कामुकता कहानी माँ बेटी और राजू

उस समय मैं और मम्मी उस घर में अकेले ही रह गये थे। बड़ा घर था। पापा की असामयिक मृत्यु के कारण मम्मी को उनकी जगह रेल्वे में नौकरी मिल गई थी। मम्मी की आवाज सुरीली थी सो उन्हें मुख्य स्टेशन पर अनांउन्सर का काम मिल गया था।

यूँ तो अधिकतर सभी कुछ रेकोर्डेड होता था पर कुछ सूचनायें उन्हें बोल कर भी देनी होती थी। मम्मी की उमर अभी कोई अड़तीस वर्ष की थी। अपने आप को उन्होंने बहुत संवार कर रखा था। उनका दुबला पतला बदन साड़ी में खूब जंचता था। रेलवे वाले अभी भी उन पर लाईन मारा करते थे। शायद मम्मी को उसमें मजा भी आता था।


मैं भी मम्मी की तरह सुन्दर हूँ… गोरी हूँ, तीखे नयन नक्श वाली। कॉलेज में मेरे कई आशिक थे, पर मैंने कभी भी आँख उठा कर उन्हें नहीं देखा था। हाँ, वैसे मैंने एक आशिक संदीप पाल रखा था। वो मेरा सारा कार्य कर देता था। घर के काम… बाहर के काम… कॉलेज के काम और कभी कभार मम्मी के काम भी कर दिया करता था। वैसे मैं उसे भैया कहकर बुलाती थी… पर मम्मी को पता था कि यह तो सिर्फ़ दिखावे के लिये है। फिर एक बार मम्मी की अनुपस्थिति में उसने मुझे जबरदस्ती चोद भी दिया था। मेरा कुंवारापन नष्ट कर दिया था।… बस उसके बाद से ही मेरी उससे अनबन हो गई थी। मैंने उससे दोस्ती तोड़ दी थी। यूं तो उसने मुझे मनाने की बहुत
कोशिश थी पर उसके लिये बस मन में एक ग्लानि… एक नफ़रत सी भर गई थी।

उस समय मैं कॉलेज में नई नई आई ही थी। घर तो अधिकतर खाली ही पड़ा रहता था। मम्मी की कभी कभी रात की ड्यूटी भी लग जाती थी… वैसे तो उन्हें दिन को ही ड्यूटी करनी पड़ती थी पर इमरजेन्सी में तो जाना ही पड़ता था। मम्मी यह जान कर अब परेशान रहने लगी थी कि मुझे रात को अकेली जान कर कोई चोद ना दे… या चोरी ना हो जाये। हम दोनों ने तय किया कि किसी छात्र को एक कमरा किराये पर दे दिया जाये तो कुछ सुरक्षा मिल सकती है। हम किसी परवार को नहीं देना चाहते थे क्योंकि फिर वो घर पर कब्जा करने की कोशिश करने लगते थे। यहाँ तो यह आम सी बात थी। हमें जल्दी ही एक मासूम सा लड़का… पढ़ने में होशियार… मेरे ही कॉलेज का एक लड़का मिल गया। मम्मी ने जब मुझे बताया तो मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी। वो मेरा सीनियर भी था। राजेन्द्र था उसका नाम, जिसे हम राजू कह कर बुलाते थे।

कुछ ही दिनों में उसकी और मेरी अच्छी मित्रता भी हो गई थी। हम दोनों आपस में खूब बतियाते थे। मम्मी तो बहुत ही खुश थी। हम सभी साथ साथ टीवी भी देखते थे। भोजन भी अधिकतर वो हमारे साथ ही करता था। फिर वो एक दिन पेईंग गेस्ट भी बन गया। पांच छ: माह गुजर चुके थे। उसका कमरा मेरे कमरे से लगा हुआ था दोनों के बीच में खिड़की थी जो बन्द रहती थी। कांच टूटे फ़ूटे होने के कारण मैंने एक परदा लगा रखा था। वो अपने कमरे में रात को अक्सर अपने कम्प्यूटर पर व्यस्त रहता था। मुझे राजू से इतने दिनों में एक लगाव सा हो गया था। मैं अब उस पर नजर रखने लगी थी कि वो क्या क्या करता है? जवान वो था… जवान मैं भी थी, विपरीत सेक्स का आकर्षण भी था। एक बार खिड़की के छेद से… हालांकि बहुत मुश्किल से दिखता था… पर कुछ तो दिख ही जाता था… मैंने कुछ ऐसा देख लिया कि मेरे दिल में खलबली मच गई। मेरा दिल धड़क उठा था। आज उसके कम्प्यूटर की जगह उसने बदली दी थी,

