धीरे से मसल दिया। मैं निश्चल सी पड़ी रही। उनका हाथ मेरे उठे हुए पेटीकोट पर आ गया और उसे उन्होंने और ऊपर कर दिया। मैं शरम से लहरा सी गई। पर निश्चल सी पड़ी रही। अंधेरे में वो मेरी चूत को देखने लगे। फिर उनका कोमल स्पर्श मेरी चूत पर होने लगा। मेरी चूत का गीलापन बाहर रिसने लगा। उसकी अंगुलियाँ मेरी चूत को गुदगुदाती रही। उसकी अंगुली अब मेरी चूत में धीरे से अन्दर प्रवेश कर गई।

मैंने अपनी आँखें बन्द कर ली। एक दो बार अंगुली अन्दर बाहर हुई फिर उन्होंने अंगुली बाहर निकाल ली। कुछ देर तक तो मैं इन्तज़ार करती रही, पर फिर कोई स्पर्श नहीं हुआ। मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली … वहाँ कोई न था !!!

मैंने आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर यहाँ-वहाँ देखा। सच में कोई ना था।

आह … क्या सपना देखा था। नहीं … नहीं … ये पेटीकोट तो अभी तक चूत के ऊपर तक उठा हुआ है … मेरे स्तन पूरे बाहर आ गये थे … मतलब वो यहां आये थे ?

अगले दिन नरेंद्र प्रताप जी के चेहरे से ऐसा नहीं लग रहा था कि उनके द्वारा रात को कुछ किया गया था। वे हंसी मजाक करते रहे और काम से चले गये। लेकिन रात को फिर वही हुआ। वो चुप से आये और मेरे अंगों के साथ खेलने लगे। मैं वासना से भर गई थी। उनका यह खेल मेरे दिल को भाने लगा था। पर आज उन्होंने भांप लिया था कि मैं जाग रही हू और जानबूझ कर निश्चल सी पड़ी हुई हूँ। आज मैं अपने आप को प्रयत्न करके भी नहीं छुपा पा रही थी। मेरी वासना मेरी बन्धन से मुक्त होती जा रही थी। शायद मेरे तेज दिल की धड़कन और मेरी उखड़ती सांसों से उन्हें पता चल गया था।उन्होंने मेरा ब्लाऊज पूरा खोल दिया और अपना मुख नीचे करके मेरा एक चुचूक अपने मुख में ले लिया। मेरे स्तन कड़े हो गये… चूचक भी तन गये थे। मेरी चूत में भी गीलापन आ गया था। तभी उनका एक हाथ मेरी जंघाओं पर से होता हुआ चूत की तरफ़ बढ़ चला। जैसे ही उसका हाथ मेरी चूत पर पड़ा, मेरा दिल धक से रह गया।

नरेंद्र प्रताप जी ने जब देखा कि मैंने कोई विरोध नहीं किया है तो धीरे से मेरे साथ बगल में लेट गये। अपना पजामा उन्होंने ढीला करके नीचे खींच दिया। उनका कड़कड़ाता हुआ लण्ड बाहर निकल पड़ा। अब वो मेरे ऊपर चढ़ने लगे और मुझ पर जैसे काबू पाने की कोशिश करने लगे। मैंने भी नरेंद्र प्रताप जी की इसमें सहायता की और वो मेरे ऊपर ठीक से पसर गये और लण्ड को मेरी चूत पर टिका दिया। मेरे दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों से दबा दिया और अपना खड़ा लण्ड चूत की धार पर दबाने लगे। प्यार की प्यासी चूत तो पहले ही लण्ड से गले मिलने को आतुर थी, सो उसने अपना मुख फ़ाड़ दिया और प्यार से भीतर समेट लिया।

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“समधी जी … प्लीज किसी को कहना नहीं … राम कसम ! मैं मर जाऊंगी !” मैं पसीने से भीग चुकी थी।

“समधन जी, बरसों से तुम भी प्यासी, बरसों से मैं भी प्यासा … पानी बरस जाने दो !” हम दोनों ने शरीर पर खुशबू लगा रखी थी। उसी खुशबू में लिपटे हुये हम एक होने की कोशिश करने लगे।

“आपको मेरी कसम जी … दिल बहुत घबराता था … मेरे जिन्दगी में फिर से बहार ला दो !”

