सुषमा ने अपने आप को राज के हवाले किया

हालांकि मैं कोई नृत्य का निष्णात तो नहीं हूँ, पर उस शाम वह नजाकत और संजीदगी से सुषमाजी ने जो नृत्य किया शायद उसे देख कर बड़े बड़े उस्ताद भी उनके नृत्य का लोहा मान जाएंगे। जहां तक मेरा सवाल था तो मैं नृत्य के अलावा नाचते हुए सुषमाजी की स्कर्ट के ऊपर उठ जाने पर थिरकती हुई नंगी जाँघें और बड़े ही मादक तरीके से झूमते और कूदते हुए स्तन मंडल को देख कर पागल हो रहा था।

शराब के दो गिलास चढाने के बाद और नाच की थकान से कुछ देर बाद सुषमाजी के पाँव डगमगाने लगे। मैं देख रहा था की वह पसीने से तरबतर हो रहीं थीं। सुषमाजी के पाँव इधर उधर जा रहे थे। अचानक ही जैसे वह लड़खड़ा कर गिरने लगी तो मैंने उन्हें पकड़ तो लिया पर मैं भी लुढ़का और मैं और सुषमाजी दोनों बिस्तर पर जा गिरे। सुषमाजी निचे और मैं उनके ऊपर।

उधर साउंड सिस्टम पर संगीत की धुन ख़त्म हो चुकी थी। कमरे में मेरे और सुषमाजी की तेज चल रही साँसों के अलावा पूरा सन्नाटा छाया हुआ था। या तो शराब के नशे में या थकान की वजह से सुषमाजी गिर कर बेहोश सी मेरे निचे दबी हुई कुछ देर सोती रहीं। सुषमाजी का स्कर्ट उनकी जाँघों के ऊपर चढ़ कर उनकी करारी नंगी उन्मादक जाँघों के दर्शन करा रहा था।

स्कर्ट के अंदर सुषमाजी एक छोटी सी पैंटी पहने हुए थीं। मैं अपनी लोलुप नज़रों से उस पैंटी के पीछे छिपी हुई सुषमाजी की चूत को अपनी काल्पनिक नज़रों से देख रहा था। दृश्य इतना मादक था की मैं बड़ी मुश्किल से मेरे हाथ सुषमाजी की पैंटी में डालकर उनकी प्यारी सी शायद गीली हुई चूत की पंखुड़ियों को सहलाने से रोके हुए था। मेरा एक सिद्धांत था की नशे में धुत बेहोश महिला से कभी कोई हरकत नहीं करनी चाहिए। मेरी नज़रों मैं ऐसा करना उस महिला का बलात्कार करने जैसा होता है।

मैं कुछ देर तक सुषमाजी को बाँहों में लिए हुए उनके ऊपर उनको होश में आने का इंतजार करते हुए बिस्तरे पर आँखें मूंद कर लेटा रहा। अचानक मैंने तब अपनी आँखें खोलीं जब मेरे कानों में सुषमाजी की मीठी आवाज पड़ी।

उन्होंने कुछ उलाहना देते हुए कटाक्ष भरे स्वर में कहा, “एक मेरे जैसी स्कर्ट और उसके अंदर एक छोटी सी पैंटी पहनी हुई युवती को जिसे तुम कई बार खूबसूरत कह चुके हो, अपनी बाँहों में भर कर अपने निचे मैथुन करने की मुद्रा में लिटाए हुए हो और काफी समय से कुछ भी नहीं कर रहे हो। यह क्या बात है? कहीं तुम्हारी मर्दानगी पर शक करने की नौबत तो नहीं आ गयी?”

सुषमाजी की बात सुनकर मुझे एक अजीब सा झटका लगा। मेरी सज्जनता और शालीनता को यह औरत नामर्दगी कह रही थी?

