ट्रेन में भाई-बहन की चुदाई

मैं अपनी मौसी के यहां से गया जिले से मेरी छोटी बहन। शीला के साथ लौट रहा था, जो सच्ची कहानी है। मैं सूरत में अपने परिवार के साथ रहता हूँ। मैं 19 साल का हूँ और मैं हिंदी भाषा में मेरी चचेरी बहन, शीला, के साथ कैसे सेक्स किया था, सुनाने जा रहा हूँ।

मेरा नाम रोहित है।

एक दिन हमारी मौसी गया जिला के गाँव टेकरी से आई। मुझे और शीला को अपने साथ गाँव अपनी लड़की गीता की माँगनी में ले जाने के लिए। हम दोनों भाई-बहन का टिकेट अपने साथ बनाकर लेने आई। मम्मी हमसे कही- “जब तुम्हारे मौसी इतनी दूर से खुद लेने आई है तो जाना तो पड़ेगा ही। लेकिन शीला की स्कूल भी खुली है इसलिए जाओ और माँगनी के बाद दूसरे दिन वापस आ जाना। वापसी का टिकेट अभी ही जाकर ले लो…”

मैं सूरत रेलवे स्टेशन गया, वहां किसी भी ट्रेन का दो दिन की वापसी टिकेट नहीं मिली। अंत में मैं झरखंड एक्सप्रेस का 98-99 वेटिंग का ही टिकेट लेकर आ गया की नहीं कन्फर्म होने पर टीटी को पैसे देकर ट्रेन पर ही सीट ले लेंगे। 29 अक्टोबर 2000 को मैं और शीला अपनी मौसी (माँ की बहन) की बेटी (गीता) की माँगनी से वापस लौट रहे थे। गया जिले के टेकारी गाँव में हमारी मौसी रहती थी। मौसी ने गीता की मnnगनी में शीला को लाल रंग का लंहगा-चोली खरीद कर दी थी, जिसे पहनकर शीला मेरे साथ देल्ही वापस लौट रही थी।

टेकारी गाँव के चौक पर हमलोग गया रेलवे स्टेशन आने के लिए ट्रेकर का इंतेजार कर रहे थे। इतने में वहां एक कुतिया और उसके पीछे-पीछे एक कुत्ता दौड़ता हुआ आया। कुतिया हमलोगों से करीब 20 फुट की दूरी पर रुक गई। कुत्ता उसके पीछे आकर कुतिया की बुर चाटने लगा और फिर दोनों पैर कुतिया की कमर पर रखकर अपनी कमर दनादन चलाने लगा।

जिसे मैं और शीला दोनों देखे। कुत्ता बहुत रफ़्तार से 8-10 धक्का घपा-घप लगाकर करवट लेकर घूम गया। दोनों एक दूसरे में फँस गये। ये दृश्य हम दोनों भाई-बहन देखे। इतने में गाँव के कुछ लड़के वहाँ दौड़ते हुए आए और कुत्ते-कुतिया पर पत्थर म रने लगे। कुत्ता अपनी तरफ खींच रहा था और कुतिया अपनी तरफ। लेकिन जुट छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था।

मैंने शीला की तरफ देखा तो वो शर्मा रही थी। लेकिन ये दृश्य उसे भी अच्छा लग रहा था। हमसे नीचे नजर करके ये दृश्य बड़े गौर से देख रही थी। मेरा तो मूड खराब हो गया। अब मुझे शीला अपनी बहन नहीं बल्कि एक सेक्सी लड़की की तरह लग रही थी। अब मुझे शीला ही कुतिया नजर आने लगी। मेरा लण्ड पैंट में खड़ा हो गया। लेकिन इतने में एक ट्रेकर आई तो हम दोनों जीप में बैठ गये। जीप में एक ही सीट पर 5 लोग बैठे थे, जिससे शीला हमसे चिपकी हुई थी।

मेरा ध्यान अब शीला की बुर पर ही जाने लगा। हमलोग स्टेशन पहुँचे। मैं अपना टिकेट कन्फर्मेशन के लिए टी॰सी॰ आफिस जाकर पता किया, लेकिन मेरा टिकेट कन्फर्म नहीं हुआ था। फिर मैंने सोचा किसी भी तरह एक सीट लेना तो पड़ेगा ही। टी॰सी॰ ने बताया कि आप ट्रेन पर ही टी॰टी॰ से मिल लीजिएगा शायद एक सीट मिल ही जाएगी।

