रजिया फंसी गुंडों मैं पार्ट -2

रजिया फंसी गुंडों में पार्ट -1 जब सुबह हो गयी तब भी वाहा कोई आदमी या औरत नही दिखाई दिया. मुझे यह भी नही पता था की वो दोनो कामीनो ने मुझे कहा छ्चोड़ दिया है. मैं हिम्मत करके खड़ी हुई और अपनी ब्रा और पॅंटीस ढूँढने लगी. मेरी ब्रा मुझे नही मिली मगर मेरी कच्च्ची जोकि पूरी तरह से गंदी हो गयी थी और पीछे से उसमें एक च्छेद हो गया था. मैने जल्दी से उससे पहेन ळिया. फिर मैने ड्रेस को पहने की कोशिश करी मगर दोनो स्ट्रॅप्स कट्ट जाने के कारण मैं उससे पहेन नही पाई. मैने दोनो स्ट्रॅप्स पे गाठें बाँध दी और और उससे पहेन लिया. गातों की वजह से मेरा ड्रेस की उचाई काफ़ी बढ़ गई थी.

अगर मैं ज़रा सा भी झुकती तो कोई भी मेरी कच्ची आराम से देख लेता. मैने सोचा की आगे चलती हूँ थोडा सा शायद रोड आजाए या कोई गाओं आजाए जहा से मैं वापस जेया सॅकू. मैं आगे चली करीब 1 घंटे बाद मुझे एक छ्होटा सा घर डीिखा. उस्स इलाक़े में वही एक घर था. मैने रात से कुच्छ खाया भी नही था और पानी तक नही पीया था. मैं उस्स घर के पास चली गई. वो घर काफ़ी पुअरना सा टूटा हुआ सा लग रहा था. मैने काफ़ी दरवाज़ा खत खाटाया मगर किसीने दरवाज़ा नही खोला. निराश होके मैं वाहा से जाने लगी. जैसी मैने चलना शुरू किया तभी वो दरवाज़ा खुल गया. मैने देखा एक बूरहा सा आदमी खड़ा हुआ है. मैने उससे नमस्ते कहा और उससे बोला की मेरे पीछे कुच्छ गुंडे पद गये थे मैं किसी तरह से अपनी जान बचके आई हूँ. मुझे यह भी नही पता की यह जगह कौनसी है. अप प्लीज़ मुझे कुच्छ खाने पीने के लिए दे दीजिए, आपकी बड़ी मेहेरबानी होगी.

उन्न बाबा ने मुझसे मेरा नाम पूछा. मैने नीति बता दिया और मैने उनसे उनका नाम पूचछा. उन्होने मुझे अंदर बुला लिया और अपना नाम सुलेमान बताया. मैं घर में जब गई तो वाहा एक बिस्तर दिखा जिसपे गंदी सी चादर बिच्च्ि हुई थी, एक पंखा और उसी रूम के कौने में बर्तन और चूला रखा हुआ था. सुलेमान बाबा ने मुझे कहा बेटी तुम अभी जॅयैपर हाइवे के पास ही हो. तुम कहा की रहने वाली हो? मैने कहा जी मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ. मैने बिस्तर पे बैठना ठीक नि समझा क्यूंकी अगर मैं बैठी तो मेरी ड्रेस और उपर हो जाती और मेरी कच्च्ची बिल्कुल अच्च्चे से बाबा को नज़र आ जाती. बाबा ने मुझे कहा की बेटी जाओ तुम अपने उपर तोड़ा पानी डाल्लो क्यूंकी तुम्हारी हालत काफ़ी खराब लग रही है. मैने पानी गरम होने के लिए रख दिया है.

