एक अनूठा रिश्ता

Hindi Porn Stories Ek anutha Rishta नमस्ते, में सारिका सिंग अपनी दास्तान आपको सुना रही हूँ. ये मेरी पहली ही सबमिशन होने के कारण काफ़ी ग़लतियाँ हो सकती है, पर उसे छोड़ कर भावनाओ को समझो मेरी यही गुज़ारिश है आप सभी से.

फिलहाल मेरी उमर 34य्र्स है पर देखकर यकीन नही होगा आपको, क्यूंकी मैने अपनी देखभाल बहुत अच्छी तरह से की है. इस उमर में भी मैं 25-28की ही लगती हूँ, हां तोड़ा सा मोटापा ज़रूर आया है पर सही जगह पर चर्बी जमी है इसलिए मुझे उसपर नाज़ है. मेरा फिगर अभी 38सी-28-40 है, है कि नही लाजवाब???????

मेरी 6 साल पहले शादी हुई मिस्टर. पवन सिंग से और में इस घर मे आई. घर मे पवन, उसके पापा मिस्टर.श्याम और मेरी सास म्र्स.कंचन इतने ही लोग थे. मेरी सास बीमार थी, उन्हे परॅलिसिस हुआ था. हमारी शादी के 2 साल पहले उनको ये बीमारी हुई तब से वो बिस्तार से हिल भी नही सकती यही बस यही एक तकलीफ़ थी. पवन काफ़ी अच्छे थे दिखने में इस लिए मैने ये रिश्ता ठुकराया नही (वैसे मैने 5-6 लड़को को ना करदी थी उनके पहेले).

हमारी शादी से मैं काफ़ी खुश थी, और यही लगता था कि पवानब भी मुझसे संतुष्ट था. हमने अपनी सुहाग रात शिमला की हसीन वादियों में मनाई, और खुश होकर घर लौटे. घर आने पर पवन काफ़ी चुप-चुप्से रहने लगे, थोड़े ही दिनो में मैने उसे सुहाग रात की मेहनत रंग लाई और मैं मा बनने वाली हूँ ये खबर उसे बताई. तब वो खुश हुआ और उसने मुझे एक हीरे का पेंडेंट तोहफे में दिया. पर फाइयर्स उसकी खामोशी और सूना पन दिखाई देने लगा. पूछने पर वो कुछ बताता नही था, घर में उसका बर्ताव भी कुछ ठीक नही था. ससुर जी (मिस्टर.श्याम) और सासूजी से बात बात पर झगड़ा मोल लेता था वो.

बात यहा तक आ गयी थी कि बाप बेटे में बातचीत बंद हो गयी. दिन बीतते गये, महीने गुज़रे अब मैं 4मैने पेट से थी तब अचानक पवन ने मुझसे कहा कि उसे ऑफीस के काम से दुबई जाना पड़ेगा वहाँ का प्रॉजेक्ट उसके अंडर होने के कारण वो उसे टाल नही सकता ऐसे बॉस की ऑर्डर है. मैं ने कहाँ ठीक है सास-ससुर जी को कहकर जाते हैं हम दुबई, तब वो बोला कि मैं उसके साथ नही आ सकती क्यूँ कि वहाँ औरतो के लिए सेफ नही. उपर से वो 6 महीने में लौट आएगा, और उसके जाने के बारे में सासुमा और ससुर जी को ना बताया जाए. दस दिन बाद की उसकी फ्लाइट थी, उसके जाने के दो दिन पहले मैने उसके माता-पिता को ये खबर सुनाई. उन्होने उसे रोकने के लिए कहा पर खुद उससे बात नही की. उनकी और मेरी बात थोड़े ही वो मानने वाला था, दो दिन बाद वो चला गया.

जाने से पहले उसने मुझसे एक चेक़ और एक डॉक्युमेंट पर साइन ली थी, कहाँ की दुबई में उसकी ज़रूरत है. वहाँ से उसने मुझे दो तीन बार फोन किया, अब मैं 6 महीने पेट से थी. तब अचानक से मेरे पेट में दरद चालू हुआ और मुझे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा, डॉक्टर ने कहा की अबॉर्षन करना पड़ेगा वरना जान को ख़तरा है. इस लिए मेरा बच्चा गिराना पड़ा. ये दुख था ही और उसमे मुझे एक खत मिला, वो भी दुबई से पवन का.

खत देख कर मैं खुश हुई थोड़ी सी, पर उसे खोलते ही मेरी जिंदगी तबाह हो गयी. उसमे पवन ने लिखा था “मैं तुम में कोई रूचि नही रखता, मेरी तुम्हारे साथ शादी मजबूरी थी. अब मुझे मेरा प्यार मिल गया है और मैं उसके साथ खुश हूँ. तुम्हारा बच्चा गिरा ये सुनके दुख हुआ पर यही मंजूर था लगता है. तुम चाहो तो दूसरी शादी करो या मत करो पर अबसे अपना रिश्ता ख़तम. साथ में डाइवोर्स के पेपर भेज रहा हूँ जिस पर मैने तुम्हारे हस्ताक्षार पहले ही लिए थे उस चेक़ के साथ जो ,मैने जाने की पहले साइन करवाया था.”

यह देखकर मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गई. कोख उजाड़ जाने का गम और उसमे ये डाइवोर्स. अब जाऊ तो कहाँ? क्यूँ कि मैके वाले भी कोई नही था, शादी के पहेले मेरी मा गुजर गयी थी 2 साल पहले और शादी के बाद कुछ ही महीनो मैं पिताजी का देहांत हो गया और उनकी मैं एकलौती बेटी थी. इस समय मुझे मेरे सास –ससूरने काफ़ी आसरा दिया, सारी परेशानियों में उन्होने मुझे होसला दिया.

