दोस्तो, कैसे हैं आप सब लोग, उम्मीद है कि आप सब लोग भी काफी उम्मीदों से हैं, उम्मीद पर बने रहिए, कभी न कभी आप की उम्मीद जरूर पूरी होगी.
मेरी पिछली कहानी
मेरी स्टूडेंट ने मुझे दुनिया दिखाई
को आपने बहुत प्यार दिया, उसके लिए आप सभी का शुक्रिया!
साथ में एक शिकायत भी, शिकायत यह कि कुछ भाइयों ने मुझे किसी लड़की का नंबर देने या किसी लड़की से दोस्ती कराने को कहा। उन सभी से मेरा निवेदन है कि लड़की के व्यक्तित्व का सम्मान कीजिये; उनकी स्वच्छंदता का सम्मान कीजिये। ऐसे ही बिना जान पहचान और बिना आपसी सम्मान के कोई भी लड़की किसी लड़के से दोस्ती नहीं कर सकती और ना ही मैं ऐसा करवा सकता।
आज मैं आपके सामने अपनी दूसरी कहानी पेश कर रहा हूँ, मेरी कहानी की नायिका वही है, नायक मैं हूँ, बदला है तो बस समय और स्थान! मेरी कहानी में आपको सेक्स शायद ना मिले लेकिन प्यार और रुमानियत का एहसास मिले ऐसी मेरी कोशिश रहेगी.
मैं और सोनू एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके थे, हम कई बार एक दूसरे की प्यास बुझा चुके थे, लेकिन प्यास थी कि बुझने की बजाय भड़कती ही जा रही थी।
धीरे धीरे ऐसे ही समय चलता रहा, फिर समय आया सर्दियों का; सर्दियों के समय में मैं क्लास वगैरा से जल्दी फ्री हो जाता था तो शाम को मैं घूमने चला जाता था।
हमारे शहर हिसार में एक यूनिवर्सिटी हैं, हिसार कृषि विश्वविद्यालय… वहां शाम को आस पास के काफी लोग घूमने आते हैं। सभी उम्र और तमाम लहजे के लोग वहां शाम को तफरीह करते हैं। सर्दियों मैंने भी जाना शुरू किया.
नवंबर की मीठी मीठी सर्दियां चल रही थी, मैं कान में इयर प्लग लगाए अपनी ही धुन में चला जा रहा था। राह में चलते चलते लड़कियों को ताड़ना मेरी आदत में कभी भी नहीं रहा। मैं बस अपने ख्यालों में खोया चार नंबर गेट से बेसिक साइंस कॉलेज की तरफ जा रहा था।
तभी दो लड़कियां मेरे पीछे से जॉगिंग करती हुई आगे निकली, उनके सर पर हुडी थी। उनमें से एक को पीछे से देख कर मुझे लगा कि मैं इसे पहचानता हूँ। खैर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। थोड़ा आगे चलने पर वही दो लड़कियां वापस आ रही थी। उनमें से एक सोनू थी और दूसरी उसकी सहेली। सहेली का नाम शालू रख देते हैं।
शालू के पापा हिसार कृषि विश्वविद्यालय में ही जॉब करते थे और उन्हें हिसार कृषि विश्वविद्यालय में ही क्वार्टर मिला हुआ था। शालू मुझे जानती थी तो वो मुझे अपने घर चलने की जिद करने लगी। उसके काफी जिद करने पर मुझे उसके घर जाना पड़ा।
कुछ दिन बाद ही शालू की बड़ी बहन की शादी थी तो शालू मुझे शादी में आने के लिए भी इन्विटेशन कार्ड देने लगी।
मैंने कहा- कार्ड तो आपको मेरे घर आ कर देना चाहिए।
मैं टालना चाहता था.
