तीन फ़ुद्दियों के बीच में –2

मैंने भी देर न करते हुए उसकी टाँगें चौड़ी की उसकी चूत पहले से ही गीली थी। जिसे मैंने साफ़ किया और उसे जीभ से चोदने लगा। उसकी चूत में दो उंगलियाँ भी घुसा दीं और अंदर-बाहर करने लगा।
दो मिनट ही हुए थे, कांता ने कहा- नहीं नहीं अब नहीं रहा जाता मुझसे, प्लीज मुझे भी शांत कर दो।
ललिता का मुँह सा बन गया।
मैंने ललिता से अपना लंड चूसने को कहा, वो भाग कर आई और झपट कर मेरा लंड चूसने लगी। उसे भी ठीक से लंड चूसना नहीं आता था। वो भी आधा ही लंड मुँह में लेकर चूस रही थी।
कुछ देर बाद लंड खड़ा हो गया तो मैंने ललिता को डॉगी स्टाइल में आने को कहा। उसे भी थोड़ा क्रीम लगा कर चिकना किया और उसके चूत के छेद पर लंड रखा और धक्का दिया।
उसको थोड़ा दर्द हुआ क्योंकि वो काफी दिन से नहीं चुदी थी, दो झटके में लंड पूरा अंदर चला गया, मैंने धक्के लगाने चालू किये और कांता को इशारा किया। वो उठ कर ललिता के आगे आ गई और ललिता का मुँह पकड़ कर अपनी चूत पर लगा दिया। ललिता भी उसे चाटने लगी।
मैं पीछे से उसकी चूत पर धक्के लगाता रहा। वो भी सिसकारी लेने के साथ-साथ कांता की चूत चाटने लगी थी। ललिता की चूत को पाँच मिनट चोद कर, उसकी चूत में से लंड को निकाल लिया। फिर कांता डॉगी स्टाइल में आ गई। बिना कहे मैंने उसकी चूत पर लंड को रख कर धक्का सा दिया और आराम से लंड अंदर चला गया।
उसकी पिछाड़ी मोटी थी, जिस पर चपत लगाने में बहुत मजा आ रहा था। उसकी चूत भी बहुत गीली थी। धक्के लगाते टाइम बहुत तेज-तेज आवाजें आ रही थीं। पाँच मिनट उसकी चूत चोदने के बाद मैंने अपना लंड फिर ललिता की चूत में डाल दिया और चोदने लगा।
मैं भी रुक रहा था, जिससे मुझे भी टाइम मिल रहा था। इसी कारण लंड भी जल्दी नहीं झड़ रहा था। कांता बिस्तर पर अपनी चूत खोल कर लेट गई थी। मैंने ललिता की चूत से लंड निकाल कर, अबकी बार उसकी चूत में डाल दिया और तेज-तेज धक्के लगाने लगा। कुछ देर में मुझे लगा मैं आने वाला हूँ, तभी कांता भी झड़ गई।
मैंने कांता से कहा- मैं भी आने वाला हूँ अंदर ही निकल जाऊँ?
कांता ने कहा- नहीं, अंदर नहीं बाहर निकलना।
मैंने जैसे ही लंड निकाला, फव्वारे जैसा छूट हुई और उसकी चूचियों और मुँह को नहला दिया।
ललिता हंसने लगी। कांता ने थोड़ा माल पोंछ कर ललिता के चूचियों पर भी लगा दिया और जो हाथ में बच गया वो चाट गई।
ललिता उदास सी हो गई थी कि उसका कुछ नहीं हुआ।
डॉली भी बाथरूम से बाहर आ गई और आकर मुझे बाहों में भर लिया। बोली- आज मैं बहुत खुश हूँ। आज बहुत मजा आया।
ललिता को देख कर बोली- तुम क्यों उदास हो?