मैं तो स्यूयिसाइड करने जा रही थी पर ससुर जी ने मेरी जान बचाई. अब घर मे मैं उनका और वो दोनो मेरा ऐसा हम एक- दूसरे का ख़याल रखने लगे. मैं विधवा की सफेद साडी पहनने लगी, मन्गल्सुत्र कब का उतार कर फेंक दिया और सूनी माँग के साथ मैं घर मे रहती थी. बाबूजी की पेन्षन पर हमारा घर चल रहा था, मैं जॉब करना चाहती थी पर उन दोंनो का इनकार था, इसलिए घर ही बैठी रहती थी. घर बैठे-बैठे, खाना पीना, टीवी देखना और आराम करना यही मेरा और ससुर जी का काम था. माजी तो अपने बिस्तार पर पड़ी रहती थी इसलिए वो ना के बराबर ही थी.

पवन के साथ डाइवोर्स होने पर अब 2 साल गुजर गये, ये दिन कैसे गये कुछ पता ही नही चला. इस दौरान मैं अपने ससुर के साथ काफ़ी खुल गयी, वो भी मुझसे ज़्यादा खुलकर बाते करने लगे. हम साथ बैठ कर मूवीस देखते थे, कभी कॉमेडी, तो कभी आक्षन, तो कभी थ्रिलर और कभी रोमॅंटिक. बहू-ससुर जैसा नाता नही अब तो हम दोनो दोस्तों जैसा बर्ताव एक-दूसरे से करते. थ्रिलर मोविए देखकर मैं डर जाती और उनसे लिपट जाती थी कभी कभी. बाद में हमे अपने रिश्ते का अहसास होते और हम थोड़े दूर बैठते थे.

मैं उनके साथ हसी-मज़ाक करती ये सासू मा को अच्छा नही लगता था, वो मुझे इनडाइरेक्ट्ली अपना गुस्सा जाहिर करती थी. पर ससुर जी को कहती थी, “ये उनका और बहू का बर्ताव ठीक नही.” इस पर ससुर जी उन्हे कहते कि “तुम व्यर्थ ही शक़ करती हो, वो तो मेरी बेटी समान है.”

जैसे जैसे समय बीतता गया, वैसे मैने कुछ चेंजस ससुर जी में नोटीस किए, एक तो वो मुझसे ज़्यादा बाते करने लगे, बार बार मुझ से बात करने का मौका ढूँढने लगे, मेरे सहवास में ज़्यादा रहने का मौका छोड़ते नही थे, ना जाने क्यों मुझे लगता की वो मुझे चोरी चोरी देखने लगे (उन्हे लगता होगा की मेरी उनपर नज़र नही पर ये मैने नोटीस किया). ख़ासकर वो मेरे स्तानो और नितंबों पर ज़्यादा लक्ष्य केंद्रित करते थे ऐसा मुझे लगता था. पहले तो उनके ये अंदाज़ मुझसे छुपाते हुआ चलता था पर धीरे धीरे उनकी ये गतिविधियों को जैसे मैं पुष्टि दे रही हूँ ऐसा जब उन्हे लगने लगा तब वो मुझे बींदास होकर देखने लगे.

मैं नहाने जाते वक़्त पहले अपने ब्रा और पॅंटी अंदर जा कर रखती थी और फिर टवल लेजाकर बाथरूम में घुसती थी. पर वो जानबूझकर कुछ बहाना कर के खुद बाथरूम हो आते मुझसे पहले, अंदर जाकर क्या पता कुछ ढूनडते और फिर मुझे बाथरूम में घुसने देते. उनकी ये बाथरूम यात्रा मैने ब्रा-पॅंटी रखने के बाद और टवल लाने के बीच ही होती थी. मुझे थोड़ा ऑड लगता था पर जैसे की हमारे बीच दोती का रिश्ता संपन्न हुआ था इसलिए मैने ये बात अपने तक ही सीमित रखी. अंदर जाकर मैं अपनी पीठ दरवाजे की ओर करके एक एक करके अपने कपड़े उतार देती थी. अपने नंगे बदन को बाथरूम के फुल मिरर में देखकर अपने बूब्स को मसल्ति थी, कमरको सहलाती थी, नंगी चूत में उंगली डालकर कुछ समय सिसकारी निकालती थी और अपनी गांदपर एक फाटका मारते हुए शवर ऑन करती थी. ये तो मेरा रेग्युलर रुटीन ही था समझो.

नहाते वक़्त मुझे क्यों पता नही पर ऐसे लगता था कि कोई बाथरूम के बाहर से, की होल में से मुझे देख रहा है. पर ठंडा पानी शरीर पर गिरने पर एक अलग ही बिजली सी मेरे शरीर में दौड़ती थी जो मुझे बाहर कोई है कि नही इसे भूलने को मजबूर करती थी. मेरा शक़ कि मुझे कोई देख रहा है, ये सच था. क्योंकि बाहर से की होल से मेरे ससुर जी मेरी ये सारी हरकते देखते थे, और मेरे नाम से शायद हिलाते भी होंगे?????? पर ये सब मुझे पता नही था. जैसे ही मेरा स्नान पूरा होता (जिस्मी मुझे मिनिमम 30-45मिन्स लगते हैं), ससुर जी हॉल में लौट जाते और टीवी देखने में मग्न है ऐसा दिखावा करते पर उनकी नज़र मेरे गीले बदन को बाथरूम से निकलते देखने के लिए तरस जाती.