मैने हस्ते हुवे इनकार कर दिया. मगर उन्होने कहा की बेटी कोई ग़लत ख़याल मत रखो अपने दिमाग़ में तुम मेरी बेटी जैसी ही हो. नहाने का सुनके मुझे वो याद आया की जब बिशन और संतोष ने मुझे कुतिया की तरह चोडा था और मेरे पे पिशाब कर दी थी. यह सोचके मेरे सिर चकरा गया और मैं बिस्तर पे बैठ गई. मेरे बैठने की आवाज़ से सुलेमान बाबा ने एक डम अपना सर मेरी तरफ किया और उन्हे मेरी गुलाबी कच्च्ची दिख गई. मूह फेरते हुए मैं खड़ी हो गई और बाथरूम में जाने लगी. बाबा ने मुझे हाथ में एक टवल पकड़ा दिया और मैं नहाने के लिए चली गई. बाथरूम में एक खिड़की थी जोकि काग़ज़ से ढाकी हुई थी. लाइट भी काफ़ी ठीक ताक थी. वाहा एक गंदी सी बाल्टी और मग रखा हुआ था. मैने अपने कपड़े उतार के कोने में रख दिए ताकि वो गीले ना हो जाए. मैने धीरे धीरे अपने उपर पानी डालना शुरू किया.

मेरे आँखों में आँसू आ गये थे कल रात के भयानक हादसे के बारे में सोचके. मैने सोचा जो हो गया वो हो गया एब्ब किसी तरह घर पहुच ना है. हल्का सा गरम पानी मेरी बदन को गरम कर रहा था. उसी बीच में बाबा उस्स टूटे हुए दरवाज़े से मुझे नहाते हुए देख रहा था. बाबा अपने लॅंड से खेलते हुए मेरे गीले बदन को देखे ही जेया रहा था. मुझे नहाते समय तेज़ तेज़ सासो की आवाज़े सुनाई दे रही थी. जैसे ही मैने नहाने बंद कर दिया तो सासे आनी भी बंद हो गई. मैं अपने गीले बदन को उस्स टवल से पौचने लगी. मेरे दिमाग़ में एक गंदा ख़याल आया. मैने सोचा क्यूँ ना मैं इस्स बाबा को सिड्यूस करू.

देखने में तो यह बाबा शरीफ लगता है और मुझे कुच्छ नही कर सकता और मैं यहा से भाग जाऊंगी अगर ऐसा कुच्छ हुआ तो. यही सोचके मैने बाथरूम का दरवाज़ा खोला. सुलेमान बाबा चूले पे चाइ बना रहे था. जैसे ही मैने दरवाज़ा खोला उन्होने अपना चेहरा मेरी ओर खुमाया और देखके तोड़ा सा डर गये. मैं उस समय सिर्फ़ टवल पहेन लप्पेट रखा था और उसके नीचे अपनी गुलाबी रंग की कच्छि. टवल का कपड़ा काफ़ी ग़रीबो वाला था मतलब काफ़ी पतला सा था और इसकी वजह से व्हो भी काफ़ी गीला हो गया था. सुलेमान बाबा के कुच्छ कहने से पहले मैने उनसे कह दिया की मेरी ड्रेस ज़मीन पे गिरके गीली हो गई है,

आपके पास कुच्छ पहनने को है क्या??? सुलेमान बाबा ने मेरेको पूरी अच्च्ची तरह देखके कहा नही बेटी फिलहाल कपड़े सूख रहे है तुम इश्स रज़ाई को लप्पेट लो क्यूंकी काफ़ी ठंढ है और तुम काफ़ी गीली भी हो. सुलेमान बाबा की आँखों की चमक को देखके मैं समझ गई थी की यह बाबा तो लट्तू हो गया है. मैने बाबा से कहा की आपके पास फोन होगा क्या??? और उन्होने मुझे अपना सस्ता सा मोबाइल फोने दे दिया. मैं कमरे के बहार चली गयी और मैने अपने मामा मामी को फोन कर दिया. मैने उनको कहा की मैं अपनी सहेली के घर पे हू. उसकी ताब्यट काफ़ी खराब हो गई थी और इसीलिए मैं उससे मिलने रात में ही चली गयी अपने दोस्तो के साथ. एब्ब मैं 2-3 दिन उससी के साथ रहने वाली हूँ क्यूंकी वो घर पे अकेली है.

