बड़ी बेहन रिवाज निभाने के चक्कर में सगे भाई से चुद गयी

ये स्टोरी है मेरी और मेरी दीदी की. मेरी फॅमिली में मैं, दाद, मों, भाई आंड सिस्टर है. मैं सबसे छ्होटा 19 साल का हू. मुझसे बड़ी मेरी बेहन मुस्कान जो 25 साल की है. और उनसे बड़े मेरे भाई जो 26 साल के है.

भाई की शादी नही हुई थी अभी, क्यूंकी पहले दीदी की शादी करनी थी. उसके बाद भाई की शादी का सोचा था. तो दीदी की शादी हमारे गाओं में मेरी फूफी के लड़के के साथ कर दी.

शादी बड़ी धूम-धाम से हुई. हमारे घर से दूसरी गली में ही दीदी का घर था. शादी हमने बहुत एंजाय की. दीदी की शादी के 1 मंत बाद भाई की शादी का प्लान किया था. लेकिन उस 1 मंत में दीदी की सारी रसम आंड भाई की शादी की तैयारी भी करनी थी.

दीदी की शादी के 3 दिन बाद ही सरपंच जी का इन्विटेशन आया, की दीदी की और हमारी फॅमिली बैठ के रसम के मुताबिक दीदी से नामे ले. हमारे गाओं में एक रिवाज है, जो की दशकों से फॉलो किया जेया रहा है. और जिसे सब खुशी-खुशी कोई ऑब्जेक्षन के बिना फॉलो करते है.

तो रिवाज ये है की शादी के बाद नयी दुल्हन को कोई एक वार(लड़का) सेलेक्ट करना होता है. जो पति की गैर मौजूदगी में दुल्हन का ख़याल रखता है. फिर वो ख़याल फाइनान्षियल हो, एमोशनल हो, या सेक्षुयल हो. सब तरह की ज़रूरत पूरी करता है.

रिवाज के मुताबिक जो लड़का सेलेक्ट करना होता है, वो या तो दूल्हे का भाई (देवर), या तो दुल्हन का भाई होना चाहिए. ये रिवाज के मुताबिक सब लड़कियाँ अपने देवर को ही सेलेक्ट करती है, ना की अपने भाई को.

लेकिन दीदी ने सब को चौंका दिया. जब हम सब इकट्ठे हुए, और सरपंच जी दीदी के रूम में गये नामे जानने को.

सरपंच जी: मैं अंदर आ सकता हू?

(रूम में दीदी और उनकी सहेलिया, मम्मी आंड उनकी सास बैठी हुई थी. )

दीदी: जी आ जाए.

सरपंच जी: तो बेटा नामे सोच लिया होगा आपने, आप मुझे नामे बता दीजिए.

दीदी: जी सरपंच जी, लेकिन नामे बताने के पहले एक बात मैं जानना चाहती हू, की मैं किस-किस को चुन सकती हू? मतलब मुझे चुनना तो एक ही है, लेकिन किनमे से चुनना है? वो एक बार आप बता दो तो मेहरबानी होगी.

सरपंच जी: जी बेटा, आप अपने शौहर के भाई यानी की अपने देवर नहीं को, या तो अपने सगे भाई दानिश को. इन दोनो में से कोई एक को चुन सकते हो.

दीदी: सरपंच जी, यहा पे सब लोग अपने देवर को ही चुनते है. अपने भाई सेकेंड ऑप्षन पे कोई ध्यान ही नही देता. अगर मैं अपने देवर को ना चुन के अपने भाई को चुन लू, तो कोई दिक्कत तो नही होगी ना?

सरपंच जी: बिल्कुल भी नही बेटा. मुझे खुद अपनी बेहन ने चुना था. और हमारा एक बेटा भी है.

तो इसमे कोई प्राब्लम नही होगी आपको. और ये देखना हमारी रेस्पॉन्सिबिलिटी है.

दीदी: शुक्रिया सरपंच जी.

सरपंच जी: तो बेटा मैं ये नामे फाइनल समझू?

दीदी: जी, लेकिन आप एक बार नामे अनाउन्स करे, उसके पहले आप मेरे शौहर, मेरे भाई, मेरे मम्मी-पापा, आंड मेरे सास-ससुर से एक बार बात कर ले. अगर उन्हे कोई ऐतराज़ नही है, तो मैं इस नामे के लिए राज़ी हू.

फिर सरपंच जी ने हम सब को बुला के ये बात डिसकस की. मैं तो शॉक्ड भी था, और खुश भी. लेकिन एक दुख ये भी था, की मैं असमा भाभी के सपने देख रहा था. अब पता नही उसका क्या होगा.

