इंतेजार चुदाई का

kamukta-kahani-intejaar-chudai-ka उसके हाथ मेरे बदन पर से उतरे और मुझे एक थर-थराहट सी हुई. मुझे उसका अपनी उंगलियों से मुझे छूने का एहसास हुआ, बिल्कुल हल्के से, जैसे के वो मुझे छू ही नही रहा है लेकिन फिर भी जैसे मेरी आत्मा को छू रहा है.

ऐसा लग रहा था कि हर बार जब उसकी उंगलियाँ मुझे छूति, मेरे पैर खुद-बा-खुद थोड़ा सा खुल जाते. मुझे ये एहसास हो रहा था कि मैं अपना बदन उसकी तरफ बढ़ा रही थी, उसकी तरफ अपनी खुली हुई चूत बता रही थी कि जैसे मुझे उसको दिखाना है.

वो मुझे बार बार छू रहा था और मैं अपने आप को उसकी तरफ बढ़ा रही थी, उसके छूने की ख्वाहिश मुझमे दौड़ रही थी, उसकी छ्छूअन की तड़प मुझमे आग लगा रही थी.

मेरे हाथ उन रस्सियों को खींच रहे थे जिन से वो पलंग के कोनों को बँधे हुए थे. मेरी आँखों पर पट्टी बँधी हुई थी जिसके नीचे से मैं रोशनी के लिए तरस रही थी, लेकिन मुझे कुच्छ नज़र नही आ रहा था. मैने अपने पैर हिलाने की कोशिश की लेकिन उन रस्सियों की ताक़त की आगे झुक गयी जिन से वो बँधे थे. सब कुच्छ बड़ी सख्ती से बँधा हुआ था. वो मुझे इस तरहा बाँधने में, इस तरहा छेड़ने में बड़ा माहिर था. मेरा यह सोचना के यह ज़ुल्म जल्द ही ख़तम हो जाएगा, बड़ा ग़लत था.

मेरे होंठो से एक आवाज़ निकली जब उसने अपनी उंगलियाँ मेरे बदन पर से हटा ली, मेरे कान उसके कदमो की आवाज़ के लिए तरस गये जब वो पलंग के पास चलने लगा, दूसरी तरफ आने के लिए. मैने सोचने की कोशिश कि के उसकी अगली चाल क्या होगी, लेकिन मुझे पता नही चल सका. हर बार वो मुझे चौंका देता है, कुच्छ नया करके. कभी पिच्छली बार जैसा नही होता, लेकिन हमेशा पिच्छली बार जैसा मुझे पागल कर जाता था.

मेरे ज़हेन में उसके कदमो की आहट गूँज रही थी, वो कमरे की उस तरफ गया और मुझे एक ड्रॉयर खुलने की आवाज़ आई. मेरे दिल को धड़का लगा जब मैने सोचा के वो ड्रॉयर में से क्या निकाल रहा होगा. हम अपने खिलोने उस ड्रॉयर में रखते हैं, रस्सियाँ, आँखों और मूँह पर बाँधने की पट्टियाँ. और उसमें कुच्छ ऐसी चीज़ें भी थी जिस से वो मुझे दर्द पहुँचा सकता था, हल्के से, जैसे मुझे पसंद है. मुझे एक हल्की सी आवाज़ सुनाई दी कि जैसे वो कुच्छ चीज़ ढूंड रहा था ड्रॉयर में. फिर वो ड्रॉयर बंद हो गया और वो मेरी तरफ वापस आ गया.

मैने उसे अपनी फ़िक्र बताने की कोशिश की. मैं अपने बंधनों से निकलने की कोशिश कर रही थी, चादर मेरे नीचे मसल रही थी, अपना चेहरा तकिये पर घिस रही थी के शायद आँखों पर की पट्टी थोड़ी सी ढीली हो और मैं देख पाउ के उसके हाथ में क्या है. उसने अपनी ज़बान से एक हल्की सी आवाज़ निकाली, मुझे ये इशारा किया के मैं खामोश हो जाऊ और मैं चुपके से पलंग पर गिर गयी.

मेरी साँसों के साथ मेरा सीना उपर नीचे हिल रहा था, वो पास में खड़ा था, बिना हिले. मैने अपना बदन पलंग से घिसने की कोशिश की, मेरे बदन में एक थर-थराहट सी हुई और मुझे ऐसा लगा कि जैसे वो सारे एहसासात कहीं मेरे अंदर एक जगह पर मिल गया है, एक संगम पर. मेरा बदन खुद-बा-खुद उसकी तरफ उठ गया के जैसे मैं उसे उसकी खुशी के लिए अपनी अदाएँ पेश कर रही थी.

वो धीरे से हसा, और मेरे अतराफ् से चल कर दूसरी तरफ आया.

मैने अपनी उंगलियाँ खोली फिर बंद कर लीं उन रस्सियों के अतराफ् जिन से मेरे हाथ बँधे हुए थे और मैने अपने आप को तसल्ली देने की कोशिश की. इस बेबसी में बहुत आसान था अपने आप को खाबू में ना रख पाऊँ, इन एहसासों में खो जाऊं. लेकिन मैने अपनी कुच्छ इज़्ज़त बचाए रखने की कोशिश की, के मैं ना हिलूं जब तक के वो यह सोंच ना ले के वो मेरे साथ क्या करेगा.

