मेरे पड़ोस की पर्दानशीं लड़की ने मुझ पर भरोसा किया – 2

गौसिया स्खलित होने के बाद सनसनाते दिमाग के साथ बेजान सी पड़ गई जैसे बेहोश हो गई हो। मैं भी थक गया था तो मैं भ उसकी बगल में लेट कर अपनी साँसें दुरुस्त करने लगा।

करीब पांच मिनट बाद उसने आँखें खोलीं और मुझे बड़े अनुराग से देखने लगी।
‘क्या वाकई हर बार इतना मज़ा आता है।’ उसके स्वर में अविश्वास सा था।
‘इससे ज्यादा- उंगली की जगह अगर पेनिस हो तो इससे लगभग दोगुना!’

उसने एक ‘आह’ सी भरते हुए आँखें बंद कर लीं।
कुछ पल तक कुछ सोचती रही, फिर आँखें खोल कर मुझे देखने लगी- क्या लड़की ऐसे ही डिस्चार्ज होती है… मतलब ऐसे ही स्क्वरटिंग करते हुए?

‘नहीं, ऐसा रेयर ही होता है या जानबूझकर किया जाए। मतलब जब यूरीन ब्लेडर भरा हो और सहवास किया जाए तो स्खलन के वक़्त वेजाइनल मसल्स से कंट्रोल हट जाता है… तब ऐसे होता है। ऐसा आम कंडीशन में होने लगे तो समझो कि हर सेक्स के बाद बिस्तर की हालत खराब हो जाए। यह रस नहीं था तुम्हारा… बल्कि पेशाब था।’

‘जो तुम्हारे मुंह में जा रहा था। तुम्हे गन्दा नहीं लगा?’

‘नहीं। मैंने इन पलों में तुम्हें मन से स्वीकार किया था… तुम्हारी कोई भी चीज़ मेरे लिए अस्वीकार्य या घृणित नहीं है। सिर्फ स्खलन के लिए योनि और लिंग का घर्षण किया जाए वहाँ यह बातें मायने रखती हैं पर ऐसे मामले में नहीं।’

‘तुम क्या कह रहे थे कि ये स्क्वर्टिंग जानबूझकर भी की जाती है?’

मैंने अपने मोबाइल पर एक पोर्न साइट खोली और उसे स्क्वर्टिंग वाली फ़िल्में दिखाने लगा जिनमे लड़कियाँ स्तम्भन या स्खलन के दौरान ज़ोर जोर से पेशाब की धाराएँ छोड़ती हैं।

वह गहरी दिलचस्पी से वह छोटी छोटी फ़िल्में देखने लगी और ऐसे ही एक घंटा गुज़र गया।

इस बीच वह धीरे धीरे फिर गर्म हो गई थी, इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैंने उसकी उंगलियाँ अपने शांत पड़े लिंग पर महसूस की।
उसकी उँगलियों की सहलाहट से उसमें फिर जान पड़ने लगी।

मैंने फोन को किनारे रख दिया और उससे सट कर उसकी आँखों में झाँकने लगा।

‘हम रात भर यह करेंगे।’ कहते हुए उसके स्वर में अनिश्चितता थी।

‘देखते हैं… कब तक तुम बर्दाश्त कर सकती हो खुद को इस हाल में!’ मैंने शरारत से मुस्कराते हुए कहा और उसे चिपटा कर अपने ऊपर खींच लिया।

‘तुम्हारे मुंह से कुछ महक आ रही है।’
‘तुम्हारी ही है।’

‘क्या हर बार ऐसे ही डिस्चार्ज होना पड़ेगा मुझे?’

‘यह तुम्हारे ऊपर डिपेंड है। स्खलन सिर्फ लिंग योनि के घर्षण से संभव नहीं होता बल्कि दिमाग को वहाँ, उस पॉइंट पर पहुंचना पड़ता है। अगर तुम चाहो तो अपने दिमाग को दूसरे तरीके से भी वहाँ ले जा सकती हो… हम एक दूसरे को ज़बरदस्त ढंग से रगड़ेंगे, चूमेंगे, सहलाएंगे और तुम अपने शरीर के हर हिस्से से उस घर्षण की उत्तेजना को फील करते हुए अपने दिमाग को पूरी एकाग्रता से वहाँ ले जाने की कोशिश करोगी जहाँ चरमोत्कर्ष का बिंदु है।
किसी भी पल में खुद को रोकोगी या संभालोगी नहीं बल्कि दिमाग से यह ठान लोगी कि तुम्हे स्खलित होना है।’

‘कोशिश करती हूँ। ज़ाहिर है कि मेरे लिए सब कुछ नया है, अजीब है, तो मुझे नहीं पता कि हो पाएगा या नहीं पर कोशिश करुँगी।’

मैंने उसकी पीठ अपने सीने पेट से सटाते हुए उसके दोनों बूब्स ज़बरदस्त ढंग से मसलने शुरू किये, होंठ फिर उसके होंठों से सटा दिए…

उसने कुछ झिझक तो ज़रूर महसूस की क्योंकि मेरा मुंह उसके कामरस और मूत्र से सना था लेकिन दिमाग पर हावी होते नशे ने वह झिझक कुछ ही पल में मिटा दी और वह खुद से सहयोग करने लगी।

एक हाथ उसके वक्ष पर छोड़ कर दूसरे को मैं नीचे ले गया और उसकी योनि के ऊपरी भाग को सहलाने रगड़ने लगा।
कुछ ही पलों में वह ऐंठने मचलने लगी।

बिस्तर की चादर फिर अस्त व्यस्त होने लगी और हमारे नग्न शरीरों के बीच ऐसी रगड़ घिसाई शुरू हो गई जैसे कोई फ्रेंडली मल्ल युद्ध चल रहा हो।

यहाँ उसमें ज़रा भी शर्म या झिझक बाकी नहीं रही थी और वह सब कुछ खुल कर एन्जॉय कर रही थी, जिसमें सारी चीज़ें उसने पोर्न क्लिप्स में देखी रही होंगी।

उसके मुंह से रह रह कर कामोत्तेजना से भरी सिसकारियाँ फूट रही थीं जो मेरे कानों में रस घोल रही थीं।

बिस्तर इस धींगामुश्ती के लिए छोटा पड़ गया। हम कहीं अधलेटे बिस्तर पर हो जाते कहीं बिस्तर छोड़ कर कमरे की दीवारों से जा चिपकते, कहीं ठन्डे फर्श पर लोटने लगते।

अजीब नज़ारा था… बस ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल प्रेमी जोड़ा ज़माने से बेखबर, अपने प्राकृतिक रूप में उस छोटी सी जगह में कामक्रीड़ा में ऐसा मस्त हो कि न दुनिया की खबर रह गई हो न अपनी।

हमारी भारी साँसें और मस्ती में डूबी सिसकारियाँ कमरे की सरहदों को तोड़ रही थीं।

इस बीच उसके नितम्बों को ज़बरदस्त ढंग से दबाते, मसलते मैंने कई बार कुछ कुछ क्षणों के लिए अपनी उंगली उसके न सिर्फ योनिद्वार में घुसाई बल्कि उसके पीछे के छेद में भी घुसाई, जिसे महसूस करके वह कुछ पलों के लिए रुकी, अटकी, झिझकी लेकिन फिर मेरे आदेशानुसार उसने उस उंगली को भी कामक्रीड़ा का एक अंग मान कर स्वीकार कर लिया।

मेरे हाथ को बार बार अपनी योनि पर ले जाकर और अपनी योनि को मेरी जांघ पर रगड़ कर उसने संकेत दिया कि वह वहाँ और ज्यादा घर्षण चाहती थी।

तो मैं बिस्तर पर चित लेट गया और उसकी योनि को उँगलियों से फैला कर, उनके बीच अपने लेटे, पेट से सटे लिंग को सेट करके, उसे अपने ऊपर बिठा लिया और उसे कहा कि वह आगे पीछे करे।
इस तरह उसकी गर्म, तपती हुई योनि को मेरे गर्म लिंग का घर्षण, उसके योनि छिद्र से लेकर, क्लिटरिस हुड तक मिलेगा और उसे बिना अंदर बाहर किये भी ज़बरदस्त मज़ा आएगा।

वो उत्तेजित अवस्था में होंठ भींचे अपनी कमर को आगे पीछे करने लगी जिससे न सिर्फ उसकी योनि को स्खलन की तरफ ले जाने में सहायता मिली बल्कि इससे मुझे भी इतना आनन्द आया कि मैं भी स्खलन के उस अंतिम मुकाम की तरफ बढ़ चला।