फिर सब ने खुशी-खुशी मेरा नामे आक्सेप्ट किया. जिसके बाद सरपंच जी ने नामे अनाउन्स किया. उसी दिन शाम को एक रसम हुई, जिसमे दीदी ने एक पेड़े की छ्होटी बीते जीजू को खिलाई, एक बीते मुझे और बाकी का उसने खाया.

फिर सरपंच जी ने नेक्स्ट नाइट के लिए जीजू और मुझसे बात की, के आज की नाइट जीजू दीदी के साथ रहेंगे आंड सेकेंड नाइट मैं उनके साथ रहूँगा. आंड रिवाज के मुताबिक ये रसम लड़की के घर यानी की मेरे घर मनाई जाएगी. जिसमे फर्स्ट नाइट जीजू के साथ सेकेंड नाइट मेरे साथ, आंड दीदी फिर एक वीक के बाद ससुराल जाएगी.

अब सब रेडी था. आज की नाइट दीदी जीजू के साथ थी, और उनका कमरा सजाया था. दीदी का कमरा मेरे कमरे के बगल वाला था. आक्च्युयली फिस्ट फ्लोर पे 4 रूम थे, जिसमे फर्स्ट ड्राउनिंग रूम था, सेकेंड वाला भैया का, थर्ड मेरा, आंड फोर्त दीदी का. आंड हमारे रूम में एंटर होने के लिए कामन लॉबी थी.

तीनो रूम में कामन बाल्कनी थी, जिससे हम बाल्कनी के थ्रू भी एक-दूसरे के कमरे में आ जेया सकते थे. तो हुआ ये की मुझे करीब 2 बजे के आस-पास भूख लगी थी. तो मैं खाने के लिए उठा.

मिने दीदी के कमरे से पायल आंड चुननी की आवाज़ सुनाई दे रही थी. और वो आवाज़ कंटिन्यूवस्ली आ रही थी. मुझसे रहा नही गया, और मैं जब दीदी के कमरे की तरफ गया बाल्कनी से, तो पुर स्लाइडर पे परदा था.

लेकिन स्लाइडर लॉक नही था, तो मैने तोड़ा खोला धीरे से. मैने देखा की जीजू दीदी के उपर थे, और ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगा रहे थे. दीदी और जीजू दोनो रज़ाई में कवर थे, तो कुछ ख़ास दिख नही रहा था.

फिर मैं वापस कमरे में आके लॉबी के थ्रू नीचे गया, और खाना खा के सो गया. मैने एक बात अपने माइंड में फिट कर ली थी, की सेकेंड नाइट को जब मैं दीदी के पास जौ, तो मैं मेरी पर्फॉर्मेन्स से उन्हे इतना खुश कर डू, की फिर जीजू कही जाए या ना जाए, लेकिन दीदी मुझसे चुड़े बिना ना रह पाए.

मैं सुबा नहा के नाश्ता करने आया, तो जीजू भी नाश्ता कर रहे थे. नाश्ता करके मैं जेया रहा था, तो जीजू ने मुझे रोका, और बोला-

जीजू: दानिश रूको, कहा जेया रहे हो?

मे: अस्फाक भाई मार्केट जेया रहा हू. तोड़ा काम है.

जीजू: रूको मैं छ्चोढ़ देता हू, मेरी कार में आजा.

फिर मैं कार में उनके साथ चला गया. रास्ते में उन्होने मुझसे इधर-उधर की सब बात की. फिर उतरते वक़्त जीजू ने मुझे रोका और कहा-

जीजू: दानिश तुम्हारी दीदी ने तुम्हारा नामे मेरे कहने पे दिया है. मतलब की ये उसकी मर्ज़ी थी, लेकिन मेरे कहने पे वो तुम्हारा नामे दे पाई.

मे: थॅंक्स जीजू. मैं वादा करता हू, कभी आपको और दीदी को शिकायत का मौका नही दूँगा.

जीजू: हा इसीलिए तुम्हारा नामे दिया है. तुम अपनी दीदी को समझोगे.

मे: हा वो तो है.

जीजू: सुनो, आज रात को तुम्हारी दीदी तुमसे जो बात करे, उसको तुम उससे आचे से सुनना, और समझना. और मुझे आशा है तुम उसको नाराज़ नही करोगे, और उसकी बात मानोगे.

फिर जीजू चले गये. लेकिन मुझे थोड़ी-थोड़ी उनकी बातें समझ आ चुकी थी. मुझे लग रहा था की शायद रात को दीदी मेरे करीब नही आने वाली थी, और ना कुछ करने देने वाली थी.

मैने बहुत सोचा, और फिर प्लान बनाया की मैं दीदी को कोई बात ही नही करने दूँगा, और तोड़ा लाते कमरे में जौंगा. और वो कुछ कहे, उसके पहले मैं अपना लंड उनकी छूट में डाल दूँगा.