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मेरे दबे हुए होंठो से एक आवाज़ निकली, एक आवाज़ जो बिल्कुल जानवरों जैसी थी. मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया उसे सुनते ही. मुझे बिल्कुल उमीद नही थी कि ऐसा होगा, बड़ा अचानक ही हुआ, मेरे खुद के लिए भी. मेरे दिमाग़ में उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखाई दिया, उसे पता था कि उसका मेरे बदन पर पूरा पूरा काबू था.

कुच्छ चीज़ मेरी त्वचा को छू गयी और में बिल्कुल दंग रह गयी, तखरीबन पलंग से उच्छल गयी, सारा बदन उसकी तरफ उठ गया. उसने लेदर को मेरी पीठ पर से नीचे खींचा, एक ही हल्के से झटके में – जैसे कि पहले अपनी उंगलियों से लिया था. पूरी नीचे ले जाने के बाद फिर वापस मेरी पीठ पर से उसने उसे मेरी गर्दन पर ला दिया.

मैं ने अपना सर पलंग में दबा दिया ताकि वो मेरी गर्देन पर और अच्छे से छ्छू सके. उसने वो छ्होटे छ्होटे लेदर के टुकड़ों से मेरी गर्दन पर गुड़गुली की, मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी, लेकिन फिर उसने वो हटा लिया.

उसने ज़ोर से मुझ पर उस लेदर के डंडे से मारा, मुझे उसकी आवाज़ आई, लेकिन इतना वक़्त नही था कि मैं अपने आप को उसके लिए तयार कर पाती. लेदर के मेरे बदन को लगने पर एक ज़ोर की आवाज़ आई और ऐसा लगा जैसे मेरा पूरा का पूरा बदन पलंग पर से उचक गया है. मेरे बदन में थर-थराहटें होने लगी जब मुहे उसके खदमों की आहट आई. वो पलंग के अतराफ् से घूम कर दूसरी तरफ आ रहा था. मेरा दिमाग़ यही सोचने में लगा हुआ था कि वो कौनसी जगह अपना दूसरा वार करेगा. मेरे बदन के सब हिस्से इंतेज़ार से थर-थारा रहे थे.

एक और आवाज़ और इस बार मेरे रानों पर. मुझे अपनी छ्छूठ की गर्माहट में एक हल्का सा फ़र्क़ महसूस हुआ. वो गर्मी कुच्छ और बढ़ी, और मैने अपना बदन उसकी तरफ़ एक बार फिर बढ़ाया.

मुझे उसकी इतनी ज़रूरत थी, मैं उसके लिए तड़प रही थी. मैने एक आवाज़ निकाली, कि जैसे उससे मुझे छ्छूने को कह रही हूँ.

मुझे एक `धड़’ सी आवाज़ आई जब उसने वो लेदर की लकड़ी को नीचे फेंका. मैने एक चैन की साँस ली और मेरी जान में जान आई. मुझे फिर से उसके कदमो की आहत सुनाई दी और मैने अपना चेहरा उसकी तरफ किया, लेकिन उसे देख नही सकती थी.

मेरे होंठो से एक आह निकली जब उसने उंगली से वो जगह को छूआ जहाँ उसने अभी अभी मुझे मारा था. वहाँ थोड़ा सा मोटा होगया था और उसने अपनी उंगली वो पूरी जगह पर सहलाई. मेरा बदन फिर से उसकी तरफ उठने लगा.

उसकी उंगलियाँ जब मेरे बदन पर से उठ गयीं तो मुझे एक सर्द सा एहसास हुआ. मैं पलंग पर वापस गिर पड़ी, मेरा बदन उसकी एक और छ्छूअन के लिए तरस रहा था.

मेरी चूत कच्ची हो चुकी थी, रेले निकल कर नीचे की चादर को गीली कर रहे थे. मैं जब भी थोड़ा सा हिलती तो मुझे वो गीलापन महसूस हो रहा था. वो गीलापन ही एक अजब सी गर्मी पैदा कर रहा था मेरे अंदर, और मुझे लग रहा था कि मेरा बदन, मेरी चूत उसके लिए पूरी खुल कर पेश हो रही थी. मेरे अपने गीलेपन की खुश्बू मुझे आ रही थी.

मुझे एक ठंडी सी चीज़ का एहसास हुआ, जब उसने मेरी चूत पर कुछ लगाया. वो उसे वहाँ हल्के से मल रहा था और उस चीज़ का गोल वाला तरफ मेरे अंदर डाला. मैने अपने आप को पलंग पर से उठा दिया और कोशिश कि के वो मेरे और अंदर डाल दे. मेरे होंठो से अजीब सी आवाज़ें निकल रही थी जब वो लंड मेरे अंदर पूरा चला गया और फिर उसने निकाल लिया.

