चोदो और सरको-1

बहुत दिन हुए मैं एक ट्रेन से वापिस घर आ रहा था. रात भर और पूरे दिन चल कर ट्रेन दिल्ली पहुँचती कोई २० घंटे में और आगे होती हुई जम्मू तक जाती. मुझे उतरना था दिल्ली, और मेरी स्लीपर टिएर में बुकिंग हुई हुई थी. हमेशा मेरी नज़र आस पास के माल पे रहती थी और कोई माल नज़र नहीं आती तो मैं पूरे टाइम सोता रहता था. कई बार पास बैठे लडकी के मम्मे छूने को और कभी कभी मसलने को मिल जाते थे. ट्रेन में चढ़ के बड़ी निराशा हुई क्यूंकि कोई भी महिला ४० से नीचे नहीं और ४० के ऊपर भी एक भी ठीक आकृति की नहीं. ऊपर से सारी सीटें भर चुकी थी और लोग कम से कम दिल्ली तक जा रहे थे तो किसी लडकी के बीच में आने की भी कोई उम्मीद नहीं. मैं कई बार जब किसी लडकी के ऊपर वाली सीट मिलती थी तो वो ऊपर मुंह करके सो रही होती थी और मैं नीचे मुंह करके रात में नीचे ज़रा झाँक झाँक के अपनी सीट पे घिस्से लगाता रहता. मेरी उम्र भी कोई १९-२० साल की ही थी तो मैं उतना परिपक्व नहीं हुआ था, कम से कम दिमागी तौर पे. चुदाई का भी कोई बहुत ज्यादा अनुभव नहीं था, लेकिन उदघाटन हो चुका था और कुछ एक बार चुदाई भी कर ही चुका था. मैं जानता हूँ के आजकल के ज़माने में लोग बहुत जल्दी ये काम कर लेते हैं, लेकिन हमारे ज़माने में ऐसा नहीं था. खैर, कहानी आगे जारी.
तो कोई माल वाल न देख के हमने सोचा के इस बार आँखें या हाथ गर्म करने को न मिलेंगे. इस बार मेरी सीट थी किनारे पे, नीचे वाली. श्याम का वक़्त था तो मैं पसर के सो गया. रात में लोग आते जाते रहे मैंने आँखें न खोली के कहीं कोई रोजाना सफ़र करने वाला मुसाफिर जगह न मांग ले. फिर कुछ लडकीयों के हंसी मजाक करने की आवाज़ आयी तो मैंने आँखें खोली. मेरे डिब्बे में कई लडकियां, सब की सब स्पोर्ट्स-सूट में, और साड़ी १६ से १८ साल की उम्र में, एकदम तरोताजा, मांसल और भरी भरी, खादी बतिया रही थी. मैंने अपनी चद्दर ऊपर से हटाई और बाथरूम जाने के बहाने से सबसे सुन्दर लडकी, जो रास्ते में खड़ी थी, उसकी गांड पे हल्का सा लंड रगड़ते हुए निकल गया. वापिस आके देखा तो लडकियां पूरे डब्बे में फैल गयी थी और दौ लडकियाँ मेरे सीट पे बैठी थी, जिनमे से एक वही सुन्दर लडकी जिसे मैं घिस्सा लगा कर गया था. मेरे वापिस आने पे वो दोनों खड़ी हो गयी तो मैंने बोला के कोई बात नहीं, बैठ जाओ, मैं अभी सोने वाला नहीं. सो, मैं एक कोने में, सुन्दर लडकी मेरे साथ और दूसरी लडकी, जो खुद भी बड़ी हसीन थी, उसके बाजू में. मैंने सोचा ऐश हो गयी, थोड़ी थोड़ी रगडा रगडी होगी. मैं क्या जानता था के मेरी किस्मत खुलने वाली है.