ललिता ने उसे बोला- सबका हो गया और मैं रह गई।
डॉली ने कहा- राज प्लीज आज मेरे जन्मदिन पर एक बात और मान लो।
मैंने कहा- चलो ठीक है, पहले बियर का एक-एक पैग बनाओ। उसके बाद देखता हूँ।
डॉली ने इस बार खुद पैग बनाया और अपने हाथों से पिलाया। इसी बीच ललिता मेरा लंड चूस रही थी।
पैग का नशा और लड़की लंड चूसे। तो लंड की क्या मजाल कि खड़ा न हो। यह देख ललिता ने एक पैग और बना कर अपने हाथ से पिलाया।
लेकिन ज्यादा पीने के बाद मुझे एक बार गांड जरुर चाहिए। मैंने खूब सारी क्रीम ललिता की चूत और गांड पर लगा दी और दो पैग बना कर उसे भी पिलाये ताकि गांड मारूँ, तो ज्यादा दर्द न हो।
उसे लिटा दिया और उसके गांड के छेद पर लंड रखा और एक तेज धक्का दिया और मेरी मेहनत रंग ले आई। आधा लंड उसकी गांड में चला गया था। उसकी भी गांड पूरी फट गई, वो चिल्लाने लगी, रोने लगी।
“निकाल लो दर्द हो रहा है।”
डॉली और कांता भी आ गईं, कहने लगीं- पीछे डालने की क्या जरुरत थी।
मैंने कह दिया- नशे में मालूम ही नहीं चला, अब चला ही गया है तो पूरा डाल लेने दो।
एक और झटका दिया और पूरा लंड ललिता की गांड में था। उसकी चीख सी निकल गई थी।
डॉली ने अपनी आँखे बंद कर ली थीं। ललिता रोने लगी थी। मैं उसके ऊपर पूरा छा गया था और सहलाने में लगा था। उसकी चूचियाँ सहलाईं। जब दर्द कम हुआ तो हल्के-हल्के हिलना शुरू किया।
ललिता को भी अब मज़ा आने लगा था। मैंने थोड़ी सी स्पीड बढ़ाई। वो भी अब उठ गई थी और फिर से डॉगी स्टाइल में आ गई थी। मैंने फिर से आगे हाथ ले जाकर उसकी चूचियाँ पकड़ ली थीं और धक्के लगाने लगा था।
वो अपना हाथ नीचे से ले जाकर चूत मसलने लगी थी। एकदम चोदते-चोदते मैंने उसकी गांड से लंड निकाल लिया और बिना कहे उसकी चूत में लंड डाल दिया। वो भी चिहुँक उठी।
अब मैं तेज-तेज धक्के मारने लगा था। वो भी आवाज निकाल-निकाल कर मजे ले रही थी। चोदते चोदते मुझे पाँच मिनट ही हुए थे कि मुझे लगा कि मैं निकलने वाला हूँ, तो मैं थोड़ा रुक गया और उसे टेढ़ा लिटा दिया। फिर उसकी एक टाँग उठा कर अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया और धक्के लगाने लगा।
डॉली और कांता आराम से बैठ कर हमारी चुदाई देख रही थीं। मैं थोड़ा झुक गया और ललिता की चूचियाँ हाथों में ले ली और मसलने लगा। अपने धक्कों की स्पीड भी तेज कर दी। अब मैं थोड़ा और झुक गया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। मैं उसके होंठ चूस रहा था और हाथों से चूचियाँ दबा रहा था। लंड को आराम-आराम से ललिता की चूत में लंड को डाल और निकाल रहा था।
ललिता भी ‘आअह्ह्ह आअह्ह्ह’ करके आहें भरे जा रही थी।
उसे भी मजा आ रहा था जैसे मैं लंड को बाहर निकालता तो वो गांड उठा कर अंदर लेने को होती। कुछ देर उसे ऐसे ही आराम-आराम से चोदता रहा। कुछ देर बाद उसकी चूचियों को कस कर पकड़ लिया और तेज-तेज धक्के देने लगा।
अब एक हाथ से कस कर एक चूची दबाये जा रहा था और एक हाथ से उसकी एक टाँग पकड़ कर और ऊपर कर दी और तेज स्पीड में उसे चोदने लगा। दो मिनट बाद उसने तड़प-तड़प कर अपना पानी निकाल दिया और अगले ही पल ‘आह आआह्ह ह्ह्ह आआ आआह्ह्ह’ मैंने भी अपना वीर्य उसकी चूत में ही छोड़ दिया। मैं उसके ऊपर ही छा गया।
ललिता कहने लगी- तुम तड़फ़ाते बहुत हो।
तभी तेज बारिश होने लगी और कांता छत पर जाकर नहाने लगी क्योंकि उसकी छत पर कोई आसानी से नहीं देख सकता था। ऊपर से अँधेरा भी था उसके पीछे डॉली भी चली गई।

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तभी तेज बारिश होने लगी और कांता छत पर जाकर नहाने लगीं क्योंकि उसकी छत पर कोई आसानी से नहीं देख सकता था। ऊपर से अँधेरा भी था उसके पीछे डॉली भी चली गई।
अब आगे:
रात के 10.30 हो गए थे, और तेज बारिश होने लगी थी। कुछ देर बाद ललिता भी उनके ही पास छत पर चली गई। तीनों ही नंगी थीं।
डॉली बोली- अब घर पर फोन करके कह देते हैं कि सुबह आयेंगी। हम रात को यही रुक जायेंगी और राज को भी रोक लेते हैं, मजे करेंगी।
ललिता बोली- यार उसने चार बार पहले ही चोद लिया है, अब पता नहीं अबकी बार वो तैयार होगा या नहीं?
