ऑफिस की लड़की से जिस्मानी रिश्ता सही या गलत-2

उंगली से निप्पल को धीरे से मसलते हुए और होंठों से दूसरे निप्पल को लिक करते हुए.. मैंने अपना खाली हाथ नीचे की ओर बढ़ा दिया और उसको सुनीता की जांघों के बीच में लाकर धीरे-धीरे चूत को ऊपर से सहलाना शुरू कर दिया।

अब तो सुनीता का खुद पर से काबू खत्म हो गया।
कुछ देर के बाद मैंने उसकी सलवार के अन्दर हाथ डाल कर चूत को पैंटी के ऊपर से महसूस किया। तंग सलवार होने के कारण पैंटी के अन्दर हाथ नहीं जाए पा रहा था.. तो मैंने पैंटी के किनारे से उंगली अन्दर डाल दी।

उम्म्म्..म्म.. चूत तो ओवरफ्लो हो रही थी।
मैंने अब उसकी सलवार को और पैन्टी दोनों को उसके शरीर से अलग कर दिया और होंठों से प्यार करते नीचे की ओर आना शुरू किया।
जब उसकी जांघों के पास मेरे होंठ आ गए.. तो सुनीता के सब्र का बाँध टूटने लगा।

सुनीता ने बहुत मेरी शर्ट को मुझसे अलग किया।
फिर बारी थी बनियान की.. और फिर कांपते हाथों से उसने मेरे पैंट को अलग कर दिया।

अंडरवियर मैंने खुद ही एक ओर फेंक दी और फिर अपने हरिभाई को सुनीता के हाथों में दे कर प्यार करने को कहा।
उसके नरम नाजुक.. कोमल हाथों में आकर मेरे हरिबाबू ने अपनी लम्बाई और मोटाई कुछ और बढ़ा ली।

मुख मैथुन
मेरे होंठ सुनीता की योनि से निकलने वाले रस का पान कर रहे थे और सुनीता के हाथों में मेरा लिंग था।

अब सब शर्म छोड़ कर सुनीता ने भी मेरे लिंग को प्यार करना शुरू कर दिया। उसने मेरे हरिबाबू को जीभ से जड़ से सुपारे तक प्यार किया, गुलाबी सुपारे के मुँह पर होते से छेद पर अपनी जीभ घुमा-घुमा कर प्यार किया और लिंग को अपने मुँह में भर कर प्यार करना शुरू कर दिया।

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मैंने भी सुनीता की चूत के बाहर की ओर जांघों के किनारों पर जीभ से प्यार करना जारी रखा।
अब सुनीता वास्तव में बेकाबू हो गई थी, उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपनी योनि पर दबा दिया और जांघों से बीच में कुछ इस तरह भींच लिया कि मेरा सर हिल भी नहीं सकता था।

जांघों के बीच जकड़ा हुआ सर और होंठों के सामने यौवन भरी हुई योनि.. शायद यही स्वर्ग है।
मैंने भी अपनी जीभ उस स्वर्ग के अन्दर डाल दी।
सुनीता का पूरा वज़ूद काँप गया.. जब जीभ की नोक ने सुनीता की चूत के जी-स्पॉट को टच किया, जी-स्पॉट को मैंने मेरे अनुभव से जाना है कि यह चूत के लगभग 2 इंच अन्दर ऊपर की तरफ होता है।

उसके स्पर्श से मानो कहर आ गया… सुनीता ने अपने पैरों को मोड़कर अपनी कमर को ऊपर उठा लिया और मेरे चेहरे को पूरी शक्ति से जांघों से दबा कर तेज़ आवाज़ निकालते हुए अपने चर्मोत्कर्ष को पा लिया।

इसके बाद सुनीता निढाल हो गई और उसने हरिबाबू को भी चूसना बंद दिया।
कुछ देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद जब उसकी सांस व्यस्थित हुई.. तो फिर उसने मेरे लिंग को अपने मुँह से बाहर निकाला और मेरे टेस्टिकल्स पर जीभ फिराना चालू किया और बॉल को अपने मुँह में लेकर लॉलीपॉप के समान चूसने लगी।

फिर ऐसा ही ट्रीटमेंट दूसरी बॉल के साथ किया।
दोनों बॉल्स के बाद उसने जांघों के बीच में जीभ फिराना शुरू कर दिया।

अब मंजिल करीब आ गई

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