थोड़ी देर में मैं उन लड़कियों से घुल मिल सा गया. बताया के मैं एक अभियान्त्रक हूँ, और अपने कॉलेज से वापिस घर जा रहा हूँ छुट्टियों के लिए. लड़कियों ने बताया के वो अपने स्कूल की वोल्ली बाल टीम में हैं और किसी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जा रही हैं. किसी वजह से उन की सीट बुक नहीं हो पायी तो पूरी टीम ऐसे ही डब्बे में चढ़ गयी. उनके कोच महोदय भी ट्रेन में ही थे. युवा हृष्ट पुष्ट कन्याएं थी, हंसी मजाक में दिल्ली पहुँच जायेंगी, सो मामूली बात थी. मैंने सोचा रस्ते में जबरदस्ती किसी ठुल्ले से या रोज़-मर्रा वाले यात्रियों से तो इन कन्याओं के साथ वक़्त बिताना ज्यादा मजेदार है. मै अपनी ओढी हुई चद्दर ले के एक कोने में बैठा हुआ था. लड़कियों का नाम था शालू (माल वाली) और रुपिका, जो थोड़े गाँव वाली टाइप थी. शालू थी नागपुर से और बहुत बातूनी. थोड़ी देर में कोच महोदय आये और बोले के एक और लडकी के बैठने की जगह है साथ वाले खाने में, तो रुपिका भी चली गयी. लेकिन ज्यादा दूर नहीं, जहां हम बैठे थे, अगले ही खाने में वो और कोच हमारे सामने ही बैठे हुए थे. मैंने कहा – चलो अब खुल के बैठ सकते हैं. कहके मैंने चौकड़ी ऐसे लगा रखी थी के पहले हलके हलके मेरे पाँव साइड से उसके कूल्हों पर लगने लगे. एकदम भरे भरे गदराये चूतड थे उसके. मेरा सोच सोच के ही लंड खडा हो गया. शालू वहीं बैठी रही और टस से मस ना हुई. हम लोग वैसे ही बातों में मस्त रहे. वो पूछने लगी शौक वगैरा, वही लड़कियों वाले सवाल. मैंने कहा- मूवी, क्रिकेट, नोवेल पढना, वगैरा. वो बोली- और दोस्त बनाना, है ना? मैंने कहा- हाँ, वो भी. वो बोली- गुड, मेरी भी यही होब्बी है. मैंने दोस्ती का तो क्या अचार डालना था, और यकीन मानो दोस्तों, सुन्दर लड़कियों से दोस्ती से थोड़ा परहेज़ ही रखना चाहिए क्यूंकि दिन रात ललचाते रहते हो और हाथ में कुछ आता नहीं. चोदो और सरको, यही मन्त्र अपनाओ. खैर, मैं बातें भी करता और थोडा सा अपने पाँव उसके पीछे सरका देता. उसे बिलकुल ऐतराज़ न हुआ, और मैं पीछे से अपने पाँव से उसके कूल्हों को छू रहा था तो सामने बैठी रुपिका और कोच को दिखाई नहीं देता. थोड़ी देर में मेरी किताब देख के वो बोली- अरे, तुम भी ये सन-साइन वाली किताब पढ़ते हो. मैं थोडा झेंप गया. फिर उसने पूछा के वो मेरी किताब पढ़ सकती है क्या, मैंने अपनी किताब उसको पकड़ा दी. मेरे पास दूसरी किताब थी, जो मैंने निकाल ली. वो बोली- खुल के बैठ सकते हो, पैर फैला के, तो वो एक सिरे पे अपनी कमर लगा के बैठ गयी और मैं दूसरे सिरे पे. मैंने पीछे से अपनी टांगें पूरी लम्बी करके पूरी सीट पे लिटा ली और उसने सामने से. मैंने अपनी टांगों के ऊपर चद्दर डाल ली और अपने पावों से उसके नर्म नर्म कूल्हों को छूने लगा. यहाँ मैं एक बात साफ़ कर दूं के महिलाओं के लिए मेरे दिल में बहुत इज्ज़त है और पाँव से छू के मैं किसी तरह से महिला जात को बे-इज्ज़त नहीं करना चाहता. यह मेरे लिए सिर्फ वासना पूरी करने का जरिया है, और कुछ नहीं.
थोड़ी देर ऐसे ही माहौल बनता रहा. डब्बे में ज्यादातर लोग जगे हुए थे, लेकिन शोर भी काफी था. सो, हम लोग आराम से खुल के बात भी कर सकते थे लेकिन मैं और कुछ छुई-मुई नहीं कर सकता था. नौ-साढ़े नौ के करीब लोग लुढ़कने लगे. ऊपर बैठे महोदयों ने बत्ती भी बंद कर दी. लेकिन लौड़े की उछान से मुझे कहाँ नींद आनी थी. थोड़ी देर में रुपिका भी आ गयी, बोली के उधर लोग सो रहे हैं, लेकिन हमे बात करते देख के उसने सोचा वो भी आ के गप्प शप्प लगाए. मैं सोचने लगा – ये कबाब में हड्डी कहाँ से आ गयी. लेकिन उसके आने से एक काम तो हुआ के हम लोगों को थोड़ा टाईट हो के बैठना पड़ा. अब शालू बीच में आ गयी और रुपिका दूसरे कोने पे. मैं वैसे ही पीछे टाँगे बिछाए बैठा रहा, तो समझिये के शालू अब लगभग मेरे घुटने से थोड़ी ऊपर, लेकिन जाँघों से थोड़ी नीचे एकदम लग कर बैठी थी. उसके नाजुक नाजुक गोल-गोल चूतड ट्रेन के इधर उधर होने से रह रह के मेरी टांगों से टकरा जाते और लंड में सनसनी मचा जाते.
