लड़के के चौकीदार से चुदने की सेक्सी कहानी

हेलो दोस्तों, आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। अब आगे की कहानी-

30 दिन चाचा के साथ चुदाई कर-कर के मेरी गांड और चूचे अब पहले से भी ज्यादा उभर गई थी। हाल तो ये हो गया, कि अब मेरे नॉर्मल कपड़े और अंडरवियर भी फिट नहीं आ रहे थे। ज्यादातर हम दोनों नंगे ही होते थे। लेकिन बाहर जाना मुश्किल हो रहा था।

एक दिन चाचा मेरे लिए नए कपड़े लाने वाले थे। चाचा के जाने के बाद मैं घर की बालकनी में, केवल चाचा की सफेद लुंगी पहन कर अपने मम्मी-पापा से बात कर रहा था। उसमें मेरी गांड आराम से नजर आ सकती थी। ऊपर मैंने कुछ नहीं पहना था। तभी मैंने नोटिस किया कि गोपाल (हमारा चौकीदार, जो 45 साल का है, और 5.8 फीट की ऊंचाई के साथ फिट है) मुझे बहुत देर से मेन गेट पर बने उसके चौकीदार वाले कमरे से देख रहा था।

मैं भी अब जान-बूझ कर गोपाल की तरफ से अपनी गांड को हिला-हिला कर दिखा रहा था (उसे पता नहीं था कि मैं उसे देख चूका था)। मेरे कपड़े आने के बाद भी कुछ दिन ऐसे ही बालकनी में आ जाता था। एक दिन तो केवल वी-आकार के अंडरवियर में ही आ गया उस दिन वो चुपके-चुपके अपना हिला रहा था।

एक दिन दोपहर में मैं घर पर केवल वी-आकार के अंडरवियर में ही था। तभी दरवाजा किसी ने खटखटाया। इस समय ज्यादातर कोई नहीं आता। जैसे ही मैंने गेट के होल से देखा, सामने गोपाल खड़ा था। पहले तो सोचने लगा ये यहां क्यों था,‌ और ये तो कभी अंदर नहीं आता।

गोपाल: साहब गेट खोलो, कुछ सामान लेना है।

मैंने भी गेट खोल दिया। ध्यान नहीं दिया कि मैं अंडरवियर में ही था।

मैं: क्या लेना है?

गोपाल: पानी की पाइप चाहिए ऊपर वाले कमरे से (मेरे जिस्म को देखते हुए)।

मैं: ठीक है,‌ लेलो जाकर।

गोपाल: आप साथ चलो। मदद कर देना।

फिर हम दोनों रूम में गए। वहां कोई पाइप नहीं मिला बहुत देर तक देखने पर भी।

गोपाल: साहब एक बात तो है। बड़े साहब के साथ आपकी अच्छी चुदाई, मेरा मतलब है छुट्टिया चल रही है।

मैं ( थोड़ा हैरान होकर ): हां वो तो है, क्यूं?

गोपाल (मेरी गांड पर हाथ लगा कर): नजर तो आ रहा है कहां सेवा देते हैं साहब।

मैं: ये क्या कर रहे हो? दूर हो जाओ। चाचा को बोल दूंगा।

गोपाल: हमें भी बोल दो। वैसे भी बड़े साहब आज दूर गए हैं, और कोई नहीं है यहां। साले मुझे तो तू पहले दिन ही गांडू लग गया था। लेकिन पक्का यकीन तो बालकनी में तेरी गांड देख कर हो गया था। रोज तेरी गांड देख कर हाथ से ही काम चला रहा था। आज मौका मिला है, आज नहीं जाने दूंगा तुझे।

और उसने मुझे बहुत जोर से पकड़ लिया।

मैं: मैं ऐसा नहीं हूं।

गोपाल: चुप-चाप करवा ले, वरना साहब को बोल दूंगा तू रोज उनके जाने के बाद मेरे पास आता था।