एकदम सामने आ गया था वो। वो रात को ब्ल्यू फ़िल्म देखा करता था। आज उसकी पोल भी खुल गई थी। मुझे भी उसकी लगाई हुई अब तो ब्ल्यू फ़िल्म साफ़ साफ़ दिख रही थी। मुझे अब स्टूल लगा कर नहीं झांकना पड़ रहा था। वो कान में इयरफ़ोन लगा कर फ़िल्म देख रहा था। फिर चूंकि उसकी पीठ मेरी तरफ़ थी इसलिये पता नहीं चला कि वो अपने लण्ड के साथ क्या कर रहा था पर मैं जानती थी कि
साहबजादे तो मुठ्ठ मारने की तैयारी कर रहे थे। वो जब चुदाई देख कर उबलने लग गया तो उसने अपनी पैंट उतार दी और फिर कुर्सी सरका कर नीचे बैठ गया। उसका लम्बा मोटा लण्ड तन कर बम्बू जैसा खड़ा हुआ था। उसने अपने लण्ड की चमड़ी को ऊपर खींच कर सुपारा बाहर निकाल लिया। इह्ह्ह्ह… चमकदार लाल सुपारा… मेरा मन डोल सा गया। उसका लण्ड अन्जाने में मुझे अपनी चूत में घुसता जान पड़ा। पर उसकी सिसकी ने ध्यान फिर खींच लिया। उसने अपना हाथ अपने सख्त लण्ड पर जमा लिया। मेरा हृदय घायल सा हो गया… एक ठण्डी आह सी निकल गई। उफ़्फ़ ! क्या बताऊँ मैं… मैं तो बस मजबूर सी खड़ी उसका मुठ्ठ मारना देखती रही और सकारियाँ भरती रही। उसका उधर वीर्य छलका, मेरी चूत ने भी अपना कामरस छोड़ दिया।

मैंने अपनी चूत दबा ली। मेरी पेंटी गीली हो चुकी थी। मैंने जल्दी से परदा खींच दिया और अपनी चड्डी बदलने लगी। उस रात को मुझे नींद भी नहीं आई, बस करवटें बदलती रही… और आहें भरते रही… रात को फिर मैंने एक बार पलंग से नीचे उतर कर मुठ्ठ मार ली। पानी
निकालकर मुझे कुछ राहत सी मिली और मुझे नींद भी आ गई। मेरी नजरें अब राजू में कुछ ओर ही देख रही थी, उसके जिस्म को टटोल रही थी। मेरी नजरें अब राजू में सेक्स ढूंढने लगी थी। मेरी जवानी अब बल खाने लगी थी, लण्ड खाने को जी चाहने लगा था। मेरी यह सोच चूत पर असर डाल रही थी, वो बात बात पर गीली हो जाती थी। कॉलेज में भी मेरा मन नहीं लगता था, घर में भी गुमसुम सी रहने लगी। कैसे राजू से प्रणय निवेदन किया जाये… बाबा रे ! मर जाऊँगी मैं तो… भला क्या कहूँगी उसे…

“क्या हुआ बेटी… कोई परेशानी है क्या?”
“हाँ… नहीं तो… वो कॉलेज में कल टेस्ट है…!”
“तो तैयारी नहीं है…?”
“नहीं मां… सर दुख रहा है… कैसे पढूँगी?”
“आज तो सो जा… यह सर दर्द की गोली खा लेना… कल की कल देखना।”
“अच्छा मां…”
मैंने गोली को देखा… मुझे एक झटका सा लगा… वो तो नींद गोली थी। मम्मी
ने कई बार यह गोली मुझे दी थी… पर क्यों?
मेटासिन काफ़ी थी… पर मुझे सर दर्द तो था नहीं, सो मैंने उसे रख लिया।
“जरूर खा लेना और ठीक से सो जाना… सर दर्द दूर हो जायेगा…”

