आयशा खान से सच्चा प्यार और चुदाई

मैं जनवरी 2012 को किसी काम से मेरी ससुराल गया हुआ था साम के 5 बजे के समय मैं मेरी BMW कार से जा रहा था जहा रोड में एक मीडियम साइज़ [ना तो ज्यादा मोटी और ना ही ज्यादा दुबली] की औरत को जाते हुए देखा उसकी चाल को देखकर ऐसा लगा जैसे मैं इसे जानता हु , मुझे मेरी आशा याद आ गई कुछ दूर तक कार से पीछे चलते चलते पूरा विश्वास हो गया की ये तो आशा ही है तब मैं कार को उसके पास ले गया और आवाज दिया ” हेल्लो आशा ” तो ओ मेरी तरफ पलट कर देखी और बिना कुछ जबाब दिए आगे को बढ़ गई मैं फिर कार से आवाज दिया ” ओ आशा सुनो तो सही ” तब ओ फिर से मेरी तरफ घूर कर देखी और बोली ” किसे आवाज दे रहे है ” तो मैंने कार के अंदर से ही बोला ” तुम आशा हो ना ” तो ओ बोली ” नहीं मैं आयशा हु ” तब मैंने कार को थोड़ा आगे बढ़ाया और एक किनारे कार को खड़ी किया और
उसके पास जाकर पूछा ” आप तउरेज खान की बेटी आयशा हो ना ” तो ओ बोली ”हां” तब मैंने उसे कहा ”मुझे नहीं पहचाना क्या ” तो ओ दिमाग पर जोर डाली और ना में सिर हिलाया तब मैंने उसे बोला ” ध्यान से देखो मेरी तरफ” तो ओ फिर से मेरी तरफ घूर कर देखी और मुस्कुरा कर बोली ” आप तो सर जी है न ” तब मैंने बोला ”हाँ पहचान लिया ” तब मैंने आशा को अपनी कार में बड़े आग्रह के साथ अपने बगल वाली सीट पर बिठाया और कुछ दूर जाने के बाद कार को एक छायादार पेड़ के नीचे खड़ी कर दिया और कार के अंदर बैठे बैठे ही बाते करने लगा आशा का चेहरा बहुत कुछ बदला हुआ है ,आँखों के नीचे काली काली-काली झाइयाँ है फिर भी 40 की उम्र में भी खूबसूरत लग रही है, आशा आगे होकर बोली ” आप यहाँ कैसे ? आपको 20 साल बाद देखी इस लिए पहचान नही पाई आपतो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रहे है ”