उसकी रस से भरी बहती हुई योनि मेरे लिंग को अंडकोषों तक गीला कर रही थी।
मेरे ऊपर बैठी कामोत्तेजना में डूबी वह ऐसे आगे पीछे हो रही थी जैसे हम सामान्य सहवास कर रहे हों।
उसके वक्ष उसके हिलने के साथ आगे पीछे झूल रहे थे जिन्हे मैंने थाम लिया और जोर जोर से मसलने लगा।

पर यह पल उसके लिए ज्यादा विस्फोटक थे जो पहली बार इस दौर को जी रही थी। उसकी मानसिक दशा जल्दी ही वहाँ पहुँच गई जहाँ उसकी योनि उसके मस्तिष्क को नियंत्रित करने लगी।

वह मेरे ऊपर इस तरह झुकी कि उसके बूब्स मेरे सीने से आ लगे और वह अपने हाथ को नीचे ले जाकर मेरे लिंग के अग्रभाग को अपने ज्वालामुखी की तरह धधकते, भाप छोड़ते ढहाने में घुसाने की कोशिश करने लगी।

ज़ाहिर था कि छेद खुला हुआ तो नहीं था कि एकदम से वह घुसाने में कामयाब हो जाती।
एक तो बंद की हद तक टाइट छेद और ऊपर से उसका और मेरा इतना सारा लुब्रिकेंट… लिंग फिसल फिसल कर नीचे चला जाता या ऊपर चला जाता।

उस घड़ी ख्वाहिश तो मेरी भी हो रही थी कि वह कामयाब हो जाये और मुझे भी एक अनछुए, कुंवारे छेद में स्खलन का सुख प्राप्त हो लेकिन मुझे अपनी प्रतिज्ञा याद गई।

बावजूद इसके कि मैं सब्र वाला, तजुर्बेकार और बड़ी हद तक खुद पर नियंत्रण रखने वाला था… मुझे सम्भलने में कई पल लग गए, पर गनीमत रही कि तब तक वह लिंग को अंदर घुसाने में कामयाब नहीं हो गई।

मैंने उसकी पीठ पर पकड़ बनाई और पलटनी खाते हुए उसे नीचे ले आया और खुद उसके ऊपर हो गया।
नीचे लिंग की रगड़ जारी रखते हुए मैं उसके होंठ चूसने लगा।

‘भाड़ में जाए वर्जिनिटी… अब मेरी बर्दाश्त से बाहर है।’ वह अपने होंठों को मेरी पकड़ से छुड़ा कर हाँफते हुए बोली- इसे अंदर डालो और मुझे वैसे ही जोर जोर से फ़क करो जैसे कोई मर्द किसी औरत को करता है।

‘हाँ हाँ क्यों नहीं… पर इतनी जल्दी क्यों? अभी तो शुरुआत है। वह स्खलन का आखिरी तरीका है जो आखिर में सिखाऊँगा। अभी एक बार इस तरह भी तो मज़ा लो। मैं न कहीं भागा जा रहा हूँ न मेरा वह! सब तुम्हारा है मेरी जान। थोड़ा सब्र करो… फिर मैंने तुम्हें वैसे ही फ़क करूँगा जैसे तुम चाह रही हो।’ मैंने उसे बहलाते हुए कहा।

उसने होंठ भींच लिए।

‘क्लोज़ योर आइज़ एंड जस्ट इमैजिन… तुम्हारी दोनों टाँगें घुटनों से मुड़ी फैली हुई हैं और मैं उनके बीच तुम्हारे छेद में अपना लिंग घुसाए हुए हूँ और धक्के पर धक्के लगा रहा हूँ। तुम अपनी कमर उठा उठा कर उसे और अंदर ले रही हो और आह आह करती मुझे और जोर से धक्के लगाने को कह रही हो।’

मैं उसकी योनि पर अपने गर्म लिंग का घर्षण देते उसे कल्पनाओं की दुनिया में ले आया- फिर तुम डॉगी स्टाइल में आ जाती हो और मैं तुम्हारे पीछे आ कर अपना लिंग तुम्हारी योनि में उतार कर धक्के लगाने लगता हूँ। मेरा पेनिस बार बार तुम्हारी गहराई में जाकर तुम्हारी बच्चेदानी को छू कर आता है और मेरे पेट से बार बार टकराते तुम्हारे चूतड़ आवाज़ कर रहे हैं। तुम बेहद अच्छा महसूस कर रही हो, तुम्हें मज़ा आ रहा है… तुम्हें बहुत मज़ा आ रहा है।

‘हाँ… हाँ… बहुत मज़ा आ रहा है।’ वह कांपती लहराती आवाज़ में बड़बड़ाई- फिर से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कुछ निकल पड़ेगा। आह… आह, हम्म्म… बस निकलने वाला है। आह-आह…

फिर उसकी आहें जोर की सिसकारियों में बदल गईं और जिस्म इस तरह कांपने लगा जैसे झटके लग रहे हों।
उसने अपने दोनों हाथों से मुझे पीठ की तरफ से पकड़ के ऐसे सख्ती से दबोच लिया जैसे मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती हो।

गौसिया की पकड़ इतनी सख्त थी कि मुझे अपनी हड्डियाँ कड़कड़ाती महसूस हुईं।
इस जकड़न और घर्षण ने मुझे भी चरमोत्कर्ष तक पहुंचा दिया था और मैंने भी उसे पीठ की तरफ से पकड़ के ऐसे सख्ती से खुद से चिपटाया कि उसने भी वैसा ही महसूस किया होगा।

उस घड़ी हमारे जिस्मों के बीच हवा के गुज़र सकने की अंतिम सम्भावना भी ख़त्म हो गई थी और देख कर ऐसा लगता था जैसे हम एक दूसरे की हड्डियाँ तोड़ कर एक दूसरे में समां जाना चाहते हों।

दिमाग में सनसनाहट इस कदर हावी थी कि कुछ पलों के लिए उसके साथ मैं भी बेसुध हो गया।

स्खलन का अंतिम दौर भी ख़त्म हो चुका और दिमाग की सनसनाहट कुछ कम हुई तो हमारी पकड़ ढीली पड़ी और हमने एक दूसरे को आज़ाद किया।

कुछ क्षणों पश्चात वह कुछ उठ कर अपने पेडू पर वहाँ देखने लगी जहाँ मेरे लिंग ने गाढ़ा सफ़ेद वीर्य उगला था जो अब हवा के संपर्क में आते ही हल्का पड़ने लगा था।

उसने अपनी एक उंगली उस वीर्य में डुबाई फिर उसे अपनी आँखों के पास लाकर गौर से देखने लगी।

‘ऐसा होता है वीर्य!’ उसने बुदबुदाते हुए कहा।

‘मर्द का रस… कह सकती हो कि शुक्राणुओं का समूह जो बाहरी हवा के संपर्क में आते ही मर जाते है और मर कर पानी की शक्ल में फैल जाते हैं।’

उसने उंगली को नाक के पास ले जाकर सूंघा- कैसी सड़े आटे जैसी तो महक है। कैसे लड़कियाँ इसे मुंह में ले लेती हैं या निगल लेती हैं? छीः’ उसने मुंह बनाते हुए कहा और अपना वही स्टोल उठा कर जिससे मैंने पहले पोंछा था, पहले उंगली पोंछी और फिर अपने पेट से उसे साफ़ करके उठ कर अपनी योनि के नीचे मौजूद चादर पर पड़े गीले धब्बे को देखने लगी।

‘इट्स ह्यूमन नेचर! मन में होता है कि यह कोई नुकसानदेह चीज़ नहीं है और फिर जो स्वाद बार बार ज़ुबान को लगे, उसकी आदत हो जाती है। फिर वह अच्छा या बुरा नहीं लगता। फिर जिन्हें तुम स्पर्म मुंह में लेते या निगलते देखती हो वो पोर्न एक्ट्रेस होती हैं जिनका यह काम है, जिसके वे पैसे लेती हैं। ज़रूरी नहीं कि उनकी तरह हर लड़की वैसा करे।’

‘हमारे वीर्य का रंग ऐसा क्यों नहीं होता।’

‘क्योंकि उसमें स्पर्म नहीं होते और वैसे भी वह वीर्य नहीं होता।’

‘एनीवे, थैंक्स।’ वह उस तरफ से ध्यान हटा कर मेरी तरफ देखते हुए अनुराग भरे स्वर में बोली- मैं बहक गई थी, मेरा खुद पर कोई काबू नहीं रह गया था। मुझे बेहद मज़ा आ रहा था और मैं चाहती थी कि तुम उसे अंदर करके मेरे मज़े को दोगुना कर दो। पर शुक्रगुज़ार हूँ तुम्हारी कि तुमने ऐसे नाज़ुक पलों में भी खुद पर कंट्रोल रखा और मुझे ज़िन्दगी भर शर्मिंदा होना से बचा लिया।