मुझे आश्चर्य हुआ, मैंने कमरे में जाकर ठीक से देखा… वो नींद की गोली ही थी। मैंने उस गोली को एक तरफ़ रख दिया और आँखें बन्द करके लेट गई। दिल में राजू का लण्ड मेरे शरीर में गुदगुदी मचा रहा था। पता नहीं कितनी देर हो गई। रात को मम्मी मेरे कमरे में आई और मुझे ठीक से सुला दिया और चादर ओढ़ा कर लाईट बन्द करके कमरे बन्द करके चली गई। मैंने धीरे से चादर हटा दी
और उछल कर खिड़की पर आ गई। राजू अपनी लुंगी पहने शायद शराब पी रहा था। उसका यह रूप भी मेरे सामने
आने लगा था। अपना लण्ड मसलते हुये वो धीरे धीरे शराब पी रहा था। मुझे लगा कि अब वो मुठ्ठ मारेगा।
“उसे नींद की गोली दे दी है… गहरी नींद में सो गई है वो !” मुझे उसके कमरे से मम्मी की आवाज आई। वो अभी तो मुझे नजर नहीं आ रही थी। “आण्टी ! बस मेरी एक बात मान जाईये… मुक्ता को एक बार चुदवा दीजिये !” मेरा दिल धक से रह गया। मुक्ता यानि कि मुझे… ईईईई ईईई… मजा आ गया… ये साला तो मुझे चोदने की बात कर रहा है। मेरी तो खुशी से बांछें खिल गई।

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अब साले को देखना… कहाँ जायेगा बच कर बच्चू? तभी मम्मी सामने आ गई। वो बस एक ऊपर तक तौलिया लपेटे हुई थी। शायद स्नान
करके ऊपर से बस यूं ही तौलिया लपेट लिया था। “अरे ! मम्मी ऐसी दशा में..?” “मुक्ता को चोदना है तो खुद कोशिश करो… मुझे कैसे पटाया था याद है ना? उसे भी पटा लो…” “उईईईईई… राम… मैं तो यारां ! पटी पटाई हूँ… एक बार कोशिश तो कर मेरे राजा… !!!”
मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा था- अरे हराम जादे मुझसे कहा क्यों नहीं? इसमें मम्मी क्या कर लेगी।
तभी मेरी धड़कन तेज हो गई। राजू ने मम्मी के तौलिया के नीचे से मम्मी की गाण्ड को दबा दिया। मम्मी ने अपनी टांग कुर्सी पर रख दी… ओह्ह्ह तो

जनाब ने मम्मी की गाण्ड में अंगुली ही घुसेड़ दी है। वो अपनी अंगुली गाण्ड में घुमाने लगा… मम्मी भी अपनी गाण्ड घुमा घुमा
कर आनन्द लेने लगी। तभी मम्मी का तौलिया उनके शरीर से खिसक कर नीचे फ़र्श पर आ गिरा। मम्मी का तराशा हुआ जिस्म… गोरा बदन… ट्यूब लाईट में जैसे चांदी की तरह चमक उठा। उनकी ताजी चूत की फ़ांकें… सच में किसी धारदार हथियार से कम नहीं थी। कैसी सुन्दर सी दरार थी। चिकनी शेव की हुई चूत। उफ़्फ़्फ़ ! मम्मी… आप भी ना… अभी किसी घातक बम से कम नहीं हो।
मम्मी उससे घूम घूम कर बातें कर रही थी। कभी तो वो मेरी नजरों के सामने आ जाती और कभी आँखों से ओझल हो जाती थी।
तभी राजू ने मम्मी का हाथ पकड़ कर अपने सामने सामने खींच लिया और उनके  सुडौल चूतड़ों को दबाने लगा।