तो मैंने उसे बताया ”मेरी ससुराल है यहाँ ”
तो उसने पूछा ”कहा पर”
तो मैंने उसे बताया तो बोली किसके यहाँ तब मैंने मेरी ससुराल वालो का नाम लिया तो बोली ” सच में ओ आपकी ससुराल है ” तो मैंने बोला ”हां” तब ओ फिर पलट कर बोलती है ”आपकी ससुराल वाले तो बहुत बड़े आदमी है बहुत धनी है ओ लोग ” फिर आयशा ने मेरे बाया हाथ की कलाई के ऊपर देखा और हाथ को चुम लिया और बोली ” ये क्या पहले तो सिर्फ ”आ” लिखा था ये ”यशा” कब लिख लिया और ये अभी तक नहीं मिटा ” तो मैंने आयशा से कहा की ” ये मेरी चिता जलने के बाद ही मिटेगा ” तो आयशा मेरे मुह पर हाथ रख दिया और बोली ” चिता जले आपके दुश्मनो की ” फिर आयशा ने पूछा ”आपने ये मेरा पूरा नाम कब लिख लिया ” तो मैंने आयशा को बोला की ” तुम्हारी जुदाई में पूरा नाम लिखा लिया ” फिर मैंने आशा से उसके सौहर – बच्चो के बारे पूछा तो आशा ने बताया ” पहले वाले शौहर से कोई ओलाद नहीं हुई तो उससे तलाक हो गया और दूसरे शौहर से एक लड़का और दो लडकिया है ” मैंने पूछा ”क्या करते है आपके सोहर” तो आशा ने बताया ” ओ कबाड़ी की दूकान चलाते है ” तब मैंने तपाक से बोला ” आपको भी कबाड़ में बदल दिया ” तो आशा मेरी तरफ घूर कर देखी और बोली ”आप ठीक कहते है सर अब मैं आपको कबाड़ ही नजर आउगी ” आशा की बाते सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ और मैंने आशा का हाथ पकड़ कर बोला ” क्षमा करो मेरी जान गलती हो गई ” और इतना कहकर आशा का हाथ ‘चुम’ लिया तो आशा अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली ” अरे क्या कर रहे है आप ये पब्लिक प्लेस है किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा ” तब मैंने आशा को बताया की ” काला कांच लगा हुआ है कोई नहीं देख सकता हम दोनों को” और इतना कहने के बाद आशा को अपनी तरफ खीच लिया और आशा की चुचियो को दबाते हुए होठो को किस कर लिया ,आशा ने कोई बिरोध नहीं किया और अपनी सीट से झुक कर मेरे सीने से चिपकी रही, आयशा की चुचिया खूब टाइट लगती है जैसे चुशियो को किसी ने कई सालो से किसी ने दवाया ही नहीं | आशा की आर्थिक स्थित, उसे देखकर लगता है बहुत खराब है, साधारण सी चप्पल, सस्ता सा सलवार कुर्ती पहन रखी थी जिसमे कुर्ती में कई जगह पर हाथ से सिलाई की हुई , बाते करते करते मैंने आशा की कुर्ती के गले के पास से हाथ डालकर आशा की चुचियो को दबाया , आयशा की चुचिया मस्त गोलाई लिए हुए बिना लटके, खूब टाइट लग रही थी आशा ने कोई बिरोध नहीं किया और मुझे किस करने लगी, मैंने आयशा से बोला ”आशा तुम तो आज भी बहुत मस्त लगती हो ,तो आयशा ने पूछ लिया ” कैसे मस्त लगती हु ” तो मैंने आयशा की चूची की तरफ इसारा किया और बोला ” ये आज भी खूब टाइट है ” तो आयशा बोली ” हां है तो पर किस काम की ” तो मैंने पूछा ” मतलब क्या है ” तो आयशा कुछ नहीं बोली और उदास हो गई मैंने बहुत पूछा पर आयशा इस बारे में कुछ नहीं बताया, हम दोनों कार में 25 मिनट तक बाते किये ,आयशा बारे पूछा , आयशा ने मेरे बीबी बच्चो के बारे में पूछा , फिर आशा का पता पूछा तो आशा ने पता तो बता दिया जब मैंने बोला चलो छोड़ दू तो आशा ने मना कर दिया और बोली ”मैं चली जाउगी ” तब मैंने आशा से उसका मोबाइल नंबर मांगा तो बोली ”मेरे पास मोबाइल नहीं है ” तो मैंने बोला पति का ही दे दो तो बोली ”नहीं उनके नंबर पर बात नहीं करना आप, कही उन्हें पता चल गया तो ‘तलाक तलाक तलाक’ बोलेगे और मैं रोड पर आ जाउगी और अब तो कोई नहीं पूछेगा इस उम्र में ” तब मैंने आशा से बोला फिर मैंने ”कैसे मिलूँगा कैसे बात करुगा” तो आशा बोली ”क्या जरुरत है बात करने की ” तब मैंने बोला ” नहीं मेरी जान इतने दिन बाद मिली हो अब मैं तुमसे फिर से बात किया करुगा तुमसे मिला करुगा ” तब आशा बोली ” मेरे पडोस में एक हिन्दू सहेली है उसका नंबर देती हु उस पर बात कर लिया करना ” और फिर आशा ने नंबर दे दिया मुझे अपने पडोसी का मैंने भी मेरा कार्ड आशा को दे दिया ,फिर बोला इसे सम्हाल कर रखना