‘अगर तुम कामयाब हो जाती तो… शर्मिंदा होने के सिवा अपने किसी टिपिकल रवायती शौहर को क्या एक्सक्यूज़ देती।’
‘यही कि साइक्लिंग करने में झिल्ली फट गई थी। बाकी वह ऐसे दो चार बार करने से जो ढीली होती भी तो जब तक शादी होगी तब तक फिर टाइट हो जायेगी कुंवारी जैसी। पर यह मेरे खुद के अपनी नज़र में गिर जाने वाली बात होती।’
‘मैं पूरी कोशिश करूँगा कि तुम्हे खुद से शर्मिंदा होने से बचा सकूँ।’

हमने फिर बिस्तर दुरुस्त किया और लेट कर बातें करने लगे।

‘क्या कह रहे थे कि अंदर डालना डिस्चार्ज होने का आखिरी तरीका है जो आखिर में सिखाओगे।’ वह शरारत भरे स्वर में मुझे देखते हुए बोली।

‘तुम्हें बहला रहा था। बात सही है लेकिन वह तुम्हें मैं नहीं बल्कि तुम्हारा हबी सिखाएगा।’

‘वैसे ज्यादा मज़ा किसमें आता है… लम्बे मोटे वाले में या नार्मल में?’

‘इसका रिश्ता भी दिमाग से होता है। अगर तुमने मन में सोच बना ली कि लम्बे मोटे सामान ज्यादा मज़ा देते हैं और तुम्हें वो नहीं मिलता तो तुम कभी किसी छोटे सामान से संतुष्ट नहीं हो पाओगी लेकिन अगर तुमने इसे नैचुरली लिया या दिमाग में यह धारणा बैठ गई कि वह ज्यादा तकलीफदेह होगा तो तुम्हें मध्यम आकार के लिंग से ही पूरी संतुष्टि भी मिलेगी और हर तरह का मज़ा भी आएगा। पर हाँ उसकी लम्बाई इतनी तो ज़रूर हो कि हर तरह के आसन में वह योनि में इतनी गहराई तक तो ज़रूर पहुंचे कि घर्षण का मज़ा दे सके।’

‘तुम्हारा दे सकेगा हर आसन में मज़ा?’

‘अगर लड़की मोटी है या उसके नितम्ब ज्यादा हैं या कम भी हैं और पीछे की तरफ ज्यादा निकले हैं, या चर्बी से भरे सख्त हैं और उनमे स्ट्रेचिब्लटी नहीं है तो मैं हर आसन में कामयाब नहीं हो सकता। यह मेरी लिमिटेशन है।’

‘बड़ी साफगोई से खुद की कमी स्वीकार कर लेते हो।’

‘इससे मैं बड़े बड़े दावे करने से बच जाता हूँ और मुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ता।’

‘अब तक कितनी लड़कियों से सेक्स किया है?’

‘गिनना पड़ेगा। छोड़ो उन्हें… चलो वीडियो देखते हैं। फर्स्ट सेक्स के… जो आइन्दा ज़िन्दगी में तुम्हारे काम आएंगे।’

पहले हमने फर्स्ट सेक्स वाले ढेरों वीडियो देखे जिसमे प्रथम सहवास और उससे जुड़ी प्रतिक्रियाओं के दृश्य थे, पर वहाँ लड़कियाँ उस तरह रियेक्ट नहीं करती जैसे रियल में करती हैं…
दूसरे यह भी था कि उनमें ज्यादातर वीडियो फर्जी होते हैं जिसमे ब्लॅड निकालने के लिए किसी ट्रिक का सहारा लिया जाता है।

कुछ देर में जब उनसे जी भर गया तो हम भिन्न भिन्न केटेगरी के वीडियो देखने लगे।

जब मैंने उसे ब्लैक मॉन्स्टर डिक वाले वीडियो दिखाये जिनमें काले हब्शी पुरुषों के लिंग घोड़ों जैसे लम्बे और मोटे थे बहुत जल्दी उसमें अरुचि पैदा हो गई कि इतने बड़े भी किस काम के जो न पूरा योनि के अंदर समां सके और न ही सामान्य तरीके से स्तम्भन किया जा सके।

शुक्र है कि बड़े सामान के आकर्षण से उसे मुक्ति मिली और करीब डेढ़ घंटे बाद उसने फिर गर्मी चढ़ने के आभास देना शुरू किया।

‘कोई और तरीका भी होता हो तो वो भी बताओ।’ उसने मेरे लिंग को मुट्ठी में दबोच कर दबाते हुए कहा।

‘ओके, तुम अपना हाथ जगन्नाथ वाला तरीका भी सीख लो जो शादी होने तक तुम्हारे काम आएगा।’ मैंने उसे खुद से अलग करते हुए कहा।

मैं बेड की पुश्त से टिक कर बैठ गया और अपने पांव फैलाते हुए अपने सामान पर तकिया रख लिया ताकि उसके नितम्बों का स्पर्श फिर न उसे सरकशी पर उतारू कर दे।

फिर गौसिया को उसकी पीठ की तरफ से खुद से सटाते हुए ऐसी अधलेटी अवस्था में लिटाया कि उसका सर मेरी ठोढ़ी से नीचे रहे।

‘अब तुम अपने बाएं हाथ से अपने दाएं बूब को दबओगी, सहलओगी और दाएं हाथ की उँगलियों से अपनी वेजाइना के क्लिटरिस हुड यानि भगांकुर को सहलाती दबाती रहोगी। जब कि मैं सीधे हाथ से तुम्हारे बाएं बूब का मर्दन करूँगा और उलटे हाथ से मोबाइल को सामने रखूँगा जिसमें हम 15-16 मिनट वाली ऐसी मूवी देखेंगे जिसकी हीरोइन के तौर पर तुम खुद को इमैजिन करोगी।’

‘ओके।’
मैंने मुंह में ढेर सी लार बनाई और उसके सीधे हाथ की उँगलियों को मुंह में लेकर उन्हें उस लार से गीला कर दिया।

गौसिया को हस्तमैथुन सिखाते हुए मैंने अपने मुख में ढेर सी लार बनाई और उसके सीधे हाथ की उँगलियों को अपने मुख में ले उन्हें लार से गीला किया- वहाँ सूखी उँगलियों से जल्दी ही जलन होने लगती है इसलिए हमेशा ध्यान रखना कि चिकनाई ज़रूरी है।
मैंने उसे चेताते हुए कहा।

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उसने सहमति में सर हिलाया।

फिर वो अपने सीधे हाथ से अपनी योनि के ऊपरी सिरे को बड़े प्यार से सहलाने लगी और उलटे हाथ से अपने दाएँ मम्मे को इस तरह दबाने लगी कि साथ ही उसका निप्पल भी मसला जाए।

जबकि मैंने उलटे हाथ में थमे मोबाइल को आँखों के सामने कर लिया और सीधे हाथ से उसके बाएँ मम्मे को उसी तरह दबाने सहलाने लग जैसे वह कर रही थी।

मोबाइल पर वह मूवी चल रही थी जिसमें एक महिला और दो पुरुष थे और कुछ देर के योनि भेदन के पश्चात गुदा मैथुन होना था और अंत में आगे पीछे से एक साथ उसके दोनों छेद बजाये जाने थे।

यह वीडियो मैंने जानबूझ कर चुनी थी कि उसे सम्भोग का यह रास्ता भी दिखा सकूँ।

वह मूवी देखती खुद को उस लड़की के रूप में कल्पना करने लगी जो अभी लिंग चूषण में मस्त थी।
साथ ही गौसिया के दोनों बूब्स दो अलग अलग हाथों द्वारा मसले जा रहे थे।
अभी वो अपनी क्लिटरिस को बड़े प्यार से और हल्के हाथों से सहला रही थी।

फिर तीनों की पोजीशन बदली और एक मर्द लड़की की टांगों के बीच आकर उसकी योनि से मुंह सटा कर उसकी कलिकाओं को छेड़ने चुभलाने लगा और दूसरा लड़की के मुंह के पास खड़ा रहा और लड़की उसके बड़े से लिंग को चूसती रही।

फिर तीनों तैयार हो गये तो एक मर्द नीचे लेट गया और लड़की उसके लिंग को अपनी योनि में लेते हुए उस पर बैठ गई जबकि दूसरा वैसे ही खड़ा उसे लिंग चूषण कराता रहा।