आप प्लीज़ नाराज़ मत होना और टेन्षन मत लेना. मेरी बात सुनके मेरे मामा ने कहा ठीक है बेटा मगर तुम वाहा पड़ाई अच्च्ची तरह से करना और अपना और अपने दोस्त का ख़याल रखना. यह बोलके मैने फोन काट दिया और वापिस घर में चली गई. बाबा ने मुझे चाइ दी और कहा बेटी बिस्तर पे आराम से बैठ जाओ. मैने बाबा से पूचछा की आप इश्स घर में अकेले क्यूँ रहते हो?? आप की पत्नी या कोई बेटा बेटी नही है??? बाबा ने मुझे बताया की व्हो पहले बहुत अमीर थे मगर उनकी पत्नी के गुज़र जाने के बाद उनके बेटे ने उनकी सारी दौलत हड़प ली. फिर वो यहा पे आ गये शहेर से दूर. यह सुनके मुझे बाबा पे थोड़ी दया आ गई. बाबा मेरे पास आ गये और मुझसे चाइ का कप लेके चले गये. मैने सोचा की एब्ब मैं क्या करू. यही सोचते सोचते मुझे नींद आ गई और मैं उस्स बिस्तर पे सो गई

मेरे सपने में फिर से रात का पूरा सीन आया. मैं सपने में ही डर रही थी और काफ़ी घबरा सी गई थी. थोड़ी देर के बाद मुझे एक और सपना आया और उस्स सपने में फिर से बिशन और संतोष दिखाई दिए. मगर यह सपना पिच्छले सपने से बिल्कुल अलग था. मैं फिर से रात में ऑटो ढूँढ रही हूँ और मुझे फिर से वही ऑटो मिलता है. मैने वोही कपड़े पहेन रखे है. संतोष मुझे घूरे जा रहा है और मैं उससे और मजबूर कर रही हूँ बार बार हिल्के. मैने अपना हाथ संतोष के लॅंड पे रख दिया और उसपे फ़ेड़ने लगी. संतोष बिल्कुल चुप छाप हैरान सा हो गया. उसका लॅंड ऑटो की रफ़्तार के जैसा बड़ा हुए ही जा रहा है.

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संतोष को इतनी ठंढ में भी पसीना आ रहा है. मैने उसके एक हाथ पकड़ के अपने नंगी जाँघ पे रख दिया और उसके लॅंड से और अच्च्ची तरह से खेलने लगी. संतोष एब्ब अपना हाथ मेरी जांग पे फेर रहा है और फेरता हुआ मेरे ड्रेस के अंदर ले गया. मेरी कच्छि पूरी गिल्ली हो रही थी और व्हो एब्ब मेरी चूत को नौचने लगा है. संतोष के मूह से आवाज़ निकली बिशन ज़रा ऑटो थोड़ी साइड में रोक दे रोड से थोडा दूर. यह बोलके संतोष ने अपना दूसरा हाथ मेरे मूमेन पे फेरना शुरू कर दिया और यह देखके बिशन ने जल्दी से ऑटो कहीं रोकक दिया. फिर उन दोनो ने मुझसे कहा की हुमारी पॅंट की ज़िप खोल और हुमारा लंड को चूसना शुरू कर. उनके कहते ही मैने उन दोनो की ज़िप खोलदी और उनके बड़े और मोटे लंड को निकालकर चूसने लगी.