और जब आशा कार से उतरने को तैयार हुई तो मैंने मेरी पर्स में से 1000 – 1000 की 21 नोट निकाला और आशा के हाथ में रख दिया तो ओ मेरी तरफ आस्चर्य भरी निगाह से देखी और बोली ” ओ अल्ला ,इतने रुपये क्या करुँगी ” तब मैंने बोला ”रख लो अपने लिए अच्छे अच्छे कपडे ले लेना और अपने लिए एक मोबाइल खरीद लेना है ” तब आशा मेरी तरफ बड़े प्यार से देखी और मुझे किस किया और कार से उतर कर चली गई और मैं भारी मन से अपनी ससुराल आ गया पर मेरा मन बार बार आयशा के साथ बिताये हुए पल को याद करने लगे पर बार बार कोई न कोई डिस्टर्ब कर देता पर जब साम को सोने लगा तो आयशा के साथ बिताये एक एक पल की सुनहरी यादो में खो गया और कब नींद लग गई पता ही नहीं चला पर आयशा के एक एक बाते स्वप्न में सिनेमा की तरह दिमाग में चलने लगा |

आयशा खान स्कूल के समय ऐसी ही लगती थी
ये सच कहानी है उन दिनों की है जब मैं एक छोटे से कस्बे जो UP के बार्डर में है वहा की हायर सेकण्ड्री स्कूल में पहली बार लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुआ उस समय मैं 27 – 28 साल का हट्टा कट्टा ,खूबसूरत नौजबांन था मुझे स्कूल में क्लास 10Th का क्लास टीचर बनाया प्रिंसपल साहब ने | 10Th क्लास में तो कई लडकिया थी पर उसमे थी आयशा खान [आयशा की पढ़ाई लेट चालु हुई इस लिए आयशा की उम्र 10 Th में 18 साल की हो गई थी] जो बहुत ही सुन्दर और सेक्सी थी पढ़ने में भी अच्छी थी इसलिए मैंने उसे क्लास मॉनिटर बना दिया इस कारण ओ मेरे से ज्यादा घुल मिल गई , पर मैं उसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था एक दिन मैं अपनी रॉयल इनफील्ड बुलट मोटर साइकल से कस्बे के बाजार में निकला तो एक जूते -चप्पल की दूकान में आयशा बैठी हुई मिली,मुझे भी एक स्लीपर लेना था सो मैं आयशा की दूकान के सामने बाइक रोक कर रुक गया , आयशा ने जैसे ही मुझे देखा उठकर खड़ी हो गई और बोली ”क्या चाहिए गुरु जी ” तो मैंने उससे बोला ”आपकी दूकान है” तो ओ बोली ”हां पर गुरु जी आप मुझे आप क्यों कहते है” मैं तो आपकी स्टूडेंट हु ” तो मैंने बोला आप स्कूल में स्टूडेंट है यहाँ नहीं तो ओ मुस्कुराई और एक टूटी से चेयर दिया और बोली ”आप बैठ जाए ” तो मैं बैठ गया चेयर में और आयशा से कहा की ”मुझे एक स्लीपर चाहिए ” तो आयशा ने लखानी की एक स्लीपर दिखाया पसंद आ गई तो ओ स्लीपर मैंने रख लिया और आयशा को 20 – 20 के दो नोट दिए [लखानी के स्लीपर उस समय 25 रुपये में मिलती थी] तो आयशा ने रुपये वापस कर दिए और बोली ” आप तो ले जाइए गुरु जी ” तो मैंने कहा की ”नहीं ऐसे कैसे बिना दाम चुकाए ले जाऊ ” तो पलट कर आयशा ने जबाब दिया ”आप तो मेरे गुरु जी है आपसे क्या दाम लू ” और इतना कह कर रुपये मेरे जेब में डाल दिया , रुपये डालते समय आयशा जैसे मेरी तरफ झुकी आयशा की चूची [बूब्स ,स्तन] मुझे दिखाई दे गई और आयशा के बाल मेरे कंधे पर गिर गए , और आयशा के वदन से एक मादक खुसबू निकली जो मुझे मदहोस कर दिया मैं आयशा की चूची ही देख रहा था की इतने में आयशा खड़ी हो गई और मेरी नजरो को समझ गई की मैं क्या देख रहा हु , तो आयशा सर्म के मारे अपना दुपट्टा सम्हालते हुए अपनी मस्त मस्त चुचियो को ढक लिया और दूकान में बैठ गई , तो मैंने फिर से जेब में से 40 रुपये निकाले और आयशा के हाथ को पकड़ा और रख दिया और उठकर चलने,लगा तो आयशा बोली ”गुरु जी 15 रुपये तो लेते जाइए ” तो मैंने धीमी सी अबाज में कहा की ” आप अपने लिए कुछ खरीद लेना और उसे पहनना तो रोज मेरी याद आएगी” [उस समय पर ब्रा 15 रुपये में मिलती थी और आयशा अभी तक ब्रा नहीं पहनती थी] आयशा समझ गई मेरा इसारा तो हलकी सी मुस्कान बिखेर दिया अपने सुन्दर से गुलाब की पंखुड़ियों के तरह होठो पर और मैं उसके दूकान से चला आया

