गस्ति मा टेलर के सामने घुटनो पर आई

कुछ दीनो बाद मोहल्ले में एक फंक्षन था, जिसकी वजह से एक ऐसा हादसा हो गया, जिससे मैने आज तक याद रखा है. तो हुआ कुछ यू, की उन दीनो फंक्षन का इन्विटेशन हमे भी मिला था. पर मों को नये कपड़े सिलवाने का शौंक रहता है हर बार. तो उन दीनो मों ने अपने टेलर को कॉल किया. उसका नाम प्रीत था.

प्रीत ने कहा मों को: भाभी जी, मैं कुछ दीनो के लिए बाहर आया हू शहर से. इस बार ड्रेस नही बना सकता.

मुझे तो शक था प्रीत पर. क्यूंकी मों और दीदी दोनो ही प्रीत को नाप दिया करती थी. वो हर बार हर ड्रेस का नाप लेने उन्हे बुलाया करता था, और 1-2 घंटे तक नाप लेता था. मुझे उस पर शक था. पर चलो खैर इस बार वो नही था.

मों ने मुझसे कहा: चलो तेरे दोस्त सलीम और इक़बाल की शॉप पर. उनसे ड्रेस सिल्वा लेते है. मैं अभी तैयार हो कर आती हू. जितनी देर में मैं तैयार होके आती हू, तू उनसे फोन करके पूच, की वो दोनो कहा है.

मैने जैसे ही उन्हे फोन किया, इक़बाल बोला-

इक़बाल: हा भाई?

मैने कहा: भाई अगर आप शॉप पर हो, तो हम कुछ देर में आ रहे है. मों ने ड्रेस सिलवनी है. उन्हे नाप देना है.

इक़बाल: सलीम भी ले सकता है नाप?

मैने सोचा ये क्या पूच रहा था.

फिर मैने कहा: हा क्यूँ नही.

इक़बाल: ऐसा कर, अपनी मों को ले आ. हम दुकान के उपर वाले कमरे में ही है.

मैने कहा: ठीक है भाई.

उतनी देर मैं घर से बाहर निकल कर खड़ा हो गया, और मों का इंतेज़ार करने लगा. तब सामने से आए ज़वेद अंकल आ रहे थे. उनकी उमर लगभग 66-67 यियर्ज़ होगी. उनका रंग एक दूं काला था, और अजीब से दिखने वाले आदमी थे वो.

और सुना था, की मोहल्ले में उनका नाम भी रंडी-बाज़ रह चुका था. ज़वेद अंकल ने मुझे देखा और कहने लगे-

ज़वेद अंकल: कैसा है तिल वाली भाभी के बेटे?

मैने कहा: नमस्ते अंकल. मैं ठीक हू, आप कैसे हो?

ज़वेद अंकल: अस्सलामुआलैईकूं, कहा जेया रहा है?

मैने कहा: अंकल मों के साथ ज़रा जेया रहा हू. ड्रेस सिलवनी है उनको. उसी का नाप देने.

ज़वेद अंकल: अनिता अभी भी डॅन्स करती है?

मैने कहा: नही अंकल.

ज़वेद अंकल: बेटा खूब नचाया है इसे. (धीरे से बोले) और बजाया भी है.

मैने उनकी बात को इग्नोर कर दिया. उतनी देर में मों घर से बाहर आई. उन्होने सिंपल वाइट सारी पहनी थी, जिसमे वो गदर दिख रही थी. सारी एक-दूं टाइट थी. उसमे से मों की कमर, और कमर वाली चैन दिख रही थी. आस-पास वाले सारे लोग मों को घूर रहे थे, और तभी ज़वेद चाचा बोले धीरे से-

ज़वेद चाचा: क्या लग रही है रांड़.

चाचा: अनिता भाभी जी, माफ़ कीजिएगा तिल वाली भाभी जी, कैसी है आप?

मैं हैरान रह गया की मेरे सामने ये अंकल ऐसा कैसे कह सकता थे. तभी मुझे याद आया मों ने कहा था जो तिल खिल के नाचता है उसे कहते है. मगर असलियत सब को ही पता थी.