उफ़्फ़ ! मम्मी ने गजब कर दिया… उन्होंने राजू की लुंगी झटके उतार दी… “क्यूं राजा ! मेरे सामने शर्म आ रही है क्या? अपने लण्ड को क्यूं छुपा रखा है?” राजू ने मुस्करा कर मम्मी के दुद्दू अपने मुख में समा लिये और पुच्च पुच्च करके चूसने लगा। मम्मी धीरे से नीचे बैठ गई और उसका लण्ड सहलाने लगी। मुझे बहुत ही शरम आने लगी… मम्मी यह क्या करने लगी है… अरे… रे…रे ना ना मम्मी… ये नहीं करो… उफ़्फ़ मम्मी भी क्या करती है… उसका लण्ड अपने मुख में लेकर उसे चूसने लगी। मैंने तो एक बार अपनी आँखें
ही बन्द कर ली। राजू कभी तो मम्मी के गाल चूमता और कभी उनके बालों को सहलाता।

“जोर से चूसो आण्टी… उफ़्फ़ बहुत मजा आ रहा है… और कस कर जरा…” अब मम्मी जोर जोर से पुच्च की आवाजें निकालने लग गई थी। राजू की तड़प साफ़ नजर आने लगी थी। फिर मम्मी ने दूसरा गजब कर डाला। मम्मी उसकी कुर्सी के सामने खड़ी हो गई। अपनी एक टांग उसके दायें और एक टांग राजू के बायें ओर डाल दी। उसका सख्त लण्ड सीधा खड़ा हुआ था। दोनों प्यार से एक दूसरे को निहार रहे थे। मम्मी उसके तने हुये लण्ड पर बैठने ही वाली थी… मेरे दिल से एक आह निकल पड़ी। मम्मी प्लीज ये मत करो… प्लीज नहीं ना… पर मम्मी तो बेशर्मी से उसके लण्ड पर बैठ गई। मम्मी घुस जायेगा ना… ओह्हो समझती ही नहीं है !!!
पर मैं उसके लण्ड को कीले तरह घुसते देखती ही रह गई… कैसा चीरता हुआ मम्मी की चूत में घुसता ही जा रहा था।

फिर मम्मी के मुख से एक आनन्द भरी चीख निकल गई। उफ़्फ़्फ़ ! कहा था ना घुस जायेगा। पर ये क्या? मम्मी तो राजू से जोर से
अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी।
अह्ह्ह ! वो चुद रही थी… सामने से राजू मम्मी की गोल गोल कठोर चूचियाँ मसल मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर सररर करके अन्दर घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था। मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी टांगों पर बहने लगा था।
मम्मी तो राजू से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी।

अह्ह्ह ! वो चुद रही थी… सामने से राजू मम्मी की गोल गोल कठोर चूचियाँ मसल मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर सररर करके अन्दर घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था। मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी टांगों पर बहने लगा था।
मम्मी को चुदने में बिलकुल शरम नहीं आ रही थी… शायद अपनी जवानी में उन्होंने कईयों से लण्ड खाये होंगे… अरे भई ! एक तो मैं भी खा चुकी थी ना ! और अब मुझे राजू से भी चुदने की लग रही थी। तभी मम्मी उठी और मेज पर अपनी कोहनियाँ टिका कर खड़ी हो गई। उनके सुडौल चूतड़ उभर कर इतराने लगे थे। पहले तो मैं समझी ही नहीं थी… पर देखा तो लगा छी: छी: मम्मी कितनी गन्दी है।

राजू ने मम्मी की गाण्ड खोल कर खूब चाटी मम्मी मस्ती से सिसकारियाँ लेने लगी थी। तब राजू का सुपाड़ा मम्मी की गाण्ड से चिपक गया। जाने मम्मी क्या कर रही हैं? अब क्या गाण्ड में लण्ड घुसवायेंगी… अरे हाँ… वो यही तो कर रही है… राजू का कड़का कड़क लण्ड ने मम्मी की गाण्ड का छल्ला चीर दिया और अन्दर घुस गया। मैं तो देख कर ही हिल गई। मम्मी का तो जाने क्या हाल हुआ होगा…
इतने छोटे से छल्ले में लण्ड कैसे घुसा होगा… मैंने तो अपनी आँखें ही बन्द कर ली। जरूर मम्मी की तो बैण्ड बज बज गई होगी।
पर जब मैंने फिर से देखा तो मेरी आँखें फ़टी रह गई। राजू का लण्ड मम्मी की गाण्ड में फ़काफ़क चल रहा था। मम्मी खुशी के मारे आहें भर रही थी… जाने क्या जादू है?

