इतना बोलते हुए वह अपने बटन खोलने लगा और देखते ही देखते उसने अपनी शर्ट उतार दी।
मैं तो खुशी से झूम उठा.. अब वह बनियान में था और उसके कसे हुए डोले देखकर मेरा लंड तनतना उठा, मेरा जी मचलने लगा कि इसके इन डोलों को जुबान से चाट लूँ।
इतने में ही उसने अपनी बनियान भी उतार फ़ेंकी.. मेरी आँखें तो फटी की फटी रह गईं, इतने करीब से राजेश को मैंने बिना कपड़ों के कभी नहीं देखा था।
क्या कातिलाना जवानी थी.. वाह.. नई उम्र का जवान बंजारा.. गांववाला मर्द.. मेरी आँखों के सामने.. वो भी अपनी मजबूत भुजाओं और कसरती बदन के साथ.. मेरी तो मानो लॉटरी लग गई थी।
मेरा जी कर रहा था कि आज तो इसके बदन को छू लूँ और इसकी छाती को चूम लूँ। मैं अभी इसी सोच में डूबा था तभी राजेश की आवाज आई- ले.. यह लेप मेरी पूरी बॉडी पर लगा दे..
ओह्ह.. मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा.. मैं तो उसके मस्त बदन को छूना ही चाहता था। उसने तो पूरे बदन पर पेस्ट लगाने का बोलकर मानो मेरे दिल की ख्वाहिश पूरी कर दी।
वह मुल्तानी मिट्टी जैसा कुछ पेस्ट था.. जिसे लगाकर उसे परफॉर्म करना था।
वह बेंच पर बिल्कुल तन कर कड़क होकर बैठ गया। मैंने वो लेप का बर्तन लिया और उसके बदन को छू लिया, मानो मेरी दिल की ख्वाहिश पूरी हो गई हो.. मैंने उसके मर्दाना जिस्म पर लेप लगाना शुरू कर दिया और वो बिल्कुल किसी राजपूताना महाराजा की तरह तनकर बैठा हुआ था और मैं किसी दासी की तरह उसके जिस्म पर लेप लगा रहा था।
मैंने उसकी पीठ पर लेप लगाया जो कि काफी चौड़ी थी.. फिर उसकी कलाइयों से होते हुए डोलों तक पहुँचा.. उसके फूले हुए डोलों को मैंने छुआ और बार-बार लेप लगाने के बहाने उसके हाथों को ऊपर-नीचे करवाता.. जिससे डोले ऊपर-नीचे होते और मैं उन्हें छूकर अनुभव करता।
उसकी बगल में छोटे-छोटे बाल उग आए थे.. जो उसे और भी सेक्सी बना रहे थे। अब मैं उसकी मजबूत छाती तक पहुँचा और उसके पीछे खड़ा हो गया। मैंने अपने दोनों हाथों में लेप ले लिया और उसकी छाती के दोनों उभारों पर अपने हाथ रख दिए और बिल्कुल होली खेलने वाले ढंग से उसकी छाती पर लेप लगाने लगा।
वाह.. क्या पल था वो.. जवान मदमस्त फूली हुई मर्दाना छाती पर मेरे दोनों हाथ.. ऐसे करते हुए मैंने उसके पेट पर भी लेप लगाया और आनन्द का यह सिलसिला यहीं समाप्त हो गया।
अब सब अपनी परफॉर्मेंस के लिए जा चुके थे और कमरे में कोई नहीं था, राजेश भी चला गया था.. लेकिन मेरा लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था, मेरे दिमाग में बस राजेश का कामुक जिस्म ही चल रहा था।
मेरा दिमाग खराब हुआ और मैंने कमरे का दरवाजा बन्द करते हुए अपने पैन्ट से अपना लगभग छोटा सा लौड़ा निकाला जो कि अपनी औकात से अधिक फनफना रहा था।