लेकिन अगले दिन शालू सोनू के साथ सच में कार्ड लेकर मेरे आफिस में आ गई। अब तो जाने के अलावा कोई चारा नहीं था।
फिर कुछ दिन सोनू उनके यहां शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गई और हमारा मिलना जुलना भी थोड़ा कम से हो गया था।
शादी वाले दिन सोनू का मैसेज आया और उसने मुझे याद दिलाया शादी में आने के लिए; वो मुझे भूल कक्कड़ समझती थी।
मैंने कहा- मैं आ तो जाऊंगा लेकिन मैं वहां किसी को जानता ही नहीं तो मैं तो बोर हो जाऊंगा।
सोनू ने कहा- आप आओ तो सही; आगे की जिम्मेदारी मेरी और शालू की है।
खैर मैं रात करीब 8 बजे शादी में पहुँचा। मेरा ख्याल था कि बारात के आने पर वापस आ जाऊंगा। उस दिन ठंड भी थी और कोहरा भी घना छाया हुआ था। मैं भी काम्पते कांपते पहुँचा। शादी का प्रोग्राम विश्वविद्यालय में ही था। एक बड़े से मैदान में टेंट लगा हुआ था और काफी अच्छा माहौल बना हुआ था।
सबसे पहले तो मैंने जाकर सोनू को मैसेज किया कि मैं आ गया हूँ. सोनू का करीब 10 मिनट बाद रिप्लाई आया कि मैं आ रही हूँ, तब तक आप हल्का फुल्का कुछ खाने में लो।
मैंने सोचा ‘मुझे यहां कौन जानता है’ तो मैंने सर्दी मिटाने के लिए एक पेग व्हिस्की का लगा लिया। थोड़ा सुकून मिला ठंड से!
गिलास रख के जैसे ही मैं मुड़ा, मुझे सोनू आती दिखाई दी। मैं एक तरफ आ के खड़ा हो गया। हालांकि सोनू को पता था कि मैं कभी कभार ड्रिंक कर लेता हूँ और उस दिन के बारे में भी मैंने सोनू को बता दिया था।
सोनू ने मुझे देख लिया, उसके साथ शालू भी थी, दोनों ने मुझसे हाथ मिलाया। शालू मुझे आंख मार कर बोली- आपने तो सर्दी का जुगाड़ कर ही लिया।
मैंने थोड़ा शायराना अंदाज में कहा- अभी तो गला भी गीला नहीं हुआ साकी, आज हम पियेंगे तारों के चले जाने तक…
सोनू और शालू वाह वाह कहते हुए हंसने लगी।
मैंने कहा- अगर आप कहें तो एक एक पेग आप के लिए भी हाज़िर करवाते हैं।
शालू बोली- अभी नहीं, थोड़ी देर में। अभी हमारे काफी काम बाकी है।
तभी सोनू के पापा मम्मी और बड़ी बहन सामने अब आते दिखे।
सोनू ने मुझे उनसे मिलवाया और परिचय करवाया। परिचय के बाद वो सब खाना खाने में लग गए।
एक बात तो मैं बताना भूल ही गया सोनू और शालू दोनों सहेलियां बला की खूबसूरत लग रही थी। सोनू ने सुनहरा और शालू ने मैरून रंग का लहंगा पहना हुआ था। इतनी सर्दी में भी वो आराम से मैनेज कर रही थी।
मैंने पूछा- तुम्हें सर्दी नहीं लग रही क्या?
शालू ने आंखें बनाते हुए जवाब दिया- आशु जी, ये अंदर की गर्मी है। बाहर की सर्दी इसके आगे कुछ नहीं।
सोनू हंसने लगी, बोली- एक ही मुलाकात में रंग चढ़ गया इसपे आप का!
मैंने कहा- रंग चढ़े तो ऐसा चढ़े, उतरे न चाहे सौ मन साबुन धोए!