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मम्मी ने तो आज शरम की सारी हदें तोड़ दी… कैसे बेहरम हो कर चुदा रही थी। मेरा तो बुरा हाल होने लगा था। चूत बुरी तरह से लण्ड खाने को लपलपा रही थी… मेरा तन बदन आग होने लगा था… क्या करती। बरबस ही मेरे कदम कहीं ओर खिंचने लगे।
मैं वासना की आग में जलने लगी थी। भला बुरा अब कुछ नहीं था। जब मम्मी ही इतनी बेशरम है तो मुझे फिर मुझे किससे लज्जा करनी थी। मैं मम्मी के कमरे में आ गई और फिर राजू वाले कमरे की ओर देखा। एक बार मैंने अपने सीने को दबाया एक सिसकारी भरी और राजू के दरवाजे की ओर चल पड़ी। दरवाजा खुला था, मैंने दरवाजा खोल दिया। मेरी नजरों के बिलकुल सामने मम्मी अपना सर नीचे किये हुये, अपनी आँखें बन्द किये हुये बहुत तन्मयता
के साथ अपनी गाण्ड मरवा रही थी… जोर जोर से आहें भर रही थी।

राजू ने मुझे एक बार देखा और सकपका गया। फिर उसने मेरी हालत देखी तो सब समझ गया। मैंने वासना में भरी हुई चूत को दबा कर जैसे ही सिसकी भरी… मम्मी की तन्द्रा जैसे टूट गई। किसी आशंका से भर कर उन्होंने अपना सर घुमाया। वो मुझे देख कर जैसे सकते में आ गई। लण्ड गाण्ड में फ़ंसा हुआ… राजू तो अब भी अपना लण्ड चला रहा था। “राजू… बस कर…” मम्मी की कांपती हुई आवाज आई।
“सॉरी सॉरी मम्मी… प्लीज बुरा मत मानना…” मैंने जल्दी से स्थिति सम्हालने की कोशिश की। मम्मी का सर शरम से झुक गया। मुझे मम्मी का इस तरह से करना दिल को छू गया। शरम के मारे वो सर नहीं उठा पा रही थी। मेरा दिल भी दया से भर
आया… मैंने जल्दी से मम्मी का सर अपने सीने से लगा लिया।

“राजू प्लीज करते रहो… मेरी मां को इतना सुख दो कि वो स्वर्ग में पहुँच जाये… प्लीज करो ना…”
मम्मी शायद आत्मग्लानि से भर उठी… उन्होंने राजू को अलग कर दिया। और सर झुका कर अपने कमरे में जाने लगी। मैंने राजू को पीछे आने का इशारा किया… मम्मी नंगी ही बिस्तर पर धम से गिर सी पड़ी। मैं भी मम्मी को बहलाने लगी- मम्मी… सुनो ना… प्लीज मेरी एक बात तो सुन लो… उन्होंने धीरे से सर उठाया- …मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर देना… मुझसे रहा नहीं गया था… सालों गुजर गये… उफ़्फ़्फ़ मेरी बच्ची तू नहीं जानती… मेरा क्या हाल हो रहा था… “मम्मी… बुरा ना मानिये… मेरा भी हाल आप जैसा ही है… प्लीज मुझे भी एक बार चुदने की इजाजत दे दीजिये। जवानी है… जोर की आग लग जाती है ना।” मम्मी ने मेरी तरफ़ अविश्वास से देखा… मैंने भी सर हिला कर उन्हें विश्वास दिलाया।

“मेरा मन रखने के लिये ऐसा कह रही है ना?” “मम्मी… तुम भी ना… प्लीज… राजू से कहो न, बस एक बार मुझे भी आपकी
तरह से…” मैं कहते कहते शरमा गई। मम्मी मुस्कराने लगी, फिर उन्होने राजू की तरफ़ देखा। उसने धीरे से लण्ड
मेरे मुख की तरफ़ बढ़ा दिया। “नहीं, छी: छी: यह नहीं करना है…” उसका लाल सुर्ख सुपारा देख कर मैं
एकाएक शरमा गई। मम्मी ने मुरझाई हुई सी हंसी से कहा- …बेटी… कोशिश तो कर… शुरूआत तो यही है…
मैंने राजू को देखा… राजू ने जैसे मेरा आत्म विश्वास जगाया। मेरे बालों पर हाथ घुमाया और लण्ड को मेरे मुख में डाल दिया। मुझे चूसना नहीं आता था। पर कैसे करके उसे चूसना शुरू कर दिया। तब तक मम्मी भी सामान्य हो चुकी थी… अपने आपको संयत कर चुकी थी। उन्होंने बिस्तर की चादर अपने ऊपर डाल ली थी।

