ऑफिस की लड़की से जिस्मानी रिश्ता सही या गलत-1

एक दिन उसने खुशखबरी दी कि पति की ज़मानत हो गई है और वह उसको लेने जाना चाहती है, वो छुट्टी लेकर चली गई।
जब वापस आई तो उसकी उदासी कम होने के बदले बढ़ चुकी थी।

इस बीच मुझे बंगलौर जाना पड़ा। बंगलौर में मैंने अपनी पत्नी.. माँ के लिए सिल्क की साड़ियाँ.. पिताजी और बच्चों के लिए कुछ कपड़े.. किताबें.. खिलौने लिए।

वापसी के पहले सुनीता का एक बार फ़ोन आया और बातों ही बातों में मैंने उसे अपनी खरीददारी के बारे में बताया.. तो उसने पूछ लिया- और मेरे लिए क्या लिया?
उस समय तो मैंने कह दिया- सिल्क की साड़ी ली है।
अब कह दिया था तो लेनी पड़ गई।

वापस आने के बाद मैंने उसको एयरपोर्ट से घर जाते-जाते ही उसकी साड़ी उसको दे दी।
शायद यह सबसे बड़ी गलती थी।

मेरी अन्तर्वासना उसके लिये जागी
कुछ दिनों बाद एक टूर पर वह मेरे साथ गई, होटल में दोनों के कमरे अलग-अलग थे।

डिनर के बाद कुछ समय के लिए सुनीता मेरे कमरे में आ गई। यह वह पल था.. जब मेरे मन में उसको पाने की चाहत जगी। उसके साथ बात करके मैंने उसके पति के बारे में पूछ ही लिया।
पति के जिक्र से सुनीता कुछ उखड़ी-उखड़ी सी लगी।

तो मैंने उससे पूछ लिया- एक बात बताओ कि तुम्हारे पति के साथ तुम्हारी सेक्स लाइफ कैसी है?

मुझको यह जान कर आश्चर्य हुआ कि उनके बीच लगभग एक साल से अधिक समय से कोई सम्बन्ध नहीं बन पाया था। कुछ उसके जेल में रहने के कारण.. कुछ सुनीता की नौकरी के कारण और फिर मन भी तो होना चाहिए।

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उसने यह भी बताया कि जब पहले होता था तो उसको बहुत दर्द होता था।

इतनी बात करते करते हम कब एक-दूसरे के आगोश में आ गए.. पता ही नहीं चला।

एक बात मुझको समझ में आ गई थी कि सुनीता को सेक्स की चाहत तो है.. पर उसको सेक्स के लिए रेडी करना बहुत कठिन है.. शायद दर्द युक्त सहवास के अनुभव के कारण।

प्रथम चुम्बन
मैंने कुछ देर उसको किस किया। उसके लब मेरे लब… दोनों एक-दूसरे पर थे.. काफी देर के बाद उसने मेरी जीभ को अपने मुँह के अन्दर जाने दिया।
धीरे-धीरे उसके अन्दर पिंघलन बढ़ी.. पर मैंने खुद पर काबू किया.. पर अब सुनीता का खुद पर से कण्ट्रोल उठने लगा था।

उस रात इतने के बाद वो अपने कमरे में चली गई।

वापसी के एक दो दिनों के बाद मैंने उसको अपनी दी हुई साड़ी में देखा, वो क़यामत लग रही थी।
ऑफिस में उसने मुझसे पूछा- साड़ी में मैं कैसी लग रही हूँ?
मैंने कह दिया- तुमको देख कर प्यार करने का दिल हो रहा है।

सुनीता इस बात पर कुछ न कह कर.. मुस्कुरा कर रह गई।
शाम को मैंने उससे कहा- कुछ देर रुक जाना।

जब सब चले गए तो मैंने कहा- देर हो रही है.. तुमको छोड़ देता हूँ।
मेरी कार में सुनीता मेरे बाज़ू में ही बैठ गई.. मारुती 800 में जगह कितनी होती है.. गियर बदलने के समय मेरा हाथ उसकी जांघों को छू लेता था।

उसने कोई ऐतराज नहीं किया.. तो मैंने उसके हाथ को पकड़ कर अपनी बायीं जांघ पर रख दिया और अपने बांया हाथ उसके दाहिनी जांघ पर रख दिया।

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उस रात उसको वर्किंग वीमेन हॉस्टल छोड़ने के पहले काफी देर तक आउटर में ड्राइविंग की।

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