अब गौसिया के योनि को सहलाने वाले हाथ में कुछ तेज़ी आने लगी थी।

थोड़ी देर बाद दोनों मर्दों ने पोजीशन बदल ली।

इस तरह थोड़ी देर बाद उन्होंने आसन बदल लिए और लड़की तिरछी लेट कर अपनी एक टांग उठा कर अपनी चूत चुदवाने लगी।
ऐसी सूरत में भी दोनों मर्द वही स्थिति अपनाए रहे कि एक योनि में डालता तो दूसरा मुंह में…
और थोड़ी देर में अपनी जगह बदल लेते।

गौसिया की उत्तेजना धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी।

जब इस पोजीशन से उनका जी भर गया तो लड़की को पीठ के बल लिटा लिया और एकदम सामने से उसे ठोकने लगे, एक अंदर डालता, दूसरा चुसाता और फिर जगह की अदला बदली।

इस आसन के बाद उन्होंने उसे घोड़ी बना लिया और पीछे से ठोकने लगे।

जब यह सिलसिला पूरा हो गया तो एक ने लड़की को उसी पोजीशन में रखते हुए लड़की के पीछे के छेद में उंगली करनी शुरू की और लड़की ‘फ़क माय एस’ का जाप करने लगी।

फिर उसी छेद पर ढेर सी लार उगल कर वह उसमें अपना लिंग धंसाने लगा।

गौसिया के हाथ थम गए और वह चेहरा मेरी तरफ घुमा कर मुझे देखने लगी।
‘यह क्या कर रहे हैं?’ उसने थोड़ा अटकते हुए कहा।

‘गुदा मैथुन…’ तुम इतनी अंजान तो नहीं कि ऐनल सेक्स के बारे में जानती न हो?’

‘जानती हूँ पर वह तो लड़के एक दूसरे के साथ करते हैं?’

‘हाँ लड़के करते हैं क्योंकि उनके पास ऑप्शन नहीं होता पर लड़कियाँ भी कराती हैं। जैसे वेजाइनल सेक्स का एक मज़ा होता है वैसे ही ऐनल सेक्स का और ओरल सेक्स का एक अलग मज़ा होता है। इन मजों की आपस में तुलना बेमानी है।
समझो कि तीन अलग तरह के ज़ायके हैं, एक दूसरे से अलग।
एक औरत के पास तीन सुराख़ होते हैं- दो नीचे एक ऊपर…
और तीनों से ही सेक्स का मज़ा लिया जा सकता है, दिया जा सकता है।
सामान्यतया हम वेजाइनल सेक्स ही करते हैं लेकिन ऐनल सेक्स और ओरल सेक्स भी एक्जिस्ट करते हैं यार!’

अब तक वो मर्द अपना पूरा लिंग लड़की के पिछवाड़े यानी गांड में घुसा चुका था और अंदर बाहर करने लगा था।

‘इसमें भी मज़ा आता है?’ उसने थोड़ी बे-यकीनी से कहा।

‘अच्छा, मज़ा नहीं आता तो क्या ऐसे ही लोग पागलों की तरह करते हैं? तुम फिलहाल एन्जॉय करो… सवाल जवाब बाद में कर लेना। बस कल्पना करो कि यह तुम हो और अपने जिस्म के हर हिस्से से मज़ा ले रही हो।’

वह चुप होकर फिर फिल्म पर ध्यान केंद्रित करने लगी और हाथ थोड़े स्लो सही पर वापस शुरू हो गए जबकि मैं उसे उत्तेजित करने के लिए अपना हाथ भी नीचे ले गया और एक इंच तक अपनी बिचली उंगली उसके छेद में धंसा दी।

वह ‘उफ़’ करके रह गई।

मैंने उंगली को हरकत देनी शुरू की तो उसके हाथों में भी तेज़ी आने लगी।

उधर मूवी में एक मर्द हटा तो दूसरा आ गया और पहला चुसाने लग गया।

यह देख उसे फिर झटका लगा।

‘ऐसी नाज़ुक हालत में गन्दा बुरा कुछ नहीं और वैसे भी ऐसे एक्ट से पहले छेद को अंदर तक साफ़ कर लिया जाता है।’ मैंने उसके मन में पैदा हुई उलझन दूर करते हुए कहा।

वह बोलते बोलते रह गई।

थोड़ी देर बाद स्थिति यह बन गई- एक मर्द नीचे लेटा और लड़की उसके लिंग को योनि में लेते हुए उसके सीने पर इस तरह झुक गई कि उसका पीछे का छेद सामने आ गया, जिसमें दूसरे मर्द ने अपना लिंग घुसा दिया और इस तरह वो दोनों तरफ से ठुकने लगी।

काफी देर इस पोजीशन में रहने के बाद उन्होंने आसन बदला और वह लड़की सीधी होकर लेटे हुए मर्द पर इस तरह बैठी कि उसका लिंग पीछे के छेद में धंस गया और योनि खुल कर सामने आ गई जिसमें दूसरे मर्द ने अपना लिंग घुसा दिया और चुदाई करने लगा।

अब गौसिया चरम पर पहुँचने लगी थी, यह उसकी कंपकपाहट से महसूस हो रहा था।
उसके मुंह से ‘आह-उफ़’ जैसी कामुक सीत्कारें निकलने लगी थीं।

और जैसे मूवी वाले हीरो खलास हुए उधर गौसिया ने भी झटका खाया और एड़ियाँ बिस्तर में धंसा कर ऐंठ गई, कमर ऊपर उठ कर तन गई थी।
एक हाथ से उसने मेरी जांघ का गोश्त लगभग नोच डाला था और दूसरे हाथ से अपनी योनि को मसले दे रही थी।

इस बार भी स्खलन के दौरान वो अपनी मूत्र नलिका पर नियंत्रण नहीं रख पाई थी और छोटी छोटी सी फुहारें छोड़ रही थी।

फिर जैसे अंतिम झटका कह कर मेरी गोद में ही फैल गई।
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मैंने भी अपने हाथ गिरा लिए थे और रिलैक्स करने लगा था।

करीब दस मिनट तक हम ऐसे ही पड़े रहे फिर जिस्म में थोड़ी जान आई तो वह उठ कर गीला हो चुका बिस्तर देखने लगी।

‘पहली बार तुमने बचा लिया था, इस बार भीग ही गया।’ उसने मायूसाना अंदाज़ में कहा।

‘थोड़ा ही है… सूख जायेगा।’

‘तुम उठो, तुम्हारी पीठ और जांघ देखूँ।’

मैं उठा तो वह मेरी पीठ देखने लगी। जहाँ उसने पिछली बार स्खलन के दौरान उंगलियाँ धंसाई थीं वहाँ ज़रूर उसके नाखूनों ने गोश्त उड़ा दिया होगा और खून निकाल लिया होगा।

वैसे ही इस बार जहाँ जांघ पकड़ी थी, उसकी उँगलियाँ छप गई थीं और जहाँ नाख़ून धंसे थे, वहाँ खून से बनी लकीरें दिख रही थीं।

‘सॉरी!’ उसने खेद भरे स्वर में कहा।
‘कोई बात नहीं। ऐसी हालत में यह होता है।’

‘मैं दवा लगा देती हूँ। फिर तुम जाओ… आज के लिए इतना काफी है। अब सोना भी है! बल्कि आज तो जी भर के सोना है।’ वह साइड टेबल से कोई एंटी-बायोटिक क्रीम निकाल कर लगाते हुए बोली- ऐसा लग रहा है जैसे जिस्म के अंदर कोई मैल था, कोई लावा था जो कैसे भी निकल नहीं पाता था और निकलने की कोशिश में मुझे भारी बेचैनी देता था, रातों की नींद छीन लेता था, मुझे तड़पने कसमसाने पर मजबूर कर देता था… वह आज निकल गया। आज जैसे मैंने किसी भार से मुक्ति पा ली।’

दवा लगने के बाद मैंने अपने कपड़े पहने और रुखसत हो गया।

अगले दिन बुधवार था… यानि उसकी आज़ाद ज़िन्दगी का तीसरा दिन।

हम करीब ग्यारह बजे पुलिस लाइन और न्यू हैदराबाद के बीच वाली सड़क पर मिले जहाँ से उसे लेकर मैं आई टी की तरफ से होते कपूरथला की तरफ निकाल लाया, जहाँ नोवल्टी में उसके पसंदीदा हीरो सलमान खान की फिल्म चल रही थी।

हमने साढ़े बारह बजे वाले शो का टिकट ले लिया और नेहरू वाटिका की तरफ चले आये।

वह कल के अदभुत अनुभव के बारे में बातें कर रही थीम कई सवाल पूछ रही थी जिनके अपनी तरफ से मैं तसल्ली बख्श जवाब दे रहा था।