मैं भी अपने गीले बदन को लपेटे हुए टवल जिसके अंदर केवल ब्रा-पॅंटी से ढका मेरा बदन लेकर अपने बालों को झाड़ते हुए बेडरूम की ओर शरम से भागती थी. भागते समय मेरे बूब्स उछलते थे और गांद और यहाँ से वहाँ हिलते देख उनकी हालत और भी खराब होती होगी इसका अंदाज़ा मैं लगा सकती थी. बेडरूम का दरवाजा बंद कर के में टवल खोल देती थी और अपना पूरा शरीर सुखती थी. बाद में केवल ब्रा-पॅंटी में रह कर आज क्या पहनु इसमे कुछ मिनट गुज़रते, तब तक ससुर जी की के होल फीस्ट जारी रहती.

साड़ी तो मैं सफेद ही पेहेन्ति थी पर ब्लाउस अलग अलग फॅसन के मैने सिल्वा लिए थे उसलिए वैसे मैने सफेद सादियों को रंग रखा था. ज़्यादा तर मेरी साड़ियाँ ट्रॅन्स्परेंट रहती और ब्ल्काउसस डीप यू-नेक के रहते थे. उन्हे पहेनकर मैं एक बार ही बाहर निकलती थी और मेरी नज़र ना जाने क्यों ससुर जी क्या कर रहे हैं इस पर जाती, नज़रे मिलने पर वो एक स्माइल देते थे और मैं शर्मा कर किचन में काम करने जाती. ये रोज होने लगा था. अब उनकी हिम्मत और भी बढ़ने लगी, चान्स मिलने पर वो मुझे टच करने लगे. मौका ना मिले तो वो मौका बना लेते पर टच ज़रूर करते थे, पूरे दिन में 5-6 बार तो उनका स्पर्श मुझे होता ही था. मुझे भी उनका ये ‘स्पर्श’ अच्छा लगता था इस लिए मैने कभी उन्हे मौका हाथ से जाने का चान्स नही दिया.

धीरे धीरे मौका मिलने पर वो किचन में मेरी मदद करने के बहाने आते थे और मेरी गांद पर मज़ाक में एक चाँटा मारने लगे, मेरे पीछे खड़े रह कर वो मुझे कहते कि मैं उन्हे खाना पकना सिखा दूं. ऐसे करके वो अपनी ‘टूल’ का अंदाज़ा मुझे महसूस कराने लगे. मूड में रहने पर मैं भी अपनी गांद और पीछे करती और पूरी करती अपनी और उनकी मनोकामना. पर हमे एक- दूसरे से अपनी भावनाए जाहिर करना ना जाने क्यों जम रहा था. शायद तब हमे ये अहसास होता होगा कि हम भले ही एक-दूजे को दोस्त मानते हो पर असल में वो मेरे ससुर और मैं उनकी बहू हूँ.

ये ‘खिचड़ी’ पकने का सिलसिल्ला ऐसे ही 2-3 दिन चला, पर एक दिन नहा कर मैं लौटी और साड़ी पहेन कर निकली वोही ससुर जी ने मेरी तारीफो के पूल बांधना शुरू किए. मैने कहा “क्या बात आज कुछ सही नही लग रहा है, आपकी तबीयत तो ठीक है ना?” इस पर उन्होने कहा, ” क्या कहूँ, आज तुम हमेशा से कुछ ज़्यादा ही सुंदर लग रही हो.” मैं शरमाई और हमेशा की तरह किचन में चली गयी. वो मेरे पीछे थोड़ी देर बाद आए, तब मैं आटा गूंद रही थी. उन्होने मुझसे कहा,” आज आता कैसे गूंदते है ये सिखाउन्गा”.

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मैं बोली “आईए फिर देर किस बात की?” मेरे बुलावे पर वो रोज की तरह मेरे पीछे खड़े हुए अपना ‘डंडा’ मुझसे टिका कर और मेरी बाहों के उपर से हाथ डालकर आटे में हाथ डाले. मैं दूसरे हाथ से उन्हे पानी का अंदाज़ा देने लगी, तब उन्होने कहा, “पानी ज़्यादा हुआ तो?” मैने कहा,” फिर आटा ज़्यादा लेकर प्रमाण सुधारना पड़ेगा फिर.” मेरा जवाब सुनकर वो हस पड़े और उन्होने मुझे अंजाने में हल्का सा धक्का लगाया पीछे से. उनकी हसी और धक्के का मतलब मैं समज़ह ना पाने के वजह से मैने कहा कि ” आप हंस्र क्यूँ?” उन्होने कहा कि “तुम बड़ी नादान हो अभी भी.” ये कह कर उन्होने मुझे मेरे गाल पर एक चुंबन दिया, उनकी ये मूव की वजह से मैं चौंक गयी.

मैं गबड़ा कर उन्हे देखने लगी, तब वो मेरे होतो की ओर अपने होंठ लाने लगे. मैने कहा,” ये सही नही, आप क्या कर रहे हैं? मैं आपकी बहू हूँ.” जवाब में उन्होने कहा, ” मैं जानता हूँ तुम मेरी बहू हो. पर ये भी सही है कि तुम उसके पहले एक नारी हो. जो प्यार की हकदार है. केवल सफेद साड़ी की वजह से उसे इस प्यार का त्याग करना पड़ रहा है.” ये कह कर उन्होने मेरी साड़ी कंधे से हटाई, और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रखे. अपने होंठ उन्होने मेरे होंठो से लगाए और उन्होने मुझे किस किया. मैने ज़रा भी अपोज़ नही किया उन्हे, क्यूँ कि मैं गड़बड़ा तो गयी थी ही पर मुझे इसी चुंबन का शायद इंतेजार था? 2-5मिनिट तक उनके होंठ मुझ से जुड़े थे, बाद में उन्होने मेरी आँखों में देखा. मैं शर्मा गयी और वहाँ से भाग कर सीधे अपने बेडरूम गयी. वो वहाँ आ गये, उन्होने मुझसे पूछा,” क्या हुआ? नाराज़ हो क्या मुझसे?” मुंदी हिलाते हुए मैने नही कहा और उनका चेहरा खिला. मैने भी शर्मा कर, अपना मूह बेडशीट मे छुपा लिया. वो बिस्तर पर चढ़े और उन्होने मुझे बाहों में लिया. मैं भी सुकून से उनके साथ लिपट गयी उनकी बाहों में.