डॉली ने कहा- देख लेंगे।
ललिता बोली- क्या बात है मेरी बन्नो, लगता है दर्द कम हो गया है, तभी अपने चोदू को रोक्ने को कह रही हो?
डॉली शरमाते हुए बोली- नहीं इतनी बारिश में वो भी कैसे जा पायेगा?
ये सब बातें मैं ऊपर आते सुन रहा था, तभी मैं भी छत पर आ गया।
मैंने कहा- यार अब मैं कैसे जा पाऊँगा?
वैसे जो नजारा सामने था, उसे देख कर कोई नहीं जाने को नहीं कहेगा लेकिन मैं थक भी गया था।
डॉली कहने लगी- रुक जाओ न रात भर के लिए बस।
मैंने कहा- रुक तो जाऊँ पर एक शर्त है। अगर तुम मेरे साथ एक बार फिर।
उसने कहा- हाँ क्यों नहीं।
मैंने कहा- सिर्फ एक बार ही करूँगा, बहुत थक गया हूँ।
उन्होंने ‘हाँ’ कर दी।
फिर बारिश में तीनों ने आकर मेरा लंड चूसा और खड़ा कर दिया। फिर हमने नीचे आकर अपने-अपने घर फोन करके बताया।
इस बार मैंने कहा- मुझे तुम लड़कियों को देखना है आपस में सैक्स करते हुए।
वो दोनों राज़ी हो गई।
ललिता कांता की गोद में बैठ गई और उसके होंठों पर होंठ रख दिए। फिर एक हाथ कांता की चूचियों पर ले गई और दबाने लगी, कांता भी एक हाथ से उसके बालों को सहला रही थी और दूसरे से उसकी चूचियाँ दबाने में लगी थी।
कुछ देर बाद ललिता कांता की चूचियाँ चूसने लगी और दबाने लगी। कांता उसके बालों को सहला कर मजे ले रही थी। कुछ देर बाद कांता उसकी चूचियाँ चूसने लगी और निप्पल मसलने लगी।
इधर डॉली हम दोनों के लिए बियर के पैग बना रही थीं। कांता ललिता की टाँगों के बीच में बैठ गई और अपना मुँह ललिता के चूत पर लगा दिया। ऐसा लग रहा था कि वो ललिता की चूत खा ही जाएगी।
ललिता की चूत चाटते-चाटते कांता ने एक उंगली भी घुसा दी। ललिता हाथों से कांता का सर दबा रही थीं। मानो कह रही हो कि पूरा सर भी घुसा दो। कांता ने ललिता को दोनों टाँगें उठाने को कहा, उसने भी दोनों टाँगें हवा में उठा ली।
कांता ने एक और उंगली ललिता की चूत में घुसा दी और तेज तेज रफ़्तार में अंदर-बाहर करने लगी। ललिता भी तेज-तेज आवाजें निकालने लगी। कांता ने मौका देख कर दूसरे हाथ की एक उंगली ललिता की गांड में घुसा दी। एक उंगली पूरी आराम से अंदर चली गई।
कांता कहने लगी- अरे राज तुमने तो इसका छेद वाकई बड़ा कर दिया है। देखो तो कितने आराम से अंदर चली गई।
ललिता कहने लगी- अब मजे मत लो जल्दी करो।
कांता ने जल्दी-जल्दी हाथ चलाना शुरू किया और पाँच मिनट के बाद ललिता का पानी निकल गया।
कुछ देर लेटने के बाद कांता बोली- ललिता चल अब मेरा भी पानी निकाल दे।
ललिता बोली- अब मुझ से नहीं होगा।