ऐसे ही सवा बारह बज गए तो हम थिएटर की तरफ आ गए और नियत समय पर हाल में घुस गए… जहाँ अगले तीन घंटे हमने पेस्ट्री और पॉपकॉर्न के साथ सलमान भाई की फिल्म के मज़े लिए।

उसने यहीं अपने नक़ाब से कल की तरह छुटकारा पा लिया था और उम्मीद के अनुसार उन्ही कपड़ों से मलबूस थी जो उसने मेरे साथ ही फन और सहारागंज से लिए थे।

फिल्म देख कर बाहर निकले तो भूख लग रही थी।
वहीं पीछे गली में मौजूद रेस्तराँ में हमने हल्की पेट पूजा की और भारी ट्रेफिक के बीच लॉन्ग ड्राइव करके इको गार्डन की तरफ चले आये जहाँ हमने शाम तक का वक़्त गुज़ारा।

वह परसों से ही ऐसे बातें कर रही थी जैसे बरसों से भरी बैठी हो, जैसे अपना सब कुछ कह देना चाहती हो।
हर छोटी बड़ी बात… कभी बच्चों की तरह खुश होकर, कभी ग़मगीन हो कर, कभी सहज रूप में… कभी कुछ याद करते उसकी पलकें भीग जातीं और मैं बड़े धैर्य से उसकी हर बात सुनता रहता, उसे प्रोत्साहन देता रहता।

बीच में वह मुझसे मेरी बातें भी पूछती और मैं कुछ सच्ची कुछ झूठी बातें कह जाता।

मैं एक पल के लिए भी इस बात को नहीं भूलता कि यह सिलसिला हमेशा नहीं चलना था इसलिए ऐसी कोई बात नहीं बताता था जिससे वह कभी मुझे पाने की कोशिश करती भी तो ढूंढ पाती।

मैं उसकी ज़िन्दगी का शायद पहला क्रश था इसलिए उसका मुझसे जुड़ जाना स्वाभाविक था लेकिन मैं वह ज़िन्दगी नहीं जी सकता था।
उस तरह की ज़िन्दगी से मेरा भरोसा उठ चुका था।

शादी में धोखा खाने और ढेरों लड़कियों औरतों को दोप्याजे गोश्त की तरह इस्तेमाल करने के बाद अब मुझमें वो जज़्बात ही नहीं बचे थे जिसकी उसे दरकार थी।

मेरी मानसिकता अब उस मुकाम पर पहुँच चुकी थी जहाँ मर्द को किसी औरत के पेट के अंदर मौजूद कोख नहीं नज़र आती, नज़र आती है तो पेट की ढलान पर मौजूद योनि।

जहाँ औरत के सीने से छूटती ममता की धाराएँ, उनके नीचे भावनाओं से ओतप्रोत दिल नहीं नज़र आता… नज़र आते हैं तो दो उरोज…
मैं जानता हूँ यह मेरी कमी है, बुराई है लेकिन मैं अब इसी के साथ जीने के लिए अभिशप्त हूँ और इसके लिए रत्ती भर भी अफ़सोस नहीं करता।

‘सुनो!’ उसने मुझे टहोका तो मेरी तन्द्रा टूटी।

‘हूँ।’ मैं अपने ख्यालों से बाहर आ कर उसे देखने लगा।

‘मुझे नहीं पता तुम इस सिलसिले को कैसे ले रहे हो लेकिन मुझे अपना डर है कि कहीं मैं न दिल लगा बैठूँ, क्योंकि मैं महसूस कर रही हूँ कि तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो, मुझे तुम्हारी परवाह होने लगी है। यह ठीक साइन नहीं हैं मेरे लिए।’

‘फिर? इस सिलसिले को यहीं ख़त्म कर देते हैं।’

‘नहीं, यह मेरी ज़िन्दगी का पहला और आखिरी मौका है। इसके बाद मुझे कोई और चांस नहीं मिलने वाला अपने तरीके से यूँ ज़िन्दगी जीने का और इसके लिए अगर मुझे कीमत के रूप में अज़ीयत झेलनी पड़ी तो मुझे वह भी मंज़ूर है। मैं अब पीछे नहीं हट सकती।’

‘फिर?’

‘मैं बस यह चाहती हूँ कि अगर मैं तुमसे अटैच हो भी जाऊँ तो तुम मैच्योरली हैंडल करना।
मैं तो नई उम्र की ऐसी लड़की हूँ जिसका दिल आईने के समान होता है, जो बार बार सामने पड़ रहा है, जो बार बार नज़दीक आता है वही दिल में बस जाता है, पर तुम इस दौर से गुज़र चुके हो, अगर मैं बहक जाऊं तो तुम सम्भालना।
संडे के बाद तुम मेरा नंबर ब्लॉक कर देना, व्हट्सप्प पर मुझे ब्लॉक कर देना कि अगर मैं कंट्रोल खो दूँ और तुमसे संपर्क करना भी चाहूँ तो कर न सकूँ।
तुमसे बात करने की कोशिश करुं तो मुंह फेर कर चले जाना।
कभी सामने आ भी जाऊँ तो रास्ता बदल कर निकल जाना। मैं जानती हूँ मुझे बहुत तकलीफ होगी पर इलाज अक्सर तकलीफ ही देता है।’

‘तुम फ़िक्र न करो। तुम जैसा चाहती हो वैसा ही होगा। चलो, अब चलें।’ मैंने उठते हुए कहा।

फिर हम वहाँ से चल पड़े।

इस बार मैंने उसने वहीं से नक़ाब ओढ़ लिया और मैंने उसे गोल मार्किट लाकर छोड़ दिया जहाँ आज बुध बाजार लगी हुई थी।

यहाँ उसे कुछ खरीदारी करके फिर घर चले जाना था, पर उतारते ही उसने रात के लिए कुछ चीज़ों की फरमाइश की, जिसने मुझे थोड़ा हैरान कर दिया पर फिर भी मैंने हामी भर दी और उसे छोड़ कर रुखसत हो गया।

और जैसा कि दो रोज़ से मामूल बन चुका था, दस बजे मैं तैयार होकर उसके मंगाए सामान के साथ उस के कमरे में पहुँच गया।
आज वह सेक्सी कपड़ों में नहीं थी बल्कि ढीली ढाली नाइटी पहने हुए थी।

वैसे भी इसका क्या फर्क पड़ता था जब पता था कि मेरे आते ही उसे उतरना था।

‘कपड़े खुद ही उतार दो… रात के इस वक़्त बिना कपड़ों के ही अच्छी लगती हो और दस्तरख़ान हो तो बिछा लो।’ मैंने सामान बिस्तर पर डाला, अपने कपड़े उतार के फेंके और बिस्तर पर बैठ गया।

जबकि उसने दस्तरख़ान फोल्ड करके आधा बिस्तर पर डाला, पहले से मौजूद दो गिलास वहाँ रखे और अपनी नाइटी उतार कर मेरे पहलू में आ जमी।

मैंने पैकेट से मैकडॉवेल और सोडे की बोतलें निकाल कर रखीं और उनके ढक्कन खोलने लगा।

गौसिया ने पैकेट में रह गए सिगरेट के पैकेट, लाइटर और नमकीन के पैकेट को निकाल लिया।

‘तुम्हें इस सब की इच्छा थी?’ मैंने ढक्कन खोलने के बाद सोडे से मिक्स करके दो छोटे पैग बनाते हुए कहा।

‘यूँ समझों कि यही डॉक्टर जैकाल और मिस्टर हाइड वाली थ्योरी है। मैं अपने अंदर की मिस हाइड को उसकी सभी इच्छाएँ पूरी करने के बाद बाहर निकाल फेंकना चाहती हूँ ताकि आइन्दा ज़िन्दगी में मेरे अंदर सिर्फ मिस जैकाल बचे।
मैं कभी इस कश्मकश में नहीं पड़ना चाहती कि सिगरेट का स्वाद कैसा होता है या शराब पीने के बाद कैसा महसूस होता है।
आज़ाद ज़िन्दगी का मतलब यही कि इन दिनों में मैं अच्छा बुरा सब कर लेना चाहती हूँ।
अच्छा तो पूरी ज़िन्दगी करने के मौके मिलेंगे मगर बुरा करने का कोई सिंगल मौका भी शायद मुझे दोबारा न मिले।’

‘चियर्स!’ मैंने उसके हाथ में गिलास थमा कर अपने गिलास से उसे टच करते हुए कहा।

‘और अगर किसी बुराई, किसी ऐब की लत लग गई तो?’