इस ‘स्पर्श’ को मैं खोना नही चाहती थी मैं, मैं उनके चौड़े सीने पर बाल खोलकर अपना सिर रख कर लेती थी. वो भी मेरी बालों को एक हाथ से सहलाते हुए, उनका दूसरा हाथ मेरे गाल्लों पर से घुमा रहे थे. अचानक से उन्होने मुझसे पूछा, “अपनी आटा गूंदने की प्रॅक्टीस तो अधूरी ही रह गयी ना?” मैं बोली, ” उसे तो बाद में भी मैं आपको सिखा दूँगी”. इस पर वो बोले, “अगर अब प्रॅक्टीस करे तो?” मैने पूछा “तो फिर चलिए किचन में.” वो एक नटखट सी स्माइल देकर बोले, “किचन में क्यों? यहाँ करू तो?” “ठीक है, मैं आटा लाती हूँ फिर.” ये कह कर मैं उठने लगी, तब उन्होने मेरा हाथ थामा और मुझे अपनी ओर खींचते हुए कहा, “आता नही तो नही, मैं इन्ही से काम चला लूँगा” कह कर मेरे बूब्स उन्होने अपने हाथ में लेकर उन्हे दबाने लगे.

उनकी इस ‘प्रॅक्टीस’से मैं काफ़ी खुश हुई और मैने उन्हे पूरा सहयोग देने की ठान ली. दबाते दबाते उन्होने अपना मूह मेरे राइट बूब को लगाया और उसे चूसने लगे. एक करेंट सा मेरे शरीर में दौड़ने लगा, ठीक वैसा ही जो मैं नहाते समय महसूस करती थी. कुछ ही मिनितों में उन्होने मेरे ब्लाउस के बटन खोल दिए और ब्रा के उपर से चूस्ते रहे. राइट वाला चूसने के बाद उन्होने लेफ्ट वाले पर अपनी नज़र जमाई और उसे मसल्ने लगे.

तब ना जाने क्यों, मैने उन्हे रोका और उन्हे धकेलते हुए कहा, “ये ग़लत है, मैं अपने आपको धोखा दे रही हूँ, सासू मा का विश्वास तोड़ रही हूँ. ये रिश्ता ग़लत है, पाप है. दुनिया इसे नही स्वीकरेगी.” ससुर जी कहने लगे,” क्या ग़लत है? दुनिया के बारे में क्यूँ सोचो? सासू मा क्या तुम्हे घर से निकाल देगी? अरे वो तो बिस्तर से उठकर बैठ भी नही पाती तो उसे क्या समझेगा अपने बीच क्या चल रहा है?” मैने कहा, ” यही तो ग़लत है, कि हम खास करके मैं उनको अंधेरे में रख कर, उन्ही के पति और मेरे ससुर से रिश्ता रख रही हूँ. अपनी वासनाओं को, अपनी प्यास को बुझा रही हूँ.” “इस में कुछ ग़लत नही है. तुम्हारे हाथ से कुछ ग़लत नही हो रहा. तुम तो केवल अपने नारी होने का एहसास खुद को दिला रही हो, और ये तुम्हारी मजबूरी नही ज़रूरत है.” “शायद आप सही होंगे पर मेरी सिद्धांतों में ये बाते नही बैठ रही हैं. मुझे ये सब कुछ मंजूर नही. मुझे ये सब ग़लत लग रहा है. प्लीज़ मुझे समझने की कोशिश कीजिए.”ऐसा मैने उनसे कहा.

इसपर वे कुछ नही बोले, थोड़ी देर तक वो खामोश रहे फिर उन्होने कहा,” जैसे तुम्हारी मर्ज़ी. मैं तुम्हारे पर ज़बरदस्ती नही करूँगा, क्योंकि मैं तुम्हे सही मे चाहने लगा हूँ, तुम्हारी कदर करता हूँ. पर जब कभी तुम्हे लगता है कि तुम ग़लत नही हो. और खुद होकर तुम्हारी रज़ामंदी हो, तो मैं तुम्हे ठुकरऊंगा नही. तुम्हे मेरे बेटे की तरह धोका नही दूँगा. आगे तुम्हारी मर्ज़ी, पर सोच-विचार करना और अंतिम निर्णय लेना.” ये कहकर उन्होने मेरा बेडरूम छोड़ा.

उनके जाने के बाद, मैं बहुत देर तक फूट फूट कर रोई. रो-रोकर मेरी आँखे लाल हो गयी. नींद कब लगी इस दौरान पता नही चला. रात का खाना भी मेरे गले से उतरा नही. ससुर जी भी उस दिन बिगैर खाए ही सोने गये.
क्रमशः…………..