यह सुन कर मैं बहुत डर गया था। पहले ही चाचा मुझे किसी और के साथ के लिए मना कर चुके थे। गोपाल ने अपना 5 इंच लम्बा या 3 इंच मोटा लंड पैंट उतार कर मेरे मुँह में दे दिया। चाचा के लंड के सामने तो ये कुछ भी नहीं था।

वो अब कुत्तों की तरह मेरे मुँह को चोद रहा था।

गोपाल: चूस रांड इसे चूस, तेरी जैसी रांड को देख कर ही बड़े साहब पागल हो गए होंगे। वरना उन्हें कभी ऐसा करते नहीं देखा मैंने। बोल कितनी बार मारवा चुका है तू साहब से?

वो लंड मुँह से निकाल कर लंड मेरे मुंह पर मरने लगा और फिर से मुँह में डाल दिया।

गोपाल: बोल कुत्तिया बोल, कितनी बार चुद गया है, और कितने लोड़े लिए है तूने बोल कुत्तिया?

मैं: चाचा ने कभी ऐसा नहीं किया (मुझे डर था कहीं ये चाचा के ऑफिस में ना बोल दे इसलिए झूठ बोला)।

गोपाल मेरा अंडरवियर निकाल कर मेरी गांड दबाने लगा, और मेरी गांड में उंगलियां करते हुए बोला-

गोपाल: तो ये छेद क्या तेरे बाप ने फाड़ा है? क्या रंडी बोल। कितने आराम से उंगली ले रही है वो भी 2-2, बोल कुतिया।

मैं: तुम किसी को बोलना मत (डर की वजह से झूठ बोल दिया) बबलू ने किया था।

गोपाल ने लंड पर थूक लगा कर मेरी गांड में डाल दिया और ज़ोर-ज़ोर से गांड मारने लगा। चाचा का इतनी बार ले चुका था कि अब ये ज्यादा दर्द नहीं कर रहा था। लेकिन वो चूतिया बार-बार मेरे चूचे या मेरी गांड को नोच-नोच कर मार रहा था।

गोपाल: तभी वो कुत्ता तेरे आने के बाद उस दिन खाना बना कर बहुत देर से गया था, और उसके बाद भी 3-4 बार आ गया।

वो साले का इतना बड़ा है क्या जो तेरी ऐसी गांड हो गई। मुझे तो पता ही था। बड़े साहब को ऐसा कोई शोक नहीं है, वो देवता आदमी है।

(मैं हैरान था बबलू 3-4 बार कब आया)

बहुत तेज-तेज झटके के साथ मेरी गांड चोदने लगा वो।

मैं: दर्द हो रहा है यार, अब रुक जाओ प्लीज़, बहुत दर्द हो रहा है।

5 मिनट के बाद वो मुझे ऐसे ही नीचे ले गया, और वहां ऊपर जाने वाली सीढ़ियों में ही मुझे चोदने लगा। 20 मिनट के बाद उसने मेरे सीने पर ही अपना माल गिरा दिया। फिर मेरी पूरी बॉडी पर अपना माल हाथ से फैलाने लगा।

गोपाल: ये बात अगर किसी को पता चली, तो तेरा बबलू और तू दोनों बड़े साहब से। समझ गया ना? ज्यादा होशियार बनने की जरूरत नहीं है। चल नहा ले अब। साहब आने वाले होंगे, और जब भी शहर से दूर जायेंगे तो बुला लेना।

गोपाल के जाने के बाद मैं भी जल्दी से नहा लिया, और सब ठीक करने लग गया।

30 मिनट बाद चाचा आ गए।

मैं: आपने मुझे सुबह क्यों नहीं बताया आप शहर से बाहर जा रहे हो?

चाचा: मैं कहीं नहीं गया। आज पुलिस स्टेशन में ही था, और कहां जाऊंगा। तुम्हें क्या हुआ?