कभी मेरा उस्स लंड को मूह लेकर चूस्टा और कभी दूसरे लंड को. दोनो बहोट ज़ोर से आवाज़े निकाल रहे है. दोनो ने मुझे मेरे कंधे पाकर के उठाया और ओहिर मेरे मोमें को मूह में लेकर चूसने लगे. मुझे इतना मज़ा आ रहा था की मैं खुद उन्हे बोल रही थी और ज़ोर से चूसने को. जब उन्होने मुझे चोदने के लिए मुझे नीचे लेतया तभी अचानक कुच्छ आवाज़ आई और मेरी नींद खुल गई. मैने हल्की सी आँख खोलके देखा तो बाबा नीचे बैठकर चाइ बना रहे थे. मैं उस्स वक़्त काफ़ी गरम हो गई थी अपने सपने को देखके. मगर मेरे मॅन में ख़याल आया की सुलेमान बाबा काफ़ी अच्च्चे इंसान है उनके साथ ऐसी हरकत नही करनी चाहिए.

बाबा ने मुझे देखते हुए कहा उठ गयी बिटिया. मैने हल्के से कहा जी बाबा. बाबा ने फिर मुझे कहा की जाके अपना ड्रेस पहेनलो क्यूंकी ठंढ काफ़ी हो रही है. मैं बेड से उठी और अपने बदन पे चादर लपेटली. चॉक ए मैं बाथरूम में आगाय और अपनी ड्रेस को मैने पहेनलिया. मैने बाहर आके रज़ाई बेड पे फेक दी और बाबा से मैने पूचछा की कुच्छ ड्रेस के नीचे पहेने के लिए है?? बाबा ने कहा बेटा बाहर मेरी धोती रखी हुई तुम चाहो तो उससे पहेनलो. मैं बाहर निकली तो देखा की रात हो चुकी थी. एब्ब मेरा घर के लिए निकलना ठीक नही होगा. मैने बाहर रहके ही धोती पहेनली और घर के अंदर आ गयी.

मैं काफ़ी खुश थी क्यूंकी धोती मेरी जांगो को च्चिपा रही थी, मेरे घुटने तक आ रही थी. मैं आराम से बिस्तर पे बैठ गई और बाबा ने मुझे चाइ दी. मैने बाबा से पूचछा बाबा टाइम कितना हो गया है?? बाबा ने मुझे कहा की बिटिया रात के 9 बाज गये है. मैने और बाबा ने चाइ पीना शुरू किया और हम बातें करने लगे. मैने बाबा को दिल्ली के बारे में और अपने खानदान के बारे में बताया. और बाबा ने मुझे अपने बारे में और ज़्यादा बताया. देखते ही देखते टाइम कुच्छ ज़्यादा हो गया और मुझे नींद आने लगी. बाबा ने कहा बिटिया सो जाओ मैं ज़मीन पे सो जाऊँगा तुम आराम से बिस्तर पे सोजाओ. मैने बाबा से कहा आप क्यूँ ज़मीन पे सोगे आप उपर सोजाए मुझे कोई दिक्कत नही है आपसे. रज़ाई एक ही होने के कारण हम दोनो को रज़ाई शेर करनी पढ़ी. फिर हम दोनो सो गये.

कुच्छ घंटो बाद मेरी आँख खुली और मैने अपना हाथ हल्का सा हिलाया. और मैं बुर्री तरह से चौक गई. मेरे हाथ सुलेमान बाबा के लंड पे रखा हुआ था ( उन्होने धोती पहनी हुई थी). सुलेमान बाबा ज़ोर से खर्राटे ले रहे थे, मुझे लगा की शायद ग़लती से मेरा हाथ उधर चला गया होगा और बाबा को पता भी नही चला हो. उसके थोड़ी देर बाद बाबा ने कारबत ली और हाथ मेरे जिस्म पे रख दिया. उनका हाथ मेरे पेट पेट पे था जोकि कुच्छ ही इंच नीचे था मेरे मूमो के. मैने कोशिश की के किसी तरह बाबा का हाथ हट जायें मगर ऐसा नही हुआ. मैने सोचा अगर मैं बाबा का हाथ पकध के हटाती हूँ और वो उससी वक़्त जाग जायें तो ग़लत फेमियाँ बढ़ जाएँगी. इसीलिए मैने उनके हाथ को नही हटाया. कुच्छ देर में उनका हाथ पेट से उपर हो गया यानी के मेरे राइट मोमें के उपर. हाथ ऐसा रखा हुआ था की मानो जैसे उसको मसलना चाहते हो.