‘नामुमकिन! मुझे जो भी चीज़ या सुविधा आज हासिल है, सब तुम्हारे सौजन्य से है। चार दिन बाद तुम नहीं होगे मेरे पास… फिर मुझे कौन मुहैया कराएगा सब चीज़ें या ये सेक्स में सराबोर लम्हे?’

फिर हमने दो सिगरेट सुलगा लीं और उसके कश लगाते हुए नमकीन के साथ पैग का लुत्फ़ लेने लगे।

‘तुम इन चीज़ों का शौक पहले भी करते रहे हो या मेरी वजह से आज पीने बैठ गए?’

‘अपने घर परिवार से दूर अकेले जीवन यापन करते शख्स के लिए कुछ भी वर्जित और हराम नहीं रह जाता। हाँ, बस किसी चीज़ की आदत कभी नहीं बनाई।’

बीच में हमने होंठ भी एक दूसरे से टकराए और पैग चुसकते मैंने उसके मम्मों को भी दबाया सहलाया और योनि को भी रगड़ा और उसने भी मेरे लिंग को वैसी भी प्रतिक्रियात्मक रगड़न दी, जिससे उसमें भी जान पड़ने लगी थी।

‘कमरे में भरा सिगरेट का धुआँ तो निकल जायेगा मगर गंध रह जाएगी। उसका क्या करोगी?’

‘रूम फ्रेशनर से कमरे को इतना महका दूंगी कि सिगरेट की गंध बाकी न रहे। पर अभी नहीं, यह सब संडे को करूँगी, तब तक सब ऐसे ही चलेगा।’

‘एक और बनाऊँ?’ पैग ख़त्म हो गया तो मैंने पूछा।

‘अभी नहीं, पहली बार है, हो सकता है नशा ऐसा चढ़े की होश ही न रहे। वैसे इसमें ऐसा कुछ ज़ायका तो होता नहीं फिर क्यों कमबख्त मुंह लग के लोगों से छूटती नहीं।’

‘उसकी तासीर नशे में है ज़ायके में नहीं।’

सब सामान हमने हटा कर साइड टेबल पर पहुँचा दिया और बेड के सिरहाने से लग कर टांगें फैल कर बैठ गए।

अब उसकी फरमाइश पर मैंने मोबाइल पर उसके शब्दों में ‘ऑसम’ मूवी लगा दी।

वह मेरी साइड से लगी अपना गाल मेरे बाएँ कंधे से सटा कर मूवी देखने लगी और साथ ही अपने हाथ से मेरे लिंग को इस तरह ऊपर नीचे करने लगी जैसे हस्तमैथुन करते हैं और एक हाथ से मोबाइल सम्भाले दूसरे हाथ से मैं उसकी योनि के ऊपरी सिरे से खिलवाड़ करने लगा।

‘दिमाग में सनसनाहट हो रही है और अजीब सा महसूस हो रहा है।’ थोड़ी देर बाद उसने कहा।
तो मैंने उसकी आँखें देखीं जो नशे से बोझिल हो रही थीं।

मुझे लगा कि कहीं नशे में लुढ़क न जाये और रात का मज़ा ही किरकिरा हो जाये… मैंने मोबाइल किनारे रखा और उसे थाम लिया।

‘अपना दिमाग मुझमें लगाओ, अपनी वेजाइना से उठती लहरों में लगाओ।’ मैंने उसे अपनी बाँहों में लेते हुए कहा।

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और अगले पलों में हम एक दूसरे को रगड़ने में लग गए, एक दूसरे को चूमने, सहलाने, चुभलाने, दबाने, मसलने में लग गए और कुछ ही पल गुज़रे होंगे कि उसके नशे से शिथिल पड़ते शरीर में कामोत्तेजना की ऐसी गर्माहट पैदा हो गई कि शराब का नशा कहीं पीछे छूट गया।
रह गया तो वासना का नशा… जो सर चढ़ कर बोल रहा था।

मैंने अपने होंठों से कुछ बाकी न रखा था और जब उसके भगोष्ठ और भगांकुर को होंठ और जीभ से ज़बरदस्त ढंग से चूस और चाट रहा था तो उसने बेचैनी से मुझे ऊपर खींच लिया और खुद मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चूमने रगड़ने लगी।

‘यार आज करो!’ चूमाचाटी के बीच नशे से थरथराती आवाज़ में उसने कहा- उफ़… मैं और नहीं बर्दाश्त कर सकती। मुझे भी इस डंडे को अपने जिस्म में लेने का सुख चाहिए। कुछ करो, कैसे भी करो।’
एक तो शराब का नशा और उसमे जवानी का नशा, यौनांग से उठती मादक लहरें और उत्तेजना से कंपकपाते शरीर। जिस्म की गर्माहट ऐसी कि बुखार भी पीछे छूट जाए।
यहाँ खुद पर नियंत्रण बनाए रखना मेरे लिए बेहद मुश्किल था और उसके लिए तो खैर नामुमकिन ही था।

‘हम एनल सेक्स कर सकते हैं… अगर तुम चाहो।’ मैंने खुद को थोड़ा सँभालते हुए कहा।
‘करो… कुछ भी करो… कहीं भी घुसा दो पर इसे मेरे अंदर कर दो।’

‘क्या यहाँ कोई ऐसी चीज़ है जो बाहरी लुब्रिकेंट का काम कर सके- जैसे तेल, जेली?’
‘मस्टर्ड आयल है, कभी कभी मैं हाथ पैरों में लगाती हूँ।’

‘दे दो… ऐसे ही नहीं कर सकते। उसे पहले ढीला करना पड़ेगा।’

उसने मेरे ऊपर से हटते हुए साइड टेबल की दराज़ से क्रीम का छोटा डिब्बा निकाल कर मुझे थमा दिया।

मैंने उसका ढक्कन हटा कर उसे टेबल पर ही रख लिया और बेड पर उसी तरफ मुंह करते हुए ऐसे लेटा कि ज़रूरत पड़ने पर मैं तेल ले सकूं।

मैंने उसे अपने ऊपर इस तरह आने को कहा कि वह चौपाये जैसी पोज़ीशन में रहे, उसके घुटने मेरी पसलियों के गिर्द रहें और उसकी योनि मेरे मुंह पर रहे और खुद उसका मुंह वहाँ रहे जहाँ मेरा लिंग था।

ये 69 पोज़ीशन थी जो इस खेल की नई खिलाड़ी के लिए कुछ अजीब थी।

मैंने उसके नितम्बों को अपने चेहरे के सामने अपनी सुविधानुसार एडजस्ट किया और दोनों को सहलाते दबाते उसकी योनि में मुंह डाल दिया।
मैं न सिर्फ उसकी क्लिटरिस के साथ उत्तेजक ढंग से छेड़छाड़ कर रहा था बल्कि उसके बंद छेद को भी जीभ से दबा रहा था।
धीरे धीरे उसकी सीत्कारें का क्रम बढ़ने लगा।

इस पोजीशन में मेरा लिंग ऐन उसके मुंह के सामने था और उसे आमंत्रित कर रहा था।
वह तीन दिनों से पोर्न मूवी देख रही थी तो क्या इतना भी न समझी होगी कि वह उसके गीले मुंह के लिए कोई वर्जित फल नहीं बल्कि एक लज्जतदार चीज़ है जो मुझे वैसा ही सुख देगी जैसे इस वक़्त उसे मिल रहा है।

मैं अपना काम करते हुए दिमाग वहीं लगाए था कि कब वह अपनी झिझक और शर्म की बाधा को तोड़ के मेरे भाई को अपने मुंह की क़ुरबत बख्शती है…

और जब उसकी योनि ने उसके दिमाग पर नियंत्रण बना लिया तो उसने एकदम से लिंग को मुंह में दबोच लिया और बेताबी से ऐसे चूसने लगी जैसे आइसक्रीम चूस रही हो।

शिश्नमुंड के छेद पर मौजूद प्रीकम की बूँदों ने उसे रोका होगा लेकिन उसने कामयाबी से यह बाधा पार कर ली तो अब कोई अड़चन ही नहीं थी जो उसे यूँ ज़बरदस्त ढंग से लिंग चूषण करने से रोक सके।

उसके मुंह से बहती लार को मैंने अपने अंडकोषों और उनसे होकर अपने गुदाद्वार तक जाते महसूस किया था।
चूषण के साथ ही वह मेरे अंडकोषों को भी अपनी उँगलियों से सहलाने लगी थी।

