मम्मी रंडी बनी पापा के कर्जे की वजह से

पापा के सर के ऊपर उतना कर्ज हो गया था की एक एक बाल हजार रूपये में बेचते फिर भी वो कर्जदार ही रहते. उनका अपना मेडिकल स्टोर था लेकिन  उनको शेर ट्रेडिंग की उतनी बुरी लत लग गई की उन्होंने सब गवां दिया. फिर डूबे हुए पैसे निकालने के लिए और ट्रेडिंग! और फिर कर्ज ले के भी डूबे हुए पैसे निकालने की जहमत. लेकिन जुए का एक असूल हे की जो जीतता हे उसे कोई हरा नहीं सकता. और जो डूबता हे उसे कोई बचा नहीं सकता. पापा संभले तब तक हमारा घर गिरवी था और अपने घर में रहने का हम किराया दे रहे थे.

मेडिकल स्टोर की जगह पर भी कपडे का शो रूम खुल गया. पापा को कुछ और काम तो आता नहीं था. वो शराब के आदि हो गए और कर्जदारों से बचने के लिए कभी गोरखपुर मामा के वहां तो कभी लखनऊ बुआ के वहां भाग जाते थे. लेकिन मम्मी कहा जाती. मम्मी को तो मुझे और मेरी छोटी बहन शालिनी को पालना था. घर को चलाने के लिए वो लोगों के कपडे सिलाई कर देती थी. और कर्जदार मम्मी को ऐसी ऐसी गन्दी गालियाँ देते थे जैसे की कान में एसिड डाला हो. पापा घर पर ना हो तो कभी कभी वो लोग पापा के इंतज़ार में घंटो घर में बैठे रहते थे. मम्मी को कुछ दो तिन बन्दे तो रंडी छिनाल कह के बुलाते थे. मन तो करता था की केंची को गले में डाल के उसे खोल दूँ. पर मैं छोटा था और मम्मी ने वैसे भी हमें कसम दी थी की पापा के कर्जदारों के सामने कभी हम लोग बात ही ना करें!

एक दिन की बात हे रशीद खान अपने दो आदमियों के साथ शाम को घर पर आया. पापा घर पर नहीं थे. रशीद का सूद पर पैसे देने का काम हे और हमारा घर उसके पास ही गिरवी हे. रशीद ने आके मम्मी को कहा,

रशीद: और निम्मी कैसी हो, कहा गया वो भडवा विनीत?

मम्मी: जी वो घर पर नहीं हे?

मम्मी ये कहते हुए एकदम घबराई हुई थी. रशीद ने अपने आदमियों से कहा, जाओ बे यहाँ क्या खड़े हो सालो. देखो कही इधर उधर दब के तो बैठा नहीं हे हरामी, साला डेढ़ महीने से दूकान पर आया ही नहीं.

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मम्मी: रशीद भाई वो नहीं हे घर पर, दो दिन हुए आये ही नहीं!

रशीद: वो तो मेरे आदमी देख लेंगे, आप कैसी हो ये बताओ?

और ये कह के वो मेरी मम्मी को ऊपर से निचे तक देखने लगा. फिर बोला: हरामी विनीत ने आप को दुखी कर दिया? हमारा भी पैसा लगा हे उसके ऊपर इसलिए आना पड़ता हे. अब दो महीने होने को हे मकान का किराया भी नहीं दिया उसने. लास्ट टाइम आप का मंगलसूत्र दे के गया हे और अब पता नहीं क्या देगा. पैसे दे के हमें जैसे भिखारी बना दिया हे उसने, कुछ भी हमारी झोली में डाल देता हे.

मम्मी की आँखे नम हो गई और वो बोली: वो ऐसे नहीं हे रशीद भाई, पता नहीं इस शेर ट्रेडिंग को किस अभागे ने उन्हें सिखा दिया. मेरे बच्चो की हाय लगेगी!

रशीद: हाय तो हमें ही लग रही हे, पैसे दे के सूद लेने के लिए भी आना पड़ता हे. वो तो उसका दोस्त इमरान साथ में आया था इसलिए मैंने पैसे दे दिए. वरना मैं देता ही नहीं.

रशीद के आदमी बहार आये सब जगह देख के.