मुझे लगा की कहीं बाबा जागें हुए तो नही है और मेरा फ़ायदा तो उठना नहीं चाहते. मैने अपने आप को समझाया की बाबा बड़े अच्च्चे इंसान है और ऐसा नही करेंगे. काफ़ी देर तक उनका हाथ मेरे मूमें पे ही रहा बिना हिला हुआ. मगर फिर हल्का हल्का हिलने लगा. आहिस्ते आहिस्ते वो उसे मसालने लगे. मैं काफ़ी डर गयी. मैं चाहके भी बाबा का हाथ नही हटा पा रही ही क्यूंकी मेरा जिस्म मुझे इनकार कर रहा था. बाबा ने फिर मेरे मूमें को तेज़ी से मसलना चाहा और इसी कोशिश मेरा सीधे हाथ का ड्रेस का स्ट्रॅप खुल गया. बाबा ने एकद्ूम से अपना हाथ हट एलिया. काफ़ी देर तक व्हो मुझसे दूर रहे और मुझे लगा की व्हो डर गये सोचके कहीं मैं जग्ग गयी तो. मगर उनको क्या पता की मैं जागी हुई हूँ. मैने बाबा को सताने के लिए कारबत लेली ऑरा ब्ब मेरा मूह बाबा के मूफ़ की तरफ हो गया. मेरे सीधे हाथ का मूमा बाबा को ढंग से दिख रहा था. मैं हल्की सी आँखें खोलके बाबा को देख रही था. व्हो अपने होत चबा रहे थे मेरी तरफ देखके. व्हो अपना शरीर मेरे और पास ळिया. एब्ब मैं उनसो कुच्छ इंच की दूरी पे ही थी. व्हो थोडा नीचे चले गये. एब्ब उनका मूह मेरे मूमें के पास था. उन्होने अपना मूह खोला और अपने सूcखे होंठो से मेरे मूमें को चूमा. मेरे अंदर बिजली सी दौड़ गई. उन्होने अपने अंदर का थूक मेरे टिट्स पे लगाया और उससे चूसने लगा. मुझे ऐसा लग रहा था की मैं बाबा को दूध पीला रही हूँ. बाबा ने करीब 5 मिनिट तक मेरे मूमें को चूमा. फिर उनको लगा की मैं या तो बहुत गहरी नींद में हूँ या तो मैं चाहती हूँ की व्हो मुझे चूमते रहें. उन्होने मुझे पुकारा “नीति बेटी”…

मैं चाहती थी की मैं कुच्छ बोल दू मगर मेरे गले से आवाज़ ही निकली. बाबा को लगा की मैं बहुत गहरी नींद में हूँ. बाबा एब्ब काफ़ी जोश में आ गायें थे. उन्होने अपने दांतो से मेरे दूसरे स्टर्प की गीतान खोलदी और उससने नीचे कर दिया. एब्ब मेरा पूरा उप्पर का तन नंगा था एक ऐसी इंसान के सामने जिससे मुझे मिले हुए 1 दिन भी नही और जो उमर्र में मेरे दादाजी के जितना था. बाबा ने अपने दोनो हाथो से मेरे मूमो को मसलना शुरू किया. मुझे ना चाहते हुए भी बड़ा माज़्ज़ा आ रहा था. बाबा मेरे एक निपल को चूस रहे थे. कुच्छ देर टक्क खेलने के बाद बाबा ने मेरे कान पे कहा की बिटिया तू बहुत गरम माल है मैं जान बूझ के तुझे नींद की डॉवा चाइ के साथ मिलाके पीला दिया थी ताकि मैं तेरी अच्च्ची तरह खातिर दारी कर साखू. ये सुनके पता नही क्यूँ मुझे अच्छा लगा मुझे ज़रा सा भी गुस्सा नही आया. बाबा ने मेरे उपर से कंबल हाता दिया और मेरी धोती का नाडा खोल दिया