अब उधर मेरा ध्यान देना मेरी सेहत के लिए ठीक नहीं था वर्ना मेरा पारा भी चढ़ने लगता अतएव मैंने अपना सम्पूर्ण ध्यान उसके चूतड़ों और योनि पर केंद्रित कर लिया और बड़ी लगन से योनि चूषण करते हुए अब अपनी दो उंगलियाँ सरहाने रखे तेल में डुबा लीं और उसके पीछे वाले सिकुड़े सिमटे छेद को सहलाने दबाने लगा।

‘तुम इस छेद को बिलकुल ढीला छोड़ दो… इसे किसी भी हालत में सिकोड़ोगी नहीं।’
उसने एक ‘आह’ भरी सिसकारी के साथ सहमति जताई।

मैं उसे योनि से चार्ज तो कर ही रहा था… जिससे उसके दर्द पर उसकी उत्तेजना हावी रहे। और जब लगा कि उँगलियों पर लगा तेल चुन्नटों से होता अंदर तक पहुँच चुका होगा तो अपनी बिचली उंगली थोड़ा दबाव देते अंदर उतार दी।

उसके जिस्म की अकड़न में एक पल के लिए ठहराव आया तो सही लेकिन एक उन्नीस साल की लड़की के लिए उंगली कोई मायने नहीं रखती थी और वह मैं कल भी कर चुका था।

मैंने जीभ से अपना काम करते हुए उंगली को गहराई में ले जाकर उसके रेक्टम की प्रवेशद्वार वाली दीवारों को सहलाने रगड़ने लगा, उंगली को गोल गोल घुमाते हुए।

‘आह, ओफ्फो… यह भी अच्छा लग रहा है… कितने… मज़े देते हो तुम… आह… और करो… ऐसे ही… और.. आह… मज़ा आ रहा है…’वह अस्फुट से शब्दों के साथ टूटती लड़खड़ाती आवाज़ में बोली।

उसे एन्जॉय करते देख मैंने दूसरी उंगली भी छेद में उतार दी।

उसके मुंह से दर्द भरी कराह निकली और उसने कुछ पलों के लिए छेद को सिकोड़ा मगर फिर ढीला छोड़ दिया और ऐसा लगा जैसे अपना ध्यान लिंग चूषण पर लगा लिया हो।

अच्छा ही था… इससे मुझे आसानी होती।
मैं दोनों उंगली अंदर ही रखते हुए इस तरह चलाने लगा कि एक बाहर की तरफ आ रही होती तो दूसरी अंदर की तरफ जा रही होती। इस तरह न सिर्फ उसे रगड़न मिल रही थी बल्कि छेद भी दो उँगलियों का आदि होकर ढीला हो रहा था।

एक सख्त कसे हुए छल्ले को मैं अपनी उँगलियों पर महसूस कर सकता था।

हालांकि यह पोज़ीशन ऐसी थी कि मैं उँगलियों पर तवज्जो देता तो मुझे अपना मुंह उसकी योनि से पीछे खींचना पड़ता और मुंह पर तवज्जो देता तो उँगलियों को गति नहीं दे सकता था।

दूसरे इस तरह मेरे पंजे यूँ मुड़े हुए थे की जॉइंट की हड्डी दर्द करने लगी थी।
अंततः मैंने उसे अपने ऊपर से हटा दिया।

खुद उठ कर उसी साइड में जिधर तेल रखा था, बेड से नीचे खड़ा हो गया और गौसिया को उसी तरह चौपाये की पोजीशन में रखते हुए एकदम किनारे खींच लिया।

उसकी कमर पर दबाव बना कर उसे इस तरह नीचे कर दिया कि उसके बूब्स और चेहरा गद्दे में धंस गए और इस तरह उसके नितम्बों वाला हिस्सा ही उठा रह गया जो मेरे एन सामने था और उसके दोनों गीले और बह रहे छेद बिल्कुल सही पोजीशन में मेरे सामने थे।

मैंने उँगलियों पर तेल लेकर उसके छेद में टपकाया और उसे उँगलियों से अंदर करते हुए, साथ ही दोनों उंगलियाँ भी अंदर उतार दीं।

इस काम में मैं अपना सीधा हाथ इस्तेमाल कर रहा था।
बाएं हाथ से मैंने उसकी पूरी तरह गीली, बहती-चूती योनि को रगड़ने सहलाने लगा जिससे वह फिर चार्ज होने लगी और जो कुछ पलों का अवरोध आया था, उससे उबरने लगी।

थोड़ी देर बाद जब लगा कि अब वह सह लेगी तो खाली वाला हाथ योनि से हटा कर मैंने उसमें तेल लिया और अपने लिंग को तेल से इस तरह सराबोर कर लिया कि दूल्हा चमकने लगा।

‘सुनो, मैं अब डालने जा रहा हूँ। कितना भी दर्द हो, यह सोचकर बर्दाश्त करना कि इस दर्द से कोई मर नहीं जाता और एकदम चिंहुक कर ऊपर नीचे न होना… चिकनाई बहुत है, फिसल कर नीचे के छेद में जा सकता है और गया तो झिल्ली तक पहुँचने से पहले रुक भी नहीं पाएगा।’ मैंने उसे चेतावनी देते हुए कहा।

‘अब तुम खुद अपनी क्लिटरिस को सहलाते हुए अपने को गर्म रखो, मेरा ध्यान अंदर डालने में है।’

उसने सर हिलाते हुए डालने का इशारा किया और खुद नीचे से अपना सीधा हाथ अपनी योनि तक ले आई और उसे सहलाने रगड़ने लगी।

मैंने उसके नितम्बों को सहलाते हुए सीधे हाथ से लिंग को पकड़ कर उसके छेद से टिकाया और अपनी उँगलियों से लिंग के अग्रभाग को उसके छेद पर दबाने लगा।

चुन्नटों भरा घेरा काफी सख्त था लेकिन चिकनाई इतनी ज्यादा थी कि चुन्नटों को खुलने में देर नहीं लगी।

और जैसे ही उसने पहली बाधा पार की, वह एकदम अंदर सरका और उसी पल में वह चिहुंक कर ‘अम्मी’ के उद्घोष के साथ चीखी।
अगला पल मेरे लिए अपेक्षित था इसलिए मैंने उसके कूल्हों के ऊपर, कमर पर अपनी उँगलियाँ धंसा दीं और उसके तड़प कर मेरे लिंग से बाहर निकल जाने की सम्भावना ख़त्म कर दी।

‘रिलैक्स- रिलैक्स… थोड़ा बर्दाश्त करो। अभी छेद अपने आप एडजस्ट कर लगा… तुम अपनी वेजाइना को सहलाओ।’

वह गूं गूं करती रही और मैंने अपने आधे घुसे, बल्कि यह कहा जाये तो ज्यादा सही होगा कि उसके कसे हुए छेद में आधे फंसे लिंग को और अंदर घुसाने की कोशिश की तो वह मचलने लगी।

‘मुझे लेट्रीन फील हो रही है… जाने दो।’ वह कांखते कराहते हुए ऐसे बोली कि लगा वाकयी में उसकी कैफियत ऐसी ही रही होगी।

मैंने अपना लिंग बाहर खींच लिया…’पक’ की आवाज़ के साथ खुला हुआ दरवाज़ा बंद हो गया और वह उठ कर कमरे से अटैच बाथरूम की तरफ भागी और दरवाज़े के पीछे गायब हो गई।

मैं बिस्तर पर गिर कर उसका इंतज़ार करने लगा।

पांच मिनट बाद वह वापस आई तो उसके चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव थे।

‘सॉरी…’ वह निदामत भरे लहजे में बोली और मेरे पास ही सर झुकाए बैठ गई।

‘इट्स ओके… पहली बार में हो जाता है… इसमें कोई बड़ी बात नहीं। यह तभी हो सकता है जब तुम मानसिक रूप से इसके लिए तैयार हो। अगर तुम ठीक नहीं महसूस कर रही तो कोई बात नहीं। हम ऐसे ही एन्जॉय करते हैं न।’ मैं उसके पास बैठ कर उसकी पीठ को सांत्वना भरे अंदाज़ में सहलाते हुए बोला।

वह थोड़ी देर अपनी घनेरी पलकें ऊपर उठा कर मेरी आँखों में देखती रही फिर निश्चयात्मक स्वर में बोली- नहीं, जो होगा आज होगा… यह मेरी ज़िन्दगी का वह वक़्त है, वह मौका है जो एक बार चला गया तो फिर कभी नहीं आएगा। मुझे पता नहीं था कि ऐसे वक़्त में कैसा महसूस होता है लेकिन अब पता है और मैं खुद को इसके लिए तैयार कर चुकी हूँ।

‘ऐज़ यू विश!’