मेरी हाजिर जवाब शायरी पर दोनों हैरान रह गई। और सच बताऊं हैरान मैं भी रह गया कि ये कैसे हुआ।
हम बात कर ही रहे थे कि उन्हें अंदर से बुलावा आया गया, सोनू ने कहा कि जब तक वो ना कहे मुझे वहां से जाना नहीं।
मैंने कहा- तुम तो अंदर जाकर व्यस्त हो जाओगी और मैं यहां बोर होता रहूंगा।
सोनू ने कहा- बस 20 मिनट तक बारात आ जायेगी, फिर मुझे कोई काम नहीं है और फिर मैं आपके साथ रहूंगी।
मैंने कहा- तुम अकेले मेरे साथ रहोगी तो सब फालतू की बकवास नहीं बनाएंगे तुम्हारे बारे में।
सोनू ने मुझे आंख मार के कहा- आज आप सब कुछ मुझ पे छोड़ दो, जो करना है, मैं करूंगी।
मैंने कहा- अच्छा जी, आज तो जनाब बड़े मेहरबान नजर आ रहे हैं।
वो हंसते हुए चली गई।
मैंने सोचा कि चलो हल्का फुल्का नाश्ता लिया जाए, तभी वहां एक जानकार मिल गए। उनसे थोड़ी देर गुफ्तगू हुई इतने में पता चला कि बारात आ गई थी।
तो वो जानकार भी चले गए।
मैंने अपना नाश्ता लिया और एक तरफ कुर्सी पर बैठ कर अपना फेसबुक एकाउंट देखने लगा।
थोड़ी देर में सोनू मेरे पास आ गई और बोली- कहिए जनाब, क्या सेवा की जाए आप की?
मैंने कहा- आज तो जो करना है आप ही ने करना हैं। न हम कुछ कहेंगे, न कुछ करेंगे!
तभी शालू भागती हुई आई और बोली- आशु जी, अब लाओ जल्दी से दो पेग। अब वापस अंदर नहीं जाना!
मैंने कहा- रिबन कटाई नहीं करवानी क्या?
वो बोली- काम सारे होंगे, पहले थोड़ा वार्म अप तो कर लें।
मैंने वेटर से तीन पेग टेंट के बाहर की तरफ लाने को कहा। हम तीनों ने एक एक पेग लगाया। शालू एक सांस में पी गई और टेंट के अंदर चली गई। जाते जाते उसने सोनू से कहा- एन्जॉय योरसेल्फ..
और मुझे कहा बेस्ट ऑफ लक..
मुझे कुछ समझ आ रहा था कुछ नहीं… सोनू मुझे नशीली आंखों से देख रही थी। उसने मुझे एक तरफ इशारा करते हुए कहा- वहां पर एक बड़ा सा खाली मैदान है और मैदान में एक बेंच रखा है आप वहां जा के बैठो, मैं दो मिनट बाद पीछे आती हूँ।
मैं अपने मोबाइल की हल्की हल्की रोशनी में वहां पहुंचा। वहां पर एक बेंच था लेकिन वो ओस में भीगा हुआ था। मैं एक तरफ खड़ा हो गया। व्हिस्की हल्का हल्का असर दिखाने लगी थी। पीछे से डी जे पर गाने बज रहे थे।
दो मिनट बाद सोनू भी आ गई, उसने एक शाल अपने ऊपर डाला हुआ था।
उसके आते ही मैंने उसे जोर से हग कर लिया, मैंने कहा- तुम इतनी कयामत लग रही हो, आज तो पंडाल में ही तुम्हें चूमने का मन कर रहा था। बड़ी मुश्किल से काबू किया और ऊपर से आपकी सहेली मजे ले रही थी।
सोनू बोली- चलो थोड़ा टहलते हैं.
और हम टहलते टहलते थोड़ा दूर एक सुनसान सी जगह पर आ गए। अब न तो डी जे का शोर हमें तंग कर रहा था और ना पंडाल की रोशनी का कोई डर!
मैंने सोनू को जोर से आलिंगन में भर लिया और कई देर तक हम यूं ही खड़े रहे। एक दूसरे को अपनी गर्मी से सुकून देते रहे। हमें न ठंड लग रही थी और न काली रात का डर..
मैंने सोनू को पूछा- वहां सब आपका इंतजार नहीं कर रहे होंगे क्या?
सोनू ने कहा- वो सब शालू संभाल लेगी और मैं ये वक़्त सिर्फ आप के साथ बिताना चाहती हूं। शालू को सब पता है और उसने सारी सेटिंग कर दी है।
आसमान में चांद की हल्की हल्की रोशनी थी,
और नीचे सोनू की आंखों में
उस की आंखों में एक दर्द भी था
एक ऐसा दर्द जो इंसान को जीने के काबिल नहीं रहने देता लेकिन मरने भी नहीं देता..
मैंने सोनू से कहा- सोनू जो बीत गया उसे पीछे छोड़ दो। जाने वाले को कोई रोक नहीं सकता।
“जावे सो मेरा नहीं, मेरा सो जावे नहीं..”