कांता को गुस्सा आ गया। इतने में मैं उसके पास गया और उसे डॉगी स्टाइल में आने को कहा। वो डॉगी स्टाइल में आ गई। मैंने उसके चूतड़ों पर एक चपत लगाई। उसकी गोलाइयों को पकड़ कर चौड़ा किया, जिससे उसकी चूत साफ़ दिखाई देने लगी।
मैंने उस पर जीभ लगा दिया और जीभ से उसकी चूत चूसने लगा। ये देखने के लिए डॉली भी पास आ गई और ललिता भी उठ कर बैठ गई।
मैं कांता की चूत को जीभ से चोद रहा था। साथ में उसकी गांड में भी दो उंगलियाँ डाल दी, जिस से वो तड़प उठी और आराम-आराम से अंदर-बाहर कर रहा था।
मैंने थोड़ी देर बाद उसे सीधा लिटा दिया और दांतों से उसके चूत के दाने को हल्का सा काटा, और जीभ फेरी। अपनी चुटकी से उसके भगनासे को मसलने लगा।
वो गांड उठा-उठा कर सिसकारी ले रही थी ‘आआह्ह आआआह मर गई ! ओह्ह आअह्ह रोको प्लीज् रोको आअह्ह !’ और चूतड़ जोर-जोर से उठाये जा रही थी।
मैंने उसकी चूत में तीन उंगलियाँ डाल डाल दीं और तेज-तेज अंदर-बाहर करने लगा। एक मिनट में उसने भी अपना पानी छोड़ दिया। ललिता और कांता दोनों कहने लगीं कि हमें नींद आ रही है, हम सोने जा रहे हैं। तुम दोनों आपस में मजे करो।
डॉली ने जो बियर बची थी उसे भी गिलास में डाल लिया और खुद पीया मुझे पिलाया। उसे भी पूरा नशा हो चुका था और मुझे भी था पर इतना नहीं हो रहा था।
मैंने कहा- चलो सीढ़ियों पर चलते हैं। वो जाकर सीढ़ियों में बैठ गई।
मैंने जाकर उसकी टाँगें फैलाईं और चूत चाटने लगा।
वो अपने हाथ से मेरे सर को दबाये जा रही थी।
मैंने खड़े होकर अपना लंड उसके मुँह में दे दिया। वो भी अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को पकड़ कर आगे की ओर खींच रही थी। और पूरा लंड मुँह में लेने की कोशिश कर रही थी, पर पूरा तो नहीं लेकिन पहले से ज्यादा लंड अंदर लेकर चूस रही थी। मैं भी उसका सर पकड़ कर आगे-पीछे कर रहा था, साथ ही कमर भी हिलाए जा रहा था।
कुछ देर बाद मैंने उसे छत पर लाकर दीवार की तरफ उसका मुँह करके खड़ा किया। उसने दीवार पर अपने हाथ रख दिए। मैंने उसकी एक टाँग उठाई और अपना लंड उसकी चूत पर रख कर धक्का दिया। दो धक्कों में ही मेरा लंड उसकी चूत में था। पहले आराम-आराम से लंड को डॉली की चूत में अंदर-बाहर कर रहा था।
बारिश पहले से भी तेज हो रही थी। उसी तेज बारिश में हमारी चुदाई चल रही थी। कुछ मिनट बाद मैंने उसे घुमा कर अपनी तरफ उसका मुँह किया। चूत पर लंड रख कर धक्का दिया। आराम से लंड अंदर चला गया। उसकी एक चूची अपने हाथों में ले ली और दूसरी को मुँह में लेकर चूसने लगा।
वो मेरे कंधे को पकड़े हुए थे उस पर नाखून गड़ा रही थी। मैं थोड़ा रुक गया और अपना लंड उसकी चूत में से निकाल लिया।
वो बोली- क्यों निकाल लिया? प्लीज करो न !