” तो समधन जी आओ एक तन हो जाये … ये कपड़े की दीवार हटा दें… पर कण्डोम तो लगा लूँ?”

“समधी जी, आपको मेरी कसम ! अपनी आंखें बन्द कर लो, और आप चिन्ता ना करें, मैंने ऑपेरशन करा रखा है।”

“वाह जी तो अब शरम किस बात की, यहां बस आप और हम ही है ना, बस अपनी चूत के द्वार खोल दो जी !”

“क्या कहा … चूत का … आह और कहो … ऐसे प्यारे शब्द मैंने पहली बार सुने हैं !”

“सच, तो ले लो जी मेरा सोलिड लण्ड अपनी भोसड़ी में…” मैं उसकी अनोखी भाषा से खुश हो गई।

“आह, धीरे से, यह तो बहुत मोटा है … और धीरे से !”

सच में नरेंद्र प्रताप जी का लण्ड तो बहुत ही मोटा था। चूत में घुसाने के लिये उसे जोर लगाना पड़ रहा था। चूत में घुसते ही मेरे मुख से चीख सी निकल गई।

“जरा धीरे … चूत नाजुक है … कहीं फ़ट ना जाये।” मेरे मुख से विनती के दो शब्द निकल पड़े। फिर भी उसका सुपारा फ़क से अन्दर घुस पड़ा।
“समधन जी, आपकी भोसड़ी तो बिल्कुल नई नवेली चूत की तरह हो गई है … इतने सालों से सूखी थी क्या … एक भी लण्ड नहीं लिया?”
“धत्त, आपको मैं क्या चालू लगती हूँ ?”
“हां , सच कहता हूँ, आपकी आंखों में मैंने चुदाई की कशिश देखी है … उनमें सेक्स अपील है … मुझे लगा तुम तो चुदक्कड़ हो, एक बार कोशिश करने क्या हर्ज़ है?”
“सच बताऊँ, आपको देख कर मेरे दिल में चुदवाने की इच्छा जाग गई थी, एक सच्चे मर्द की यही खासयित होती है कि उसमें बला का सेक्स आकर्षण होता है।”

अचानक उसने जोर लगा कर मेरी चूत में अपना लण्ड पूरा घुसेड़ दिया। मेरे मुख से एक अस्फ़ुट सी चीख निकल गई जिसमें वासना का पुट अधिक था। उनका भारी लण्ड मेरी चूत में अन्दर बाहर उतराने लगा था। आह रे … इतना मोटा लण्ड … बहुत ही फ़ंसता आ जा रहा था। लगता था इतने सालों बाद मेरी चूत सूख चुकी थी और चूत का छेद सिकुड़ कर छोटा सा हो गया था। चूत को तराई की बहुत आवश्यकता थी, सो आज उसे मिल रही थी। कुछ ही देर बाद उसकी चूत का रस उसकी चुदाई में सहायता कर रहा था। चुदाई ने अब तेजी पकड़ ली थी। मेरा दिल भी खूब उछल-उछल कर चुदवाने को कर रहा था।

मुझे समधी जी का लण्ड बहुत मस्त लगा, मोटा, लम्बा … मन को सुकून देने वाला … जैसे मेरा भाग्य खिल उठा था। मैं इस चुदाई से बहुत खुश हो रही थी। बहुत अन्दर तक चूत को रगड़ा मार रहा था। आह क्या मोटा और फ़ूला हुआ लाल सुपारा था।

“समधी जी, आपके इस मस्त लण्ड को आपने किस किस को दिया है?”