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। और अगले दिन जब आयशा स्कूल आई तो उसे बोला ये हाजिरी का रजिस्टर रख आओ ऑफिस में तो आयशा मेरे पास उस समय उसके स्कूल ड्रेस के नीचे ब्रा दिखाई दिया मैं समझ गया की आयशा ने मेरी बात मान लिया,मैं रोज क्लास में दो पीरियड लेता एक अंग्रेजी और दुसरा गणित का आयशा बड़े लगन के साथ पढ़ती और किसी न किसी बहाने मेरे से बातें करती इस तरह स्कूल में मुझे करीब 7 माह हो गए फरवरी में स्कूल का वार्षिक उत्सव आया उसमे सभी ने अपने अपने पसंद के भाषण , गीत प्रस्तुत किया , मैं हारमोनियम बहुत अच्छा बजाता था प्रिंसपल साहब मेरे गाँव के पास के थे इस लिए ओ जानते थे की मैं बहुत बढ़िया गाता भी हु तो प्रिंसपल् साहब ने आग्रह किया की मैं कोई गाना सुनाऊ तो मैं स्टेज पर चढ़ कर एक फिल्म का गाना ” कभी कभी मेरे दिल में ख्याला आता है की जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए ” को पूरा गाया तो सभी स्टाफ और लदको/लड़कियों ने खूब ताली बजाया और सभी ने खूब तारीफ़ किया उसी दिन जब साम को स्कूल का फंकसन ख़त्म हुआ और मैं साम को 7 बजे मैं मेरी बुलट से अपने गाँव आने लगा तो स्कूल से कुछ दूरी पर आयशा अँधेरे में खड़ी दिखी और मुझे रुकने का इसारा किया तो मैं रुका और बोला ”क्या है आयशा यहाँ क्यों खड़ी हो अँधेरे में ” तो बोली ” बस सर ऐसे ही ” तब मैंने बोला ”सही सही बताओ क्या काम है यहाँ अँधेरे में” तो आयशा बोली ”सर एक बात पुछू ” तो मैंने कहा की ”पूछो ना ” तो आयशा बोली ” गाना किसके लिए गाया ” तो मैंने तपाक से बोला ”आपके लिए” तो आयशा खुस होकर बोली ”सच्ची मुच्ची मेरे लिए गाया ” तो मैंने आयशा का बाया हाथ पकड़ा और बोला ”कसम से आपको याद करके ओ गाना गाया अच्छा लगा आपको मेरा गाना ” तो आयशा बोली ” आप भी अच्छे लगे और आपका गाना भी अच्छा लगा ” और इतना कहकर एक गुलाब का फूल दिया [दाए हाथ को पीछे छिपा रखी थी गुलाब का फूल ] और बोली ”आप बहुत अच्छा गाते है सर” तो मैंने उसे सुक्रिया कहा और बोला ”जाओ यहाँ से अँधेरे में मत खड़ी रहो” तो आयशा मेरी तरफ देखते हुए वहा से चली गई मैं अपने गाँव आ गया [मेरा गाँव स्कूल से 15 KM दूर है इस लिए रोज अप डाउन करता था] पर रास्ते भर और फिर रात भर आयशा का खूबसूरत और मासूम चेहरा आँखों के सामने घूमता रहा और अब जब भी स्कूल आता तो आयशा आती तो तिरक्षी नजर से मेरे तरफ बड़े प्यार से देखती फिर अप्रैल -मई में एक्जाम हुई 10 Th बोर्ड की मैंने आयशा को खुब नक़ल करवाया तो आयशा के 89% रिजल्ट बना और आयशा 11Th में आ गई मुझे भी 11Th के क्लास का क्लास टीचर बना दिया मैंने आयशा को फिर से 11Th का मॉनीटर बना दिया अब आयशा खूब घुल मिल गई |