(गोपाल झूठ बोल कर मेरी गांड मार कर चला गया)

चाचा: आज पापा का कॉल आया था। वो 2 दिन बाद आ रहे हैं। 7-10 दिन के लिए।

मैं: फिर हम सेक्स कैसे करेंगे। उसके बाद तो मेरी छुट्टियां खत्म हो जाएंगी

चाचा: कोई नहीं हम रात में तो साथ ही होंगे ना जान। वैसे भी हमारा साथ होना जरूरी है। तुम्हारे अलावा अब किसी के साथ सेक्स करने का मन नहीं करता जान।

मुझे बहुत शर्मिंदगी हो रहा थी ये सब सुन कर। चाचा के पापा (वीरेंद्र), पूर्व आर्मी मैन हैं। अब वो दिल्ली आर्मी स्कूल में काउंसलर हैं।

शरीर, ऊंचाई और वजन एक दम मस्कुलर।‌ बिल्कुल चाचा के जैसे, बिल्कुल कॉपी। 2 दिन बाद

हम दोनों नंगे ही सो रहे थे। चाचा ने मुझे खास कर पकड़ लिया, और मेरे कान में बोले-

चाचा: आज पापा आने वाले हैं। फिर कल से शायद मौका ना मिले।

मैं समझ गया था क्या करना था। मैंने भी बोल दिया फिर क्या करना था हमें।

चाचा: अच्छा बच्चू, मुझसे पंगे।

ये बोलते ही हम दोनों एक-दूसरे पर झपट पड़े। मैं भी चाचा का पूरा लंड मुँह में लेकर रांड की तरह चूसने लग गया, जैसे इसके बाद कभी लोड़ा ही नहीं मिलने वाला था। मेरी गांड मार-मार कर चाचा का लौड़ा भी अब और ज्यादा लंबा या फूला हुआ लगने लगा था।

मुझे उल्टा लिटा कर चाचा मेरी गांड मारने लगे। गांड मारते-मारते वो मेरी गांड पर तेज-तेज थप्पड़ भी मारते जा रहे

थे। मैं भी जोश में आ गया था। फिर वो भाग कर किचन में चले गए।

चाचा: आज किचन में चोदने का मूड है जान को।

15 मिनट तक किचन के हर खाने में चोदने के बाद वो मुझे लेकर बिस्तर पर आ गए, और फिरसे उल्टा लिटा कर चोदने लगे। चोदते-चोदते पूरा माल मेरी गांड में ही निकल गया।

चाचा: आई लव यू जान। अच्छा मैं लेट हो जाऊंगा। तुम्हारी गांड के सामने सब भूल जाता हूं। पापा को लेने भी जाना था।

जल्दी से चाचा नहा कर, तैयार हो कर, मेरी गांड पर किस करके, गेट बाहर से ही बैंड करके चले गए। मैं अभी भी नंगा बिस्तर पर उल्टा लेता हुआ था। मेरी गांड में से अभी भी चाचा का रस निकल रहा था। चुदाई के बाद मुझे भी नींद आने लगी। 10 मिनट बाद गोपाल की आवाज आई-

गोपाल: साहब, साहब।

मैंने कोई रिप्लाई नहीं दिया, तो उसकी आवाज आनी बंद हो गई। थोड़ी देर बाद घर का गेट खुला, जो चाचा ताला करे बिना ही चले गए। मुझे लगा चाचा ही होंगे, और वो कहीं बार अपना कुछ ना कुछ भूल ही जाते हैं। घर के मुख्य हॉल से कोई अंदर मेरे कमरे तक आ रहा था। मैं नींद मे ये भी भूल गया था कि मैं नंगा ही लेटा हुआ था।

अचानक से एक भारी आवाज आई: ये क्या हो रहा है यहाँ?

आवाज सुन कर मैं डर गया, और बिस्तर पर लेटा ही पीछे होकर देखने लगा। मैं डर गया ये कौन था, ये तो गोपाल भी नहीं था, और ना ही चाचा।

मैं ( डरते-डरते ): आप कौन? और गोपाल?

