मुझे जीना सिखा दिया-1

विवेक तो शुरू से ही शशि की खूबसूरती पर फिदा था पर अब शशि भी खुल कर मस्‍ती कर रही थी।
मैंने पिछले 12 सालों में शशि को इतना खुश पहले कभी नहीं देखा, यहाँ आकर तो वो बिल्‍कुल चंचल हिरनी बन गई थी।

जैसी शशि मैं पिछले 12 सालों में ढूंढ रहा था वो मुझे आज मिली, इसीलिये मैं भी बहुत खुश था।
शशि मेरा बहुत ख्‍याल भी रख रही थी और हर कदम पर साथ भी दे रही थी।

इसी तरह मस्‍ती करते, टहलते-टहलते हम लोग बाग में काफी दूर निकल आये।
तभी अचानक हल्‍की बूंदा बांदी शुरू हो गई। बाग में टहलने वाले सभी लोग बारिश से बचने को इधर उधर भागने लगे।
हम लोगों ने भी भागकर एक पेड़ की ओट में शरण ली। पर इतनी तेज बारिश में भला पेड़ के नीचे हम कैसे बच पाते, कुछ ही मिनटों में हम चारों पूरी तरह भीग गये।

वहाँ से निकलने के लिये चारों तरफ देखा तो बाग तो बिल्‍कुल खाली हो चुका था, आसपास के सभी लोग पास में बने रेसार्ट में चले गये थे, मैंने भी वहाँ जाने को कहा।

तो काजल बोली- क्‍यों राजीव, यहाँ कितना अच्‍छा लग रहा है ना! क्‍या करेंगे रेसार्ट में जाकर? वैसे भी बारिश में नहाने का अलग ही मजा है।
शशि ने भी तुरन्‍त काजल की हाँ में हाँ मिलाई।

हम दोनों पुरूष अब निरूत्‍तर हो गये।

तभी विवेक ने कहा- जब भीगना ही है तो खुल की भीगो न, यूं पेड़ के नीचे छिपकर क्‍यों?

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बस क्‍या था चारों ने दौड़ लगा दी बाग में खुले आसमान के नीचे… हमारे कपड़े तो बुरी तरह भीग गये।
तब तक बारिश भी तेज हो गई।

मेरी निगाह शशि पर गई… नीले रंग क टाईट मिड्डी में लिपटी शशि आज मुझे बहुत कामुक लग रही थी, बिल्‍कुल कामदेवी जैसी।

मैं बरबस ही शशि की तरफ बढ़ा और उसको बाहों में लेकर अपने होठों को शशि के कामुक होठों पर रख दिया।
शशि ने एक पल को नजरें ऊपर उठाकर मेरी तरफ देखा, और फिर वो भी इस कामुक चुम्‍बन में मेरा साथ देने लगी।

अब तो शशि को ऐसा आनन्‍द आने लगा कि वो मेरे होंठ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी।
इस बारिश के मौसम में भी शशि का पूरा बदन गरम होने लगा… वो शशि जिसने अपने कमरे में लाईट ऑन होने पर भी कभी मुझे हाथ तक नहीं लगाने दिया।
घर में आज तक जब भी हम कामावस्‍था में रहे शशि हमेशा एक निष्‍क्रिय भागीदार ही रही।

पर आज शशि को यह क्‍या हुआ? शायह इसी शशि को तो मैं 12 सालों से खोज रहा था।

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