 

गतान्क से आगे…………………..
मुझे रातभर नींद नही आए, बार बार दुपहर मे हुई सारे द्रुश्य नज़रोंके सामने आते और मुझे रुलाते थे. ससुर जी भी रात को ढंगसे सो नही पाए, उनके मन मे भी इन्ही बातो चक्कर घूम रहा था. सुबहके 4-4:30 के पास मुझे नींद लगी, ससुर जी कब सोए की नही भी सोए ये पता नही. उस दिन 9 बजे मेरी आँख खुली, देर हुई इसलिए मैं जल्दी मैं ही उठकर ब्रश कर लिया और सासू मा के ब्रेकफास्ट का इन्तेजाम में लग गयी. उनका नाश्ता लेकर मैं उनके रूममें गयी, तब देखा कि ससुर जी अभीतक सोए थे. अपनी पत्नी के अलावा कोई और रूममें आया है ये महसूस कर उनकी आँख खुली, पर उन्होने मेरी ओर देखा नही.उठकर वो ब्रश करने के बहाने से रूमके बाहर गये. माजी का नाश्ता हुआ, और मैं उनका ब्रेकफास्ट और चाय लाई. उन्होने सिर्फ़ चाय पीली और पेपर पढ़ने लगे. हमेशा की तरह मैं बाथरूम नहाने के लिए जाने लगी, पर आज उनकी नज़र मुझे देखने की जगह मुझे अवाय्ड करने की कोशिश मे जुड़ी थी. एक बार भी उन्होने मुझे देखा नही, किचन में मेरे पीछे आए नही, मुझे छूने की कोशिश की नही. मैंभी उनसे नज़रें चुराने लगी, उनकी हरकतों को इग्नोर करने लगी.

अपनी ओर्से उनका खाना-पीना सही वक़्तपर हो रहा है नही, ससुमाको कोई तकलीफ़ नही हो रही है, यही खबरदारी मैं ले रही थी. ऐसे करते करते 2-3दिन निकलगए पर ना जाने क्यों मुझे ये सब कुछ ठीक नही लग रहा था, मुझे लग रहा था कि मैने उन्हे दुखाया है, उन्हे ठेस पहुचाई है, उनकी भावनाओं का अनादर किया. इसी कशमकश में मैं पूरी डूब गयी. मन में बार बार उस दोपहरकी स्मृतियाँ आने लगी, उनका वो बालोंको सहलाना, चेरेको सराहना, बूब्स को छूना और उनका मेरे राइट बूब को चूसना, सभी मैं महसूस करने लगी. तब मैने एक ‘अंतिम निर्णय’ लेनेका सोचा. थोड़ी देर तक मैने अपनी आँखें बंद करली, और फिर नाज़ाने क्यों मैं वाहँसे उठी और ससुर जीके सामने हॉल में जा पोहॉंची, मैने उनसे कह, “मैने अंतिम निर्णय लिया है.” बिना कुछ कहते हुए उन्होने मेरी राई जानने की दरख़्वास्त जताई अपने आँखोंसे.

मैं बोली, “आप सही थे और मैं ग़लत, मुझे मेरी ग़लतिओंको सुधारने का मौका मिलेगा क्या?” मेरा ये जवाब सुनकर, वे सोफपर्से उठ गये और उन्होने मुझे अपनी बाहोंमें भर लिया, मैंभी उनकी बाहों में सिमटकर रोने लगी. मेरे आसू पोछते पोछते वे बोले, “ग़लती नही, नासमझ दारी थी वो तुम्हारी पर अब तुम्हारी अकल ठिकाने आई है. तुम इस ग़ल्तीकी सही मे कुसूरवार हो. तुम्हे सज़ा मिलनी चाहिए.” मैं बोली, “सज़ा काटने के लिए मैं तय्यार हूँ पर सज़ा आप ही से लूँगी?” ये बोलकर उन्होने मुझे ठीक उस दिन की तारह एक बढ़ियासा चुंबन दिया और साथ साथ मेरे दोनो बूबसको मसल्ने लगे. मैंभी उत्तेजित होकर सिसकारियाँ लेने लगी, ठीक उसी तरह जैसे मैं नहाते समय लेती थी.

हमारी आवाज़ें तेज़ हो रही हैं ये जानते हुए, मैने उन्हे बेडरूम मे चलने के लिए कहाँ. “आपका हुकुम सर आँखो पर” की तरह वो मेरे पीछ पीछ बेडरूम की ओर चलने लगे. बीच बीच मे वे मेरी गांद को धक्का मारते अपने डंडे.

हम बेडरूम पहुचे नही कि उन्होने मुझे अपनी गोद मे उठा लिया और बिस्तर पर फेंका. बादमें एक भूके भेड़िए की तरह वे मेरी ओर बढ़ने लगे, मैंभी नटखट सी हरकतें करते हुए उनसे दूर भाग रही थी. अचानक से उठकर उन्होने बेडरूमका दरवाजा बंद किया और भेड़िए की तरह मेरी ओर बढ़े. उनसे बचाव करने का नाटक करते मैं बिस्तर के एक छोर से दूसरे छोर की ओर घूमने लगी बिस्तर पर. एक मोडपर उन्होने मेरी पैरों की कलाईयो को पकड़ा और मुझे अपनी ओर खिचा. उनका ये खीचाव इतनी तगड़ा था कि मेरी गांद सीधी उनके लौडेकी चट्टान को टकराने की वजह से बिस्तर पर रुक पाई. इस मजबूत लौदे का अंदाज़ा तो लग ही गया पर महस्सोस करना बाकी था. लौदे को टकराते हुए उन्होने कहा, “सही जगह आ रुकी है तुम्हारी ये नटखट गांद. लगता है काफ़ी बेकरार है ये?” मैं शारमाई, और लाजसे चूर चूर होगयि. उन्होने मुझे काफ़ी देर तक चूमा, बादमें उन्होने मेरे ब्लाउज के हुक्स निकाले और ब्रा मे छुपे बूब्स को मलने लगे, ब्रा बदन पर रखकरही वे मुझे मेरे बूब्स को चूमने लगे.