और इतना कह कर मैंने फिर से सोनू को गले से लगा लिया। मैंने उस से कहा- मैं तुम से कोई झूठा वादा नहीं करूंगा, लेकिन इतना जरूर कहूंगा तुम से प्यार हो गया है मुझे। हम इस रिश्ते को कोई दुनियावी नाम नहीं दे सकते। लेकिन मेरी रूह जानती है कि तुम मेरे लिए क्या मायने रखती हो।”
सोनू फुट फुट के रोने लगी। उस की आंखों से आंसू ऐसे बह रहे थे जैसे किसी ने कोई बांध खोल दिए हो। मैंने उसे रोने दिया। मैं उस के मन का गुबार निकल जाने देना चाहता था ताकि वो अपनी जिंदगी में वापस आये जहां वो जिंदादिल हुआ करती थी।
कुछ देर सिसकने के बाद सोनू ने मुझे कस के अपने से बांध लिया जैसे वो मेरे अंदर समा जाना चाहती हो। कसम से उस वक़्त मेरे दिमाग में सेक्स या वासना जैसी कोई बात नहीं थी। बात थी तो बस एक कि सोनू के साथ जो हुआ ऐसा किसी के साथ न हो। मुझे ऐसा लगा जैसे वो सो गई हो। मुझे खुशी तो हो रही थी कि उसके सुकून की वजह मैं बना हूँ, लेकिन रात के अँधेरे में सुनसान जगह पर लड़की के साथ होने का डर भी लग रहा था।
मैंने उसे कहा- सोनू मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।
उसने कहा- नहीं मुझे कहीं नहीं जाना। मुझे आपके साथ रहना है।
जैसे ही मैं कुछ और बोलने लगा, उसने मेरे होंठ अपने होंठों से सिल दिए और टूट कर मुझे किस करने लगी। मेरे होंठ और जुबान भी अब मेरे हाथ से बाहर हो चुके थे। उन्होंने मेरे से बगावत कर दी और सोनू के होंठों और जुबान का साथ देने लगे। मेरे हाथ उसकी कमर पर चल रहे थे।
मैंने उसका शॉल उतार कर हम दोनों के ऊपर ले लिया। हम पागलों की तरह एक दूसरे को किस कर रहे थे।
दिल के किसी कोने से आवाज आ रही थी कि कुछ भी हो जाये, आज की रात इस लड़की का साथ नहीं छोड़ना है, आज अगर ये टूटी तो कभी संभाल नहीं पाएगी खुद को!
मैंने कहा- खो जाओ मुझ में और मुझे खुद में खो जाने दो, आग लगे दुनिया में या कयामत आये, होता है जो हो जाने दो!
सोनू ने मेरी जैकेट और शर्ट के बटन खोल दिये और मेरी छाती पर चूमने लगी। मैं उसके बालों में हाथ फिरा रहा था। छाती पर चूमते चूमते वो नीचे जाती जा रही थी। मैं पेड़ का सहारा लिए खड़ा था।
रात का अंधेरा और कोहरा दोनों बढ़ते जा रहे थे,
साथ में बढ़ रहा था हमारे प्यार का तूफान भी,
सोनू ने नीचे जाकर मेरी बेल्ट और पैन्ट दोनों खोल दिये। मैं आम तौर पर जीन्स नहीं पहनता था लेकिन उस दिन जीन्स और स्पोर्ट्स शूज डालना मेरे लिए फायदेमंद हो गया था।
सोनू ने मेरे अंडरवियर में हाथ डाल कर पप्पू बाहर निकाल लिया और उसे बड़े ही प्यार से बच्चे की तरह देखने लगी।
मैंने उससे पूछा- क्या हुआ, क्या देख रही हो?