मैंने उसका लण्ड काफ़ी देर तक चूसा… इतना कि मेरे गाल के पपोटे दुखने से लगे थे। फिर मम्मी ने बताया कि लण्ड के सुपारे को ऐसे चूसा कर… जीभ को चिपका चिपका कर रिंग को रगड़ा कर… और… मैंने अपनी मम्मी को चूम लिया। उनके दुद्दू को भी मैंने सहलाया।
“मम्मी… लण्ड लेने से दर्द तो नहीं होगा ना… राजू बता ना…?” “राजू… मेरी बेटी के सामने आज मैं नंगी हो गई हूँ… बेपर्दा हो गई
हूँ… अब तो हम दोनों को सामने ही तू चोद सकता है… क्यों हैं ना बेटी… मैं तो बाथरूम में मुठ्ठ मार लूंगी… तुम दोनों चुदाई कर लो।”
राजू ने जल्दी से मम्मी को दबोच लिया- …मुठ्ठ मारें आपके दुश्मन… मेरे रहते हुये आप पूरी चुद कर ही जायेंगी।
कह कर राजू ने मम्मी को उठा कर बिस्तर पर लेटा दिया और वो ममी पर चढ बैठा। “यह बात हुई ना राजू भैया… अब मेरी मां को चोद दे… जरा मस्ती से ना…” मम्मी की दोनों टांगें चुदने के लिये स्वत: ही उठने लगी। राजू उसके बीच
में समा गया… तब मम्मी के मुख से एक प्यारी सी चीख निकल पड़ी। मैंने मम्मी के बोबे दबा दिये… उन्हें चूमने लगी… जीभ से जीभ टकरा दी… राजू अब शॉट पर शॉट मार रहा था। मम्मी ने मेरे स्तन भी भींच लिये थे। तभी राजू भी मेरे गाण्ड गोलों को बारी बारी करके मसलने लगा था। मेरी धड़कनें तेज हो गई थी। राजू का मेरे शरीर पर हाथ डालना मुझे आनन्दित करने लगा था।
मां उछल उछल कर चुदवा रही थी। मम्मी को खुशी में लिप्त देख कर मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।

“चोद … चोद मेरे जानू… जोर से दे लौड़ा… हाय रे…” “मम्मी… लौड़ा नहीं… लण्ड दे… लण्ड…” “उफ़्फ़… मेरी जान… जरा मस्ती से पेल दे मेरी चूत को… पेल दे रे… उह्ह्ह्ह” मम्मी के मुख से अश्लील बाते सुन कर मेरा मन भी गुदगुदा गया। तभी मम्मी झड़ने लगी- उह्ह्ह्ह… मैं तो गई मेरे राजा… चोद दिया मुझे तो… हा: हा… उस्स्स्स… मर गई मैं तो राम… मम्मी जोर जोर से सांसें भर रही थी। तभी मैं चीख उठी। राजू ने मम्मी को छोड़ कर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया था। “मम्मी… राजू को देखो तो… उसने लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया…” मम्मी तो अभी भी जैसे होश में नहीं थी-…चुद गई रे… उह्ह्ह… मम्मी ने अपनी आँखें बन्द कर ली और सांसों को नियन्त्रित करने लगी। फिर राजू के नीचे मैं दब चुकी थी। नीचे ही कारपेट पर मुझ पर वो चढ़ बैठा और मुझे चोदने लगा। मैंने असीम सुख का अनुभव करते हुये अपनी आँखें मूंद ली… अब किसी से शरमाने की आवश्यकता तो नहीं थी ना… मां तो अभी चुद कर आराम कर रही थी… बेटी तो चुद ही रही थी… मैंने आनन्द से भर कर अपनी आंखे मूंद ली और असीम सुख भोगने लगी।



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