फिर मैने मेडिकल स्टोर से वियाग्रा 100 म्ग ली, आंड लिगेर का स्प्रे लिया, जिससे मैं लगातार दीदी की चुदाई कर साकु. मैं शाम को घर गया तो देखा, की जीजू जेया चुके थे. मैं मेरे कमरे में आया, और बेड पे लेता हुआ था आँखें बंद करके. 10 मिनिट बाद मैने आँखें खोली तो देखा की दीदी सामने खड़ी है.

मे: अर्रे मुस्कान, तुम्हे क्या हुआ, कुछ काम था?

दीदी: अर्रे वाह! आज डाइरेक्ट नामे से, मुस्कान, वाह भाई वाह!

मे: अर्रे नही दीदी, वो मैं कन्फ्यूज़ हो जाता हू. सुबा दीदी बोल रहा था, तो मों ने और तुम्हारी सास ने माना किया की दीदी मत बोलो, आंड अब से मुझे नामे से बुलाना होगा. अब नामे से बुलाया, तो आपको बुरा लग रहा है. अब आप ही बताओ, मैं क्या करू?

दीदी: अछा छ्चोढ़, जो दिल चाहे बुला तू.

मे: क्या हुआ, कुछ काम था?

दीदी: काम तो कुछ नही है. आक्च्युयली मुझे तुमसे बात करनी थी, वो तुम्हे पूछे बिना तुम्हारा नामे दे दिया इसलिए.

मे: देखो तुम्हारा तो पता नही, लेकिन मैं भूत खुश हू. और मैं इस रिवाज को अपने सच्चे मॅन से निभौँगा. तुम्हे कोई शिकायत का मौका नही दूँगा.

फिर मैं खड़ा हुआ, और दीदी को कमर से पकड़ कर अपनी और खींच के अपने होंठ उनके होंठो पे रख कर किस करने लगा. दीदी को कुछ समझ आए उससे पहले मैने उनके होंठ अपने होंठो में दबा लिए, और आचे से चूसने लगा.

1 मिनिट तक दीदी स्टॅच्यू की तरह खड़ी रही, और मैं किस करता रहा. फिर 1 मिनिट बाद मैने उनको अलग किया, क्यूंकी मेरा फोन बाज गया. आक्च्युयली मैं कोई रिस्क नही लेना चाहता था, की वो मुझे रात के लिए माना कर दे. इसलिए मैने 1 मिनिट के बाद फेक कॉल आए ऐसी सेट्टिंग कर रखी थी, और फिर दीदी को किस करने लगा था.

जैसे ही रिंग बाजी, मैं फोन अटेंड करके निकल गया. दीदी को जाते-जाते मैने बोला-

मे: रात को मिलते है.

फिर मैं वापस मार्केट आ गया. रात को मों का फोन आया, और वो बोली-

मों: हेलो बेटा, कहा है तू? रात हो गयी है. कब आएगा तू? आज तेरी फर्स्ट नाइट है मुस्कान के साथ. तुझे उसके साथ होना चाहिए.

मे: हा बस आ गया मों. तोड़ा काम है. 30 मिनिट में पहुँच जौंगा.

मों: हा चल तू आ, तब तक हम खाना खा लेते है.

मे: मों रूको, मैं आ जौ, फिर साथ में खाना खाते है

मों: ओक चल तू आ, हम वेट करते है तुम्हारी.

मे: मों, दीदी तैयार हो गयी?

मों: हा वो तो कब से तैयार है. सब तेरी ही वेट कर रहे है.

मे: बस आ गया मों.

फिर मैने घर पहुँच के सब के साथ बैठ के खाना खाया. दीदी पहले ही खाना खा के कमरे में जेया चुकी थी. फिर मैं खाना खाने के बाद अपने कमरे में गया, तो देखा की मेरा कमरा बिल्कुल नॉर्मल था. मतलब की कुछ सजाया नही था. फिर मैं वियाग्रा की गोली आंड वो स्प्रे लेके बाहर आ गया. जब मैं बाहर आया तो मों मुझे सामने मिली. मों ने कहा की-

मों: आज तुम्हे दीदी के कमरे में जाना है, ठीक है.

मे: मुझे लगा दीदी मेरे कमरे में आएगी.

मों: नही तुझे जाना है उसके कमरे में. अब तू जेया, बहुत लाते कर दिया तूने.

मे: अर्रे मों उसमे देर कैसी, जितनी देर से जौंगा, उतनी देर से वापस अवँगा.

मों: हा पता है, तू जल्दी तो उठने से रहा.

मे: मों प्लीज़ कल देर तक सोने देना प्लीज़-प्लीज़.