पता नहीं क्यों मेरे मुँह से गोपाल का नाम निकल गया।

वो बोले (गुस्से में): मैं संजय का बाप हूं (वीरेंद्र दादा), और तू भाई साहब का पोता है ना? ये क्या कर रखा है? अभी तेरे बाप को कॉल करके बताता हूं, कि तू गोपाल के साथ क्या-क्या करता है।

(मेरी गांड से निकलता रस देख कर और गोपाल को जाता देख कर वो गोपाल को ही समझ रहे थे)।

मेरे पास आकर उन्हें मेरे गाल पर बहुत तेज थप्पड़ मार दिया। उनकी मार से मैं तभी रोने लगा। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

दादा: कपड़े पहनो। ये तो अच्छा है मैं संजय का इंतजार करे बिना ही स्टेशन से आ गया, तो मुझे पता चल गया कि तू मेरे बेटे के पीछे क्या करता है। और इस गोपाल को तो मैं देखता हूं।

ये बोल कर वो बहुत गुस्से में बाहर चले गए, और गोपाल को मारने लगे।

दादा (गोपाल को): साले हमारे ही घर पर नोकरी करता है। और यही गंदगी फैलाता है। (गोपाल को लगा मैंने दो दिन पहले की चुदाई का दादा को बता दिया)

उसको मार-मार कर दादा ने उसे घर से निकाल दिया और बोले: आगे से इस कॉलोनी में भी दिख गया तो देख लेना।

वो बेचारा भी चला गया। गुस्से मे दादा जी घर के अंदर आकर।

दादा: रोहित बाहर आ जल्दी। कब से चल रहा है ये? बोल जल्दी, संजय को पता चल गया तो वो मार देगा तुझे, पता है।

मैं अभी भी रो रहा था। सोचने लगा अगर दादा को सच पता चल गया तो बाप-बेटे के बीच प्रॉब्लम हो जाएगी।

दादा: संजय के आने से पहले रूम ठीक कर, और संजय से मैं खुद बात करूंगा, और तेरे बाप से भी।

रोते हुए मैंने बोला: नहीं दादा जी, गलती हो गई। वो उसने जबरदस्ती करके मेरे साथ ये सब करा था। आप पापा को मत बताना प्लीज। ऐसा मत करना वरना वो बहुत दुखी होंगे।

दादा जी: रो मत। एक तो लड़की जैसा जिस्म बना रखा है। ऊपर से तू भोला भी कितना है। इतना शरीफ मत रह कर। रोना बंद कर। ज्यादा तेज लग गया क्या थप्पड़? और कब से चल रहा है ये सब?

मैं: आज ही हुआ था। पहले कभी नहीं हुआ।

दादा जी: कोई नहीं चुप हो जा। अब अगर कोई ऐसा करे तो मुझे बताना। दर्द की दवाई लेकर सो जा, संजय आता ही होगा।

मैं रूम में जाकर रोने लगा “आज ये क्या हो गया” रोते-रोते पता नहीं कब मुझे नींद आ गई। शाम को 6 बजे मेरी नींद खत्म करके जैसे ही मैंने कमरा खोला, चाचा और दादा जी बाहर हॉल में टीवी देख रहे थे। मुझे डर लग रहा था कहीं दादा जी ने चाचा को तो नहीं बोल दिया

चाचा: आज बहुत लम्बा सो गये तुम। क्या बात है सब ठीक है?

दादा जी: ठीक ही है। मैं जब से आया हूं तब से ये सो ही रहा है।

ये सुनते ही मुझे यकीन हो गया कि अभी तक कुछ नहीं बोला।

चाचा: आज गोपाल कहा गया नजर नहीं आ रहा?