अब अँधेरे में मैंने थोड़ी हिम्मत बधाई और अपना बायाँ हाथ बढ़ा के हौले हौले शालू की कमर छूना शुरू कर दिया. शालू ने कोई आपत्ती नहीं की तो मैंने हाथ सरका के अपनी टांगों पे रख लिया, ताकि अब मेरा हाथ मेरी टांगों और उसके कूल्हों के बीच में आये. फिर मैंने हाथ घुमा के उसके चूतड को अपने हाथों में भर लिया. अब भी दोनों लडकिया इधर उधर की बातें कर रही थी. उनकी बातों से लगा के रुपिका शालू को अपनी बड़ी बहन की तरह मानती थी और हमेशा उससे चिपकी रहती थी. थोड़ी देर उसको देख के और उसके परिपक्व मम्मों को देख के लगा के उसकी दबाने में भी मजा आ जाए. लेकिन अभी मैंने शालू की गांड पे हाथ रखा हुआ था. फिर मैंने शालू की गांड को धीरे धीरे दबाना शुरू कर दिया. अब शालू थोडा घूम के बैठ गयी और मैंने तुरंत हाथ हटा लिया. मैंने सोचा के बस थोड़ी देर में थप्पड़ पड़ेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. मैं थोड़ी देर शांत बैठा रहा, वार्तालाप चलता रहा और शालू फिर मेरी और आके सट के बैठ गयी. मैंने अपना हाथ फिर उसके कूल्हों पे रख दिया और हलके हलके सहलाने लगा. कोई प्रतिक्रिया न होने पे मैंने अपना हाथ पीछे से उसके ट्रैक सूट के टॉप में सरका दिया और उसकी मांसल कमर सहलाने लगा. यकीन नहीं आ रहा था के इतनी माल बंदी मेरे साथ बैठ के मजे दे रही है. अक्सर थोड़े थोड़े स्पर्श के बाद लडकियां या तो परे हट के बैठ जाती हैं या किसी तरह से जता देती हैं के मैं गलत हरकत कर रहा हूँ. शालू ने ऐसा कुछ नहीं किया इसलिए मेरी हिम्मत बढ़ती चली गयी. मैंने अपना हाथ पीछे से उसके ट्रैक पेंट में डालने की कोशिश की लेकिन बहुत टाईट था और मैं बहुत कोशिश के बाद भी हाथ न घुसा पाया. अब शालू हंस दी. रुपिका ने पूछा क्या हुआ, शालू बोली-कुछ नहीं, और बातचीत में लगी रही.

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मैं अब धीरे धीरे अपना हाथ उसके बगलों में ले जाके नर्म नर्म शेव की हुई काखें सहलाने लगा. दूसरी ओर से उसका चूच हलके हलके मेरे हाथ से टकरा रहा था. गाडी के हलके हलके धक्कों से हिल हिल के लंड भी खड़ा हुआ जा रहा था. थोड़ी और देर ऐसे ही चलता रहा. लगभग सब लोग सो चुके थे. मैंने मौका देख के कहा के मैं दरवाजे की तरफ जाके थोड़ी हवा खाने जा रहा हूँ. सोचा वो भी चलेगी तो मैं अगला दांव खेलूंगा. शालू भी तैयार हो गयी मेरे साथ चलने में, बहाना ये बनाया के यहाँ जोर से बात नहीं कर सकते क्यूंकि लोग सो रहे हैं. मैंने सोचा के बन गयी बात, तो दोनों एक एक करके डब्बे के सिरे पे बाथरूम के पास दरवाजे के पास जाके खड़े हो गए. दरवाजा खुला था तो ज़ोरों से हवा आ रही थी. शालू खड़े खड़े हलके हलके मुस्कराते हुए देखने लगी. मैंने देखा के आस पास कोई नहीं है तो बोलने की कोशिश की, लेकिन कुछ बोल न पाया. बस आगे बढ़ के एकदम साथ जाके खड़ा हो गया. मेरा लंड उसके पेट से छू रहा था. उसका चेहरा मेरी और थोडा झुका और आँखें हलके से बंद हुई तो मैंने झुक के उसके होठों को चूम लिया. थोड़ी देर मैं उसके होठों पर हलके हलके चुम्बन जड़ता रहा फिर उसने हलके से होंठ खोले तो मैंने भी अपने होठ खोल के उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया. फिर मैंने जीभ से उसके कोमल होंठो