जुलाई में खूब बरसात होने लगी मैं गीला हो जाता रेनकोट के बाद भी तो एक दिन पापा को बोला की बरसात के लिए वही रूम लेकर रहु क्या तो पापा ने मना नहीं किया तो मैंने आयशा के घर के सामने दो रूम किराए से लेकर रहने लगा जब ये बात आयशा को पता चली तो बहुत खुस हुई | आयशा के अब्बु जान की उम्र 50 साल के आसपास होगी बालो में मेहदी लगाये रहते है ,पर आयशा की अम्मीजान बमुश्किल 30 साल के आसपास होगी हलकी से सावली पर मस्त जवान थी,उस कस्बे में नल की कोई ब्यवस्था नहीं थी उस समय पर एक कुआ था जहा से सभी पानी भरते और वही पर नहाने भी जाते थे मैं भी वही जाने लगा ,मैं जब भी नहाने जाता आयशा भी पानी लेने के बहाने जाती [आयशा की सौतेली माँ सभी करवाती थी] और मुझे पानी भर कर दे देती नहाने के लिए यह क्रम रोज चलने लगा आयशा पानी भरने के बहाने बहुत से बाते करती ,एक दिन आयशा से पूछ लिया की आपकी अम्मी जान की उम्र कम है पापा से तो आयशा ने बताया की उसकी अम्मीजान और अब्बा में तलाक हो गया ये दुसरी अम्मी है मेरी तो मैंने पूछा की क्यों हुआ तलाक तो आयशा ने बताया की मेरी अम्मी जान की और अब्बा की नहीं पटती थी तो मैंने पूछा की इस मम्मी से पटती है क्या तो आयशा बोली ज्यादा नहीं पटती है पर ये अम्मी बहुत गरीब घर से है इस लिए अब्बा की सम्पत्ति के कारण निकाह कर लिया | आयशा स्कूल से आने के बाद और स्कूल जाने के पहले घर के काम में बहुत विजी रहती ,सुबह घर का काम करती और स्कूल से आने के बाद दूकान सम्हालती और साथ में पढ़ाई भी करती ,आयशा के अब्बु ज्यादातर दूकान का सामान बाहर से लाने में ही निकाल देते , आयशा की मम्मी घर का कोई काम नहीं करती 3 साल के लड़के को लिए रहती | आयशा से प्यार हो गया मुझे पर मैं और आयशा दोनों डरते थे ज्यादा मिलने -जुलने में | एक दिन मैं स्कूल जाने के लिए मेरी बुलट स्टार्ट किया तो आयशा के अब्बा मेरे पास आये और बोले ” राम राम ठाकुर साहब ” तो मैं सरमा गया और उन्हें बोला ” आप तो बड़े है अब्बु जी आप क्यों सलाम करते है ये तो मुझे करना चाहिए ” तो आयशा के अब्बु ने कहा की ”साहब आप बड़े लोग हो और मेरी लड़की के गुरु है और गुरु तो सबसे बड़े होते है ” [उस कस्बे में 200 घर में से 15-20 घर मुस्लिमो के है इस कारण सभी मुस्लिम बड़े अदब से रहते है हिन्दुओ के साथ घुल मिलकर] तो मैंने बोला ”ऐसा कुछ नहीं है अब्बु जी आप उम्र में बड़े है ” तो आयशा के अब्बु ”ताउरेज खान ” ने कहा ”आप राजा है मेरे ” उनकी तारीफ से सोच नहीं पाया क्या मकसद है इनका पर कुछ न कुछ तो स्वार्थ है इसलिए आज पहली बार कई महीनो बाद मेरे से बात कर रहे है फिर मैंने बोला ”अब्बु जी आप बड़े है मेरे से आप मुझे राजा साहब नहीं कहे अब राज -पाट कहा रहा ” [मैं वहा के आसपास का जागीरदार का लड़का जो था इस लिए सभी सम्मान भी करते थे और मेरे पापा से डरते भी थे] तो आयशा के अब्बु ने कहा की ” आप तो आज भी मेरे लिए राजा ही हो ठाकुर साहब ” तो मैंने कहा की ”अब्बु जी ये तो आपकी महानता है जो आप इतना सम्मान दे रहे है ” और इतना कह कर बुलट में किक मारा और बुलट से भक भक की आवाज आने लगी और मैं तउरेज खा से कहा की ”चालू अब्बु जी स्कूल का समय हो गया ” तो ओ बोले” ठीक है ठाकुर साहब काम था आपसे साम को मिलूँगा” तो मैंने कहा ”ठीक है साम को मिल लीजिये ” और इतना कहकर मैं स्कूल आ गया | आयशा अब्बु आधुनिक खयालात के है और आयशा को बहुत लाड़ करते है उनकी तमन्ना है की आयशा पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी करे |