एक आदमी: रशीद भाई कही भी नहीं हे?

रशीद: बाथरूम संडास देखा?

दूसरा: हां वो साला यहाँ हे ही नहीं.

मम्मी: रशीद भाई वो आयेंगे तब मैं आप के पास भेज दूंगी.

रशीद ने अपने आदमियों से कहा: तुम लोग दिलावर खान के पास जाओ वो पैसे दे देगा मेरी फ़ोन पर बात हुई हे.

उन्के जाते ही वो बोला: निम्मी भाभी आप एक काम करो ये मकान खाली कर दो इस हफ्ते में. मेरे बहुत पैसे लगे हे और मैं आप को यहाँ नहीं रहने दे सकता!

मम्मी के पैरों के निचे से जमीन ही खिसक गई! उसकी आँखों नम थी और उसने अपने दोनों हाथो को रशीद के सामने जोड़ा.

मम्मी: रशीद भाई रहम कीजिये, उन्के पापो की सजा मेरे बच्चो को ना दे. वो कहा भटकेन्गे हमारे साथ. मेरे पापा मम्मी भी गुजर गए हे इसलिए मइके भी नहीं ले के जा सकती हूँ! मैं अपनी सिलाई की कमाई से पैसे चुकाउंगी आप के.

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रशीद: निम्मी, उसका कर्जा तुम्हारे सिलाई के काम से चुकाने के लिए मुझे और तुम को एक एक हजार साल जीना होगा!

मम्मी के आंसू अब बहार आ गए थे. वो अपनी ओढनी से आंसू पोंछने लगी और दुपट्टा उसकी छाती से हटा तो रशीद की नजरें वहां पड़ी. कुत्ते के जैसे उसके मुहं में पानी आ गया. उसने मम्मी को कहा: वैसे एक काम कर के आप अपना घर बचा सकती हो?

मम्मी: हां हां बोलिए क्या?

रशीद: बुरा मत मानना लेकिन आप की खूबसूरती का मैं पहले से ही कायल हूँ और मुझे आप पहले दिन से ही बहुत पसंद हे. इमरान तो ठीक मैंने कर्जा आप के लिए ही दिया था आप के पति को, लेकिन वो एक नम्बर का भडवा निकला. साला अपनी इतनी सुंदर बीवी और खुबसुरत बच्चो की भी फ़िक्र नहीं हे.

फिर वो मम्मी के पास आया और उसके हाथ को देख के बोला, पूरा दिन कपडे सी सी के तुम्हारे हाथ भी अकड गए हे निम्मी!

मम्मी थोडा पीछे हटी लेकिन रशीद उसके और पास आ गया. मम्मी का हाथ उसने नहीं छोड़ा.

मम्मी: क्या कर रहे हो आप?

रशीद: कुछ नहीं तुम्हारी सुन्दरता के बारे में बता रहा था.

मम्मी: रशीद भाई ये गलत हे!

रशीद: तो फिर घर खाली कर दो. और खाली नहीं करना हे तो मैं हफ्ते में एकाद बार आऊं तो मेरी हो जाओ. मैं सूद मुद्दल कुछ नहीं मागुंगा, जब पैसे आये तब किराया देना. मैं जोर नहीं करूँगा और मेरा कोई आदमी भी लेनदारी के लिए यहाँ नहीं आएगा!

मम्मी ने इधर उधर देखा. मैं खिड़की के बहार था वहां उसकी नजर नहीं आई.

मम्मी: रशीद भाई मैं बदनाम हो जाउंगी!

रशीद: कुछ पता नहीं चलेगा किसी को निम्मी, मुझे मेरे बच्चो की कसम. तुम मेरी रखेल बन के मेरे इस घर में रहो. ऊपर से पैसे की जरूरत हुई तो मैं पैसे दे के जाऊँगा. तुम्हारे हाथ सच में एकदम हार्ड हो गए हे. तुम्हारे जैसी पढ़ी लिखी औरत संघर्ष करे वो मैं नहीं देख सकता.

मम्मी एक पल के लिए कुछ नहीं बोल पाई. उसके गले में शायद आवाज घूंट गई थी. फिर वो बोली: मैं अपने पति को धोखा कैसे दूँ?

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