दादा जी: वो उसके गांव में कुछ काम था, इसलिए वो चला गया। कल से कोई नया आ जाएगा, टेंशन मत कर।

सामान्य बात करके सब खाना खाने लगे। दादा जी से नज़र मिलना भी बहुत मुश्किल हो गया था। खाना खा कर जल्दी रूम में चला गया, और चाचा से बिना बोले ही सो गया। अगली सुबह चाचा मेरे साथ नंगे ही सो रहे थे। चाचा को ऐसा देख कर मैं गुस्सा होकर बोलने लगा-

मैं: आप ऐसे मत रहा करो। दादा जी भी हैं घर पर।

चाचा: रूम लॉक है, और पापा ऊपर वाले रूम में हैं। तुम्हें क्या हो गया? आज से पहले कभी तुम्हें गुस्से में नहीं देखा। आज क्या हुआ?

ये बोलते ही मैं नहाने चला गया। अब मेरी हिम्मत चाचा और दादा दोनों से चेहरा मिलाने की नहीं थी। तभी बाहर से चाचा मेरा मूड ठीक करने के लिए बोले-

चाचा: मूवी देखने चले, मैंने टिकट ले ली है?

मैंने कोई रिप्लाई नहीं दिया। नहा कर आने के बाद चाचा सबका नाश्ता बना चुके थे।

चाचा: मैं तैयार हो जाता हूं। तुम पापा को नाश्ता दे आओ ऊपर जाकर। फिर हम चलते है फिल्म के लिए, ओके जान?

मैं नाश्ता लेकर उनके कमरे में गया। वहां कोई भी नहीं था। वो बालकनी में सिर्फ सफेद पायजामे में खड़े थे, जिससे उनका काला अंडरवियर नजर आ रहा है। उनको देख मेरे अंदर की हवस जागने लग गई। लेकिन कल का थप्पड़ अभी भी याद था।

उनकी बॉडी बिल्कुल चाचा की जेसी एक दम मस्कुलर। बॉडी बिल्कुल शेव्ड थी। बिल्कुल भी बाल नहीं थे, केवल मूछें थी, जो उनकी जवानी ना जाने का एहसास करा रही थी। छाती एक दम भारी और मजबूत थी। मुझे देख कर बोले

दादा जी: गेट पर ही खड़े रखोगे या नाश्ता देना भी है?

मुझे उन्हें देखने में अभी भी शर्म आ रही थी

मैं (नीचे मुंह करके ): अगर कुछ चाहिए हो तो बता देना। मैं नीचे जा रहा हूँ।

दादा जी: संजय गया या यहीं है?

मैं: नीचे तैयार हो रहे है। हम बाहर जा रहे हैं।

हम फिल्म देख कर रात 8 बजे तक सब का खाना लेकर आए। सब ने खाना खाया लेकिन पता नहीं क्यों दादा जी आज सुबह मुझसे जितना गुस्से में बात कर रहे थे, अब उतना ही प्यार से बात करने लगे, और बात-बात में मुझे पकड़ भी लेते थे।

चाचा: मैं बर्तन साफ कर देता हूं। फिर सोने चलता हूं। कल जल्दी भी जाना है, महत्वपूर्ण मीटिंग है।

दादा जी (मुझे पीछे से पकड़ कर): रोहित तो किसी से बात ही नहीं करता। लगता है दादा जी अच्छे नहीं लगे, क्यूं?

चाचा: नहीं वो ऐसी बात नहीं है। आप से कल ही मिला है ना इसलिए।

दादाजी: आज मेरे पास सो जा रोहित। आज तुम्हें कहानियां सुना दूंगा। फिर जान भी लोगे मुझे

(दादा जी से मुझे अभी भी डर लग रहा था)

मैं: मुझे नींद आ रही है। कल सुना देना आप।

ये बोल कर मैं रूम में जाने लगा। तभी दादा जी ने मेरी गांड को दबा दिया। शायद जान-बूझ कर।

अगले भाग इस कहानी का लास्ट भाग है। जिसमें पता चलेगा कैसे मेरी बाकी हॉलीडे पूरी हुई, चाचा और दादा जी के लौड़ों के साथ।

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