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साम को 5 स्कूल से आया और फ्रेस होकर एक किताब पढने लगा इतने में दरवाजे के पास आयशा आई और बोली ”अब्बू जी आपसे मिलना चाहते है भेज दू क्या” तो मैंने आयशा को इसारा करके कमरे के अंदर बुलाया तो आयशा अपनी दूकान की तरफ देखी और बोली ”नहीं आउगी अब्बु देख लेंगे ” तो मैं दरवाजे के पास आया और पूछा ”क्या काम है अब्बु को”तो आयशा बोली ”आप ही पूछ लेना ” तो मैं बोला ”ठीक है मैं ही आ जाता हु आपके घर ” तो आयशा बोली ” आ जाइए ” और इतना कह कर मुस्कुराई और चली गई |

मैं सोचा ये आये उससे पहले ही मैं आयशा के घर इसी बहाने आयशा का घर भी देख लुगा ये सोच कर उठा और कपडे पहना और आयशा के घर पहुंच गया तो आयशा के अब्बु ही दूकान में खड़े हो गए और बोले ”आइये ठाकुर साहब मेरे गरीब खाने में तसरीफ लाइए ” और इतना कह कर आयशा को आवाज दिया तो आयशा दूकान में आई और बोली ” जी अब्बु ” तो आयशा के अबु ने कहा ” तू दूकान में बैठ मैं ठाकुर साहब से कुछ बात कर लू ” तो आयशा बोली ”जी अब्बु ” और मैं तउरेज खान के साथ उनके घर में घुस गया और एक छोटे से गंदे से कमरे में बैठ गया जिसमे अजीब सी इस्माइल आ रही थी ज़रा से घर में दो बकरी भी पाल रही थी बकरियो की गंध अलग आ रही थी पर मन मारकर बैठ गया घर में मुझे ऐसा लग रहा था की जल्दी घर से बाहर निकल जाउ मैं आयशा के अब्बु से बोला ” फरमाये अब्बु जी ” तो आयशा के अब्बु ने कहा ”साहब मेरी आशा (तउरेज खान आयशा को आशा ही कहते है) पढने में बहुत अच्छी है सोच रहा हु ये अच्छी तालीम लेकर कुछ बन जाए अल्ला के फजल से ” तो मैंने बोला ”जरूर भगवान की कृपा से अच्छा बनेगी आयशा ” तब मैं तउरेज खान का मकसद समझ गया और मुझे उनके बदबू दार घर से जल्दी से बाहर निकलना था

इस लिए मैंने कह दिया ” ठीक है अब्बु जी पर आपमुझससे क्या चाहते है ” तो तउरेज खान ने कहा की ” मेरी आशा को आप गणित की अंग्रेजी की तालीम दे दीजिये आपकी जो भी फीस होगी अदा कर दुगा ” तो मैंने तउरेज खान से कहा की ” फीस की कोई जरुरत नहीं है नहीं है भगवान का दिया बहुत कुछ है मेरे पास ” तो तउरेज खान ने कहा ” ठीक है ठाकुर साहब जैसी आपकी इच्छा ” तब मैंने कहा ”चालू अब्बु जी ‘ तो ओ बोले की ” चाय तो पीते जाइए ” तो मैंने मना कर दिया और घर से बाहर आ गया और जोर से सॉस लिया और कुछ देर तक दूकान के सामने खड़ा रहा और आते आते बोल दिया की ”ठीक है कल से भेज देना आप आशा को” और इतना कहकर तिरक्षी नजर से आयशा की तरफ देखा तो आयशा के आँखों में एक अजीब से चमक आ गई थी पर तउरेज खान ने कहा की ”ठाकुर साहब यही पढ़ा करना ” तो मैंने बोला ”ठीक है ” और अगले दिन साम को आयशा के घर पहुंच गया और आयशा को एक घंटे पढ़ाया और घर चला आया इस तरह मैं आयशा के बदबू दार घर में भी 15 दिन तक पढ़ाया तब तक आयशा की तीन सहेलिया भी आ गई पढने और कमरे में काम जगह होने के कारण मैंने कहा दिया की तुम सभी मेरे यहाँ आ जाया करो यहाँ जगह कम पड़ती है , जबकि मुझे आयशा के बदबू दार घर से निजात पाना था आयशा के अब्बु तैयार हो गए और अगले दिन से 4 लडकिया पढने आने लगी मेरे रूम में | आयशा के घर में 15 दिन की पढ़ाई में मैं समझ गया की आयशा की सौतेली माँ और आयशा में बिलकुल भी नहीं पटती थी आयशा की काली कलूटी सौतेली माँ मुझे भी लाइन मारती थी पर मैंने उसे घास नहीं डाला |