जैसे ही मेरा नाडा खुला बाबा हस्ने लगे. मुझे अब्ब थोडा थोडा डर सा लगने लगा. बाबा धीरे से मेरी तरफ बड़े और आहिस्ता आहिस्ता धोती को मेरे बदन से दूर कर दिया. फिर उन्होने मेरी गुलाबी रंग की कच्छि देखी. उन्होने अपने दोनो हाथ से मेरी कमर पकड़ी और मेरे शरीर को घुमा दिया. अब्ब मैं पीठ के पल लेटी हुई थी बिस्तर पे. बाबा ने मेरी कच्ची में एक च्छेद देखा और उस्स च्छेद से अपनी उंगली उन्होने मेरी कच्छि के अंदर डाल दी. उन्होने उस्स च्छेद को और बड़ा करना चाहा मगर कर ना सके. उन्होने अपनी उंगली निकाल दी और अपने दोनो हाथो से मेरी कच्छि को कोने से पकड़ लिया. देखते देखते उन्होने मेरी कच्ची नीची कर दी और उससे सूँगने लगे. वो काफ़ी मज़े लेक उससे सूंग रहे थे. थोड़ी देर उन्होने कच्छि को अपने सर पे पहनलिया. फिर उन्होने मेरे आस को देखके उसपे दो चार तमाचे दिए. मुझे बहुत दर्द हुआ मगर साथ साथ मज़ा भी आ रहा था. वो मेरे बदन पे गिर गये जैसे कोई लाश हों. उन्होने अभी भी कपड़े पहेने हुए थे इसीलिए मुझे ज़्यादा खबराहट नही हुई. बाबा फिर मेरी गेंड को चूमने लगे और उससे अपने गंदे दांतो से काटने लगा. मैने पूरी कोशिश करी की मैं चिलाऊ ना. मैने अपना मूह कुशन में गढ़ा रखा था. बाबा ने मुझे फिर सीधा कर दिया. अपनी ज़ुबान उन्होने मेरी चूत में डाल दी और उसको चाटने लगे. मुझे लग रहा था जैसे कोई बच्चा आइस क्रीम चाट्ता है वैसे ही वो मेरी चूत को चाट रहे थे. कुच्छ देर चाटने के बाद उन्होने अपनी 1 उंगली मेरी चूत में डाल्डी और धीरे धीरे उससे अंदर बाहर करने लगे. कुच्छ देर बाद उन्होने 1 और उंगली डाल्ली और थोड़ी तेज़ी से अंदर बाहर करने लगे. मुझे लगा की एब्ब व्हो 1 और उंगली डालने वाले हैं. मगर उन्होने 2 और उंगली मेरे चूत में डाल दी. मुझे इतना दर्द हुआ उस्स समय की आप लोग समझ नही पाओगे. सुलेमान बाबा अपनी चारो उंगलिओ को अंदर बाहर करने लगे. उन्होने कुच्छ देर बाद अपना हाथ हटा दिया और उनमें 2 उंगलिया चाट ली. बाकी 2 उंगलियाँ उन्होने मेरे मूह खोलके मेरेको चटवाई. मैने पहली बारी अपनी चूत का रस पिया. फिर बाबा ने मेरे होंठो को ज़ोर चूमा. व्हो अपनी ज़ुबान को मेरी ज़ुबान से लदवाने लगे. बाबा हुमारे होंठो का बंधन तोड़ते हुए उठ गये. और फिर व्हो अपने कपड़े उतारने लगे. इतनी ठंढ में भी मैं बहोट गरम हो रही थी. कपड़े उतार देने के बाद वो फिरसे मेरे उपर लेट गये. उनका लॅंड मेरी चूत के कुच्छ इंच की दूरी पेट हा. ऐसा लग रहा था की वो कुच्छ भी करके मुझे छोड़ना चाहता है. फिर सुलेमान बाबा मेरे बदन से उठ कर मेरी च्चती पे बैठ गये. उनकी गेंड मेरे मूमेन को ज़ोर से दबा रही थी. फिर व्हो अपना लंड मेरे मूह पे फेड़ने लगे. मेरे माता से मेरे आँख नाक गाल तक फेरा. फिर उन्होने पूरी ताक़त लगा कर अपना लंड मेरे मूह में डालना चाहा. और मैने उनकी यह मुराद पूरी करदी. उनका लंड संतोष और बिशन के लंडो से काफ़ी अलग था. मैं एक छ्होटे बच्चे की तरह उससे लॉली पोप समझके चूस ने लगी. थोड़ी देर भाहूत ज़ोर से मुर्गे ने बादन्ग दी “कुकड़ूओ कूऊऊऊओ……….. कुकड़ूऊऊऊऊऊ खोओओओ……………”

