उन्होंने अपने हाथ से मेरे चूतड़ों को उठाया तो मैं समझते हुए थोड़ा ऊपर को हो गई।
अब उन्होंने लंड को चड्डी से निकाल कर ऊपर को कर दिया और मेरी स्कर्ट को नीचे से धीरे-धीरे ऊपर करके अपने को लंड मेरी गांड के छेद में रगड़ने लगे। उन्होंने अपने लंड से महसूस किया कि मेरी चड्डी नहीं है तो दादाजी और मस्त हो गए और उन्होंने धीरे से मेरे गाल चूम लिए।
मैंने अपनी गांड को बचाने के लिए लंड को चुत के सामने कर दिया और उनसे सीने से सट गई।
अब लंड मेरी चुत की फांकों में रगड़ खा रहा था। मेरी चुत काफी गीली हो चुकी थी.. साथ ही दादाजी का लंड भी इतना गर्म हो चुका था कि चुत में घुसते ही तो पिचकारी छोड़ देता।
खैर.. ऐसे में चुदाई तो हो नहीं सकती थी, बस मस्ती करते-करते घर आ गए।
अब मेरे दिन बदल गए थे.. मैं जब चाहती और मौका मिलते ही दादा जी को अपने बदन से दबवाने लगी।
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पढ़ाई के बहाने घंटों हम एक-दूसरे के बदन से मस्त होने लगे। दादाजी को चोदा चोदी का काफी अनुभव था.. वो मेरी चुत को अपनी उंगली से चुदाई करके शांत कर देते। मैं कभी-कभी उनके लंड को मुँह में ले लेती ओैर इस तरह दोनों अपनी कामवासना की तुष्टि करने लगे।
एक दिन जब उनके घर के सब लोग एक सप्ताह के लिए बाहर जा रहे थे। मुझसे दादा जी का ख्याल रख लेने का कहा गया और वो सब उन्हें छोड़ कर चले गए।
उसी दिन मैंने अपनी मम्मी से कहा- मम्मी आज मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ।
मम्मी ने कहा- तो ठीक है.. जा अपने दादा जी के पास जाकर अपनी पढ़ाई कर ले।
मैं तैयार हुई और उनके घर आ गई।
थोड़ी देर पढ़ाई करने के बाद मैंने उनकी पैंट के ऊपर से उनके लंड पर हाथ रख दिया, उन्होंने मुस्कुरा कर अपने लंड को निकाल कर मुझे पकड़ा दिया और मैं लंड संग मस्ती करने लगी।
फिर धीरे-धीरे उन्होंने मुझे पूरा नंगी कर दिया और मैंने भी दादाजी के पूरे कपड़े उतार फेंके।
अब हम दोनों नंगे होकर ऐश करने लगे। दादा मुझको अपने कमरे में ले आए और मुझे बेड पर लेटा दिया।
मैंने भी मस्ती में अपनी चुत खोल दी।
दादाजी ने पोजीशन में आकर अपना लंड मेरी चुत की फांकों में रख कर रगड़ने लगे। मेरी चुत एकदम गीली हो चुकी थी। मैंने खुद ही दादाजी का लंड पकड़ा और चुत के छेद पर रख दिया।
उन्होंने मेरी तरफ देखा तो मैंने आँख मार दी और दादाजी मेरी चुत में अपने लंड के धक्का लगाने लगे।
मुझे दर्द होने लगा पर दादाजी ने मेरी चुत को उंगली से चोद-चोद कर काफी अभ्यास करवा दिया था तो मैं दर्द को झेलती रही।
अब दादाजी ने अपने लंड को जोर का झटका दिया तो उनका पूरा लंड मेरी चुत में अन्दर घुस गया था।
अचानक लंड घुसने से मेरी चीख निकलने को हुई जो कि दादाजी के होंठों के ढक्कन के कारण मेरे कंठ में ही घुट कर रह गई। मेरी आँखों से पानी गिरने लगा.. मगर दादा जी वैसे ही लगे पड़े थे।
थोड़ी देर बार उन्होंने दूसरा झटका मार दिया तो मैं उनके होंठों की पकड़ से मुक्त होकर चीख उठी उम्म्ह… अहह… हय… याह… और रोने लगी।
दादाजी ने लंड बाहर खींचा.. उस पर खून ही खून लगा हुआ था। दादाजी ने अपना लंड पोंछ कर मुझे चूमना और सहलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में ही दादाजी ने फिर से मुझे चोदना शुरू कर दिया। अब दादाजी ने अपना लंड धीरे-धीरे पेला तो मुझे न के बराबर दर्द हुआ। पूरा लंड पेलने के बाद दादा जी ने मेरे चूचे चूसते हुए मुझे धकापेल चोदना शुरू कर दिया।
आह.. इतना मजा मैंने कभी नहीं पाया था। मस्त चुदाई हुई और कुछ ही देर में मैं झड़ गई.. मेरी चुत की गर्मी से दादाजी भी पिघल गए और उन्होंने अपने लंड को बाहर निकाल कर मेरे चेहरे पर मलाई का लेपन कर दिया।
मैं बहुत खुश थी.. दादाजी ने मुझे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार किया।
इसके बाद तो मेरी चुत मानो दादाजी के लंड की गुलाम हो गई थी.. हम दोनों में चोदा चोदी होनी शुरू हो गई थी, दादा जी का जब मन होता, वे मौका देख कर मेरी चुदाई करते और हम दोनों शांत मस्त हो जाते।
दोस्तो, यह थी मेरी चुत की सील तोड़ चोदा चोदी की सेक्सी स्टोरी.. आपको कैसी लगी प्लीज़ मेल कीजिएगा।