“बस मेरी प्यारी समधन को … पूरा लण्ड दिया है … और बदले में कसी हुई भोसड़ी पाई है।”

“अरे ऐसा मत बोलो ना … मेर पानी जल्दी निकल जायेगा।”

“मेरी प्यारी राण्ड, मैं तो चाहता हूँ कि तू आज रण्डी की तरह चुदा … मन करता है तेरी चूत फ़ाड़ दूँ।”

“आह, मेरे राजा … ऐसा प्यारा प्यारा मत बोलो ना, देखो मेरा रस छूटने को है।”

अचानक उसकी तेजी बढ़ गई। मेरी नसें खिंचने लगी। बहुत दिनों बाद लग रहा कि चूत का माल वास्तव में बाहर आने को है। सालों बाद मैं तबियत से झड़ने को अब तैयार थी। मेरी आँखें नशे बंद होने लगी… और तभी समधी जी ने अपने होंठों से मेरे होंठ भींच दिये। मेरी चूचियाँ जोर से दबा कर मसल डाली। सारा भार मुझ पर डाल दिया और एक हल्की सी चीख के साथ अपना वीर्य चूत में छोड़ने लगे। तभी मेरा पानी भी छूट गया। मैंने भी समधी जी को अपनी बाहों में कस लिया। दोनों ही चूत और लण्ड का जोर लगा लगा कर अपना अपना माल निकालने में लगे हुये थे। कुछ देर तक हम दोनों हू अराम से लेते रहे और यहा वहां की बाते करते रहे। पर वो जल्दी ही फिर से उत्तेजित हो गये। मेरा दिल भी कहा भरा था, चुदाने को लालायित था। वो बोल ही पड़े।

“समधन जी, अब बारी है दो नम्बर की… जरा टेस्ट को बदले”

“वो क्या होता है जी…” मैं हैरान सी रह गई

“आपकी प्यारी सी गोल गाण्ड को तैयार कर लो … अब उसकी बारी है…”

“अरे नहीं जी … सामने ये है ना … इसी को चोद लो ना…” मेरी इच्छा तो बहुत थी पर शर्म के मारे और क्या कहती।

“अरे समधन जी, लण्ड तो आपकी चूतड़ो को सलाम करता है ना… मस्त गाण्ड है … मारनी तो पड़ेगी ही”

भला उनकी जिद के आगे किस की चल सकती थी। फिर मेरी गण्ड भी चुदाने के लिये मचल रही थी। उन्होने मेरी गाण्ड में खूब तेल लगाया और मुझे उल्टी करके मेरी गाण्ड में लण्ड फ़ंसा दिया। मोटे लण्ड की मार थी, सो चीख निकलनी ही थी।

“अब ये तो झेलना ही पड़ेगा … अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड लायक बना ही लो … अब तो आये दिन ये चुदेगी … देखना ये भी चुद चुद कर गेट वे ऑफ़ इण्डिया बन जायेगी”

“धत्त, जाने क्या क्या बोलते रहते हो ?”

लण्ड की मार पड़ते ही मेरी गाण्ड का दर्द तेज हो गया। पर वो रुके नहीं। उनकी मशीन चलती रही … मैं चुदती रही। ऐसी चुदाई रोशनी मे, मैंने भी खूब अपनी टांगे चीर कर बेशर्मी से दिल की सारी हसरते पूरी की। अब मुझे महसूस हो रहा था कि मैं भी इक्कीसवीं सदी की महिला हू, आज की लड़कियो से किसी भी प्रकार कम नहीं हूँ। रात भार जी भर कर चुदाया मैने। सुबह तक हम दोनो कमजोरी महसूस करने लगे थे। हम दोनो दिन के बारह बजे सो कर उठे थे। अब तो ये हाल था कि समधी जी सप्ताह में एक बार मुझसे मिलने जरूर आते थे। उन्हे मेरी फ़ेमिली प्लानिंग के ऑप्रेशन का पता था सो वो मुझे खुल कर चोदते थे … प्रेग्नेंसी ला सवाल ही नहीं था। बस मेरी गाड़ी तो चल पड़ी थी। मैं विधवा होने पर भी बहुत सुखी थी और अब अकेली ही रहना पसन्द करने लगी थी। मेरे जीवन में फिर से बहार आगयी।



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