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सुलेमान बाबा ने जल्दी से उठके देखा तो सुबह हो चुकी थी. उनको लगा की कहिीन दवाई का असर ख़तम ना हो जाए और मैं जाग ना जाओ. उन्होने कच्छि अपने सर से उतारी और मेरेको पहनदि. फिर उन्होने मेरी धोती उपर करदी और नाडा बाँध दिया. और फिर मेरे ड्रेस की गठां बांदके मुझे पहना दिया. ऐसा लगा मुझे की मैं बचपन की तरह स्कूल जाने वाली हूँ. बाबा ने अपने कपड़े भी पहने और बिस्तर पे लेट गये. वो इतनी दूरीए पे लेट गये की मानो जैसे उन्होने कभी मुझे च्छुआ भ ना हो. मैं हल्के से मुस्क्राके फिर सो गई.

मैं करीब सुबह के 11 बजे तक उठी और मैने आँखें खोलते हुए कमरे के चारो तरफ देखा. सुल्मीन बाबा मुझे कहीं पे भी दिखाई नही दिए. मैने रज़ाई को अपने उपर से हटा दिया और टाय्लेट जाने के लिए खध्ि होगी. मैं जैसी ही खध्ि हुई मेरी धोती नीचे गिर गई. और मुझे याद आया की सुलेमान बाबा कल नाडा ठंढ से बाँधा नही होगा. मैं धोती उठा करके टाय्लेट चली गई. टाय्लेट जाके मैने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपने नंगे बदन को देखने लगी. मुझे ऐसा लगा की मेरे मूमें कुच्छ ज़्यादा ही बड़े दिख रहे है और उनको छ्छू के मुझे बहुत मज़ा आया. फिर में पिशाब करने के लिए बैठ गई. वो करके मैने हाथ धो लिए और उंगली से ब्रश करने लगी. मुझे ऐसा लगा की मानो कोई खिधकी में से मुझे देख रहा हो. मैने जल्दी से अपने कपड़े पहेनलीए और कमरे में जाके बैठ गयी. मैं सोचने लगी की एब्ब मैं यहा से कब और कैसे जाऊ. मुझे अपने मामा मामी, बोर्ड्स और दोस्तो का कोई ख़याल नही था. मैं इस्स असली दुनिया में काफ़ी मज़े ले रही थी. मुझे पहली बार एहसास हो रहा था की मैं एक औरत हूँ. वो औरात जोकि मर्द से कुच्छ भी कहीं भी और कभी करवा सकती है.