मैने अपने पूरे बदन को संभाला और वापस पलंग पर गिर गयी. मुझे उसकी हसी सुनाई दी और उसने फिर से वो मेरे अंदर डाला, बस थोड़ा सा, और फिर निकाल लिया. वो गीला सा लंड उसने मेरे चूत के ऊपर सहलाया, वो सारी गीली आवाज़ें मेरी कानों में गूँज रही थी. उसने वो मुझे लगाया और मेरे होंटो से एक हल्की सी आवाज़ निकली.

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उसने फिर उस लंड को हटा लिया और मैं वहीं अपने ही गीलेपन में पड़ी थी. मैं अपने उंगलियों की मुट्ठी बना कर खोल रही थी, पता नही कि वो अब क्या करेगा. मुझे वो चाहिए था, मेरे अंदर.

उसने एक उंगली से मेरी पीठ को छुआ, और वो उंगली पूरा नीचे से ऊपर ले गया. मुझे ये अब बर्दाश्त के बाहर हो रहा था, मुझे चूतमे उसका लंड चाहिए था.

“प्लीज़,” मैने उसे कहा. “प्लीज़, अभी.”

उसकी उंगलिया मुझ पर से उठ गयी और वो मेरे पीछे आ गया. मेने अपने आप को उठा दिया, मुझे बिल्कुल पता था के मैं उसे कैसी लग रही थी. मैने अपनी चूत उसकी तरफ बढ़ाई, के वो मुझे छ्छूए, मेरे अंदर समा जाए.

मुझे उसके कपड़े उतारने की आवाज़ आई. मुझे बहोत खुशी हुई की जब मैने सोचा कि आगे क्या होगा. सारा पलंग हिलने लगा जब वो उस पर चढ़ गया और मेरे ऊपर आ गया; उसके हाथ मेरे दोनो तरफ थे. मुझे उसका मोटा सा लंड मेरी गीली चूत पर होने का एहसास हुआ.

मैं उसकी तरफ हटी के वो मेरे अंदर आ जाए. वो वापस हट गया, मुझे सत्ताने लगा, और हल्के से अपने लंड से मेरी चूत को मारा. उसका लंड मुझे वहाँ लगा और मैं उस को लगा कर हिलने लगी, उसे अपनी चूत से मलने लगी.

उसने फिर अपना लंड मेरे अंदर डाला, पूरा का पूरा मेरे बदन के अंदर धकेल दिया. मेरी होंटो से एक चीख निकल गयी जब उसने मुझे भर दिया, उसका मोटा लंड मेरी गीली चूत में आराम से आगे पीछे हिलने लगा और मेरी साँसें तेज़ होने लगी.

मैं उसके साथ साथ आगे पीछे हिल रही थी. हमारे बदन पसीने से गीले हो चुके थे. मेरे सारे बदन में एक हुलचूल सी होने लगी जब चूत की पहली लहर मेरे बदन में से दौड़ी.

मेरे हाथ पैर थर-थराने लगे, ऐसा लग रहा था कि सारे बदन में से बिजली दौड़ गयी. मेरा सारा बदन उसके नीचे हिल रहा था जैसे मुझे मुक्ति मिली.

वो तो और ज़ोर से अंदर बाहर हिलने लगा, और मेरी चूत अब और भी नाज़ुक हो गयी थी, हर छ्होटी सी जगह पर मैं महसूस कर रही थी, जहाँ भी वो मुझे छ्छू रहा था.

मुझे उसकी साँसें सुनाई दे रही थी, तेज़ होती हुई और फिर उसका हिलना एकदम से बंद हो गया. उसका मोटा लंड मेरे अंदर मुझे महसूस हो रहा था और फिर मुझे उसका सारा गीलापन अपने अंदर छ्छूटने का एहसास हुआ.

मैने मेरी चूत उसके लंड के अतराफ् लपेट ली, और सब कुच्छ उसमें से निचोड़ लिया. उसने मेरे कान में एक आराम-देह अव्वाज़ निकाली, उसका बदन थर-थराना बंद हुआ और वो मेरे ऊपर गिर गया.

मेरी साँसें भी अभी तक थमी नही थी और जब वो मेरे अंदर से अपना लंड निकालने लगा तो मैने अपनी चूत उसके अतराफ् बंद करली, और ज़ोर से निचोड़ने के लिए.

मैने अपना बदन उसकी तरफ उठा दिया. मैं नही चाहती थी कि वो अपना लंड मेरी चूत में से निकाले.

“मुझे ठंडे पानी से नहाना है,” उसने धीरे से मेरे कान में कहा. “फिर हम वापस शुरू करेंगे.”

“ठीक है,” मैने कहा, पलंग पर आराम से अपने आप को जमाते हुए.

मेरा बदन वैसे ही इंतेज़ार में बेचैन थर-थाराता रहा और वो कमरे से बाहर चला गया. मैने अपनी आँखों पर की पट्टी के अंदर ही अपनी आँखें बंद कर ली और सोचने लगी के वो आगे क्या करेगा. पर मैं इंतजार के सिवा क्या कर सकती थी

तो दोस्तो कैसी लगी ये इंतजार की कहानी ज़रूर बताना



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