मैं अन्तर्वासना की कहानियों का बहुत ही बड़ा फ़ैन हूँ। मैंने यहाँ प्रकाशित लगभग सारी कहानियां पढ़ी है। कुछ सच्ची लगी तो कुछ में बनावटपन नजर आया.. तो कुछ की भाषा बहुत अच्छी थी.. कुछ के चरित्र मन को मोह लेते.. कुछ कहानियों ने तो सच में सोचने पर मजबूर कर दिया।
इन कहानियों को पढ़कर मुझे भी लगा कि मैं भी अपनी एक अपनी सच्ची घटना आपके सामने रखूँ।
मैं पहले थोड़ा अपने बारे में बता दूँ। मेरा नाम राकेश सिंह है और मैं दिल्ली में रहता हूँ। मैं यहीं से पढ़ाई भी कर रहा हूँ। मैं एक साधारण सा दिखने वाला लड़का हूँ। मेरी हाईट 5 फुट 8 इंच है।
ज्यादा कुछ न लिखकर सीधे कहानी पर आता हूँ। इस कहानी में जगह और नाम बदले हुए हैं।
बात उस समय की है.. जब मैं स्नातक की दूसरे साल की पढ़ाई कर रहा था।
मेरे पेपर खत्म हो चुके थे और मैं नए सेमेस्टर की तैयारी करने में लगा था। जहाँ पर मैं रहता था.. उसके पड़ोस में ही एक परिवार रहता था। वो लोग बहुत ही अच्छे स्वभाव के थे।
मैं यूपी से था और वो लोग भी यूपी से ही थे। वो भी मेरे पास वाले जिले थे.. सो मेरी थोड़ी बहुत बात हो जाती थी। मैं उन लोगों से ज्यादा घुलना-मिलना नहीं चाहता था क्योंकि मुझे लगता था मेरी पढ़ाई में खलल न पड़े।
उनके परिवार में कुल चार लोग थे। अंकल-आंटी और उनकी लड़की तथा एक लड़का जो 10 साल का था.. वही थोड़ा मेरे रूम में कभी-कभी कुछ पूछने या गेम खेलने चला आता था।
मकान मलिक की जवान लड़की
उनकी लड़की सोनम.. जो उस समय स्नातक के पहले साल में थी.. दिखने में ज्यादा अच्छी तो नहीं थी.. पर हाँ.. किसी भी एंगल से कम भी नहीं थी। उसकी हाईट 5 फुट 4 इंच थी और उसका 30-28-32 का फिगर भी एकदम मस्त था।
मैं भी उसे पसंद करता था.. पर कभी उसे न अच्छे से देखता था.. न बोलता। क्योंकि मुझे डर लगता था कि अंकल-आंटी मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
आंटी और अंकल मुझे बहुत पसंद करते थे.. इसलिए अगर कभी कुछ अच्छा खाने में बनाते.. तो मेरे लिए जरूर भिजवाते थे।
एक दिन मैं ऐसे ही इंस्टीट्यूट के लिए निकल रहा था.. तभी सोनिया भी अपने कॉलेज के लिए निकली।
वो हल्का बैगनी कलर का सूट पहने हुई थी, बहुत ही सुंदर दिख रही थी।
मेरे मन को पता नहीं क्या हुआ.. मैंने तुरंत उसको बोल दिया- इस ड्रेस में तुम अच्छी लग रही हो।
उसने ‘थैंक्स’ कहा.. और चली गई।
मैं भी इंस्टीट्यूट चला गया।
उस दिन के बाद मैं उसको थोड़ा बहुत देख लिया करता था।
पर शायद ये सब उसको उस टाइम पसंद नहीं था.. तो उसने एक बार रास्ते में मुझसे बोला- आप मुझे देखा न कीजिये मुझे अच्छा नहीं लगता है।
फिर मुझे भी लगा मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूँ। सोचा कि छोड़ो जाने दो.. अब आज से नहीं देखूँगा।
फिर एक दिन लगभग दो महीने के बाद वो खुद रास्ते में एक दिन मुझसे बोली- आप तो अब बात भी नहीं करते हैं।
तो मैंने कहा- आपने ही तो बोला था कि आप मुझे देखा न करें.. तो मैं क्या करता?
तो बोली- देखने को मना किया था.. बोलने को नहीं किया था।