ऑफिस की लड़की से जिस्मानी रिश्ता सही या गलत-1

बातें होती रहीं.. उसके लबों को चूमा और धीरे से स्तनों को कपड़े के ऊपर से ही सहलाया।
हाथ जब अन्दर करने का समय आया तो उसने रोक दिया और थरथराती आवाज़ में कहा- सर प्लीज..
उसके इंकार का सम्मान करते हुए मैंने उसको हॉस्टल छोड़ दिया।

अब ये रूटीन हो गया था.. मैं उसको हॉस्टल छोड़ने जाया करता था और लॉन्ग ड्राइव के दौरान लिप किस करने के साथ-साथ गोलाइयों को भी प्यार कर लिया करता.. पर यह सब कपड़े के ऊपर से ही होता था।

इसी बीच मेरे पास एक ऑफर आया और मैंने दूसरी कंपनी को ज्वाइन कर लिया.. सुनीता का रो-रो कर बुरा हाल था।

फेयरवेल हुआ.. जिसके बाद उसने मुझको छोड़ने के लिए कहा।
फिर लॉन्ग ड्राइव पर..

आज की ड्राइव में हम काफी दूर चले गए। एक सुनसान जगह पर रुक कर प्रेमालाप करने लगे। मैंने उसको किस किया.. मेरी जीभ उसके मुँह के अन्दर थी.. उसको गोल-गोल घुमा कर मैंने धीरे से अपने हाथ उसकी कुर्ती के अन्दर डाल दिया।

आज उसने मेरे हाथ को नहीं रोका पेट पर हाथ फिराते हुए मैंने धीरे से हाथ को ऊपर ले जाकर उसकी ब्रा के ऊपर रख दिया। उसके होंठ तो मेरे होंठों में थे और हाथ ब्रा के ऊपर थे।

धीरे से मैंने उसकी एक गोलाई को ब्रा से बाहर निकाला और निप्पल को महसूस किया.. निप्पल बहुत छोटा सा था।

उसके 36 डी साइज़ के स्तन और छोटा सा निप्पल.. मेरा पूरा वज़ूद उसको महसूस करने लग गया था। कुछ देर निप्पल और स्तन को हाथों से प्यार करने के बाद मैंने उसके होंठों से अपने होंठों को अलग किया और कुर्ती को ऊपर कर जो निप्पल ब्रा से बाहर था.. उसको किस किया.. लिक किया और पूरी गोलाई को मुँह में लेने की असफल कोशिश की।

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धीरे-धीरे मैंने उसके दूसरे स्तन के ऊपर से भी ब्रा का कप हटा दिया और एक स्तन.. जिसको मैंने बाद में ‘टॉम’ का नाम दिया.. उसको होंठों से.. जीभ से.. दांतों से प्यार करने लगा और दूसरे स्तन.. इसका नाम बाद में ‘जेरी’ रखा.. इसको हाथों से सहलाने लगा।

घोर अँधेरा था.. हाईवे से अन्दर किसी सुनसान जगह और करके अन्दर असुरक्षित और छोटी सी जगह पर ऐसा करते मन में डर था.. पर वासना का भूत डर पर हावी था।
टॉम और जेरी को प्यार करने के बाद मैंने उसकी सीट का पुश बैक पूरा खोल दिया और वह अधलेटी सी हो गई।

मैंने उसकी कुर्ती को पूरा उतार कर ब्रा के हुक्स को खोल कर दोनों प्रेम कपोतों को कभी हाथों से तो कभी होंठों से प्यार करना जारी रखा।

फिर धीरे से मैंने उसकी गर्दन पर कान के नीचे अपनी जीभ फिरा दी।
सुनीता पागल हो गई.. वो गर्दन को झटकने लगी।

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मेरी पकड़ और मज़बूत हो गई और मैंने गर्दन के आगे-पीछे दायें-बाएं जीभ फेरना चालू रखा।

सुनीता की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं। मैंने भी अनुकूल समय पाकर अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के बीच में रख दिया और धीरे से सहलाना चालू कर दिया.. और उसके एक हाथ को अपनी पैंट के ऊपर रखा.. जिसको उसने धीरे से हटा लिया।

मुझको समझ में आ गया कि अभी समय अनुकूल नहीं आया है और मैंने हाँफते हुए खुद को सुनीता से अलग कर लिया।

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कहानी जारी है।

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