ट्रेन टाइम पर आ गई। शीला और मैं ट्रेन पर चढ़ गये। टी॰टी॰ से बहुत रिक्वेस्ट करने पर ₹200 में एक बर्थ देने के लिए राजी हो गया। टी॰टी॰ एक सिंगल सीट पर बैठा था, उसने कहा कि आप लोग इस सीट पर बैठ जाओ जब तक हम आते हैं कोई सीट देखकर।

मैं और शीला सीट पर बैठ गये। रात के करीब 10:00 बज रहे थी खिड़की से काफी ठंडी हवाएं चल रही थीं। हमलोग शाल से बदन ढक कर बैठ गये। इतने में टी॰टी॰ आकर हमलोग को दूसरे बोगी में एक ऊपर की बर्थ दे दिया।

मैंने 200 रूपये टी॰टी॰ को देकर एक टिकेट कन्फर्म करवाकर अपने बर्थ पर पहले शीला को ऊपर चढ़ाया। चढ़ाते समय मैंने शीला का चूतड़ कसके दबा दिया था। शीला मुश्कुराती हुई चढ़ी। फिर मैं भी ऊपर चढ़ा। सारे स्लीपर पर लोग सो रहे थे। हमारे स्लीपर के सामने स्लीपर पर एक 7 साल की लड़की सो रही थी, जिसकी मम्मी और दादी मिडिल और नीचे की बर्थ पर थे। सारी लाइट, पंखे बंद थे। सिर्फ़ नाइट बल्ब जल रहा था। ट्रेन अपनी गति में चल रही थी।

शीला ऊपर बर्थ में जाकर लेट रही थी। मैं भी ऊपर बर्थ पर चढ़कर बैठ गया। शीला मुझसे कहने लगी- “लेटोगे नहीं?”

मैंने कहा- “कहाँ लेटूं? जगह तो है नहीं…”

इस पर वो करवट होकर लेट गई और मुझे बगल में लेटने कही। मैं भी उसी के बगल में लेट गया, और शाल ओढ़ लिया। जगह छोटी के कारण हम दोनों एक-दूसरे से चिपके हुए थे। शीला की चूची मेरे सीने से दबी हुई थी। मारा तो शीला की चूत पर पहले से ही ध्यान था। मैं शीला को और भी अपने से चिपका लिया, कहा कि और इधर आ जा नहीं तो नीचे गिरने का डर है।

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वो मुझसे और चिपक गई। शीला अपनी जाँघ मेरे जाँघ के ऊपर रख दी। उसके गाल मेरे गाल से सटे थे। मैं उसके गाल से अपना गाल रगड़ने लगा। मेरा लण्ड धीरे-धीरे खड़ा हो गया। मैं अपना एक हाथ शीला की कमर पर ले गया और और धीरे-धीरे उसका लहंगा ऊपर कमर तक खींच-खींचकर चढ़ाने लगा। शीला की सांसें भी तेज चलने लगी थीं।

मैंने उसका लहंगा कमर के ऊपर कर दिया और उसके चूतड़ सहलाने लगा। मैं उसकी पैंटी पर से हाथ घुमाकर देखने लगा तो बुर के पास उसकी पैंटी गीली थी। उसकी बुर से चिप-चिपा लार निकला था, जो मेरी उंगलियों को चिपचिपा कर दिया। मैं पैंटी के अंदर से हाथ डालकर बुर के पास ले गया, तो उसकी बुर लार से भीगी हुई थी। मैं बुर को सहलाने लगा।

शीला अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दी और मेरे होंठ को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मुझे एक बारगी पूरे बदन में जोश आ गया। मैं एक हाथ शीला की चूची पे डालकर उसके संतरे जैसी चूची को सहलाने लगा। उसकी चूची की निपल काफी छोटी थी, उसे मैं अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। और पहले एक उंगली शीला की बुर में डुका दिया।

बुर गीली होने के कारण आसानी से उंगली बुर में चली गई। फिर दो उंगली एक बार में ढुकाने लगा, इस पर शीला कसमसाने लगी। मैं एक हाथ से उसकी निपल की घुंडी मसल रहा था और एक हाथ से उसकी बुर से खिलवाड़ करने लगा। मैं किसी तरह धीरे-धीरे दोनों उंगली उसकी बुर में पूरा घुसेड़ दिया। और दोनों उंगली को चौड़ा करके उसकी बुर में चलाने लगा। शीला सिसकने लगी और अपनी हाथ मेरे पैंट की जिप के पास लाकर जिप खोलने लगी।