फिर उनका चुंबन नीचे नीचे सरकने लगा, मेरी छाती, मेरा पेट, मेरी नाभि को वे चूमने लगे. जैसे जैसे वो नीच बढ़ रहे थे वैसेही मेरे शरीर मे करेंट दौड़ रहा था, जो और स्ट्रॉंग होता जा रहा था. आख़िरकार उनके होंठ मेरे पेटिकोट के नाडे तक आ पहुचे, अपने दातोंसे उन्होने उसे खोल दिया और धीर धीरे मेरी कमर के चारों ओर हाथ घुमाने लगे. फिर मेरी कमरको उन्होने पकड़ा और धीर धीरे से मेरे पेटिकोट को नीचे सरकाने लगे, तब उन्होने अपनी आँखे बंद की पर हाथ मेरा पेटिकोट उतारने में लगे थे. मैने पूछा, “क्या हुआ, आँखें बंद क्यूँ की आपने?” उन्होने इशारे से मुझे चुप रहेने के लिए कहा और वे बोले, “मैं इस स्वर्गके द्वारको खुलते देख नही सकता एक दम से.” मैं बोली, “वाह क्या आप पहली बार देख रहे हैं इस स्वर्ग के द्वारको? माजीका ‘गेट’ बिगैर देखे ही पवन का आगमन हुआ था क्या? कि कोई औरही था उसका बाप?” वो हासकर बोले, “नही संतान तो मेरही था वो साला, पर कायर था इसलिए भाग गया तुम्हे मेरे हवाले छोड़कर.रही बात तुम्हारी सासके ‘गेट’की वोभी क्या चूत थी???? उसे चोदना मेरी मजबूरी थी, क्योंकि मैं तो केवल अपने वंश को बढ़ाना चाहता था. पर इस कायरको पैदा कर मैने अपन पानी वेस्ट किया उसकी मा की चूत मे. चलो पर इसी वजह से आज मुझे तुम मिली हो.” मैं बोली, “छोड़िएजी उन पुरानी बातो को. उन्हे भूलकर नये लम्हो को यादगार बनाते है.” तबतक उन्होने मेरा पेटिकोट पूरितरह उतार दिया था.

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उन्होने अपनी आँखे खोली और गौर्से मेरी पॅंटीको देखने लगे. उत्तेजना की वजह से मेरी पॅंटी गीली हुई थी और मेरे चुतसे चिपक गयी थी. इस वजह से उन्हे मेरी चूत का अनुमान लगाना आसान था. उन्होने मुझसे पूछा “क्या तुमने अपनी चूत के बाल शेव किए हैं?” मैने शर्मा कर केवल मंडी हिलाई. तब वे बोले, “नंगी चूत वो भी तुम्हारी, मेरी जान गजब रहेगी.”,ये कहकर उन्होने मुझे नीचे चूमा. मैंभी उछलकर उन्हे कहने लगी, “अब बासभी कीजिए तारीफ करना.” “क्या कारू, एक ही चीज़ तारीफ के काबिल होती तुम्हारी तो कबका चुप हो जाता मैं, पर तुम तो उपर से नीचेतक बेमिसाल हो. काश तुम मेरी ज़िंदगी मे पहले आती???????” ये कहते हुए वे मुझे नीच चूत पर चूमते रहे और मैं उन्हे रोकने की कोशिस मे लगी रही.

उस रात उन्होने मुझे जमके चोदा और मैने भी उन्हे पूरा सहयोग दिया. बहुत मज़ा आया. पूरी रात हम सेक्स का मज़ा ले रहे थे, दोनो पूरी तारह जैसे जन्मो जन्मोसे भूके थे.(वैसे सेक्स की भूक थी इसीलये हमने ये कदम उठाए थे.) मेरे कहने के अनुसार उन्होने एक भी बार मेरी चूत मे स्पर्म्ज़ शूट नही किया केवल मेरे बूब्स पर और नाभिपर उसका वर्षाव होता रहा रातभर. पर इससे मैं काफ़ी संतुष्ट थी. आख़िरकार हम सुबेहके 6:30 के आस पास सो गये. ससुर जीने अपने कपड़े पहने और चोरी छुपे अपने बेडरूम मे प्रवेश किया (सासुमा को बिना खबर लगते) और चुप चाप सो गये. मैं तो पूरी तरहसे थक गयी थी, इसलिए मैं नंगी ही सो गयी, सिर्फ़ बदन एक वाइट बेडशीतसे ढका था कहने के लिए.

सुबह जब आँख खुली (9:30 के आस पास, वो भी सासुमा ने आवाज़ लगाई थी) इसलिए मैं गड़बड़ा कर उठी. अपने आपको निवस्त्र देख मैं शरम चूर हुई और जल्दी जल्दी कपड़े पेहेन्ते मैने सासू माको “आ रही हूँ माजी” कहकर उनके बेडरूमकी ओर भागी. माजी को भूक लगी थी इसलिए मैने जल्दी जल्दी नाश्ता बनाया और उसे लेकर उनके बेडरूम में पोहॉंच गयी. उनको खिलाते वक़्त ससुर जी सोए हुए थे, मैं उन्हे पीठ कर (सही माइने कहने को गांद उनकी ओर कर बेडपर बैठी थी) और माजी को खिला रही थी. तब मुझे अचानक से कोई मेरी गांद सहला रहा है ऐसा लगा, तब समझी कि ससुर जी जाग गये थे और वे मेरी गांदके उपारसे हाथ घूमा रहे थे. माज़ीको ये सब नही दिख रहा था उसीका ससुर जी पूरा फयडा उठा रहे थे और मुझे तंग कर रहे थे. जल्दी जल्दिसे माज़ीको खिलाकर मैने वाहँसे बाहर निकली, मेरे पीछे पीछे ही ससुर जी आए और मुझे किचन मे प्रवेश करने के पहले मुझे पकड़ा.

