Patni Ke Aadesh Par Sasu Maa Ko Di Yaun Santushti-1

मैंने उन्हें पकड़ कर बैड पर बिठाया और रूचि ने पानी ला कर पिलाया तब कहीं उन्होंने रोना बंद किया और हमारी ओर देख कर हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करने लगी।

रूचि जब सासू माँ से कुछ पूछने ही वाली थी तब मैंने उसे समझाया कि इस बारे में दिन में वह बात कर ले और सासू माँ को उठा कर उनके बिस्तर पर लिटाया और सोने को कहा।
लगभग आधे घंटे के बाद जब सासू माँ सो गई तब हम दोनों अपने कमरे में जा कर एक दूसरे की बाहों में लिपट कर निद्रा के आगोश में सो गए।

अगली सुबह हम दोनों की नींद कुछ देर से खुली इसलिए दोनों में से किसी ने भी सासू माँ से कोई बात नहीं करी।

मैंने रूचि को शाम को जल्दी घर आ कर सासू माँ से बात करने के लिए कह कर अपने काम पर चला गया और रूचि भी घर का काम समेट कर बुटिक खुलने के समय चली गई।

शाम को जब मैं देर से घर लौटा तो रूचि और सासु माँ को सामान्य पाया तथा उन्हें हँसते हुए बातें एवं काम करते देख कर मुझे थोड़ी राहत मिली।
मैं समझ गया कि रूचि ने सासू माँ से बात कर ली होगी इसलिए घर में स्थिति सामान्य हो चुकी है।

कुछ देर के बाद मैंने जब रूचि को खींच कर अकेले में लेजा कर पूछा तब उसने कहा– अभी बहुत काम पड़ा है और रात के लिए खाना भी बनाना बाकी है। मैंने माँ से बात करी थी और उसके बारे में मैं आपको रात को बताऊँगी।

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रात को जब हम सोने लगे तब मैंने सासू माँ के व्यवहार के बारे में रूचि से पूछा तो उसने जो भी कुछ बताया उसे सुन कर मेरे पाँव तले की ज़मीन निकल गई।
रूचि ने जो भी बातें बताई वह कुछ इस प्रकार थी :

1. सासू माँ यौन सम्बन्ध के मामले में ससुरजी से संतुष्ट नहीं थी और पिछली बार जब वह हमारे यहाँ आई थी तब उन्होंने मुझे और रूचि को सम्भोग करते हुए देख लिया था।

2. सासू माँ को मेरा सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लिंग बहुत सुन्दर एवं शक्तिशाली लगा तथा हमारे सम्भोग करने की विधि भी बहुत पसंद आई थी।

3. उस दिन सासू माँ ने ससुर जी को भी मुझे और रूचि को उस विधि से सम्भोग करते हुए दिखाया था तथा अपने घर वापिस जा कर ससुर जी को उसी विधि से सम्भोग करने के लिए कहा था।

4. क्योंकि ससुर जी उस विधि से सम्भोग नहीं कर सके इसलिए सासू माँ उनसे नाराज़ हो कर हमारे पास आ गई थी।

5. रूचि ने यह भी बताया कि पिछले डेढ़ माह से हमें रोजाना सम्भोग करते हुए देख कर सासू माँ की लालसा इतनी बढ़ गई है कि उन्हें सही और गलत के बीच का अन्तर भी पता नहीं चल रहा था।

6. उस बढ़ी हुई लालसा के कारण वह पागलों की तरह एक ही बात दोहराने लगती थीं कि राघव बेटे से कहो कि वह मेरे साथ भी रोजाना सम्भोग किया करे।

जब मैंने रूचि से उसके विचार पूछे तो उसने सासू माँ की इच्छा पर एतराज़ जताया और कहा– मैं अपनी माँ को अपनी सौतन कैसे बना लूँ? जो वस्तु मेरे व्यक्तिगत प्रयोग के लिए है वह मैं किसी और के साथ कैसे साझा कर सकती हूँ?

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रूचि की बात मुझे बहुत ही तर्क-संगत लगी लेकिन सासू माँ की दयनीय स्तिथि देख कर मुझे उनके साथ सहानुभूति भी थी!
इस विषय के हल के बारे में सोचते सोचते हमे नींद आ गई और सुबह आठ बजे खुली तब मैं जल्दी से उठ कर तैयार हो कर ऑफिस चला गया।

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