उसने एक नजर उठा कर मुझे देखा और पप्पू को एक प्यार से किस करने लगी, उसने पहले एक किस सुपारे पर की और धीरे से सुपारे को मुंह में भर लिया, अंदर ही अंदर सुपारे पर जीभ चलाने लगी।
मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है मेरे साथ। दुनिया में ऐसा भी मजा कभी मिलता है मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
धीरे धीरे सोनू ने पप्पू को पूरा निगल लिया और एक हाथ से गोटियों को सहलाने लगी। वो अपनी जीभ और होंठों से ऐसा जादू कर रही थी कि एक पल तो लगता कि बस अभी छूटा और दूसरे ही पल सुकून से मिल जाता। कभी कुल्फी के जैसे चूसती तो कभी आम के जैसे। मुझे नहीं पता कितनी देर उसने ऐसा किया लेकिन जितनी देर भी किया वो वक़्त मेरे होश में नहीं था।
कुछ देर बाद ऐसा लगा मुझे जैसे मेरे जिस्म का सारा खून निचुड़ कर पप्पू में आ गया हो और मेरा पानी छूट गया।
सोनू ने पप्पू को बाहर नहीं निकाला और एक बूंद बाहर नहीं गिरने दी, सारा का सारा पी गई। पप्पू उसके थूक और मेरे पानी से तर हुआ पड़ा था। उसने चाट चाट के साफ कर दिया उसे अंडरवियर में ऐसे रख दिया जैसे किसी छोटे बच्चे को पालने में सुलाते हैं।
वो फिर से खड़ी होकर मेरे गले लग कर मुझे जोर से खुद से बांधने लगी। मुझे ऐसे लग रहा था कि शराब और दर्द का नशा मिल कर किसी इंसान को कलाकार भी बना सकते हैं और गुनाहगार भी!
अब बारी मेरी थी, मैंने सोनू के होंठो को चूमना शुरू किया और वो मेरा साथ देने लगी। वो मेरे बालों में हाथ फिरा रही थी और मैं उसकी कमर में। मैं उसके बूब्स को चोली के ऊपर से ही जोर जोर से मसलना चाह रहा था लेकिन उस पर जरी का काम होने की वजह से नहीं कर पा रहा था।
मैंने उसकी चोली की डोरी खोल दी और साथ ही उसकी ब्रा भी। उसके आमों ने उछल कर आज़ादी का एलान कर दिया। मैंने भी देर ना करके उसकी चोली में हाथ डाल कर एक को वापस अपने हाथ की कैद में ले लिया।
फिर मैंने उसकी ब्रा और चोली को ऊपर किया और एक एक कर के दोनों आमों का खूब रस चूसा। इतने सॉफ्ट और मीठे तो मैंने कभी सच वाले आम भी नहीं चूसे। कुछ देर आमों का रस निकालने के बाद मैं उसके नीचे के मैदान पर आया। उसने नाभि में एक बाली लगाई हुई थी। मैंने उस नाभि के चारों तरफ के पूरे मैदान का चप्पा चप्पा चाट मारा।
वो सिसकारियां ले रही थी और रह रह के बोल रही थी- आशु, मुझे बहुत सुकून मिल रहा हैं। कुछ भी छोड़ना मत! खा जाओ मुझे चाहे लेकिन मेरे अंदर से ये दर्द निकाल दो।
मेरा मन तो कर रहा था कि उस का लहंगा निकाल दूं लेकिन ठंड और रात की वजह से मैंने लहंगा निकालना सही नहीं समझा। मैं उस लहंगे के नीचे से अंदर घुस गया। उसने लहंगा थोड़ा ऊपर उठा लिया।
उसकी पेंटी गीली हो चुकी थी, मैंने पेंटी के ऊपर से ही पिंकी को सहलाया। पिंकी ने भी मुझे प्यार से बुलाया। मैंने उसकी पेंटी उतार दी तो पिंकी ने होंठ खोल कर मेरा स्वागत किया। मैंने अपने होंठ पिंकी के होंठों पर रख दिये। सोनू ने जोर से सिसकारी ली। हम बेफिक्र थे … दूर दूर तक हमे सुनने वाला कोई नहीं था और जहाँ था वहां डी जे बज रहा था। शालू पूरी शिद्दत से हमारी तरफ आने वाले रास्ते पर नजर भी रखे हुए थी।
मैंने पिंकी के होंठों से अपने होंठ मिला दिए थे। सोनू की सिसकारियां पिंकी के एहसासों को बयां कर रही थी। कुछह देर पिंकी को मैं यूँ ही चूसता रहा। अपनी जीभ से पिंकी के रास्ते जो भेदने की कोशिश करता रहा लेकिन पिंकी जैसे किसी शरारती साली की तरह बिना नेग लिए अंदर जाने नहीं दे रही थी।
तभी सोनू ने अपनी जाँघें मेरे सर पर कस दी और अपने हाथों से मेरे सर को दबाने लगी। पिंकी ने ऐसे पानी छोड़ा जैसे कोई बादल फटा हो।
मेरे कपड़े भी खराब ही गए थे, शुक्र है कि जैकेट रैग्जीन की थी बाद में गीले कपड़े से साफ हो गई।
अब सोनू तो जैसे निढाल हो गई हो, वो एकदम बेसुध सी हो गई थी जैसे कि नशे में हो।
मैंने सोनू का लहंगा नीचे किया और उसका शाल उसे ओढ़ाया और अपने कपड़े भी थोड़े ठीक किये।
सोनू ने कहा- शालू को कॉल करो।
मैंने उसके फ़ोन से शालू को कॉल की, दो मिनट बाद शालू आ गई, वो मुझे देख कर आंख मार के बोली- आशु जी, आपकी सेवा हुई या नहीं पूरी?