मैं उनके चंगुलसे छूटने की कोशिश कर रही थी तब उन्होने अपनी ग्रिप और मजबूत करली और मेरे गांदमें अपना डंडा घुसेड़ते हुए कहा “अब कहाँ जाओगी मेरी जान? गांद जो फसि है इस लंड के शिकंजे मैं.” मैं हंस पड़ी. तब उनका हाथ मेरी कमर पर घूमने लगा और धीरे धीरे बूब्स को दबाने मे वे जूट गये. मैं बोली, ” क्यूंजी थोडा सबर तो कीजिए. कम से कम ब्रश तो कर लीजिए.तब तक मैं आपका नाश्ता लगाती हूँ.” तब मुझे उन्होने एक किस दी मेरे होंठो और मुझे छोड़दिया. ब्रश करने के बाद मैं उनका नाश्ता टेबल पर ले गयी. उसे देख वे बोले, “मुझे ये नही चाहिए नाश्ते मैं.” मैने पूछा,”फिर क्या लोगे आप नाश्ते मे?” मेरा सवाल पूरा होताही नही कि उन्होने मुझे अपनी ओर खींचा और कहा, “आज मुझे तुम्हे ही खाना है, नाश्ते मे, लंच मे और डिन्नर मे भी. प्यास लगी तो तुम्हारे बूब्स काम आएँगे.” मैं बोली,”मस्ती सब बादमें करना माजी सुन लेंगी.” ये कहकर मैं उनसे दूर हुई.

नाश्ता करनेके बाद उन्होने फिर मौका ढूँढा और मुझे बाहोंमें भर लिया. अब वो सेफ जगह थे, हमारी किचन मे जहाँ से ना कुछ दिखता है नही कुछ सुनाई देता है उनके बेडरूमसे. किचन मे भी उन्होने मुझे पीछेसे पकड़ लिया, उनका लंड मेरी गांदमें सही जगह बनाकर तैनात खड़ा था. गांदके इस ‘द्वार प्रवेश’ की वजह से मैंभी अपने होश खो बैठी थी.मेरी ना सुनते हुए वो मेरी साड़ी को पीछेसे उठाने लगे. मैने अंदर कुछभी पहना नही था, इस लिए मेरी गांद का दर्शन उन्हे हुआ. उसे उन्होने एक चाँटा मारा और कहा, “बहुत भागती है तुम्हारी ये गांद. आज इसिको सज़ा दूँगा.” मैं घबरा गयी और तुरंत अपनी गांद को उनसे घूमाते हुए उनसे कहा, “प्लीज़ इसे सज़ा मत दीजिए. मेरी गांद आपके मोटे लंड को नही समा सकेगी.” ये कहते वक़्त मेरे आँखोसे आसू बहने लगे. मेरी रोती सूरत देख वे बोले, “मेरी जान डरो नही तुम जैसा कहोगी वैसे ही होगा. पूरा मज़ा लेंगे वो भी हम दोनो.”

उनकी यही समझ दारी मुझे ज़्यादा भाती और मैं उन्हे अपना संपूर्ण बदन समर्पित कर देती. तेज़ीसे वे मेरी चूत को चाटने लगे और मैं बेकाबू होते गयी. आख़िर में मैने उनसे कहा, “चोदिये मुझे, ना चोदिये इस रांडी को आपके तड़पाते हुए.” वे बोले, “रांडी मत कहो मेरी जान अपने आपको. तुम तो मेरी सही माइने मैं मेरी अर्धांगिनी हो.”ये कहकर उन्होने मुझे जमके चोदा और वीर्यपतन पहली बार मेरे मूह मे किया. बहुत आनंद दाई क्षण था वो. मुझे उन्होने ‘अर्धांगिनी’का दर्जा तो ज़रूर दिया था पर समाज में और सासुमा के सामने मेरा क्या होगा इस रिश्ते का खुलासा होने पर? इसी परेशानी से मैं आज-कल बेचैन रहती थी. पर ससुर जी के साथ सेक्स करने पर मेरी सारी परेशानियाँ दूर होती क्योंकि मैं शारीरिक रूपसे अब संतुष्ट रहने लगी थी.

अब मैं घर्से बाहर निकलती तो मेरे तेवर कुछ और ही होने लगे. मैं बाज़ार मे जाती तो शान से, गली के टपोरी मुझे देख सीटी मारते तो मुझे गुस्सा आता और एक बार मैने तो एक बदमाश को एक रखकर दी और उससे पूछा, “घर मे मा-बहेन नही है क्या?” मेरा ऐसा बर्ताव पहले नही था, मैं इन्ही लड़कोसे पहले डरती थी. पर अब मैं अपने ससुर की ग़ैरक़ानूनीही सही प्रॉपर्टी होने के कारण मैं किसी को भी मेरी मजबूरी का फयडा उठाने देती नही थी. पर इन बातो के बारें में मैने ससुर जी को कभी भी नही कहा वरना उन्हे तो वे पोलीस स्टेशन की हवा खिलाते थे. मेरी इस चेंज्ड आटिट्यूड के वजह से वे बदमाश मेरे से दूरही रहने लगे.