मैं सुषमाजी को बेहोशी के हालात में कुछ करना नहीं चाहता था। पर यहां तो उसका कुछ गलत ही मतलब निकाला जा रहा था। मैंने फ़ौरन बिना समय गँवाए, सुषमाजी के स्कर्ट के निचे अपना हाथ डालकर सुषमाजी की छोटी सी पैंटी को निचे की और खिसका कर उनकी चूत की पंखुड़ियों के बिच में अपनी दो उँगलियों को डालकर उनकी चूत को अपनी उँगलियों से चोदना शुरू किया।

मैंने तब महसूस किया की सुषमाजी की चूत ना सिर्फ गीली हो चुकी थी बल्कि उनकी चूत में से उस समय जैसे उनके स्त्री रस की बुँदे थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं जो सुषमाजी की चुदासी हालात को बयाँ कर रही थी। शायद पहले से ही सुषमाजी ने तय कर लिया था की वह उस रात मुझसे चुदेगी।

मैंने कहा, “मोहतरमा, किसी मर्द की सज्जनता और भद्रता को नामर्दानगी कहना आप जैसी सभ्य महिला को जंचता नहीं। जब आप नशे में करीब बेहोशी के हालात में थीं तब मैं आपसे कोई ऐसा कर्म नहीं करना चाहता था जिसे गलती से भी बलात्कार या जबरदस्ती की संज्ञा दी जा सके। जहां तक मर्दानगी का सवाल है तो मैं सेठी साहब के मुकाबले कितना सही उतरूंगा यह तो कह नहीं सकता पर इतना तो जरूर कह सकता हूँ की मैं आपकी इस रंगीन शाम को और रंगीन बनाने की पूरी कोशिश करूँगा। मैं कितना सफल होता हूँ वह आप मुझे बताएंगी।”

मैंने कुछ गुस्से और कुछ प्यार भरे लहजे में जब यह कहा तब सुषमाजी ने मुस्कुराते हुए अपनी पैंटी, जो उनके घुटनों के ऊपर तक खिसका दी गयी थी उसे पाँव ऊपर निचे कर निकाल फेंका। फिर मुझे अपने ऊपर खींचतीं हुई बोलीं, “अरे यार अगर मुझे बलात्कार जैसा लगता तो क्या मैं तुम्हारे निचे इस मुद्रा में इतने काफी समय से लेटी हुई थोड़ी होती?”

मैंने सुषमाजी की चूत को अपनी उँगलियों से और फुर्ती से चोदते हुए कहा, “सुषमाजी, मैं ही जानता हूँ की इस शाम का कई महीनों से मैं कितनी बेसब्री से इन्तेजार कर रहा था। आपके लिए ना सही पर मैं अपने लिए तो यह कह ही सकता हूँ। अब कहीं आज जा कर मुझे सही मौक़ा मिला है।”

सुषमाजी ने कुछ कटाक्ष भरे स्वर में कहा, “पता नहीं। हालांकि तुम मुझे लाइन तो मार रहे थे पर आगे बढ़ने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। मुझे आखिर में यह लगने लगा था की शायद तुम्हें मुझमें कोई इंटरेस्ट नहीं है। तुमने मेरे करीब आने के लिए कोई भी ठोस कदम ही नहीं उठाये जब की तुम्हारे दोस्त ने तो तुम्हारी बीबी को सातवें आसमान की सैर भी करा दी”

मैंने सुषमाजी को खिंच कर थोड़ा बिठा कर उनके ब्लाउज के बटन को खोलते हुए कहा, “सुषमाजी, देर से ही सही पर दुरस्त तो आया हूँ ना?”

सुषमाजी ने अपनी उँगलियों को मेरे होँठ पर रख कर कहा, “अब बोलना बंद, काम चालु।”

मुझे कहाँ कोई समय गँवाना था? मैंने सुषमाजी के ब्लाउज और ब्रा को हटा कर उनको पहली बार साक्षात नग्न रूप में देखा। कामदेव की रति के समान सुषमाजी बिस्तर पर मेरी बाँहों में अपने दोनों स्तनोँ की सीधी सख्ती से खड़ी हुई निप्पलों को मेरे होंठों से लगाते हुए मेरी और देख कर मुस्करायीं।