मैंने भी जिप खोलने में उसकी मदद की और अपना लण्ड शीला के हाथ में दे दिया। शीला मेरे लण्ड के सुपाड़े को सहलाने लगी। उसको मेरा लण्ड सहलाने से बहुत मजा मिला। मैं उसकी बुर में इस बार तीन उंगली एक साथ डालने लगा। बुर से काफी लार गिरने लगी, जिससे मेरा हाथ और शीला की पैंटी पूरा भींग गई। लेकिन इस बार तीनों उंगली बुर में नहीं जा रही थी। मैं एक हाथ से बुर को चीर कर रखा और फिर तीनों उंगली एक साथ डाली।

तो शीला मेरा हाथ पकड़कर बुर के पास से हटाने लगी, शायद इस बार बुर तीनों उंगली से दर्द करने लगी होगी लेकिन मैं उसके होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और किसी तरह तीनों उंगली बुर में आधा जाकर ही अटक गई।

मैं जोश में आ गया और शीला की पैंटी एक साइड करके अपना लण्ड उसकी बुर के छेद में ढुकाने लगा। लण्ड का सुपाड़ा ही बुर में घुसा था की शीला मेरे कान में कहने लगी- “धीरे-धीरे ढुकाओ, बुर दर्द कर रही है…”

मैं थोड़ा सा पोजीशन लेकर उसके चूतड़ को ही अपने लण्ड पर दबाया तो लण्ड का एक ¼ हिस्सा उसकी बुर में घुस गया। मैं उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था। मैंने सोचा पूरा लण्ड बुर में ढुकाने पर उसके मुँह से चीख निकलेगी और लोग जाग भी सकते हैं। इसीलिए मैं ¼ हिस्सा उसकी बुर में घुसाकर अंदर-बाहर करने लगा। पैंटी के किनारे ने मेरा लण्ड को कस रखा था, इसीलिए हमें चोदने में काफी मजा मिल रहा था।

शीला भी चुदाई की रफ्तार बढ़ाने में हमारा साथ देने लगी। धीरे-धीरे पैंटी भी हमारे लण्ड को कसकर बुर पर चांपे हुए थी। पैंटी के घर्षण से लण्ड भी बुर में पानी छोड़ने के लिए तैयार हो गया। मैंने शीला की कमर को कसकर अपनी कमर में चिपकाया तो मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया। शीला की पैंटी पूरा भींग गई। शायद सर्दी के रात के कारण उसे ठंढ लगने लगी। फिर उसने अपनी पैंटी धीरे से उतारकर उसी से अपनी बुर पोंछकर पैंटी अपनी हैंडबैग में रख ली।

फिर मैं और शीला एक दूसरे से चिपक कर सोने लगें। लेकिन हम दोनों की आँखों में नींद कहाँ? मैं शीला के कान में कहा- कुतिया बनकर कब चुदायेगी?

तब शीला कहने लगी- “घर चलकर चाहे कुतिया बनाना, या गाय बनाकर चोदना यहाँ तो बस धीरे-धीरे मजा लो…” हमलोग शाल से पूरा बदन ढक रखे थे। शीला फिर मेरे लण्ड को लेकर मसलने लगी। मैं भी उसकी बुर के टिट को कुरेद कर मजा लेने लगा। अब शीला हमसे काफी खुल चुकी थी। मेरे होंठ को चूसते हुए मेरा लण्ड मसले जा रही थी। उसके हांथों की मसलन से मेरा लण्ड फिर खड़ा होने लगा और देखते ही देखते मेरा लण्ड शीला की मुट्ठी से बाहर आने लगा।

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शीला बहुत गौर से मेरे लण्ड की लम्बाई-चौड़ाई नापी, 9” इंच का लण्ड देखकर हैरान होकर मेरे कान में कही- “इतना मोटा, लंबा लण्ड तूने मेरी बुर में कैसे ढुका दिया?

मैंने कहा- “अभी पूरा लण्ड कहाँ ढुकाया हूँ? मेरी रानी अभी तो सिर्फ़ ¼ हिस्सा से काम चलाया हूँ। पूरा लण्ड तो तुम जब घर में कुतिया बनोगी तो हम कुत्ता बनकर डागी स्टाइल में पूरे लण्ड का मजा चखाएंगे…”

इसपर वो जोर-जोर से मेरे गाल में दाँत काटने लगी।

फिर मैंने उसके कान में धीरे से कहा- “शीला, तुम जरा करवट बदलकर सोओ। तुम अपनी गाण्ड के छेद को मेरे लण्ड की तरफ करके सोओ…”

उसपर वो मेरे कान में कहने लगी- “नहीं बाबा, गाण्ड मारना हो तो घर में मारना। यहाँ मैं गाण्ड मारने नहीं दूँगी…”