मैं जाकर फिर सीढ़ियों पर बैठ गया। वो भी समझ गई कि लंड पर बैठना है। उसने मेरी तरफ पीठ करके लंड पकड़ा और अपनी चूत पर सैट किया और धीरे-धीरे बैठने लगी। बैठते-बैठते पूरा लंड अपनी चूत में ले लिया और उछल-उछल कर चुदने लगी।
कुछ देर बाद मैंने उसे उठा लिया और गोद में उठा कर बाथरूम में ले गया। उसे शीशे के सामने खड़ा कर दिया। वो नल पकड़ कर खड़ी हो गई। मैंने उसे थोड़ा पीछे करके झुकाया और अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। अब मैं उसे सटासट चोदने लगा।
वो भी हर धक्के पर “आअह अह” करने लगी। कुछ दी धक्कों में उसने अपना पानी छोड़ दिया। अपनी टाँगे मोड़ने लगी। उसकी टाँगे बुरी तरह काँप रही थीं।
कुछ ही देर में वो रोने लगी। मुझे उसके दर्द का एहसास हुआ तो मैंने अपना लंड निकाल लिया। उसे उठा कर जाकर सोफे पर बिठा दिया। मेरा लंड अब भी पूरा खड़ा था।
जब उसका दर्द कम हुआ तो मैंने कहा- मेरा अभी नहीं हुआ।
डॉली सिसिया कर बोली- बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने कहा- अच्छा चलो, मुँह से चूस कर निकाल दो।
उसने ‘हां’ कर दी।
उसने लंड को पकड़ कर मुँह में ले लिया और बीच में निकाल कर कहने लगी- जब निकले तो बता देना। मुँह में ही मत छोड़ देना।
वो पूरी तन्मयता से चूसने लगी। अचानक एकदम से मुझे लगा कि अब गया। मैं क्या कहूँ या करूँ कुछ दिमाग में ही नहीं आया। मैंने झटके से उसके मुँह रोक कर लंड निकाल लिया और जैसे ही लंड निकाला, तो मेरा पानी उसके चेहरे पर गिर गया।
उसने आँखें बंद कर ली थीं।
कुछ माल उसके चेहरे पर गिर गया तो कुछ कंधे पर और थोड़ा चूचियों पर।
वो मुझे घूर कर देखने लगी।
मैंने उसे कपड़े से साफ़ किया तो उसने मुस्कुरा कर मुझे एक जोरदार चुम्मा लिया और कहने लगी- इस बार तो पहले से ज्यादा मजा आया पर तुम तड़फ़ाते बहुत हो।
उसके बाद हम दोनों दूसरे कमरे में चले गए। उससे चला नहीं जा रहा था तो उसे मैं ही उठा कर ले गया। कांता और ललिता भी सो रही थीं। हम भी जाकर सो गए।
पाँच बार ली थी। हालत तो ख़राब होनी ही थी।
सुबह मेरी नींद दस बजे खुली तो वहाँ सिर्फ कांता थी।
काफी थकावट सी लग रही थी।
वो आई और बोली- फ्रेश हो जाओ, मैं तुम्हारे लिए कुछ बनाती हूँ।
मैं फ्रेश होकर, नहा कर आया और कपड़े पहन लिए।
कांता मेरे लिए केले और दूध लाई जिसमें काजू बादाम मिले हुए थे।
कांता बोली- डॉली कह रही थी कि बाद में सबसे ज्यादा मजा दिया।
मैंने भी हामी भर दी।
कांता- दोनों कह रही थीं कि तड़पाया बहुत पर पूरा मजा दे दिया।
मैंने पूछा- और तुम्हें कैसा लगा?
कांता- मुझे कौन सा छोड़ दिया। मुझे भी तो बहुत तड़पाया। एक बात बताऊँ, बुरा तो नहीं मानोगे?
“हाँ बोलो क्या बात है।”
कांता- कल डॉली का कोई जन्मदिन नहीं था। वो बस दोनों तुमसे मिलने के लिए झूठ बोली थीं।
मैंने कहा- पता है मुझे। मैंने कल उसके पर्स में स्कूल का कार्ड देखा था जिसमें उसका जन्म की तारीख लिखी थी।
उसके बाद उसने मुझे गले लगाया और कहा- भूल तो नहीं जाओगे?
मैंने कहा- नहीं और कुछ न सही अच्छे दोस्त तो रहेंगे ही।
फिर उसने मुझे अंदर से एक बड़ा सा तोहफा दिया, जो बंद था। पहले मैं मना कर रहा था, पर उसने दोस्ती की खातिर रखने को बोला तो रख लिया। घर आकर खोला तो उसमें मेरे लिए कपड़े और कुछ और चीजें थीं।
अब हम अच्छे दोस्त हैं, कभी जरुरत होती है, तो वो पूरी कर देते हैं, चाहे कोई सी भी… समझ गए न आप कौन सी जरुरत?? हा हा हा।
तो बताइए कैसी लगी आपको मेरी यह कहानी?

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