यही सोचते सोचते दरवाजे पे ख़त खत हुई. और आवाज़ आई नीति बिटिया. मेरे मॅन में आवाज़ आई साला बूढ़ा फिर से आ गया. मैं मुस्कुराते हुए कहा खोलती हूँ सुलेमान बाबा. मैं खध्ि हुई और जाके मैने दरवाज़ा खोल दिया. मैने दरवाज़ा खोला तो देखा की सुलेमान बाबा खड़े हुए थे और उनके साथ एक असली साधू बाबा खधे हुए थे. सुलेमान बाबा ने मुझसे कहा “बिटिया यह बाबा वीरनाथ है….. इनके पाओ च्छुओ” मैने झुकके उन्ँके पाओ च्छुए और हम तीनो अंदर आगाय. मैं बिस्तर पे बैठी हुई थी और वीरनाथ बाबा मुझे देखे जा रहे थे. मैं वाहा से खध्ि हो गयी और सुलेमान बाबा से कहा “बाबा आप वीरनाथ जी से बातें कीजिए मैं आप दोनो के लिए चाइ बना देती हूँ” छाई बनाते बनाते मेरे मंन में काहयाल आया की सुलेमान बाबा वीर्नथ को मुझे चोदने के लिए तो नही आए है? मैने ऐसा ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया क्यूंकी यह साधू बाबा थे जो इंसान की ख़ासतौर से औरतो की मदद करते है. फिर मैं चाइ बनाना लग गई.

काफ़ी ठंढ हो जाने की वजह से मेरे निपल्स उस्स ड्रेस में से दिखने लगे. मुझे पता भी नही चला के बाकी लोगो को क्या दिखने वाला है. मैं चाइ देनेके लिए दोनो बाबओ के पास बढ़ी तो दोनो बाबा मुझे घूरहके देखने लगें. आईस लग रहा था की दोनो मुझे आँखों से ही नंगा कर रहे हो. मैं कमरे के कोने में बैठके चाइ पीने लगी और कुच्छ कल रात के बारे में सोचने लगी. कल रात के द्रिश्ये मेरी आँखों में आयें जा रहे थे. कुच्छ देर बाद बाबा ने मुझे आवाज़ दी और मैं उनके पास छलके आ गई. वीरनाथ बाबा ने मुझे प्रसाद दिया और कहा बेटा तेरी सारी इच्छाए पूरी होगी और एक दिन तू बहुत बड़ी इंसान बनेगी. मैं प्रसाद लेके फिर से कोने में बैठ गयी और उससे खाने लगी. तोड़ा प्रसाद खाने के बाद मुझे थोड़े चाकर से आने लगे. मुझे लगा कहीं इन्न दोनो ने इस्स प्रसाद में नींद की डॉवा तो नही मिला रखी हुई है. मैं फिर टाय्लेट चल गई और बाकी प्रसाद फेक दिया. मैने अपना मूह पानी से धोया और बाहर आ गई. मैं जब बाहर आई तो वाहा मुझे वीरनाथ बाबा ही दिखाई दिए. मैं उनसे पूच की ” सुलेमान बाबा कहा है” उन्होने कहा की वो ढाबे से खाना लाने के लिए गये है” मैं उनसे कहा की यहा ढाबा कहा है ” उन्होने कहा की हां थोड़ी दूर में है शहेर के पास….. यहा से 10 मीं का रास्ता”. यह सुनके मैं चौक गयी क्यूंकी सुलेमान बाबा ने मुझे बताया था की यहा से शहेर भाओट दूर है और यहा आस पास कोई रहता भी नही है. एब्ब मुझे पक्का यकीन हो गया की सुलेमान बाबा काफ़ी नीच और घटिया इंसान है और इस्स साधू को भी मेरे मज़े करवाने के लिए लेके आया है. मैं अपने आप को कोसने लगी की क्यूँ मैने वो प्रसाद खा ळिया.



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