सभी लड़कियों को बड़े स्नेह के साथ पढ़ाता ,पर आयशा से मुझे प्यार हो गया आयशा भी खूब प्यार करने लगी पर खुल कर बात नहीं कर पाते क्योकि छोटा सा कस्बा कही छिपकर बाते नहीं कर सकते उस समय पर मोबाइल और फोन की सुबिधा नहीं थी दिल की बात कहने के लिए और इस तरह दो माह निकल गए और ओक्टुबर का महीना आ गया |

कस्बे से करीब 1 KM दूर जंगल भी था जो अभी कम हो गया जंगल में ही एक बरसाती नदी भी थी जो वरसात और ठण्ड में पानी से भरी रहती है जब आयशा के घर में ज्यादा कपडे हो जाते तो आयशा नदी में जाकर कपडे धोती और सुखा कर घर लाती , कसबे से कई महिलाये लडकिया जाती थी नहाने ये बात मुझे आयशा से पता थी | एक दिन आयशा घर से करीब 12 बजे दोपहर में स्कूल ड्रेस में निकली नदी जाने के लिए तो मैं बाहर ही खड़ा था तो आयशा पहले अपने घर की तरफ देखा कोई नहीं था तो मेरी तरफ देखी और इसारे से बताया की नदी जा रही हु, मैं आयशा के इसारे को समझ गया और मैं भी इसारा कर दिया की आ रहा हु और फिर करीब 30 मिनट बाद मैं भी पैदल ही नदी पहुंच गया.देखा की आयशा कपडे धोकर नदी के किनारे सुखाने के लिए डाल रही थी पर आयशा ने मुझे नहीं देखा,मैं नदी के किनारे कुछ दूरी पर बैठ गया और आयशा को देखने लगा आयशा बार बार कस्बे से आने वाली रोड की

तरफ ही देख रही थी मैं समझ गया आयशा मुझे ही देख रही है पर मैं चुपचाप आयशा की हरकते देखता रहा कुछ देर में आयशा नदी में कूद कूद कर नहाने लगी नदी में कुछ लड़के -लडकिया भी नहा रही थी आयशा कुछ देर बाद फिर निकली नदी से और घाट पर खड़ी होकर फिर से रास्ते की तरफ देखने लगी और बाहर आकर अपने कपड़ो को समेटने लगी और सभी कपड़ो की एक पोट्ली बनाकर रख दिया और नदी के घाट पर बैठ गई कुछ देर बाद नदी से लड़के लडकिया निकल कर बाहर जाने लगे तो आयशा भी उनके साथ चल दिया सबसे पीछे पीछे पर एक बार नदी की तरफ पलट कर देखी तो मैंने इसारा किया तो समझ गई और वापस आ गई नदी की तरफ तब तक डेढ़ बज गए थे नदी में कोई नहीं बचा तब मैं आयशा के पास पहुंच गया तो देखा की आयशा एक दुपट्टे से अपने स्तनों को छिपा रखा था मैं आयशा के पास जाते ही आयशा से लिपट गया और किस करने लगा तो पहले आयशा ने हल्का सा बिरोध किया और फिर ओ अपने कपडे की पोटली रख कर नदी में कूद पड़ी ,



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