मों: हा ठीक है, बस तेरा दिल करे तब आ जाना, ठीक है? आंड हा, मुस्कान के साथ सभाल के. उसको हर्ट मत करना, आंड उसका पूरा साथ देना.

मे: मों मुझे तो आपने कह दिया. अब मुस्कान को भी तोड़ा समझा दो की..

मों: की क्या?

मे: वो मों शायद आप जैसा समझ रहे हो वैसा नही होगा. मुझे सिर्फ़ अंदर जाके नॉर्मल तरीके से सो जाना पड़ेगा.

मों: क्यू? कोई प्राब्लम है?

मे: नही मों, मुझे तो कोई नही है. लेकिन शायद दीदी आंड जीजू का ये प्लान है. इसलिए उन्होने मेरा नामे दिया है. मुझे ऐसा लगता है.

मों: नही-नही, ऐसा कुछ भी नही है. मुस्कान तेरे लिए शाम से तैयार हो रही है. और मेरी उससे बात हो चुकी है. मैने पहले ही बात की थी, की तुम्हारा हक है उसके लिए. वो माना नही कर पाएगी. और उसने हा बोला था, की वो तुम्हे सारे सुख देगी.

अब तू जेया अंदर

मे: मों मैं थोड़ी देर में जाता हू.

फिर मैं किचन में गया. वाहा पानी के साथ गोली खाई. उसके बाद मैं बाहर गार्डेन में थोड़ी देर बैठा. मुझे 20 मिनिट बाद वियाग्रा का असर दिखने लगा, तो मैं सीधा अपने रूम के बातरूम में गया.

फिर वाहा मैने मेरे कड़क लंड पे वो स्प्रे छिड़का. उसके बाद मैं दीदी के कमरे में गया. मैने पहले दरवाज़ा नॉक किया, तो दीदी अंदर से बोली-

दीदी: आ जाओ.

मैं अंदर गया तो क्या कमरा सजाया था फूलो से पूरा.

मे: वो सॉरी तोड़ा लाते हो गया.

दीदी: इतनी वेट तो मुझे तुम्हारे जीजू ने भी नही कराई थी. अछा सुनो, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.

मे: एक मिनिट, बात बाद में, पहले आँखें बंद करो.

दीदी: क्यू?

मे: अर्रे तुम करो ना एक बार.

दीदी ने मरून कलर का लहंगा पहना हुआ था. आँखों में काजल, होंठो पे, लिपस्टिक, पूरा शृंगार किया हुआ था. मैने फिर उन्हे डैइमोंद रिंग दी. ( मैं ट्रेडिंग करता था, तो मेरे पास पैसे थे, उससे मैं लाया था रिंग)

उनके हाथ में मैने रिंग पहनाई. फिर उनको मैने आँखें खोलने को कहा. उन्हे वो रिंग बहुत पसद आई. दीदी फिर कुछ और बोले उससे पहले मैं दीदी के होंठो पे अपने होंठ रख के किस करने लगा दोपहर की तरह.

फिर मैने किस करते-करते उन्हे बेड पे लिटा दिया, आंड उनके पैर खोल के बीच में आने की कोशिश करने लगा. मैने किस करते-करते दीदी का लहंगा उपर उठाया. एक हाथ से उनका लहंगा उनकी जांघों तक मैने उठा दिया.

फिर उसी के बीच मैने अपनी पंत भी उतार दी. मेरा खड़ा लंड दीदी की छूट में जाने के लिए तैयार था. मैने ये सब इतनी फास्ट किया था, की दीदी को कुछ करने का मौका ही नही मिला.

मुश्किल से 1 मिनिट लगा होगा मुझे दीदी का लहंगा उठा के अपनी पंत उतारने में. फिर मैने मेरा हाथ उनकी छूट पे लगाया, तो पता चला की उन्होने पनटी पहन रखी थी. मैं फ़ौरन उनके होंठो से अपने होंठ हटा के खड़ा हुआ, आंड 5 से 6 सेकेंड में उनकी पनटी उतार के उनके पैरों के बीच में कर दी.

फिर वापस आके मैने अपना लंड उनकी छूट पे सेट किया. दीदी ने मुझे रूको कहा, और इधर मैने ज़ोर का धक्का लगा दिया. दीदी पाईं से तिलमिला उठी. उनके मूह से आहह भारी आवाज़ निकल गयी.

फिर मैने दीदी की तरफ देखा तो उनकी आँखों से आँसू निकल रहे थे. फिर मैं थोड़ी देर रुका. ना मैं कुछ बोला, ना वो कुछ बोली कमरे में बिल्कुल सन्नाटा था.

इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको अगले पार्ट में पता चलेगा. कहानी का मज़ा आया हो, तो लीके और कॉमेंट ज़रूर करे.

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