मुझे जीना सिखा दिया-1

‘अब मैं क्‍या करूं?’
मैंने अपने पुराने संग्रह से अपनी और शशि की कुछ फोटो एडिट करके मित्रों को शेयर कर दी।

अब उन मित्रों से फोन पर भी बात शुरू हुई तो कुछ की पत्‍नी से भी वार्ता होने लगी।
तो मित्रों ने मुझसे भी शशि से बात करने की इच्‍छा जाहिर की।
अब तो मैं सच में फंस चुका था क्‍योंकि शशि से तो मेरी ही ढंग से बात नहीं होती भाई, तुम्‍हारी कहाँ से करवाऊँ?
शायद यही सोच रहा था मैं उस वक्‍त।

जीवन में बदलाव
खैर समय बीत रहा था।
एक दिन जब मैं शशि के साथ अकेले में बैठा कुछ अच्‍छा माहौल में बात कर रहा था तो मैंने शशि से अपनी उस कपल आई डी का जिक्र किया और बताया कि उसमें मेरे भी कुछ मित्र बन गये हैं जिनसे और जिनकी पत्नियों से भी अक्‍सर मेरी बात होती है वो लोग भी तुमसे बात करने के इच्‍छुक हैं।

मेरी बात सुनकर शशि ने उस आई॰डी॰ के बारे में मुझसे पूछताछ शुरू कर दी।
मैंने भी सीधे सीधे शशि को अपनी उस कपल आई॰डी॰ के बारे में बता दिया।

बस सुनते ही शशि तो जैसे मुझपर बिफर पड़ी, कुछ तो व्‍यवहार से गुस्‍सैल ऊपर से ऐसी चीज की तो उसने उम्‍मीद भी नहीं की होगी मुझसे, तो गुस्‍सा तो आना ही था।
अब मैंने भी चुप रहना ही उचित समझा।

पर अपनी आई डी पर मैं अक्‍सर लोगों से बात करता बहुत से ऐसे कपल से बात हुई कि उनके आपसी प्‍यार को देखकर मुझे उनसे जलन होने लगती।

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कभी कभी मुझे महसूस होता कि हम दोनों के बीच की दूरियों के लिये जितनी जिम्‍मेदार शशि है, उतना ही मैं भी तो हूँ। मैं भी तो हमेशा शशि का पति ही बना रहा कभी उसका मित्र बनने की कोशिश ही नहीं की।

अब मैंने अपनी गलती को समझकर सुधार करने की कोशिश की। धीरे धीरे मैंने शशि पर ध्‍यान देना शुरू किया। उसकी हर बात को ध्‍यान से सुनता, जहाँ वो गलत होती वहाँ भी उसका साथ देता।
हर जगह एक दोस्‍त की तरह उसकी मदद करता, उसको परिवार से अलग भी कुछ समय देने का प्रयास करता।

ये सब करना तो मुझे भी बहुत अच्‍छा लगता था।

जीवन में प्यार का आगमन
धीरे धीरे शशि में भी परिवर्तन आने लगा, अब वो थोड़ी नर्म भी हो गई। अब हम दोनों ही अनेक कपल फ्रैंन्‍डस से बात करने लगे।
कभी कभी कुछ अलग तरह की मौज-मस्‍ती भी करते।
लोगों को मस्‍त जीवन जीते देख कर हम भी जीवन में मस्‍त रहना सीख रहे थे। अब जिन्‍दगी थोड़ी आसान होने लगी, आपस में प्‍यार बढ़ने लगा।

हम अक्‍सर एक दूसरे को समय देने का प्रयास करते। शादी के बाद पहली बार हमने एक दूसरे को समझने और एक दूसरे के साथ समय बिताने के लिये कहीं बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया, और हम निकल पडे पंचगनी के सुहाने सफर पर!
हम, सिर्फ हम दोनों…

हमने तय किया कि इन दो दिनों में हम घर परिवार बच्‍चों के बारे में कोई बात भी नहीं करेंगे, सिर्फ एक दूसरे को ही समय देंगे।
पंचगनी का मौसम जैसे सोने पे सुहागा!
ऊपर से पंचगनी के होटल सत्‍कार ने जो सत्‍कार किया वो तो अविस्‍मरणीय था।

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जैसे की मेरी आदत बन चुकी थी, पंचगनी पहुंचते ही मैंने अपनी उस फेसबुक आई॰डी॰ का स्‍टेटस अपडेट किया और आराम करने लगा।
कोई 10 मिनट बाद ही मेरे मोबाइल पर एक फेसबुक कपल फ्रैंड विवेक-काजल का फोन आया।
‘हैलो विवेक कैसे हो?’ मैंने पूछा।
‘क्‍या राजीव भाई, आप भाभी को लेकर पंचगनी को निकले और बताया भी नहीं?’ उधर से विवेक बोला।
‘ये तो मैंने अभी आपको स्‍टेटस देखा तो पता चला।’ विवेक ने जारी रखा।

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