के बीच में जगह बनायी और जीभ अन्दर दाल के उसकी जीभ से मिला दी. उसने भी अपनी जीभ से मेरी जीभ को सहयोग देना शुरू किया. थोड़ी देर हम ऐसे ही जीभें लड़ाते रहे और मेरा हाथ उसकी कमर के गिर्द घिर गया. मैंने अपना बाजू उसकी कमर के गिर्द लपेट के अपने आगोश में कस लिया. उसके ठोस मम्मे मेरी छाती से लगे लगे जब दब रहे थे तो नीचे लौदा दहाड़ें मारने लगा और शालू के पेट में चुभने लगा. मैंने अपने लंड को और थोडा जोर से उसके पेट से सटाया. गाडी चली जा रही थी और हमारे बदन गाडी के झटकों के साथ डोले जा रहे थे. मेरा हाथ अब नीचे जाके उसकी गांड दबा रहा था. मैंने दूसरा हाथ भी पीछे डाल के उसके दोनों कूल्हों को जोर से भींच दिया. फिर मैंने उसकी ठुड्डी चूसनी शुरू कर दी, और बीच बीच में गालों पे पप्पियाँ लेने और चूमने चाटने लगा. मैं इतनी खुली हुई लडकी से कभी नहीं मिला था, तो हैरान भी था और उत्तेजित भी. मैंने उसकी गांड भींचते भींचते उसके गले पे हलके से होठों से काटा फिर झुक के उसकी तनी हुई चूचियों को ट्रैक सूट के ऊपर ऊपर से चूसने का प्रयत्न किया. उसके कूल्हे एकदम भरे भरे और गदराये हुए थे मेरे उसकी गांड पे हाथ रखते ही उसके मांसल कूल्हे मेरे हाथों में समा जाएँ, ऐसे भरे भरे. मैंने अपना हाथ उसके कूल्हों के नीचे सरकाया और कूल्हों के एकदम बीच में ले आया. फिर मैंने दोनों तरफ से गांड को जोर से दबाया. इस दौरान मैं बदहवास सा चुम्मा चाटी में लगा था. अचानक लगा के कोई साथ में है घूम के देखा तो रुपिका खडी थी. शालू बोली- चिंता न करो, ये देखती रहेगी के कोई आ न जाए. मैंने रुपिका को आँख मारी, उसने भी जवाब में आँख मारी और मैं शालू के शरीर से खेलने में लग गया. अब मैंने अपने हाथ से ऊपर ऊपर से शालू की चूची थाम ली और पूरी ताक़त लगा के दबा दी. वो कराह सी उठी. ऐसे २-४ मिनट चला होगा के शालू बोली – यही सब करते रहोगे के और आगे भी कुछ इरादा है. मैं समझा नहीं तो बोली- आगे भी कुछ करना है तो बाथरूम में चलते हैं. अब जाके मेरे दिमाग में चमक आयी के ये लडकी मेरे से भी चालू है और इसे ट्रेन में चुदवाने का अनुभव है. मैंने उसे साथ में लिए लिए बाथरूम का दरवाजा खोला और दोनों अन्दर चले गए. मैं दरवाजा बंद करता के रुपिका बोली, मैं भी आ जाऊं- सिर्फ देखने के लिए. मैं थोडा झिझका हुआ था, लेकिन न हाँ कर पाया और न ना. नतीजा ये के रुपिका भी बाथरूम में मेरे साथ. बाथरूम कोई गन्दा तो नहीं था, लेकिन जंग की बू हमेशा रहती है. बीच में खंडास और दोनों तरफ हत्थे थे. हम तीनों बड़े टाईट फिट आ रहे थे. मैंने शालू की टॉप ऊपर सरका दी और उसकी ब्रा भी बिना खोले ऊपर सरका दी. बाथरूम की रोशनी में उसके दोनों मम्मे चाँद की तरह चमक रहे थे और उसके भूरे भूरे निप्पल लाल अंगूर की भांति जैसे चूचों पे चिपके हों. मैंने अपने ओंठ उसके निप्पल पे चिपका दिए और उसका यौवन रस गट गट पीने लगा. पहले प्यार से फिर जोर जोर से. वो सिसकारी लेते हुए बोलने लगी- हाँ हाँ, और जोर से. इस बीच मैंने उसका ट्रैक पेंट भी नीचे सरका दिया और उसकी चड्ढी भी. उसने मेरा लंड दबोचा और मेरी जींस खोल के बाहर निकाल लिया. मैंने अपने हाथ से उसकी चूत में उंगली दे दी. उसकी चूत एकदम गीली थी पिछले एक घंटे की छेड़ छाड़ के कारण.