सुषमाजी के स्तनोँ को एक के बाद मुंह में रख कर उनकी निप्पलों को चूसने का आनंद पाने की मेरी कामना कई महीनों की तपस्या के बाद पूरी हो रही थी। मैंने सुषमाजी की जाँघों के बिच स्थित उनकी गुलाबी चूत को देखा। मैंने कई स्त्रियों के गुप्तांग देखे थे पर सुषमाजी की चूत इतनी गुलाबी और सुकोमल सी दिख रही थी जैसे कोई दक्ष चित्रकार ने अपनी उच्चतम कल्पना से उनका चित्रण किया हो।

सुषमाजी की जाँघे ऐसी अद्भुत सुआकार और कमल की कोमल डंडी के समान निचे से ऊपर की और सुंदरता से सहज सी उभरती हुई थीं की देखने वाला देखता ही रह जाए। उभरती हुई जाँघें जहां जाकर एक दूसरे से मिल जातीं थीं वहाँ आगे और पीछे से तंत्र वाद्य गिटार जैसा बदन का मादक उभार अच्छे अच्छे मर्दों की मर्दानगी के धैर्य को जबरदस्त चुनौती देने वाला था। चूत को छिपाए हुए आगे का अग्रभाग और कूल्हों में परिवर्तित पीछे का उभार ऐसा सुआकार, रोमांचक और कामुक था की अगर उसे कोई नामर्द भी देखले तो उसका लण्ड भी खड़ा हो जाए।

मैंने सुषमाजी की नाभि के ऊपर कमर को सहलाते हुए कहा, “सुषमाजी आप भगवान की एक अद्भुत कलाकृति समान हो। मैंने आपके नग्न रूप की आजतक मात्र कल्पना ही की थी। आज मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं हो रही की नग्न रूप में आपका बदन मेरी कल्पना से भी कहीं ज्यादा आकर्षक और मादक है।”

सुषमाजी ने मेरी आँखों में आँखें मिलाकर मंद मुस्कुराते हुए कहा, “राजजी, मैं आपकी भोग्या प्रियतमा हूँ। मैं नहीं चाहती की आप मुझे सुषमाजी कह कर बुलाएं। भगवान ने हर स्त्री में इतनी कामुकता कूट कूट कर भरी है की अगर स्त्रियों पर मान मर्यादा और स्त्री सहज लज्जा का जबरदस्त घना पर्दा ना हो तो स्त्रियां चुदाई में इतनी बेबाक हो जाएँ की उनको सम्हालना भी मुश्किल हो जाए। स्त्रियों के मन में उसके साथ साथ एक और स्त्री सहज कामना होती है की जब स्त्री और पुरुष सम्भोग करते हैं उस समय पुरुष अपनी स्त्री को सम्मान पूर्वक पर साथ ही में आक्रामकता और उग्रता से सम्भोग करे माने चोदे। आपका मुझे सुषमाजी कहना मुझे इस समय नहीं जँच रहा। आप मुझे सुषमा कह कर ही बुलाएं और मुझे अब बेरहमी से खूब तगड़ा चोदें।“

मैं बिना बोले सुषमाजी को ताकता ही रहा। सुषमाजी उस समय अपने मन की बात को बयाँ कर रही थी और एक कामातुर स्त्री के मन के भाव को दर्शा रही थी।

सुषमाजी ने अपने मन की बात को जारी रखते हुए कहा, “आज आप इस समय सारे सम्मान को छोड़ मुझे अपनी रखैल, रंडी या छिनाल समझ कर मुझसे अपना प्यार जतायें। इससे मेरी स्त्री सुलभ कामनाओं की पूर्ति होगी। आपका लण्ड मेरी चूत को अपनी ही मालकियत समझ कर उसी अच्छी तरह रगड़े जिससे मुझे लगे की मैं आपकी निजी संपत्ति हूँ। आप मेरा अपनी मन मर्जी के अनुसार भोग करो और अपनी मन मर्जी के अनुसार मुझे चोदो।“

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