मैंने कहा- बस आखिरी पूर्णाहुति बाकी है बाकी तो हो गया.
तो शालू ने कहा- मैं इसे लेकर जाती हूँ। फिर थोड़ी देर बाद आप भी रूम में आ जाना जब मैं कॉल करूं!
मैंने कोई सवाल नहीं किया, मुझे समझ आ गया था कि सारी प्लानिंग कर रखी है इन्होंने। उन्होंने एक कमरा खुद के लिए या यूं कहिए कि हमारे लिए पहले से ही बुक कर के रखा था।
शालू और सोनू अपनी कार में चली गई और पीछे पीछे मैं अपनी कार में।
हम रूम में चले गए। शालू हमें रूम पर छोड़ कर वापस शादी में आ गई।
उस रात हमने सुबह तक एक दूसरे का पानी निकाला जब तक शालू का फ़ोन नहीं आ गया। न नींद उसे आ रही थी और न मुझे।
हमने बिना किसी लाज शर्म के, बिना किसी डर वहम के बिना किसी वादे कसम के एक दूसरे की प्यास और भूख मिटाई।
सुबह करीब 5 बजे शालू का फ़ोन आया सोनू को ले जाने के लिए आई। सोनू और मैं नंगे ही रजाई में लेटे हुए थे। हमने एक जल्दी वाला राउंड निपटाया और फिर सोनू ने जल्दी से कपड़े पहने। तब तक शालू आ गई थी। सोनू ने मुझे शालू के सामने एक जोरदार किस की और बोली- ये रात हमेशा याद रहेगी और दोबारा इस रात को जीने का इंतजार रहेगा।
शालू ने भी मुझे आंख मारी और कहा- अब तो हो गया काम भी पूरा और मन भी भर गया होगा।
मैंने कहा- मन भर जाए … ऐसी चीज है तो नहीं आप की सहेली।
शालू हंसने लगी और दोनों सहेलियां वापस शादी में आ गई।
मैंने भी सुबह सुबह हाथ मुंह धोया और दोस्त को फ़ोन किया, उसके पीजी पर जाकर सोया।
दोस्तो, यह था सोनू के साथ मेरा एक यादगार किस्सा, ऐसे कुछ और किस्सों के साथ फिर हाजिर होऊंगा।
मुझे इंतजार रहेगा आपकी मेल्स का और माफी चाहूंगा कि किसी भी लड़की का नाम या नंबर मैं नही दूंगा। आप से भी यही प्रार्थना करूँगा कि आप भी अपने आप ही किसी सोनू को ढूंढिए और फिर अपनी कहानी लिखिए, लेकिन सोनू की सहमति से!
हमेशा याद रखियेगा दोस्तो ‘रजा का अपना ही मजा है…’
और एक आखिरी बात: दूसरों के तेल के भरोसे खुद की दीवाली मनाने के सपने नहीं देखने चाहियें! दीवाली मनाने के लिए खुद का तेल, दिया और बाती के लिए मेहनत करनी चाहिए।
आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।