मैं थोड़ी देर उंगली करता रहा और उसके मम्मे चूसता रहा और वो मेरे लंड को हाथ में थामे सहलाती रही. फिर रुपिका का हाथ भी मेरे लंड पे आ टिका. मैंने भी उसकी चूची दबा दी. थोड़ी देर में उसकी कमीज और ब्रा भी उसके चूचों से ऊपर और उसकी पेंट और पेंटी उसकी टांगों से नीचे. मैंने दोनों की चूत में उंगली डाल दी. दोनों का शरीर एकदम कसा हुआ और गांड एकदम भरी हुई थी. अब शालू घूम के मेरे और रुपिका के बीच में यूँ आ गयी के उसकी गांड मेरी तरफ और मुंह रुपिका की तरफ. फिर वो थोड़ी झुक गयी. दोनों लड़कियों के मम्मे ट्रेन की छुक छुक के साथ आपस में टकरा रहे थे. मैंने थोडा नीचे झुक के अपने लंड को उसकी चूत में देने की कोशिश की तो हर तरफ नर्म नर्म मांस के लंड टकराता रहा लेकिन रास्ता कहीं न मिला. शालू ने नीचे हाथ डाल के मेरे लंड को रास्ता दिखाया और सेकंडों में मेरा लंड चूत में आधा घुसा हुआ था. शुरू में थोडा घर्षण हुआ लेकिन मैंने जोर से धक्का दिया और पूरा अन्दर. मैं थोड़ी देर अपनी जांघें उसकी गांड से लगाए खडा रहा, बिना धक्के दिए. ट्रेन के चलते चलते अपने आप ही हौले हौले धक्के लग रहे थे. मैं किसी जल्दी में न था और इस घटना के पूरे आनंद लेना चाहता था. मैंने रुपिका के चेहरे को अपनी और खींच के उसके ओठों को चूमा. फिर अपने अंगूठों और अँगुलियों से उसके निप्पलों को यूँ पकड़ा के घोड़े की लगाम पकड़ रखी हो. रुपिका ने उफ़ तक न की. फिर मैंने ट्रेन के धक्कों से मिलते धक्के लगाने शुरू कर दिए. पहले धीरे धीरे, फिर तेज़ तेज़. लौड़ा शालू की टाईट चूत में मस्त हुआ जा रहा था. मैंने रुपिका के निप्पल पकडे पकडे शालू के चूच्चे अपने हाथों के कप में पकड़ लिए और अपनी हथेली से उनपे भी च्यूंटी काटने लगा. मेरी जांघ पे शालू के कूल्हे जो उछल उछल के लग रहे थे तो लौड़े में और सनसनी सी दौड़ उठती थी.
मैंने झुक के रुपिका के ओठों को चूसना शुरू कर दिया. शालू ने घूम के मेरे ओठों से अपने ओंठ लगाने की कोशिश की तो तीनों के ओंठ आपस में टकराए. तीनों के ओंठ खुले खुले थे और तीनों ओंठ एक दुसरे पे कस गए और कसते चले गए जैसे जैसे मेरे धक्के तेज होते गए. जैसे जैसे मेरा लौड़ा फटने के मुकाम पे आने लगा, मेरे हाथ और जोर से लड़कियों के मम्मों पे कसने लगे. मेरे लौड़े से ज़ोरों से गरम गरम माल की बौछार शालू की चूत में होने लगी. मैंने धक्का मरना बंद कर दिया और अपनी जंग को एकदम ज़ोरों से शालू की गांड से सटा के लंड जितना अन्दर घुस सकता था, घुसा के खड़ा रहा. इतनी जोर से च्यूंटी मारी लड़कियों के मम्मों पे के दोनों के मुंह से सिस्कारियां निकल आया. मेरा लंड थोड़ी देर वीर्य विसर्जन करता रहा और धीरे धीरे सिकुड़ता रहा. शालू ने अपनी गांड दायें-बाएं यूँ हिलाई मानो मेरे लंड से बचा खुचा माल निकाल रही हो. मेरे मुह से आह निकल उठी. अब मेरा लंड एकदम सिकुड़ चूका था, बस सुपदा उसकी ज़ोरों से कसी चूत के मुंह पे फंसा था. मैंने निप्पल दबाने ज़ारी रखे और उसी मुद्रा में मुंह आसमान की और करके खडा रहा. ख़ुशी भी थी के इतनी माल लडकी का चोदन कर पाया और अफ़सोस रहा के ज्यादा लम्बा न चल पाया और रुपिका की न ले पाया.

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