एक दिन मैं ना जाने क्यों अपसेट थी, ससुर जी ने मेरा मूड जान लिया और मेरे करीब आकर उन्होने मुझसे पूछा, ” मेरी जान चूत को लगता है जोरोंसे प्यास लगी हैं. अभी लॉडा चाहिए क्या????????” मैं बोली “नही. रखिए संभालकर अपने ही पास.” मेरी नाराज़गी देख वे बोले, “क्या हुआ? बताओ तो सही.” मैं बोली, “हमारा ये लुपचुपी भरा रिश्ता कब तक चलता रहेगा? इसका भविष्य आगे जाके क्या है? आप मुझे भले ही अर्धांगिनी कहते हो पर समाज के लिए मैं केवल एक …” ये कहकर मैं रोने लगी. वे मेरे करीब आए और मेरे आसू पोंछते पोंछते बोले,” डरो मत मेरी जान, जल्दी मैं तुम्हे समाज मे पत्नी का दर्जा दूँगा.” मैने पूछा “कैसे? सासुमा क्या इसे स्वीकारेंगी? क्या समाज इसे पति-पत्नी का दर्जा देगा?” उस पर वे बोले, “डरो मत ये सब मेरी ज़िम्मेदारी है. तुम केवल सदा हस्ती रहो, मैं तुम्हे कदापि दुखी नही देख सकता.”

कुछ दिनो तक मैने उन्हे करीब आने भी नही दिया, मैं उनसे कहती,”पहली मेरी इस घर मे पोज़िशन बनाओ फिर मुझे पाओ.” वे भी हताश थे पर क्या करते मुझसे दूर रहेंगे तो कितना? उस रात से हमारे ‘सेक्स सेशन नही हुए, पर रात को मुझे अच्छी नींद आती और मैं ठीक से सो पाती ये भी एक अजूबा था. क्योंकि आदत सी हुई थी, बिगैर सेक्स किए हम दोनो को नींद नही आती थी. इसलिए ससुर जी चोरी-छुपे बेडरूम मे घुसते जम मुझे दो बार तो चोद्ते और अपने बेडरूम लौटते थे. दो दिनो बाद क्या हुआ पता नही पर उस रात ना जाने क्या पर उन्होने सोते समय सासू मा से क्या बात की, पर दूसरे दिन सासुमा ने मुझे आवाज़ लगाई, “बहू, ओ बहू ज़रा यहाँ तो आना.” मैं बोली, “जी माजी, आई.” वहाँ पहुचने पर उन्होने मुझसे गंभीर स्वर मे कहा, “मैने तुम्हारी दूसरी शादी करवाने ठान ली है.” उनकी ये बात सुनके मैं हड़बड़ा गयी मैं शादी तो करना चाहती थी पर किसी औरसे नही अपने ससुरको ही अपना पति अब मैं मानने लगी थी, वे ही मेरे मालिक थे.

पर मैने कुछ नही कहा, मैं चुप रही. सासुमा ने इस पर मुझसे पूछा,”क्या तुम्हे दूसरी शादी नही करनी? ज़िंदगीभर ऐसे ही विधवा की ज़िंदगी बिताना चाहोगी?” मेरी खामोशी देख वे बोली, “तुम्हे शायद ये रिश्ता ठीक ना लगे पर मैने तुम्हारी शादी किसी औरसे नही मेरे अपने पति से करवाने की सोची है. मैं जानती हूँ, और समझ सकती हूँ कि तुम जैसी लड़की को विधवाकी ज़िंदगी बिताते देख कई बदमाशोंकी तुम पर बूरी नज़र होंगी पर एक बार तुम्हारी इनसे शादी हो जाए फिर कोई तुम्हे छेड़नेकी जुर्रत नही करेगा. रही बात मेरी, मैं अब काफ़ी कमज़ोर हूँ इस लिए तुम्हारा किसी दूसरे घर में ब्याह करवाकर मैं अकेली अपना सभी कुछ नही संभाल सकती. तुम्हे मेरा ख़याल रखना आता है, तुम इनकी भी अच्छी देखभाल करती हो.”

मेरी दूसरी शादी और वो भी ससुर जी से? वो भी सासुमा खुद ये प्रस्ताव मेरे सामने रख रही है ये सुनकर मैं चौंक गयी पर उतनी खुश भी थी. दूसरेही दिन हम ने कोर्ट मॅरेज के लिए रिजिस्टर किया और पासवाले मंदिर मे शादी करली. शादी करने के बाद मैने सासुमा से आशीर्वाद लिया ठीक उसी तरह जैसे मैने पवन से शादी करने के बाद लिए थे. मुझे उठाते हुए उन्होने मुझसे कहा, अब तुम मेरी बहू नही सौत हो पर साथ मे इनकी बीवी हो. आजसे तुम मुझे सासुमा और इन्हे ससुर जी नही, दीदी और अजी करके पुकारना.” मैं बोली, “जी दीदी”. (मैं तो इसी मौके के तलाश में थी असल में.)

उस दिन मेरी ससुर जी के साथ अफीशियल ‘सुहाग रात’ थी, उसे हम ने मेमोरबल बनाया. उस रात हम ने 5 बार सेक्स किया, जब हमारा पहला ‘सेक्स सेशन’ चालू था, तब उन्होने मुझसे पूछा,” अब कहा टपकाऊं?अंदर या बाहर.” मैं बोली, “खबरदार अगर एकभि बूँद बाहर गिरा तो अब ये चूत आप ही की है. जामके बरसाईए इसी मे. जल्दी मा बनाइए मुझे. मेरी कोख सूनी है आप ही के बच्चे को जन्म देना चाहती है ये.” मेरे ये ऑर्डर मिलने पर उन्होने मेरी चूत मे स्पर्म शूट किया और मैं हर गोलाबारी मे घायल होती रही.

अब मैं प्रेग्नेंट हूँ, और फिलहाल हमारा ‘सेक्स मिशन’ इन्दिनो रुक गया है.वे मेरा पूरा ख्याल रखते हैं पर मुझे बोर यही लगता है कि मैं उनकी ‘सेक्स की भूख’ प्रेग्नेन्सी के वजह से मिटा नही सकती. पर चलो एक बार मैं डिलीवेर हो जाने दो, उनकी भूक- प्यास सभी मिटाते रहूंगी ज़िंदगी भर.
तो दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त



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