फिर मैंने उससे कहा- “नहीं रानी, मैं तुम्हारी गाण्ड नहीं मारूँगा मैं तुम्हें लण्ड-बुर का ही मजा दूँगा…”

फिर वो करवट बदल दी। मैंने शीला के दोनों पैर मोड़कर शीला के पेट में सटा दिया, जिससे उसकी बुर पीछे से रास्ता दे दी। मैंने उसकी गाण्ड अपने लण्ड की तरफ खींचकर उसका पैर उसके पेट से चिपका दिया और बुर में पहले दो उंगली डालकर बुर के छेद को थोड़ा फैलाया। फिर दोनों उंगली बुर में डालकर उंगली बुर में घुमा दिया।

शीला उसपर थोड़ा चिहुँकी।

फिर मैं गाल में एक चुम्मा लेकर अपने लण्ड को शीला की बुर में धीरे-धीरी घुसाने लगा। बहुत कोशिश के बाद आधा लण्ड बुर में घुसा। मैं शीला से ज्यादा से ज्यादा मजा लेना और देना चाहता थे। इसीलिए बहुत धीरे-धीरे घुसाया और एक हाथ से उसकी निपल की घुंडी मींजने लगा। मैंने देखा कि अब शीला भी अपनी गाण्ड मेरे लण्ड की तरफ चांप रही है।

फिर शीला की बुर ने हल्का सा पानी छोड़ा, जिससे मेरा लण्ड गीला हो गया और लण्ड बुर में अंदर-बाहर करने पर थोड़ा और अंदर गया। अब सिर्फ़ ¼ हिस्सा ही बाहर रहा। और मैं धीरे-धीरे अपनाी कमर चलाकर शीला को दुबारा चोदने लगा। शीला भी अपनी गाण्ड हिला-हिलाकर मजे से चुदवाने लगी। इस बार करीब एक घंटे तक दोनों चोदा-चोदी करते रहे।

ट्रेन एक बार कहीं सिग्नल नहीं मिलने के कारण ऐसी ब्रेक मारा की शीला के चूतड़ों ने पीछे की तरफ हचाक से दवाब डाला जिससे मेरा पूरा लण्ड खचाक से शीला की बुर में पूरा चला गया। शीला के मुँह से भयानक चीख निकलने ही वाली थी की मैं अपने एक हाथ से शीला का मुँह बंद कर दिया और एक हाथ से उसकी दोनों चूची बारी-बारी से मींजने लगा। मैं तो ट्रेन पर उसके साथ ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन ट्रेन के मोशन में ब्रेक लगने के कारण ऐसा हुआ।

शीला धीरे-धीरे सिसक रही थी। मैं अपने लण्ड को स्थिर रखकर पहले शीला की दोनों चूची को कसके मीजा। फिर थोड़ी देर बाद उसे राहत मिली और शीला अब खुद अपनी कमर आगे-पीछे करने लगी। शायद अब उसे दर्द के जगह पर ज्यादा मजा आने लगा था।

मेरा हाथ शीला की बुर पर गया तो मैंने देखा कि उसकी बुर से गरम-गरम तरल पदार्थ गिर रहा है। मैं समझ गया की ये बुर की पानी नहीं बल्कि बुर की झिल्ली फटने से बुर से खून गिर रहा है। मैंने शीला से ये बात नहीं कही, क्योंकी वो घबड़ा जाती। मैंने अपनी पैंट से रूमाल निकलकर उसकी बुर से गिरे सारे खून को अच्छी तरह से पोंछ दिया और शीला को अपनी गाण्ड आगे-पीछे करते देखकर मैं भी घपा-घपप धक्का दे-देकर चोदने लगा।

शीला अब मजे से चुदवाए जा रही थी। जब मैंने 10-15 धक्का आगे-पीछे होकर लाया तो शीला की बुर पानी छोड़ दी। मैं शीला की दोनों संतरे जैसी चूचियां मीज-मीज कर चोदने लगा। करीब 10 मिनट तक बुर में लण्ड अंदर-बाहर करके चोदते हुए मैं भी पानी छोड़ दिया। फिर हमलोग 5 मिनट अपना लण्ड बुर में डाले पड़े रहे। जब मेरा लण्ड सिकुड़ गया तब फिर बुर से बाहर निकालकर फिर अपने रूमाल से बुर और लण्ड पोंछकर साफ करके रूमाल ट्रेन की विंडो से बाहर फेंक दिया।

इस समय सबेरे के 4:35 बज रहे थे। अब हम दोनों भाई-बहन एक दूसरे से खुलकर प्यार करने लगे। शीला भी अब देसीयब्बू की फैन बन गई।



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