मों: ज़वेद जी मैं एक-दूं बढ़िया, आप कैसे है?

ज़वेद चाचा: एक-दूं बढ़िया, कहा जेया रही है आप?

मों: जी ड्रेस सिलवनी है. तो टेलर को नाप देने जेया रही हू.

ज़वेद: जी अछा चलो बढ़िया है. और आइए आप कभी घर भी तिल दिखाने. पहले तो खूब आती थी

मों ने मेरी तरफ देखा और स्माइल की. फिर वो बोली-

मों: जी ज़रूर अवँगी ज़वेद जी. तिल दिखाने भी, खिल कर नाचने भी.

बस इतनी बातों के बाद मैं और मों वाहा से चले गये. पर पुर मोहल्ले की नज़रे हम पर ही थी. हम पर नही बल्कि मों की कमर और मटकती गांद पर थी. इतनी टाइट सारी और कमर वाली चैन सब को उनकी तरफ खींच रही थी. फिर हम पहुँचे इक़बाल की दुकान पर.

जैसा की उसने कहा था, वाहा कोई नही था, और हम चले गये. उसकी दुकान के उपर वाले कमरे में रूम के बाहर एक सोफा पड़ा था. वाहा पर मैं और मों बैठ गये. तभी वाहा हमे देखते ही रूम से बाहर आए इक़बाल और सलीम

इक़बाल: अर्रे वाह, आंटी जी आप कैसी है?

सलीम: आज तो तिल वाली आंटी आई है.

मों ने शर्मा कर कहा: तुम्हे भी पता है?

इक़बाल: जी आंटी सब को पता है, पर देखा नही.

मैने पूछा: क्या नही देखा?

मों: बेटा डॅन्स की बात कर रहे है. चलो शायद आज देख लोगे.

मैने कहा: मों आप नाप देने आई हो सिर्फ़.

इक़बाल: हा-हा नाप ही लेंगे बस.

सलीम ने तभी मुझे और मों को जूस पिलाया. मों ने जूस पी कर डब्बा मुझे दे दिया. सोफा के पास एक डस्टबिन पड़ा था. मैने जैसे ही उसे खोला, देखा उसमे उसेड कॉनडम्स पड़े थे.

मैं समझ गया इन्होने मों को उपर रूम में नाप लेने के नही बल्कि गांद लेने के मकसद से बुलाया था. मैने मों को इशारा किया की चलो यहा से चलते है. मगर वो कहने लगी-

मों: क्यूँ क्या हुआ?

मैने कहा: मुझे काम है.

मों बोली: तू जेया कर आजा.

फिर इक़बाल बोला: हा राहुल, तू जेया कर आजा.

मैं अब क्या करता? उन्हे दिखाने के लिए की मुझे सच में काम था, मैं नीचे दुकान पर जाने का नाटक करने लगा. और वो लोग मों को अंदर रूम में ले गये. करीब 10-20 मिनिट में मैं दोबारा उपर गया.

जब उन्हे लगा की मैं वाहा से चला गया था, और मैने देखा की उन्होने रूम का दरवाज़ा तोड़ा सा खुला रखा था, मैं चुपके से देखने लगा. मैने देखा की मों घुटनो पर बैठी हुई थी, और मों ने सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट पहना हुआ था.

मों की कमर, नेवेल, बूब्स का क्लीवेज दिख रहा था. और फिर मैने देखा की सलीम और इक़बाल पंत उतार कर खड़े थे, और उनके लंबे-लंबे मोटे लंड मों के लिप्स के पास थे. एक-दूं तीखे लंड सॉफ सुथरे लंड शाइन कर रहे थे.

मों ने दोनो के लंड अपने दोनो हाथो से पकड़े, और हिलने शुरू किए. उसके बाद मों ने जो किया, मैं हैरान रह गया. उन्होने बारी-बारी दोनो के लंड को मूह में लेकर चूसना शुरू किया, और क्या चाट रही थी मों.

यह कहानी भी पड़े  हवस भारी मा की चुदाई के प्लान की हॉट कहानी


error: Content is protected !!