‘पर नशा ख़त्म हो गया। फिर से बनाओ!’ वह बिस्तर की पुश्त से टिकती हुई बोली।

‘जैसी मैडम की मर्ज़ी।’ मैंने मुस्कराते हुए कहा और उठ कर ड्रिंक बनाने लगा… साथ ही दो सिगरेट भी सुलगा लीं।

हम फिर से शराबनोशी और स्मोकिंग करने लगे।

और इस बार जो रगड़घिस का दौर चला तो वह काफी वायलेंट तरीके से पेश आई। मैंने उसके बूब्स, योनि और चूतड़ों के साथ उसे वैसे ही रगड़ा कि फिर थोड़ी देर में ‘सी-सी’ करती पानी छोड़ने की कगार पर पहुँच गई।

इस बार छेद ढीला करने के लिये मैंने उसे डॉगी स्टाइल वाली पोजीशन में नहीं किया बल्कि चित लिटा कर बेड के किनारे खींच लाया और पांव घुटनों से मोड़ कर पीछे कर दिए। उसके दोनों छेद यूँ समझिए कि गद्दे की कगार पर आ गए थे।

खुद मैं नीचे उकड़ूं बैठ गया और उसकी योनि से ज़ुबानी छेड़छाड़ करने लगा।

उंगलियाँ फिर से तेल में डुबाईं और पहले बंद पड़े छेद को प्यार से सहलाया, फिर पहले एक उंगली और फिर कुछ देर में दोनों ही उंगलियाँ अंदर उतार दीं।

वह खुद अपने हाथों से अपने वक्ष को मसलने लगी थी और अपने निप्पलों को रगड़ने, खींचने लगी थी।

कुछ क्षणोपरांत जब वह तैयार हो गई तो खुद से उसने इशारा किया कि अब करो वर्ना ऐसे ही निकल जाएगा।

तब मैंने खड़े होकर उसके कूल्हों के नीचे कुशन रख कर छेदों को थोड़ा और ऊपर किया ताकि मुझे ज्यादा नीचे न होना पड़े और एक बार और अपने लिंग को तेल से सराबोर कर दिया।

इस बार जब शिश्नमुंड को छेद पर रख कर दबाया तो उसे अंदर सरकने में इतनी ताक़त न लगी।

जब वह अंदर गया तो मैंने उसका चेहरा देखा… उसने होंठ भींच लिए थे और खुद अपनी लार में उँगलियाँ गीली करके अपनी योनि पर ले आई थी और उसे रगड़ने सहलाने लगी थी।

धीरे धीरे करके इस बार मैंने अपने लिंग को उसके छेद में इतना धंसा दिया कि मेरा पेट उसके चूतड़ों से आ सटा।

‘पूरा अंदर हो गया?’ उसने कराहते हुए पूछा।

‘हाँ, अभी छेद खुद ही एडजस्ट कर लेगा। बस तुम खुद को गर्म किये रहो।’ मैंने आहिस्ता आहिस्ता लिंग को बाहर खींचते हुए कहा।

मैं जानता था कि भले वह चरम पर पहुँच चुकी हो लेकिन यह दर्द उसे वापस पीछे खींच लाएगा।
मैं उसका हाथ उसके वक्ष पर करके खुद अपने एक हाथ से उसके भगांकुर को सहलाने लगा और दूसरे हाथ से लिंग को पकड़े बाहर निकाल लिया।

‘पक’ की आवाज़ तो फिर हुई लेकिन इस बार बेहद हल्की…
मैंने फिर से लिंग को वापस घुसाया… ज़ाहिर है कि उसे फिर खिंचाव का दर्द बर्दाश्त करना पड़ा।

पूरा लिंग अंदर सरकाने के बाद मैंने फिर उसे वापस खींच लिया।

यह प्रक्रिया मैंने करीब बारह पंद्रह बार दोहराई और उसका दर्द हर बार हल्का पड़ते एकदम गायब हो गया जिसका एक कारण यह भी था कि मैंने लगातार उसके भगांकुर को सहलाते मसलते उसे गर्म करता रहा था और वह खुद भी अपने मम्मों को निप्पलों समेत रगड़ती मसलती, गर्म करती रही थी और साथ ही उसका छेद भी ढीला होकर इतना खुल गया कि अब लिंग को अंदर बाहर होने में कोई बाधा नहीं महसूस हो रही थी।
उसमें कसाव अब भी था मगर वैसा नहीं कि लिंग अंदर बाहर न हो सके।

‘अब ठीक है… हम कर सकते हैं। सुनो… तुम ऐसा करना जब मैं अंदर घुसाऊँ तो छेद को बाहर की तरफ फेंकते हुए उसे बाहर निकालने की कोशिश करो जैसे लैट्रीन करते वक़्त करते हो और जब मैं उसे बाहर की तरफ खींचूं तो तुम छेद को सिकोड़ कर उसे रोकने की कोशिश करो।’

इसके लिए ज़रूरी था कि मैं यह अंदर बाहर करने की प्रक्रिया को धीरे धीरे करूँ।
मैंने ऐसा ही किया और उसने ऐन मेरे निर्देशानुसार वैसा ही किया जिससे उसे अजीब सा मज़ा आया।

‘हम्म… अच्छा लग रहा है।’ उसने अपना हाथ अपनी योनि पर लगाते हुए कहा और खुद से वह करने लगी जो मैं कर रहा था जिससे मेरे हाथ फ्री हो गए और मैं उसके मुड़े हुए पैरों के घुटनों को पकड़ कर बाआहिस्तगी से चोदन करने लगा।

थोड़ी देर उसी अवस्था में सम्भोग करने के बाद मैंने लिंग बाहर निकाल लिया और उसे फिर पहले जैसी पोजीशन में आने को कहा।

वो फिर डॉगी स्टाइल में झुक कर बैठ गई और मैंने उसकी कमर को दबाते हुए इसे इस तरह बिस्तर से सटा दिया कि सिर्फ नितम्ब ही उठे हुए रह गए।

अब फिर गीला और ढीला पड़ चुका गेहुंए रंग का छेद मेरे सामने था।

उसके नितम्बों पर प्यार भरी सहलाहट देते हुए मैंने फिर लिंग अंदर घुसा दिया।
एक पल के लिए लगा कि उसे तकलीफ हुई हो लेकिन फिर वह सम्भल गई और खुद से आगे पीछे होने लगी।
जब मैं अंदर की तरफ घुसाता तो वह अपने चूतर पीछे की तरफ धकेलती और जब बाहर निकालता तो वह अपने चूतड़ों को आगे खींचती।

इस तरह वह घर्षण को और ज्यादा अच्छे से महसूस कर सकती थी… इस स्थिति में वह अपना एक हाथ नीचे लाकर अपनी योनि को भी रगड़ने लगी थी।

थोड़ी देर के धक्कों में ही न सिर्फ वह बल्कि मैं भी उत्तेजना के चरम पर पहुँचने लगे।

‘जोर जोर से करो।’ उसने ‘आह’ सी भरते हुए कहा।

मुझे भी यही अनुभूति हो रही थी। मैंने धक्कों की स्पीड तेज़ कर दी।

कमरे में मेरे पेट और उसके कूल्हों के टकराने से होती ‘थप-थप’ की आवाज़ें फैलने लगीं।

साथ ही उसकी मस्ती और उत्तेजना में डूबी कराहें कमरे के माहौल में और आग भरने लगीं।
मेरी साँसें भी भारी हो गई थीं और दिमाग स्खलन के उस चरम बिंदु पर पहुँचने लगा था।

फिर वह जोर की ‘आअह्ह’ करते हुए अकड़ गई।

योनि को रगड़ने वाला हाथ हटा कर उसने बिस्तर की चादर को दबोच लिया और जैसे अपनी सारी उत्तेजना उस चादर और गद्दे में जज़्ब करने लगी, जबकि मैं भी उसके जिस्म के साथ ही पीछे के छेद में आये कसाव को अपने लिंग पर महसूस करते हुए बह चला था और मेरी भी आहें छूट गईं।

मैंने अकड़ते हुए तीन चार झटके लगाए और उसके पैरों को एड़ियों से पकड़ कर ऐसे खींचा कि पैर बेड से नीचे रहे और बाकी जिस्म बेड पर फैल गया और साथ ही उसकी पीठ और चूतड़ों की तरफ से उससे सटा मैं भी उसी के ऊपर फैल गया और उसे पूरी ताक़त के साथ अपने नीचे दबाते हुए, हल्की गुर्राहटों के साथ स्खलित होने लगा।
जब ट्यूब खाली हो गई तो कुछ देर दिमाग में होती झनझनाहट से जूझने के बाद मैं उसके ऊपर से हट कर उसके पहलू में फैल गया और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगा।

 



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