तीन भाभियों की फुद्दी चुदाई

एक बार स्नान के बाद वो कपड़े बदल रही थीं और मैं जा पहुँचा। उसका आधा नंगा बदन देख मैं शरमा गया लेकिन वो बिना हिचकिचाते बोली- ‘दरवाज़ा खटखटा के आया करो।’

दो साल यूँ गुज़र गए, मैं अठारह साल का हो गया था और गाँव की स्कूल की 12वी में पढ़़ता था। भैया चौथीं शादी के बारे में सोचने लगे। उन दिनों में जो घटनाएँ घटी इसका ये बयान है।

बात ये हुई कि मेरी उम्र की एक नौकरानी ‘बसन्ती,’ हमारे घर काम पे आया करती थी। वैसे मैंने उसे बचपन से बड़ी होते देखा था। बसन्ती इतनी सुन्दर तो नहीं थीं लेकिन चौदह साल की दूसरी लड़कियों के बजाय उसके स्तन काफ़ी बड़े बड़े लुभावने थें।

पतले कपड़े की चोली के आर पार उसकी छोटी छोटी निप्पल्स साफ़ दिखाई देती थी।

मैं अपने आपको रोक नहीं सका। एक दिन मौक़ा देख मैंने उसके स्तन थाम लिए। उसने ग़ुस्से से मेरा हाथ झटक डाला और बोली- ‘आइंदा ऐसी हरकत करोगे तो बड़े सेठ को बता दूँगी’ भैया के डर से मैंने फिर कभी बसन्ती का नाम ना लिया।

एक साल पहले सत्रह साल की बसन्ती को ब्याह दिया गया था। एक साल ससुराल में रह कर अब वो दो महीने वास्ते यहाँ आई थी। शादी के बाद उसका बदन भर गया था और मुझे उसको चोदने का दिल हो गया था लेकिन कुछ कर नहीं पाता था।

वो मुझसे ललकारती रहती थी और मैं डर का मारा उसे दूर से ही देख लार टपका रहा था।

अचानक क्या हुआ? क्या मालूम?, लेकिन एक दिन माहौल बदल गया। दो चार बार बसन्ती मेरे सामने देख मुस्कराई। काम करते करते मुझे गौर से देखने लगी मुझे अच्छा लगता था और दिल भी हो जाता था उसके बड़े बड़े स्तनों को मसल डालने को।

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लेकिन डर भी लगता था। इसी लिए मैंने कोई प्रतिभाव नहीं दिया। वो नखरें दिखाती रही।

चुदाई के लिए बसन्ती राजी हुई

एक दिन दोपहर को मैं अपने स्टडीरूम में पढ़़ रहा था। मेरा स्टडीरूम अलग मकान में था, मैं वहीं सोया करता था।

उस वक़्त बसन्ती चली आई और रोदल सूरत बना कर कहने लगी। ‘इतने नाराज़ क्यूं हो मुझसे, मंगल?’

‘मैंने कहा- नाराज़?’
‘मैं कहाँ नाराज़ हूँ?’
मैं क्यों होऊं नाराज़?’

उसकी आँखों में आँसू आ गए वो बोली- ‘मुझे मालूम है उस दिन मैंने तुम्हारा हाथ जो झटक दिया था ना?’

‘लेकिन मैं क्या करती?’ ‘एक ओंर डर लगता था ओंर दूसरे दबाने से दर्द होता था। माफ़ कर दो मंगल मुझे।’

इतने मैं उसकी ओढ़नी का पल्लू खिसक गया, पता नहीं कि अपने आप खिसका या उसने जानबूझ के खिसकया। नतीजा एक ही हुआ, लोव कट वाली चोली में से उसके गोरे गोरे स्तनों का उपरी हिस्सा दिखाई दिया। मेरे लौड़े ने बग़ावत की नौबत लगाई।

मैं- उसमें माफ़ करने जैसी कोई बात नहीं है।।मैं नाराज़ नहीं हूँ माफ़ी तो मुझे माँगनी चाहिए।’

मेरी हिचकिचाहट देख वो मुस्करा गई और हँस के मुझसे लिपट गई और बोली- सच्ची? ‘ओह! मंगल।’

‘मैं इतनी ख़ुश हूँ अब। मुझे डर था कि तुम मुझसे रूठ गए हो।’

‘लेकिन मैं तुम्हें माफ़ नहीं करुँगी जब तक तुम मेरी चुचियों को फिर नहीं छूओगे।’ शर्म से वो नीचे देखने लगी मैंने उसे अलग किया तो उसने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ अपने स्तन पर रख दिया और दबाए रखा।

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‘छोड़, छोड़ पगली, कोई देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।’

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